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एक खिलाड़ी के तौर पर आप ये बखूबी जानते हैं कि, मैदान में जितनी फ़िज़िकल स्ट्रेंथ की जरूरत होती है उतनी ही मेंटल स्ट्रेंथ भी मायने रखती है। आप लोग तो विशेष रूप से ऐसी परिस्थितियों से निकलकर आगे बढ़े हैं जहां मेंटल स्ट्रेंथ से ही इतना कुछ मुमकिन हुआ है। इसीलिए, आज देश अपने खिलाड़ियों के लिए इन सभी बातों का ध्यान रख रहा है। खिलाड़ियों के लिए ‘स्पोर्ट साइकॉलजी’ उसपर वर्कशॉप्स और सेमिनार्स इसकी व्यवस्था लगातार करते रहे हैं। हमारे ज़्यादातर खिलाड़ी छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों से आते हैं। इसलिए, exposure की कमी भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती होती है। नई जगह, नए लोग, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ, कई बार ये चुनौतियाँ ही हमारा मनोबल कम कर देती है। इसीलिए ये तय किया गया कि इस दिशा में भी हमारे खिलाड़ियों को ट्रेनिंग मिलनी चाहिए। मैं उम्मीद करता हूं कि टोक्यो पैरालम्पिक्स को ध्यान में रखते हुए जो तीन सेशन्स आपने जॉइन किए, इनसे आपको काफी मदद भी मिली होगी। पहले दिव्यांगजनों के लिए सुविधा देने को वेलफेयर समझा जाता था। लेकिन आज देश इसे अपना दायित्व मानकर काम कर रहा है। इसीलिए, देश की संसद ने ‘The Rights for Persons with Disabilities Act, जैसा कानून बनाया, दिव्यांगजनों के अधिकारों को कानूनी सुरक्षा दी। सुगम्य भारत अभियान’ इसका एक और बड़ा उदाहरण है। आज सैकड़ों सरकारी buildings, सैकड़ों रेलवे स्टेशन,हजारों ट्रेन कोच, दर्जनों domestic airports के इनफ्रास्ट्रक्चर को दिव्यांग जनों के लिए सुगम बनाया जा चुका है। इंडियन साइन लैंग्वेज की स्टैंडर्ड डिक्शनरी बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। NCERT की किताबों को भी साइन लैंग्वेज में translate किया जा रहा है। इस तरह के प्रयासों से कितने ही लोगों का जीवन बदल रहा है, कितनी ही प्रतिभाओं को देश के लिए कुछ करने का भरोसा मिल रहा है। |