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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। 2015 – एक प्रकार से मेरी इस वर्ष की आख़िरी ‘मन की बात’। अगले ‘मन की बात’ 2016 में होगी। अभी-अभी हम लोगों ने क्रिसमस का पर्व मनाया और अब नये वर्ष के स्वागत की तैयारियाँ चल रही हैं। भारत विविधताओं से भरा हुआ है। त्योहारों की भी भरमार लगी रहती है। एक त्योहार गया नहीं कि दूसरा आया नहीं। एक प्रकार से हर त्योहार दूसरे त्योहार की प्रतीक्षा को छोड़कर चला जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर ‘त्योहार Driven Economy’ भी है। समाज के ग़रीब तबक़े के लोगों की आर्थिक गतिविधि का वो कारण बन जाता है। मेरी तरफ़ से सभी देशवासियों को क्रिसमस की भी बहुत-बहुत शुभकामनायें और 2016 के नववर्ष की भी बहुत-बहुत शुभकामनायें। 2016 का वर्ष आप सभी के लिए ढेरों खुशियाँ ले करके आये। नया उमंग, नया उत्साह, नया संकल्प आपको नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाए। दुनिया भी संकटों से मुक्त हो, चाहे आतंकवाद हो, चाहे ग्लोबल वार्मिंग हो, चाहे प्राकृतिक आपदायें हों, चाहे मानव सृजित संकट हो। मानव जाति सुखचैन की ज़िंदगी पाये, इससे बढ़कर के खुशी क्या हो सकती है|
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+ अनेक लोगों के अथक प्रयास का परिणाम है कि देश बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है। क़दम से क़दम मिला करके सवा सौ करोड़ देशवासी एक-एक क़दम ख़ुद भी आगे बढ़ रहे हैं, देश को भी आगे बढ़ा रहे हैं। बेहतर शिक्षा, उत्तम कौशल एवं रोज़गार के नित्य नए अवसर। चाहे नागरिकों को बीमा सुरक्षा कवर से लेकर बैंकिंग सुविधायें पहुँचाने की बात हो। वैश्विक फ़लक पर ‘Ease of Doing Business’ में सुधार, व्यापार और नये व्यवसाय करने के लिए सुविधाजनक व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराना। सामान्य परिवार के लोग जो कभी बैंक के दरवाज़े तक नहीं पहुँच पाते थे, ‘मुद्रा योजना’ के तहत आसान ऋण उपलब्ध करवाना।
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+ हर भारतीय को जब ये पता चलता है कि पूरा विश्व योग के प्रति आकर्षित हुआ है और दुनिया ने जब ‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया और पूरा विश्व जुड़ गया तब हमें विश्वास पैदा हो गया कि वाह, ये तो है न हिन्दुस्तान। ये भाव जब पैदा होता है न, ये तब होता है जब हम विराट रूप के दर्शन करते हैं। यशोदा माता और कृष्ण की वो घटना कौन भूलेगा, जब श्री बालकृष्ण ने अपना मुँह खोला और पूरे ब्रह्माण्ड का माता यशोदा को दर्शन करा दिये, तब उनको ताक़त का अहसास हुआ। योग की घटना ने भारत को वो अहसास दिलाया है।
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+ स्वच्छता की बात एक प्र��ार से घर-घर में गूंज रही है। नागरिकों का सहभाग भी बढ़ता चला जा रहा है। आज़ादी के इतने सालों के बाद जिस गाँव में बिजली का खम्भा पहुँचता होगा, शायद हम शहर में रहने वाले लोगों को, या जो बिजली का उपभोग करते हैं उनको कभी अंदाज़ नहीं होगा कि अँधेरा छंटता है तो उत्साह और उमंग की सीमा क्या होती है। भारत सरकार का और राज्य सरकारों का ऊर्जा विभाग काम तो पहले भी करता था लेकिन जब से गांवों में बिजली पहुँचाने का 1000 दिन का जो संकल्प किया है और हर दिन जब ख़बर आती है कि आज उस गाँव में बिजली पहुँची, आज उस गाँव में बिजली पहुँची, तो साथ-साथ उस गाँव के उमंग और उत्साह की ख़बरें भी आती हैं। अभी तक व्यापक रूप से मीडिया में इसकी चर्चा नहीं पहुँची है लेकिन मुझे विश्वास है कि मीडिया ऐसे गांवों में ज़रूर पहुंचेगा और वहाँ का उत्साह-उमंग कैसा है उससे देश को परिचित करवाएगा और उसके कारण सबसे बड़ा तो लाभ ये होगा कि सरकार के जो मुलाज़िम इस काम को कर रहे हैं, उनको एक इतना satisfaction मिलेगा, इतना आनंद मिलेगा कि उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो किसी गाँव की, किसी की ज़िंदगी में बदलाव लाने वाला है। किसान हो, ग़रीब हो, युवा हो, महिला हो, क्या इन सबको ये सारी बातें पहुंचनी चाहिये कि नहीं पहुंचनी चाहिये? पहुंचनी इसलिये नहीं चाहिये कि किस सरकार ने क्या काम किया और किस सरकार ने काम क्या नहीं किया! पहुंचनी इसलिये चाहिए कि वो अगर इस बात का हक़दार है तो हक़ जाने न दे। उसके हक़ को पाने के लिए भी तो उसको जानकारी मिलनी चाहिये न! हम सबको कोशिश करनी चाहिये कि सही बातें, अच्छी बातें, सामान्य मानव के काम की बातें जितने ज़्यादा लोगों को पहुँचती हैं, पहुंचानी चाहिए। यह भी एक सेवा का ही काम है। मैंने अपने तरीक़े से भी इस काम को करने का एक छोटा सा प्रयास किया है। मैं अकेला तो सब कुछ नहीं कर सकता हूँ। लेकिन जो मैं कह रहा हूँ तो कुछ मुझे भी करना चाहिये न। एक सामान्य नागरिक भी अपने मोबाइल फ़ोन पर ‘Narendra Modi App’ को download करके मुझसे जुड़ सकता है। और ऐसी छोटी-छोटी-छोटी बातें मैं उस पर शेयर करता रहता हूँ। और मेरे लिए खुशी की बात है कि लोग भी मुझे बहुत सारी बातें बताते हैं। आप भी अपने तरीक़े से ज़रूर इस प्रयास में जुड़िये, सवा सौ करोड़ देशवासियों तक पहुंचना है। आपकी मदद के बिना मैं कैसे पहुंचूंगा। आइये, हम सब मिलकर के सामान्य मानव की हितों की बातें, सामान्य मानव की भाषा में पहुंचाएं और उनको प्रेरित करें, उनके हक़ की चीजों को पाने के लिए।
