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उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर नमामि गंगे से जुड़ी परियोजनाओं का काम गति पकड़ रहा है। प्रदेश में नमामि गंगे के तहत 6960.22 करोड़ की लागत से कुल 32 स्वीकृत परियोजनाओं में से 08 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं, 15 निर्माणाधीन हैं और 9 टेण्डर की प्रक्रिया में हैं। इलाहाबाद के फुलवारिया, सलोरी और नैनी में सीवरेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) और लगभग 161 कि.मी. सीवर लाइन बिछाने का कार्य पूर्ण हो चुका है। इन सभी संयंत्रों से 119 एम.एल.डी. मल जल का शोधन किया जा सकेगा। इसी प्रकार कन्नौज में 62.5 कि.मी. लम्बी सीवर लाइन बिछाई जा चुकी है और नरौरा, बुलंदशहर में 4 एम.एल.डी. क्षमता की एस.टी.पी. और 21.03 कि.मी. लम्बी सीवर लाइन तैयार है। गढ़मुक्तेश्वर (हापुड़) में 9 एमएलडी की क्षमता वाले एसटीपी का और 69 कि.मी. लम्बी सीवर लाइनों का निर्माण कराया गया है। इन सभी पूर्ण परियोजनाओं की संयुक्त क्षमता 133 एमएलडी मल-जल शोधन करने की है। भारत वर्ष के कुल भू-भाग का 26 प्रतिशत हिस्सा गंगा बेसिन में हैं और देश की लगभग 43 प्रतिशत जनसंख्या गंगा नदी पर निर्भर है। देश का 57 प्रतिशत कृषि भू-भाग सिंचाई के लिए गंगा व उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। गंगा नदी की कुल लंबाई 2,525 किमी है और यह पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। वैसे गंगा बेसिन में कुल 11 राज्य है। देश के जल संसाधनों में से 28 प्रतिशत गंगा नदी से ही प्राप्त होता है।गंगा नदी के आम जनजीवन में व्यापक महत्व को देखते हुए, केन्द्र सरकार ने जुलाई 2014 में पहली बार गंगा पुनरूद्धार के लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की और मई, 2015 में 20,000 करोड़ के बजट के आबंटन से गंगा की निर्मलता और अविरलता को बहाल करने के उद्देश्य से नमामि गंगे कार्यक्रम की शुरुआत की । नमामि गंगे के तहत, अब तक सीवेज अवसंरचना ,औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण, नदी तट, घाट और मुक्तिधामों के विकास हेतु 22,273 करोड़ रुपये की लागत से कुल 230 परियोजनाएं स्वीकृति की जा चुकी है जिनमें तेजी से कार्य हो रहा है। 44 स्थानों पर जल की गुणवत्ता की नियमित जांच हेतु मानिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं। नमामि गंगे शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित योजना है और पूरे पांच वर्ष के लिए एकमुश्त बजट का आबंटन कर दिया गया है। इसके अंतर्गत सभी शहरों में चलने वाली परियोजनाओं की एमएलडी क्षमता इस प्रकार रखी गई है कि यह 2035 तक अनुमानित सीवेज के शोधन के लिए पर्याप्त होगी। कई सीवरेज परियोजनाओं में हाईब्रिड एन्यूटी आधारित पीपीपी मॉडल का उपयोग किया जा रहा है जिसमें 15 वर्ष तक के लिए एस.टी.पी. का संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी निजी कंपनी ऑपरेटरों की ही होगी।इस मिशन के द्वारा, गंगा नदी में प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों और शहरों से निकलने वाले लाखों लीटर मल-जल, सैंकड़ो नालों का गंदा पानी तथा राम गंगा,काली जैसी सहायक नदियों के द्वारा मिलने वाले मल-जल के शोधन का महत्वपूर्ण कार्य होना है।उत्तर प्रदेश की निर्माणाधीन 15 परियोजनाओं में कानपुर शहर के सीसामऊ नाला में इंटरसेप्शन व डायवर्जन (आई एण्ड डी) का कार्य तेजी से चल रहा है। इसके पूरा होने पर इस नाला के द्वारा गंगा में मिलने वाले मल-जल को एसटीपी के जरिए शोधित किया जा सकेगा। कानपुर व विठूर में भी एसटीपी व सीवर लाइन का कार्य प्रगति पर है। वाराणसी के दीनापुर में एसटीपी का कार्य चल रहा है जिससे 140 एमएलडी क्षमता का मल जल शोधित होगा और 28 कि.