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इस महामारी के दौरान भी हमने भारत के किसानों का सामर्थ्य देखा है। रिकॉर्ड उत्पादन के बीच सरकार ने भी प्रयास किया है कि किसानों की परेशानी कम से कम हो। सरकार ने खेती और इससे जुड़े हर सेक्टर को बीज, खाद से लेकर अपनी उपज को बाज़ार तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास किए, उपाय किए। यूरिया की सप्लाई निर्बाध रखी। DAP,जिसके दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इस कोरोना के चलते कई गुणा बढ़ गए, उसका बोझ भी हमारी सरकार ने किसानों पर पड़ने नहीं दिया। सरकार ने तुरंत इसके लिए 12 हजार करोड़ रुपए का इंतजाम किया।
आज भारत कृषि निर्यात के मामले में पहली बार दुनिया के टॉप-10 देशों में पहुंचा है। कोरोना काल में ही देश ने कृषि निर्यात के नए रिकॉर्ड बनाए हैं। आज जब भारत की पहचान एक बड़े कृषि निर्यातक देश की बन रही है, तब हम खाद्य तेल की अपनी ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर रहें, ये बिल्कुल उचित नहीं है। इसमें भी आयातित ऑयल-पाम, का हिस्सा 55 प्रतिशत से अधिक है। इस स्थिति को हमें बदलना है। खाने का तेल खरीदने के लिए हमें जो हज़ारों करोड़ रुपए विदेश में दूसरों को देना पड़ता है, वो देश के किसानों को ही मिलना चाहिए। भारत में पाम – ऑयल की खेती के लिए हर ज़रूरी संभावनाएं हैं। नॉर्थ ईस्ट और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में, विशेष रूप से इसे बहुत बढ़ाया जा सकता है। ये वो क्षेत्र हैं जहां आसानी से पॉम की खेती हो सकती है। पाम-ऑयल का उत्पादन हो सकता है। 
खाने के तेल में आत्मनिर्भरता के इस मिशन के अऩेक लाभ हैं। इससे किसानों को तो सीधा लाभ होगा ही, गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को सस्ता और अच्छी क्वालिटी का तेल भी मिलेगा। यही नहीं, ये मिशन बड़े स्तर पर रोजगार का निर्माण करेगा, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को बल देगा। विशेष रूप से Fresh Fruit Bunch Processing से जुड़े उद्योगों का विस्तार होगा। जिन राज्यों में पाम-ऑयल की खेती होगी, वहां ट्रांसपोर्ट से लेकर फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स में युवाओं को अनेक रोज़गार मिलेंगे।