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+ मेरे प्यारे नौजवान साथियो, 15 अगस्त को लाल किले से मैंने ‘Start-up India, Stand-up India’ उसके संबंध में एक प्राथमिक चर्चा की थी। उसके बाद सरकार के सभी विभागों में ये बात चल पड़ी। क्या भारत ‘Start-up Capital’ बन सकता है? क्या हमारे राज्यों के बीच नौजवानों के लिए एक उत्तम अवसर के रूप में नये–नये Start-ups, अनेक with Start-ups, नये-नये Innovations! चाहे manufacturing में हो, चाहे Service Sector में हो, चाहे Agriculture में हो। हर चीज़ में नयापन, नया तरीका, नयी सोच, दुनिया Innovation के बिना आगे बढ़ती नहीं है। ‘Start-up India, Stand-up India’ युवा पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा अवसर लेकर आयी है। मेरे नौजवान साथियो, 16 जनवरी को भारत सरकार ‘Start-up India, Stand-up India’ उसका पूरा action-plan launch करने वाली है। कैसे होगा? क्या होगा? क्यों होगा? एक ख़ाका आपके सामने प्रस्तुत किया जाएगा। और इस कार्यक्रम में देशभर की IITs, IIMs, Central Universities, NITs, जहाँ-जहाँ युवा पीढ़ी है, उन सबको live-connectivity के द्वारा इस कार्यक्रम में जोड़ा जाएगा।
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+ Start-up के संबंध में हमारे यहाँ एक सोच बंधी-बंधाई बन गयी है। जैसे digital world हो या IT profession हो ये start-up उन्हीं के लिए है! जी नहीं, हमें तो उसको भारत की आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव लाना है। ग़रीब व्यक्ति कहीं मजदूरी करता है, उसको शारीरिक श्रम पड़ता है, लेकिन कोई नौजवान Innovation के द्वारा एक ऐसी चीज़ बना दे कि ग़रीब को मज़दूरी में थोड़ी सुविधा हो जाये। मैं इसको भी Start-up मानता हूँ। मैं बैंक को कहूँगा कि ऐसे नौजवान को मदद करो, मैं उसको भी कहूँगा कि हिम्मत से आगे बढ़ो। Market मिल जायेगा। उसी प्रकार से क्या हमारे युवा पीढ़ी की बुद्धि-संपदा कुछ ही शहरों में सीमित है क्या? ये सोच गलत है। हिन्दुस्तान के हर कोने में नौजवानों के पास प्रतिभा है, उन्हें अवसर चाहिये। ये ‘Start-up India, Stand-up India’ कुछ शहरों में सीमित नहीं रहना चाहिये, हिन्दुस्तान के हर कोने में फैलना चाहिये। और इसे मैं राज्य सरकारों से भी आग्रह कर रहा हूँ कि इस बात को हम आगे बढाएं। 16 जनवरी को मैं ज़रूर आप सबसे रूबरू हो करके विस्तार से इस विषय में बातचीत करूंगा और हमेशा आपके सुझावों का स्वागत रहेगा।
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+ प्यारे नौजवान साथियो, 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जी की जन्म-जयंती है। मेरे जैसे इस देश के कोटि-कोटि लोग हैं जिनको स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरणा मिलती रही है। 1995 से 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जयंती को एक National Youth Festival के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष ये 12 ��नवरी से 16 जनवरी तक छत्तीसगढ़ के रायपुर में होने वाला है। और मुझे जानकारी मिली कि इस बार की उनकी जो theme है, क्योंकि उनका ये event them based होता है, theme बहुत बढ़िया है ‘Indian Youth on development skill and harmony’. मुझे बताया गया कि सभी राज्यों से, हिंदुस्तान के कोने-कोने से, 10 हज़ार से ज़्यादा युवा इकट्ठे होने वाले हैं। एक लघु भारत का दृश्य वहाँ पैदा होने वाला है। युवा भारत का दृश्य पैदा होने वाला है। एक प्रकार से सपनों की बाढ़ नज़र आने वाली है। संकल्प का एहसास होने वाला है। इस Youth Festival के संबंध में क्या आप मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं? मैं ख़ास कर के युवा दोस्तों से आग्रह करता हूँ कि मेरी जो ‘Narendra Modi App’ है उस पर आप directly मुझे अपने विचार भेजिए। मैं आपके मन को जानना-समझना चाहता हूँ और जो ये National Youth Festival में reflect हो, मैं सरकार में उसके लिए उचित सुझाव भी दूँगा, सूचनाएँ भी दूँगा। तो मैं इंतज़ार करूँगा दोस्तो, ‘Narendra Modi App’ पर Youth Festival के संबंध में आपके विचार जानने के लिए।
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+ उस दिन हमने ‘सुगम्य भारत’ अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत हम physical और virtual – दोनों तरह के Infrastructure में सुधार कर उन्हें “दिव्यांग” लोगों के लिए सुगम्य बनायेंगे। स्कूल हो, अस्पताल हो, सरकारी दफ़्तर हो, बस अड्डे हों, रेलवे स्टेशन में ramps हो, accessible parking, accessible lifts, ब्रेल लिपि; कितनी बातें हैं। इन सब में उसे सुगम्य बनाने के लिए Innovation चाहिए, technology चाहिए, व्यवस्था चाहिए, संवेदनशीलता चाहिएI इस काम का बीड़ा उठाया हैI जन-भागीदारी भी मिल रहीं है। लोगों को अच्छा लगा है। आप भी अपने तरीके से ज़रूर इसमें जुड़ सकते हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, सरकार की योजनायें तो निरंतर आती रहती हैं, चलती रहती हैं, लेकिन ये बहुत आवश्यक होता है कि योजनायें हमेशा प्राणवान रहनी चाहियें। योजनायें आखरी व्यक्ति तक जीवंत होनी चाहियें। वो फाइलों में मृतप्राय नहीं होनी चाहियें। आखिर योजना बनती है सामान्य व्यक्ति के लिए, ग़रीब व्यक्ति के लिए। पिछले दिनों भारत सरकार ने एक प्रयास किया कि योजना के जो हक़दार हैं उनके पास सरलता से लाभ कैसे पहुँचे। हमारे देश में गैस सिलेंडर में सब्सिडी दी जाती है। करोड़ों रुपये उसमें जाते हैं लेकिन ये हिसाब-किताब नहीं था कि जो लाभार्थी है उसी के पास पहुँच रहे हैं कि नहीं पहुँच रहे हैं। सही समय पर पहुँच रहे हैं कि नहीं पहुँच रहे हैं। सरकार ने इसमें थोड़ा बदलाव किया। जन-धन एकाउंट हो, आधार कार्ड हो, इन सब ��ी मदद से विश्व की सबसे बड़ी, largest ‘Direct Benefit Transfer Scheme’ के द्वारा सीधा लाभार्थियों