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   विश्‍व बैंक रिपोर्ट 2019 के अनुसार ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक में 23 पायदानों की ऊंची छलांग लगाकर भारत वर्ष 2017-18 के 100वें पायदान से ऊपर चढ़कर वर्ष 2018-19 में 77वें पायदान पर पहुंच गया है। इससे संकेत मिलता है कि भारत वैश्विक मानकों को अपनाने की दिशा में निरंतर तेज गति से बढ़ रहा है। इस लम्‍बी छलांग में जिस एक महत्‍वपूर्ण पैमाने ने  उल्‍लेखनीय योगदान दिया है, वह ‘सीमा पार व्‍यापार’ है। इस मोर्चे पर भारत की रैंकिंग पिछले वर्ष की 146वीं से काफी सुधर कर इस वर्ष 80वीं हो गई है।       शिपिंग मंत्रालय ‘सीमा पार व्‍यापार’ पैमाने पर सुधार के लिए निरंतर पहल करता रहा है। उल्‍लेखनीय है कि मात्रा की दृष्टि से भारत के निर्यात-आयात व्‍यापार के 92 प्रतिशत का संचालन बंदरगाहों पर ही होता है।     रिपोर्ट में इस बात का उल्‍लेख किया गया है कि भारत द्वारा सुधार एजेंडे को निरंतर आगे बढ़ाने से ही यह संभव हो पाया है, जिसकी बदौलत भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था इस क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन गई है। बंदरगाह से जुड़े बुनियादी ढांचे के उन्‍नयन, प्रक्रियाओं में सुधार और दस्‍तावेज प्रस्‍तुति के डि‍जिटलीकरण से बंदरगाहों पर निर्यात/आयात कारगो के संचालन में लगने वाला समय काफी घट गया है, जिसने ‘सीमा पार व्‍यापार’ पैमाने में सुधार करने के साथ-साथ विश्‍व बैंक रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग में उल्‍लेखनीय सुधार करने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। विश्‍व बैंक ने इस वर्ष के दौरान अपनी रैंकिंग में सर्वाधिक सुधार करने वाले देशों में भारत को भी शुमार किया है।      रिपोर्ट के अनुसार, बंदरगाह क्षेत्र के लिए प्रासंगिक माने जाने वाले सीमा अनुपालन पैमाने के तहत निर्यात लागत 382.4 डॉलर से घटकर 251.6 डॉलर के स्‍तर पर आ गई है। इसी तरह आयात लागत भी 543.2 डॉलर से घटकर 331 डॉलर रह गई है।     केन्‍द्रीय शिपिंग, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा, ‘प्रमुख बंदरगाहों पर निर्यात-आयात कारगो के संचालन में बेहतरी लाने हेतु किए गए अथक प्रयासों से भारत में कारोबार करने में और ज्‍यादा सुगमता या आसानी संभव हो पाई है। इससे आर्थिक विकास को नई गति मिलेगी और युवाओं के लिए बड़ी संख्‍या में रोजगार अवसर सृजित होंगे।’     सरकार ने समय एवं लागत की दृष्टि से भारत के एक्जिम लॉजिस्टिक्‍स को और ज्‍यादा प्रतिस्‍पर्धी बनाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। भारत के प्रमुख बंदरगाहों के प्रदर्शन को उनके अंतर्राष्‍ट्रीय समकक्षों के अनुरूप करने के लिए कई अध्‍ययन कराए गए हैं और इनकी क्षमता एवं उत्‍पादकता को वैश्विक मानकों के अनुरूप करने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। विशेषकर 114 चिन्हित पहल की गई हैं।     श्री गडकरी ने कहा, ‘बंदरगाह से जुड़ी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के विकास एवं क्षमता बढ़ाने, अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी बेहतर करने और एक्जिम को बढ़ावा देने के लिए मल्‍टी- मोडल केन्‍द्रों (हब) के विकास पर फोकस किया गया है। सागरमाला के तहत सरकार की बंदरगाह आधारित विकास पहल और 1.45 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के निवेश वाली 266 बंदरगाह आधुनिकीकरण परियोजनाओं को अगले 10 वर्षों के दौरान कार्यान्‍वयन के लिए चिन्हित किया गया है।’    13710 करोड़ रुपये की लागत वाली 80 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जबकि 2.39 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजनाएं फिलहाल कार्यान्वित की जा रही हैं।     श्री गडकरी ने कहा, ‘अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के उद्देश्‍य से सागरमाला के तहत 250907 करोड़ रुपये की लागत वाली 211 सड़क-रेल परियोजनाओं को चिन्हित किया गया है। 