मी. लम्बी सीवर लाइन भी बिछाई जा रही है। 13 जून, 2018 को दिल्ली में एनएमसीजी, यू.पी. जल निगम और त्रिवेणी इंजीनियरिंग और इण्डस्ट्रीज के बीच एक एमझौता हुआ था जिसके जरिए मथुरा के लिए एक समेकित मल जल योजना 437.95 करोड़ की लागत से प्रस्तावित की गई थी। मथुरा के सारे वर्तमान और भविष्य में बनने वाले एसटीपी, सीवर लाइन, सीवर पम्प आदि की देखभाल एक ही कम्पनी करेगी। यह योजना ‘वन सिटी वन ऑपरेटर’ और हाइब्रिड एन्यूटी मोड के तहत लागू की जाएगी। उसी दिन मथुरा में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लि. और नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के बीच एक समझौता हुआ था जिसके जिरए मथुरा मल-जल संयंत्र से निकलने वाले शोधित जल को मथुरा रिफाइनरी प्रयोग करेगी। यह कार्य जल्दी ही शुरू हो जाएगा। इसी प्रकार मथुरा, उन्नाव, फर्रुखाबाद और बुलंदशहर में भी एसटीपी, आई एंड डी और सीवर लाइन के कार्य प्रगति पर हैं। इन सभी योजनाओं के पूर्ण होने पर 1370 कि.मी.लम्बी सीवर लाइन बिछेगी और 534 एमएलडी क्षमता का मल जल शोधन हो सकेगा। इलाहाबाद (फाफामऊ व झूंसी), मिर्जापुर, गाजीपुर, अयोध्या, मुरादाबाद, वृंदावन और चुनार में भी एसटीपी, सीवर लाइन व आई एंड डी के विभिन्न कार्यों के लिए निविदा प्रक्रिया चल रही है।घाटों और मुक्तिधामों का निर्माणउत्तर प्रदेश के कानपुर, कन्नौज, बिठूर, इलाहाबाद, वाराणसी आदि अनेक शहरों में 87 घाटों और शवदाह हेतु 25 मुक्तिधामों का निर्माण कार्य 398 करोड़ के लागत से कराया जा रहा है। इनमें से 25 घाटों का कार्य पूरा हो चुका है। कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी में ट्रैशस्किमर्स चलाए जा रहे हैं जिससे नदी की सतह से कूड़ा-कचरा निकाला जाता है। वाराणसी के 84 घाटों की सफाई का जिम्मा आईएल एंड एफएस एनवायरमेंटल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड सर्विस लि. को 5 करोड़ प्रतिवर्ष की लागत से तीन वर्षों के लिए दिया गया है। इसी प्रकार बिठूर, कानपुर, इलाहाबाद और मथुरा-वृंदावन में 94 घाटों की अगले तीन वर्षों के लिए सफाई के लिए 12.97 करोड़ रुपए स्वीकृत किया गए हैं।प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों पर कार्रवाईगंगा तट पर कुल 961 औद्योगिक इकाइयां ऐसी थीं जो गंगा नदी को काफी प्रदूषित कर रही थीं। तकनीकी संस्थाओं के सहयोग से एक अभियान चलाकर उनका निरीक्षण किया गया। अभियान के फलस्वरूप 211 इकाइयां स्वत: बंद हो गईं, 54 उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और 3 इकाइयों को बंद करने के नोटिस दिए गए हैं। टैनरी उद्योगों द्वारा होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए जाजमऊ (कानपुर) में 554 करोड़ की लागत से सीईटीपी अनुमोदित किया गया है। चीनी उद्योगों में प्रति टन पीसे हुए गन्ने पर अपशिष्ट सृजन 400 लीटर से कम करके 200 लीटर किया गया है। इसी प्रकार पेपर और पल्प तथा टेक्सटाइल इंण्डस्ट्री में भी प्रदूषण कम करने की कोशिश हो रही है। जल संसाधन मंत्रालय द्वारा की गई एक नई पहल एक शहर एक प्रचालक (वन सिटी वन आपरेटर) के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में मथुरा, फर्रुखाबाद एवं कानपुर में कार्य आबंटित किया जा चुका है। इलाहाबाद, गाजीपुर और मिर्जापुर में निविदाएं प्राप्त हो चुकी हैं। ‘वन सिटी वन आपरेटर’ के द्वारा एक शहर की समस्त योजनाओं को (एसटीपी हो, सीवर नेटवर्क हो आदि) एक ही कम्पनी द्वारा संचालित किया जाता है जिससे कार्य के संचालन में सुविधा हो। **** नीता/सुधीर/इरशाद
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