के बैंक खाते में सब्सिडी पहुँचना। देशवासियों को ये बताते हुए मुझे गर्व हो रहा है कि अभी-अभी ‘गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में इसे स्थान मिल गया कि दुनिया की सबसे बड़ी ‘Direct Benefit Transfer Scheme’ है, जो सफलतापूर्वक लागू कर दी गई है। ‘पहल’ नाम से ये योजना प्रचलित है और प्रयोग बहुत सफल रहा है। नवम्बर अंत तक करीब-करीब 15 करोड़ LPG उपभोक्ता ‘पहल’ योजना के लाभार्थी बन चुके हैं, 15 करोड़ लोगों के खाते में बैंक एकाउंट में सरकारी पैसे सीधे जाने लगे हैं। न कोई बिचौलिया, न कोई सिफ़ारिश की ज़रूरत, न कोई भ्रष्टाचार की सम्भावना। एक तरफ़ आधार कार्ड का अभियान, दूसरी तरफ़ जन-धन एकाउंट खोलना, तीसरी तरफ़ राज्य सरकार और भारत सरकार मिल कर के लाभार्थियों की सूची तैयार करना। उनको आधार से और एकाउंट से जोड़ना। ये सिलसिला चल रहा है। इन दिनों तो मनरेगा जो कि गाँव में रोजगार का अवसर देता है, वो मनरेगा के पैसे, बहुत शिकायत आती थी। कई स्थानों पर अब वो सीधा पैसा उस मजदूरी करने वाले व्यक्ति के खाते में जमा होने लगे हैं। Students को Scholarship में भी कई कठिनाइयाँ होती थीं, शिकायतें भी आती थीं, उनमें भी अब प्रारंभ कर दिया है, धीरे-धीरे आगे बढ़ाएंगे। अब तक करीब-करीब 40 हज़ार करोड़ रूपये सीधे ही लाभार्थी के खाते में जाने लगे हैं अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से। एक मोटा-मोटा मेरा अंदाज़ है, करीब-करीब 35 से 40 योजनायें अब सीधी-सीधी ‘Direct Benefit Transfer’ के अंदर समाहित की जा रही हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मैं सरदार पटेल के विचारों को पढ़ रहा था। तो कुछ बातों पर मेरा ध्यान गया और उनकी एक बात मुझे बहुत पसंद आई। खादी के संबंध में सरदार पटेल ने कहा है, हिन्दुस्तान की आज़ादी खादी में ही है, हिन्दुस्तान की सभ्यता भी खादी में ही है, हिन्दुस्तान में जिसे हम परम धर्म मानते हैं, वह अहिंसा खादी में ही है और हिन्दुस्तान के किसान, जिनके लिए आप इतनी भावना दिखाते हैं, उनका कल्याण भी खादी में ही है। सरदार साहब सरल भाषा में सीधी बात बताने के आदी थे और बहुत बढ़िया ढंग से उन्होंने खादी का माहात्म्य बताया है। मैंने कल 30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य तिथि पर देश में खादी एवं ग्रामोद्योग से जुड़े हुए जितने लोगों तक पहुँच सकता हूँ, मैंने पत्र लिख करके पहुँचने का प्रयास किया। वैसे पूज्य बापू विज्ञान के पक्षकार थे, तो मैंने भी टेक्नोलॉजी का ही उपयोग किया और टेक्नोलॉजी के माध्यम से लाखों ऐसे भाइयों–बहनों तक पहुँचने का प्रयास किया है। खादी अब एक symbol बना है, एक अलग पहचान बना है। अब खादी युवा पीढ़ी के भी आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है और खास करके जो-जो holistic health care और organic की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनके लिए तो एक उत्तम उपाय बन गया है। फ़ैशन के रूप में भी खादी ने अपनी जगह बनाई है और मैं खादी से जुड़े लोगों का अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने खादी में नयापन लाने के लिए भरपूर प्रयास किया है। अर्थव्यवस्था में बाज़ार का अपना महत्व है। खादी ने भी भावात्मक जगह के साथ-साथ बाज़ार में भी जगह बनाना अनिवार्य हो गया है। जब मैंने लोगों से कहा कि अनेक प्रकार के fabrics आपके पास हैं, तो एक खादी भी तो होना चाहिये। और ये बात लोगों के गले उतर रही है कि हाँ भई, खादीधारी तो नहीं बन सकते, लेकिन अगर दसों प्रकार के fabric हैं, तो एक और हो जाए। लेकिन साथ-साथ मेरी बात को सरकार में भी एक सकारात्मक माहौल पनप रहा है। बहुत सालों पहले सरकार में खादी का भरपूर उपयोग होता था। लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता के नाम पर ये सब ख़त्म होता गया और खादी से जुड़े हुए हमारे ग़रीब लोग बेरोज़गार होते गए। खादी में करोड़ों लोगों को रोज़गार देने की ताकत है। पिछले दिनों रेल मंत्रालय, पुलिस विभाग, भारतीय नौसेना, उत्तराखण्ड का डाक-विभाग – ऐसे कई सरकारी संस्थानों ने खादी के उपयोग में बढ़ावा देने के लिए कुछ अच्छे Initiative लिए हैं और मुझे बताया गया कि सर��ारी विभागों के इस प्रयासों के परिणामस्वरूप खादी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए, इस requirement को पूरा करने के लिए, सरकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अतिरिक्त – extra – 18 लाख मानव दिन का रोज़गार generate होगा। 18 lakh man-days, ये अपने आप में एक बहुत बड़ा jump होगा। पूज्य बापू भी हमेशा Technology के up-gradation के प्रति बहुत ही सजग थे और आग्रही भी थे और तभी तो हमारा चरखा विकसित होते-होते यहाँ पहुँचा है। इन दिनों solar का उपयोग करते हुए चरखा चलाना, solar energy चरखे के साथ जोड़ना बहुत ही सफल प्रयोग रहा है। उसके कारण मेहनत कम हुई है, उत्पादन बढ़ा है और qualitative गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। ख़ास करके solar चरखे के लिए लोग मुझे बहुत सारी चिट्ठियाँ भेजते रहते हैं। राजस्थान के दौसा से गीता देवी, कोमल देवी और बिहार के नवादा ज़िले की साधना देवी ने मुझे पत्र लिखकर कहा है कि solar चरखे के कारण उनके जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। हमारी आय double हो गयी है और हमारा जो सूत है, उसके प्रति भी आकर्षण बढ़ा है। ये सारी बातें एक नया उत्साह बढ़ाती हैं। और 30 जनवरी, पूज्य बापू को जब स्मरण करते हैं, तो मैं फिर एक बार दोहराऊँगा – इतना तो अवश्य करें कि अपने ढेर सारे कपड़ों में एक खादी भी रहे, इसके आग्रही बनें।