3989 करोड़ रुपये के निवेश वाले 15 मल्‍टी-मोडल लॉजिस्टिक पार्कों से इस कार्यक्रम के तहत माल ढुलाई की क्षमता बेहतर होगी।’      पिछले चार वर्षों के दौरान प्रमुख बंदरगाहों पर औसत विकास दर पांच प्रतिशत से अधिक रहने के मद्देनजर शिपिंग मंत्रालय ने नीति एवं प्रक्रिया में बदलावों के साथ-साथ यंत्रीकरण के जरिए भी इनकी परिचालन क्षमता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं।      इसके परिणामस्‍वरूप दक्षता से जुड़े महत्‍वपूर्ण पैमानों में उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है। जहाजों पर माल लादने एवं उतारने की प्रक्रिया (टर्नअराउंड) में लगने वाला औसत समय 82 घंटों से कम होकर वर्ष 2017-18 में 64 घंटे रह गया है। प्रति जहाज बर्थ दिन औसत उत्पादन वर्ष 2016-17 के 14583 टन से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 14912 टन हो गया है। इसी तरह प्रमुख बंदरगाहों पर यातायात वर्ष 2016-17 के 6483.98 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 6794.7 लाख टन के स्‍तर पर पहुंच गया है।      परम्‍परागत गतिविधियों को डिजिटल प्‍लेटफॉर्म पर हस्‍तां‍तरित करने, कारगो संचालन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और प्रक्रियाओं के सरलीकरण से कारोबार को नई गति मिली है और इसके साथ ही कारोबार करने में सुगमता या आसानी सुनिश्चित हुई है। इस दिशा में निम्‍नलिखित कदम उठाए गए हैं : सुरक्षा बढ़ाने और बंदरगाह के द्वार पर यातायात की निर्बाध आवाजाही से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए 11 प्रमुख बंदरगाहों पर रेडियो फ्रीक्‍वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) प्रणाली लगाई गई है। आरएफआईडी प्रणाली स्‍वत: ही ट्रकों और ड्राइवरों की पहचान कर लेती है तथा इसके तहत मानवीय चेकिंग के लिए बंदरगाह के द्वार पर उन्‍हें रुकने की जरूरत नहीं पड़ती है।प्रमुख बंदरगाहों पर एक्जिम कंटेनरों की आवाजाही पर करीबी नजर रखने के लिए डीएमआईसीडीसी की लॉजिस्टिक्‍स डेटाबैंक प्रणाली (एलडीबी) लगाई गई है। इससे माल भेजने वालों एवं माल प्राप्‍त करने वाले दोनों को ही पोर्टल से कंटेनरों की आवाजाही पर नजर रखने में मदद मिलती है। सीधी बंदरगाह डिलीवरी (डीपीडी) और सीधा बंदरगाह प्रवेश (डीपीई) की भी सुविधाएं स्‍थापित की गई हैं, जिससे कारखानों/बंदरगाहों से कंटेनरों की सीधी आवाजाही सुनिश्चित हो गई है और इसके लिए किसी मध्‍यवर्ती व्‍यक्ति या निकाय द्वारा संचालन करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे लागत एवं समय की बचत होती है। आयात कंटेनरों की सीधी बंदरगाह डिलीवरी नवम्‍बर 2016 के 3 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई, 2018 में 40.62 प्रतिशत के उच्‍च स्‍तर पर पहुंच गई। इससे डीपीडी आयातक लाभान्वित होते हैं, क्‍योंकि लागत में 15000 रुपये तक की बचत होती है और डिलीवरी समय औसतन पांच दिनों का होता है। निर्यात कंटेनरों के सीधे बंदरगाह प्रवेश का प्रतिशत अप्रैल, 2017 के 60 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई, 2018 में 82.66 प्रतिशत हो गया। ड्राइव-थ्रू कंटेनर स्‍कैनरों को लगाने से प्रमुख बंदरगाहों पर समय बचेगा। कागजी कार्यवाही कम हो गई है और इसकी जगह प्रमुख बंदरगाहों पर ई-डिलीवरी ऑर्डर, ई-इनवॉयस और ई-पेमेंट जारी करने की व्‍यवस्‍था की गई है। विभिन्‍न प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण से प्रोसेसिंग में लगने वाला समय काफी घट गया है। केन्‍द्रीकृत वेब आधारित बंदरगाह समुदाय प्रणाली (पीसीएस) का उन्‍नयन किया गया है, जिसका उद्देश्‍य इंटरनेट आधारित इंटरफेस के जरिए इसके समस्‍त हितधारकों को केन्‍द्रीय डेटाबेस तक पहुंच सुलभ कराने के साथ-साथ वैश्विक दृश्‍यता या अवलोकन प्रदान करना भी है।            ***आर.के.मीणा/अर्चना/आरआरएस/वाईबी-11039