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+ प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी का पर्व बहुत उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। चारों तरफ़, आतंकवादी क्या करेंगे, इसकी चिंता के बीच देशवासियों ने हिम्मत दिखाई, हौसला दिखाया और आन-बान-शान के साथ प्रजासत्ताक पर्व मनाया। लेकिन कुछ लोगों ने हट करके कुछ बातें कीं और मैं चाहूँगा कि ये बातें ध्यान देने जैसी हैं, ख़ास-करके हरियाणा और गुजरात, दो राज्यों ने एक बड़ा अनोखा प्रयोग किया। इस वर्ष उन्होंने हर गाँव में जो गवर्नमेंट स्कूल है, उसका ध्वजवंदन करने के लिए, उन्होंने उस गाँव की जो सबसे पढ़ी-लिखी बेटी है, उसको पसंद किया। हरियाणा और गुजरात ने बेटी को माहात्म्य दिया। पढ़ी-लिखी बेटी को विशेष माहात्म्य दिया। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ – इसका एक उत्तम सन्देश देने का उन्होंने प्रयास किया। मैं दोनों राज्यों की इस कल्पना शक्ति को बधाई देता हूँ और उन सभी बेटियों को बधाई देता हूँ, जिन्हें ध्वजवंदन, ध्वजारोहण का अवसर मिला। हरियाणा में तो और भी बात हुई कि गत एक वर्ष में जिस परिवार में बेटी का जन्म हुआ है, ऐसे परिवारजनों को 26 जनवरी के निमित्त विशेष निमंत्रित किया और वी.आई.पी. ���े रूप में प्रथम पंक्ति में उनको स्थान दिया। ये अपने आप में इतना बड़ा गौरव का पल था और मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का प्रारंभ हरियाणा से किया था, क्योंकि हरियाणा में sex-ratio में बहुत गड़बड़ हो चुकी थी। एक हज़ार बेटों के सामने जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या बहुत कम हो गयी थी। बड़ी चिंता थी, सामाजिक संतुलन खतरे में पड़ गया था। और जब मैंने हरियाणा पसंद किया, तो मुझे हमारे अधिकारियों ने कहा था कि नहीं-नहीं साहब, वहाँ मत कीजिए, वहाँ तो बड़ा ही negative माहौल है। लेकिन मैंने काम किया और मैं आज हरियाणा का ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इस बात को अपनी बात बना लिया और आज बेटियों के जन्म की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो रही है। मैं सचमुच में वहाँ के सामाजिक जीवन में जो बदलाव आया है, उसके लिए अभिनन्दन करता हूँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, एक काम के लिये मुझे आपकी मदद चाहिए और मुझे विश्वास है कि आप मेरी मदद करेंगे। हमारे देश में किसानों के नाम पर बहुत-कुछ बोला जाता है, बहुत-कुछ कहा जाता है। खैर, मैं उस विवाद में उलझना नहीं चाहता हूँ। लेकिन किसान का एक सबसे बड़ा संकट है, प्राकृतिक आपदा में उसकी पूरी मेहनत पानी में चली जाती है। उसका साल बर्बाद हो जाता है। उसको सुरक्षा देने का एक ही उपाय अभी तो ध्यान में आता है और वो है फ़सल बीमा योजना। 2016 में भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा तोहफ़ा किसानों को दिया है – ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’। लेकिन ये योजना की तारीफ़ हो, वाहवाही हो, प्रधानमंत्री को बधाइयाँ मिलें, इसके लिये नहीं है। इतने सालों से फ़सल बीमा की चर्चा हो रही है, लेकिन देश के 20-25 प्रतिशत से ज़्यादा किसान उसके लाभार्थी नहीं बन पाए हैं, उससे जुड़ नहीं पाए है। क्या हम संकल्प कर सकते हैं कि आने वाले एक-दो साल में हम कम से कम देश के 50 प्रतिशत किसानों को फ़सल बीमा से जोड़ सकें? बस, मुझे इसमें आपकी मदद चाहिये। क्योंकि अगर वो फ़सल बीमा के साथ जुड़ता है, तो संकट के समय एक बहुत बड़ी मदद मिल जाती है। और इस बार ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ की इतनी जनस्वीकृति मिली है, क्योंकि इतना व्यापक बना दिया गया है, इतना सरल बना दिया गया है, इतनी टेक्नोलॉजी का Input लाए हैं। और इतना ही नहीं, फ़सल कटने के बाद भी अगर 15 दिन में कुछ होता है, तो भी मदद का आश्वासन दिया है। टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, उसकी गत��� तेज़ कैसे हो, बीमा के पैसे पाने में विलम्ब न हो – इन सारी बातों पर ध्यान दिया गया है। सबसे बड़ी बात है कि फ़सल बीमा की प्रीमियम की दर, इतनी नीचे कर दी गयी, इतनी नीचे कर दी गयी हैं, जो शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। नयी बीमा योजना में किसानों के लिये प्रीमियम की अधिकतम सीमा खरीफ़ की फ़सल के लिये दो प्रतिशत और रबी की फ़सल के लिए डेढ़ प्रतिशत होगी। अब मुझे बताइए, मेरा कोई किसान भाई अगर इस बात से वंचित रहे, तो नुकसान होगा कि नहीं होगा? आप किसान नहीं होंगे, लेकिन मेरी मन की बात सुन रहे हैं। क्या आप किसानों को मेरी बात पहुँचायेंगे? और इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इसको अधिक प्रचारित करें। इसके लिए इस बार मैं एक आपके लिये नयी योजना भी लाया हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ ये बात लोगों तक पहुँचे। और ये बात सही है कि टी.वी. पर, रेडियो पर मेरी ‘मन की बात’ आप सुन लेते हैं। लेकिन बाद में सुनना हो तो क्या? अब मैं आपको एक नया तोहफ़ा देने जा रहा हूँ। क्या आप अपने मोबाइल फ़ोन पर भी मेरे ‘मन की बात’ सुन सकते हैं और कभी भी सुन सकते हैं। आपको सिर्फ़ इतना ही करना है – बस एक missed call कर दीजिए अपने मोबाइल फ़ोन से। ‘मन की बात’ के लिये मोबाइल फ़ोन का नंबर तय किया है – 8190881908. आठ एक नौ शून्य आठ, आठ एक नौ शून्य आठ। आप missed call करेंगे, तो उसके बाद कभी भी ‘मन की बात’ सुन पाएँगे। फ़िलहाल तो ये हिंदी में है, लेकिन बहुत ही जल्द आपको अपनी मातृभाषा में भी ‘मन की बात’ सुनने का अवसर मिलेगा। इसके लिए भी मेरा प्रबन्ध जारी है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, स्वच्छता अब सौन्दर्य के साथ भी जुड़ रही है। बहुत सालों तक हम गंदगी के खिलाफ़ नाराज़गी व्यक्त करते रहे, लेकिन गंदगी नहीं हटी। अब देशवासियों ने गंदगी की चर्चा छोड़ स्वच्छता की चर्चा शुरू की है और स्वच्छता का काम कहीं-न-कहीं, कुछ-न-कुछ चल ही रहा है। लेकिन अब उसमें एक कदम नागरिक आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने स्वच्छता के साथ सौन्दर्य जोड़ा है। एक प्रकार से सोने पे सुहागा और ख़ास करके ये बात नज़र आ रही है रेलवे स्टेशनों पर। मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों देश के कई रेलवे स्टेशन पर वहाँ के स्थानीय नागरिक, स्थानीय कलाकार, students – ये अपने-अपने शहर का रेलवे स्टेशन सजाने में लगे हैं। स्थानीय कला को केंद्र में रखते हुए दीवारों का पेंटिंग रखना, साइन-बोर्ड अच्छे ढंग से बनाना, कलात्मक रूप से बनाना, लोगो��� को जागरूक करने वाली भी चीज़ें उसमें डालनी हैं, न जाने क्या-क्या कर रहे हैं! मुझे बताया किसी ने कि हज़ारीबाग़ के स्टेशन पर आदिवासी महिलाओं ने वहाँ की स्थानीय सोहराई और कोहबर आर्ट की डिज़ाइन से पूरे रेलवे स्टेशन को सज़ा दिया है। ठाणे ज़िले के 300 से ज़्यादा volunteers ने किंग सर्किल स्टेशन को सजाया, माटुंगा, बोरीवली, खार। इधर राजस्थान से भी बहुत ख़बरें आ रही हैं, सवाई माधोपुर, कोटा। ऐसा लग रहा है कि हमारे रेलवे स्टेशन अपने आप में हमारी परम्पराओं की पहचान बन जायेंगे। हर कोई अब खिड़की से चाय-पकौड़े की लॉरी वालों को नहीं ढूंढ़ेगा, ट्रेन में बैठे-बैठे दीवार पर देखेगा कि यहाँ की विशेषता क्या है। और ये न रेलवे का Initiative था, न नरेन्द्र मोदी का Initiative था। ये नागरिकों का था। देखिये नागरिक करते हैं, तो कैसा करते हैं जी। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि मुझे कुछ तो तस्वीरें मिली हैं, लेकिन मेरा मन करता है कि मैं और तस्वीरें देखूँ। क्या आप, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर या कहीं और स्वच्छता के साथ सौन्दर्य के लिए कुछ प्रयास किया है, क्या मुझे आप भेज सकते हैं? ज़रूर भेजिए। मैं तो देखूँगा, लोग भी देखेंगे और औरों को भी प्रेरणा मिलेगी। और रेलवे स्टेशन पर जो हो सकता है, वो बस स्टेशन पर हो सकता है, वो अस्पताल में हो सकता है, वो स्कूल में हो सकता है, मंदिरों के आस-पास हो सकता है, गिरजाघरों के आस-पास हो सकता है, मस्जिदों के आस-पास हो सकता है, बाग़-बगीचे में हो सकता है, कितना सारा हो सकता है! जिन्होंने ये विचार आया और जिन्होंने इसको शुरू किया और जिन्होंने आगे बढ़ाया, सब अभिनन्दन के अधिकारी हैं। लेकिन हाँ, आप मुझे फ़ोटो ज़रूर भेजिए, मैं भी देखना चाहता हूँ, आपने क्या किया है!
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+ मैंने पिछली मेरी ‘मन की बात’ में कहा था कि आप NarendraModiApp पर अपने अनुभव, अपने सुझाव मुझे अवश्य भेजिए। मुझे खुशी इस बात की है – शिक्षकों ने, बहुत ही सफल जिनकी करियर रही है ऐसे विद्यार्थियों ने, माँ-बाप ने, समाज के कुछ चिंतकों ने बहुत सारी बातें मुझे लिख कर के भेजी हैं। दो बातें तो मुझे छू गईं कि सब लिखने वालों ने विषय को बराबर पकड़ के रखा। दूसरी बात इतनी हजारों मात्रा में चीज़ें आई कि मैं मानता हूँ कि शायद ये बहुत महत्वपूर्ण विषय है। लेकिन ज़्यादातर हमने exam के विषय को स्कूल के परिसर तक या परिवार तक या विद्यार्थी तक सीमित कर दिया है। मेरी App पर जो सुझाव आये, उससे तो लगता है कि ये तो बहुत ही बड़ा, पूरे राष्ट्र में लगातार विद्यार्थियों के इन विषयों की चर्चायें होती रहनी चाहिए।
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+ “नमस्कार, मैं सचिन तेंदुलकर बोल रहा हूँ। मुझे पता है कि exams कुछ ही दिनों में start होने वाली हैं। आप में से कई लोग tense भी रहेंगे। मेरा एक ही message है आपको कि आपसे expectations आपके माता-पिता करेंगे, आपके teachers करेंगे, आपके बाकी के family members करेंगे, दोस्त करेंगे। जहाँ भी जाओगे, सब पूछेंगे कि आपकी तैयारी कैसी चल रही है, कितने percent आपका स्कोर करोगे। यही कहना चाहूँगा मैं कि आप ख़ुद अपने लिए कुछ target set कीजियेगा, किसी और के expectation के pressure में मत आइयेगा। आप मेहनत ज़रूर कीजियेगा, मगर एक realistic achievable target खुद के लिए सेट कीजिये और वो target achieve करने के लिए कोशिश करना। मैं जब Cricket खेलता था, तो मेरे से भी बहुत सारे expectations होते थे। पिछले 24 साल में कई सारे कठिन moments आये और कई-कई बार अच्छे moments आये, मगर लोगों के expectations हमेशा रहते थे और वो बढ़ते ही गये, जैसे समय बीतता गया, expectations भी बढ़ते ही गए। तो इसके लिए मुझे एक solution find करना बहुत ज़रूरी था। तो मैंने यही सोचा कि मैं मेरे खुद के expectations रखूँगा और खुद के targets set करूँगा। अगर वो मेरे खुद के targets मैं set कर रहा हूँ और वो achieve कर पा रहा हूँ, तो मैं ज़रूर कुछ-न-कुछ अच्छी चीज़ देश के लिए कर पा रहा हूँ। और वो ही targets मैं हमेशा achieve करने की कोशिश करता था। मेरा focus रहता था ball पे और targets अपने आप slowly-slowly achieve होते गए। मैं आपको यही कहूँगा कि आप, आपकी सोच positive होनी बहुत ज़रूरी है। positive सोच को positive results follow करेंगे। तो आप positive ज़रूर रहियेगा और ऊपर वाला आपको ज़रूर अच्छे results दे, ये मुझे, इसकी पूरी उम्मीद है और आपको मैं best wishes देना चाहूँगा exams के लिए। एक tens।on free जा के पेपर लिखिये और अच्छे results पाइये। Good Luck!”
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+ ��िन हज़ारों लोगों ने मुझे मेरे App पर मोबाइल फ़ोन से छोटी-छोटी बातें लिखी हैं। श्रेय गुप्ता ने इस बात पर बल दिया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। students अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी health का भी ध्यान रखें, जिससे आप exam में स्वस्थतापूर्वक अच्छे से लिख सकें। अब मैं आज आखिरी दिन ये तो नहीं कहूँगा कि आप दंड-बैठक लगाना शुरू कर दीजिये और तीन किलोमीटर, पाँच किलोमीटर दौड़ने के लिए जाइये। लेकिन एक बात सही है कि खास कर के exam के दिनों मे आप का routine कैसा है। वैसे भी 365 दिवस हमारा routine हमारे सपनों और संकल्पों के अनुकूल होना चाहिये। श्रीमान प्रभाकर रेड्डी जी की एक बात से मैं सहमत हूँ। उन्होंने ख़ास आग्रह किया हैं, समय पर सोना चाहिए और सुबह जल्दी उठकर revision करना चाहिए। examination centre पर प्रवेश-पत्र और दूसरी चीजों के साथ समय से पहले पहुँच जाना चाहिए। ये बात प्रभाकर रेड्डी जी ने कही है, मैं शायद कहने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि मैं सोने के संबंध में थोड़ा उदासीन हूँ और मेरे काफ़ी दोस्त भी मुझे शिकायत करते रहते हैं कि आप बहुत कम सोते हैं। ये मेरी एक कमी है, मैं भी ठीक करने की कोशिश करूँगा। लेकिन मैं इससे सहमत ज़रूर हूँ। निर्धारित सोने का समय, गहरी नींद – ये उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि आपकी दिन भर की और गतिविधियाँ और ये संभव है। मैं भाग्यवान हूँ, मेरी नींद कम है, लेकिन बहुत गहरी ज़रूर है और इसके लिए मेरा काम चल भी जाता है। लेकिन आपसे तो मैं आग्रह करूँगा। वरना कुछ लोगों की आदत होती है, सोने से पहले लम्बी-लम्बी टेलीफ़ोन पर बात करते रहते हैं। अब उसके बाद वही विचार चलते रहते हैं, तो कहाँ से नींद आएगी? और जब मैं सोने की बात करता हूँ, तो ये मत सोचिए कि मैं exam के लिए सोने के लिए कहा रहा हूँ। गलतफ़हमी मत करना। मैं exam के time पर तो आपको अच्छी परीक्षा देने के लिए तनावमुक्त अवस्था के लिए सोने की बात कर रहा हूँ। सोते रहने की बात नहीं कर रहा हूँ। वरना कहीं ऐसा न हो कि marks कम आ जाये और माँ पूछे कि क्यों बेटे, कम आये, तो कह दो कि मोदी जी ने सोने को कहा था, तो मैं तो सो गया था। ऐसा नहीं करोगे न! मुझे विश्वास है नहीं करोगे।
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+ “Hello, this is Viswanathan Anand. First of all, let me start off by wishing you all the best for your exams. I will next talk a little bit about how I went to my exams and my experiences for that. I found that exams are very much like problems you face later in life. You need to be well rested, get a good night’s sleep, you need to be on a full stomach, you should definitely not be hungry and the most important thing is to stay calm. It is very very similar to a game of Chess. When you play, you don’t know, which pawn will appear, just like in a class you don’t know, which question will appear in an exam. So if you stay calm and you are well nourished and have slept well, then you will find that your brain recalls the right answer at the right moment. So stay calm. It is very important not to put too much pressure on yourself, don’t keep your expectations too high. Just see it as a challenge – do I remember what I was taught during the year, can I solve these problems. At the last minute, just go over the most important things and the things you feel, the topics you feel, you don’t remember very well. You may also recall some incidents with the teacher or the students, while you are writing an exam and this will help you recall a lot of subject matter. If you revise the questions you find difficult, you will find that they are fresh in your head and when you are writing the exam, you will be able to deal with them much better. So stay calm, get a good night’s sleep, don’t be over-confident but don’t be pessimistic either. I have always found that these exams go much better than you fear before. So stay confident and all the very best to you.”
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+ विश्वनाथन आनंद ने सचमुच में बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताई है और आपने भी जब उनको अन्तर्राष्ट्रीय Chess के गेम में देखा होगा, कितनी स्वस्थता से वो बैठे होते हैं और कितने ध्यानस्थ होते हैं। आपने देखा होगा, उनकी आँखें भी इधर-उधर नहीं जाती हैं। कभी हम सुनते थे न, अर्जुन के जीवन की घटना कि पक्षी की आँख पर कैसे उनकी नज़र रहती थी। बिलकुल वैसे ही विश्वनाथन को जब खेलते हुए देखते हैं, तो बिलकुल उनकी आँखें एकदम से बड़ी target पर fix रहती हैं और वो भीतर की शांति की अभिव्यक्ति होती है। ये बात सही है कि कोई कह दे, इसलिये फिर भीतर की शांति आ ही जायेगी, ये तो कहना कठिन है। लेकिन कोशिश करनी चाहिये! हँसते-हँसते क्यों न करें! आप देखिये, आप हँसते रहेंगे, खिलखिलाहट हँसते रहेंगे exam के दिन भी, अपने-आप शांति आना शुरू हो जाएगी। आप दोस्तों से बात नहीं कर रहे हैं या अकेले चल रहे हैं, मुरझाए-मुरझाए चल रहे हैं, ढेर सारी किताबों को last moment भी हिला रहे हैं, तो-तो फिर वो शांत मन हो नहीं सकता है। हँसिए, बहुत हँसते चलिए, साथियों के साथ चुटकले share करते चलिए, आप देखिए, अपने-आप शांति का माहौल खड़ा हो जाएगा।
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+ मैं एक बात बताऊं मेरी अपनी – मैं कभी-कभी कोई लेक्चर सुनने जाता हूँ या मुझे सरकार में भी कुछ विषय ऐसे होते हैं, जो मैं नहीं जानता हूँ और मुझे काफी concentrate करना पड़ता है। तो कभी-कभी ज्यादा concentrate करके समझने की कोशिश करता हूँ, तो एक भीतर तनाव महसूस करता हूँ। फिर मुझे लगता है, नहीं-नहीं, थोड़ा relax कर जाऊँगा, तो मुझे अच्छा रहेगा। तो मैंने अपने-आप अपनी technique develop की है। बहुत deep breathing कर लेता हूँ। गहरी साँस लेता हूँ। तीन बार-पांच बार गहरी साँस लेता हूँ, समय तो 30 सेकिंड, 40 सेकिंड, 50 सेकिंड जाता है, लेकिन फिर मेरा मन एकदम से शांत हो करके चीज़ों को समझने के लिए तैयार हो जाता है। हो सकता है, ये मेरा अनुभव हो, आपको भी काम आ सकता ��ै।
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+ “मैं मुरारी बापू बोल रहा हूँ। मैं विद्यार्थी भाइयों-बहनों को यही कहना चाहता हूँ कि परीक्षा के समय में मन पर कोई भी बोझ रखे बिना और बुद्धि का एक स्पष्ट निर्णय करके और चित को एकाग्र करके आप परीक्षा में बैठिये और जो स्थिति आई है, उसको स्वीकार कर लीजिए। मेरा अनुभव है कि परिस्थिति को स्वीकार करने से बहुत हम प्रसन्न रह सकते हैं और खुश रह सकते हैं। आपकी परीक्षा में आप निर्भार और प्रसन्नचित्त आगे बढ़ें, तो ज़रूर सफलता मिलेगी और यदि सफलता न भी मिली, तो भी fail होने की ग्लानि नहीं होगी और सफल होने का गर्व भी होगा। एक शेर कह कर मैं मेरा सन्देश और शुभकामना देता हूँ – लाज़िम नहीं कि हर कोई हो कामयाब ही, जीना भी सीखिए नाकामियों के साथ। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री का ये जो ‘मन की बात’ का कार्यक्रम है, उसको मैं बहुत आवकार देता हूँ। सबके लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामना। धन्यवाद।”
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+ पूज्य मुरारी बापू का मैं भी आभारी हूँ कि उन्होंने बहुत अच्छा सन्देश हम सबको दिया। दोस्तो, आज एक और बात बताना चाहता हूँ। मैं देख रहा हूँ कि इस बार जो मुझे लोगों ने जो अपने अनुभव बताये हैं, उसमें योग की चर्चा अवश्य की है। और ये मेरे लिए खुशी की बात है कि इन दिनों मैं दुनिया में जिस किसी से मिलता हूँ, थोड़ा-सा भी समय क्यों न मिले, योग की थोड़ी सी बात तो कोई न कोई करता ही करता है। दुनिया के किसी भी देश का व्यक्ति क्यों न हो, भारत का कोई व्यक्ति क्यों न हो, तो मुझे अच्छा लगता है कि योग के संबंध में इतना आकर्षण पैदा हुआ है, इतनी जिज्ञासा पैदा हुई है और देखिये, कितने लोगों ने मुझे मेरे मोबाइल App पर, श्री अतनु मंडल, श्री कुणाल गुप्ता, श्री सुशांत कुमार, श्री के. जी. आनंद, श्री अभिजीत कुलकर्णी, न जाने अनगिनत लोगों ने meditation की बात की है, योग पर बल दिया है। खैर दोस्तो, मैं बिलकुल ही आज ही कह दूँ, कल सुबह से योग करना शुरू करो, वो तो आपके साथ अन्याय होगा। लेकिन जो योग करते हैं, वो कम से कम exam है इसलिए आज न करें, ऐसा न करें। करते हैं तो करिये। लेकिन ये बात सही है कि विद्यार्थी जीवन में हो या जीवन का उत्तरार्द्ध हो, अंतर्मन की विकास यात्रा में योग एक बहुत बड़ी चाभी है। सरल से सरल चाभी है। आप ज़रूर उस पर ध्यान दीजिए। हाँ, अगर आप अपने नजदीक में कोई योग के जानकार होंगे, उनको पूछोगे तो exam के दिनों में पहले योग नहीं किया होगा, तो भी दो-चार चीज़ें तो ऐसे बता देंगे, जो आप दो-चार-पाँच मिनट में कर सकते हैं। देखिये, अगर आप कर सकते हैं तो! हाँ, मेरा उसमें विश्वास बहुत है।
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+ श्रीमान यश नागर, उन्होंने हमारे मोबाइल App पर लिखा है कि जब उन्होनें पहली बार पेपर पढ़ा, तो उन्हें ये काफी कठिन लगा। लेकिन उसी पेपर को दोबारा आत्मविश्वास के साथ, अब यही पेपर मेरे पास है, कोई नये प्रश्न आने वाले नहीं हैं, मुझे इतने ही प्रश्नों से निपटना है और जब दोबारा मैं सोचने लगा, तो उन्होंने लिखा है कि मैं इतनी आसानी से इस पेपर को समझ गया, पहली बार पढ़ा तो लगा कि ये तो मुझे नहीं आता है, लेकिन वही चीज़ दोबारा पढ़ा, तो मुझे ध्यान में आया कि नहीं-नहीं सवाल दूसरे तरीक़े से रखा गया है, लेकिन ये तो वही बात है, जो मैं जानता हूँ। प्रश्नों को समझना ये बहुत आवश्यक होता है। प्रश्नों को न समझने से कभी-कभी प्रश्न कठिन लगता है। मैं यश नागर की इस बात पर बल देता हूँ कि आप प्रश्नों को दो बार पढ़ें, तीन बार पढ़ें, चार बार पढ़ें और आप जो जानते हैं, उसके साथ उसको match करने का प्रयास करें। आप देखिये, वो प्रश्न लिखने से पहले ही सरल हो जाएगा।
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+ 65 प्रतिशत जनसँख्या नौजवान हो और खेलों की दुनिया में हम खो गए हों! ये तो बात कुछ बनती नहीं है। समय है, खेलों में एक नई क्रांति का दौर का। और हम देख रहे हैं कि भारत में cricket की तरह अब Football, Hockey, Tennis, Kabaddi एक mood बनता जा रहा है। मैं आज नौजवानों को एक और खुशखबरी के साथ, कुछ अपेक्षायें भी बताना चाहता हूँ। आपको शायद इस बात का तो पता चल गया होगा कि अगले वर्ष 2017 में भारत FIFA Under – 17 विश्वकप की मेज़बानी करने जा रहा है। विश्व की 24 टीमें भारत में खेलने के लिए आ रही हैं। 1951, 1962 Asian Games में भारत ने Gold Medal जीता था और 1956 Olympic Games में भारत चौथे स्थान पर रहा था। लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ दशकों में हम निचली पायरी पर ही चलते गए, पीछे ही हटते गए, गिरते ही गए, गिरते ही गए। आज तो FIFA में हमारा ranking इतना नीचे है कि मेरी बोलने की हिम्मत भी नहीं हो रही है। और दूसरी तरफ़ मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों भारत में युवाओं की Football में रूचि बढ़ रही है। EPL हो, Spanish League हो या Indian Super League के match हो। भारत का युवा उसके विषय में जानकारी पाने के लिए, TV पर देखने के लिए समय निकालता है। कहने का तात्पर्य यह है कि रूचि तो बढ़ रही है। लेकिन इतना बड़ा अवसर जब भारत में आ रहा है, तो हम सिर्फ़ मेज़बान बन कर के अपनी जिम्मेवारी पूरी करेंगे? इस पूरा वर्ष एक Football, Football, Football का माहौल बना दें। स्कूलों में, कॉलेजों में, हिन्दुस्तान के हर कोने पर हमारे नौजवान, हमारे स्कूलों के बालक पसीने से तर-ब-तर हों। चारो तरफ़ Football खेला जाता हो। ये अगर करेंगे तो फिर तो मेज़बानी का मज़ा आएगा और इसीलिए हम सब की कोशिश होनी चाहिये कि हम Football को गाँव-गाँव, गली-गली कैसे पहुँचाएं। 2017 FIFA Under – 17 विश्वकप एक ऐसा अवसर है इस एक साल के भीतर-भीतर हम चारों तरफ़ नौजवानों के अन्दर Football के लिए एक नया जोम भर दे, एक नया जुत्साह भर दे। इस मेज़बानी का एक फ़ायदा तो है ही है कि हमारे यहाँ Infrastructure तैयार होगा। खेल के लिए जो आवश्यक सुविधाएँ हैं उस पर ध्यान जाएगा। मुझे तो इसका आनंद तब मिलेगा जब हम हर नौजवान को Football के साथ जोड़ेंगें।
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+ दोस्तो, मैं आप से एक अपेक्षा करता हूँ। 2017 की ये मेज़बानी, ये अवसर कैसा हो, साल भर का हमारा Football में momentum लाने के लिए कैसे-कैसे कार्यक्रम हो, प्रचार कैसे हो, व्यवस्थाओं में सुधार कैसे हो, FIFA Under – 17 विश्वकप के माध्यम से भारत के नौजवानों में खेल के प्रति रूचि कैसे बढ़े, सरकारों में, शैक्षिक संस्थाओं में, अन्य सामाजिक संगठनों में, खेल ���े साथ जुड़ने की स्पर्धा कैसे खड़ी हो? Cricket में हम सभी देख पा रहे हैं, लेकिन यही चीज़ और खेलों में भी लानी है। Football एक अवसर है। क्या आप मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं? वैश्विक स्तर पर भारत का branding करने के लिए एक बहुत बड़ा अवसर मैं मानता हूँ। भारत की युवा शक्ति की पहचान कराने का अवसर मानता हूँ। Match के दरमियाँ क्या पाया, क्या खोया उस अर्थ में नहीं। इस मेज़बानी की तैयारी के द्वारा भी, हम अपनी शक्ति को सजो सकते हैं, शक्ति को प्रकट भी कर सकते हैं और हम भारत का Branding भी कर सकते हैं। क्या आप मुझे NarendraModiApp, इस पर अपने सुझाव भेज सकते हैं क्या? Logo कैसा हो, slogans कैसे हो, भारत में इस बात को फ़ैलाने के लिए क्या क्या तरीके हों, गीत कैसे हों, souvenirs बनाने हैं तो किस-किस प्रकार के souvenirs बन सकते हैं। सोचिए दोस्तो, और मैं चाहूँगा कि मेरा हर नौजवान ये 2017, FIFA, Under- 17 विश्व Cup का Ambassador बने। आप भी इसमें शरीक होइए, भारत की पहचान बनाने का सुनहरा अवसर है।
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+ मैसूर से शिल्पा कूके, उन्होंने एक बड़ा संवेदनशील मुद्दा हम सब के लिए रखा है। उन्होंने कहा है कि हमारे घर के पास दूध बेचने वाले आते हैं, अख़बार बेचने वाले आते हैं, Postman आते हैं। कभी कोई बर्तन बेचने वाले वहाँ से गुजरते हैं, कपड़े बेचने वाले गुजरते हैं। क्या कभी हमने उनको गर्मियों के दिनों मे पानी के लिए पूछा है क्या? क्या कभी हमने उसको पानी offer किया है क्या? शिल्पा मैं आप का बहुत आभारी हूँ आपने बहुत संवेदनशील विषय को बड़े सामान्य सरल तरीके से रख दिया। ये बात सही है बात छोटी होती है लेकिन गर्मी के बीच अगर postman घर के पास आया और हमने पानी पिलाया कितना अच्छा लगेगा उसको। खैर भारत में तो ये स्वाभाव है ही है। लेकिन शिल्पा मैं आभारी हूँ कि तुमने इन चीज़ों को observe किया।
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+ रवि करके किसी सज्जन ने मुझे पत्र लिखा है – “Good news every day”. वो लिख रहे हैं कि कृपया अपने अधिकारियों से कहिए कि हर दिन कोई एक अच्छी घटना के बारे में post करेंI प्रत्येक newspaper और news channel में हर breaking news, बुरी news ही होती हैI क्या सवा-सौ करोड़ आबादी वाले देश में हमारे आस-पास कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है? कृपया इस हालत को बदलिएI रवि जी ने बड़ा गुस्सा व्यक्त किया हैI लेकिन मैं मानता हूँ कि शायद वो मुझ पर गुस्सा नहीं कर रहे हैं, हालात पर गुस्सा कर रहे हैंI आप को याद होगा, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम हमेशा ये बात कहते थे कि अख़बार के पहले पन्ने पर सिर्फ़ positive ख़बरें छापिएI वे लगातार इस बात को कहते रहते थेI कुछ दिन पहले मुझे एक अख़बार ने चिट्ठी भी लिखी थीI उन्होंने कहा था कि हमने तय किया है कि सोमवार को हम एक भी negative ख़बर नहीं देंगे, positive ख़बर ही देंगेI इन दिनों मैंने देखा है, कुछ T.V. Channel positive ख़बरों का समय specially तय करके दे रहे हैंI तो ये तो सही है कि इन दिनों अब माहौल बना है positive ख़बरों काI और हर किसी को लग रहा है कि सही ख़बरें, अच्छी ख़बरें लोगों को मिलती रहेंI एक बात सही है कि बड़े-से-बड़ा व्यक्ति भी उत्तम-से-उत्तम बात बताए, अच्छे-से-अच्छे शब्दों में बताए, बढ़िया-से-बढ़िया तरीके से बताए, उसका जितना प्रभाव होता है, उससे ज्यादा कोई अच्छी ख़बर का होता हैI अच्छी ख़बर अच्छा करने की प्रेरणा का सबसे बड़ा कारण बनती हैI तो ये तो सही है कि जितना हम अच्छाई को बल देंगे, तो अपने आप में बुराइयों के लिए जगह कम रहेगीI अगर दिया जलायेंगे, तो अंधेरा छंटेगा ही – छंटेगा ही – छंटेगा हीI और इसलिए आप को शायद मालूम होगा, सरकार की तरफ़ से एक website चलाई जा रही है ‘Transforming India’. इस पर सकरात्मक ख़बरें होती हैंI और सिर्फ सरकार की नहीं, जनता की भी होती हैं और ये एक ऐसा portal है कि आप भी अपनी कोई अच्छी ख़बर है, तो उसमें आप भेज सकते हैंI आप भी उसमें contribute कर सकते हैं। अच्छा सुझाव रवि जी आपने दिया है, लेकिन कृपा करके मुझ पर गुस्सा मत कीजिएI हम सब मिल करके positive करने का प्रयास करें, positive बोलने का प्रयास करें, positive पहुँचाने का प्रयास करेंI
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+ हमारे देश में जैसे किसान मेहनत करता है, हमारे वैज्ञानिक भी देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए बहुत सफलताएँ प्राप्त कर रहे हैं। और मेरा तो पहले से मत रहा है कि हमारी नई पीढ़ी वैज्ञानिक बनने के सपने देखे, विज्ञान में रूचि ले, आने वाली पीढ़ियों के लिये कुछ कर गुजरने की इच्छा के साथ हमारी युवा पीढ़ी आगे आए। मैं आज और भी एक खुशी की बात आपसे share करना चाहता हूँ। कल मैं पुणे गया था, Smart City Project की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में वहाँ कार्यक्रम था और वहाँ मैंने पुणे के College of Engineering के जिन विद्यार्थियों ने स्वयं की मेहनत से, स्वयं उपग्रह बनाया और जिसे 22 जून को प्रक्षेपित किया गया, उनको मिलने के लिए बुलाया था। क्योंकि मेरा मन करता था कि मैं इन मेरे युवा साथियों को देखूं तो सही! उनको मिलूँ तो सही! उनके भीतर जो ऊर्जा है, उत्साह है, उसका मैं भी तो अनुभव करूँ! पिछले कई वर्षों से अनेक विद्यार्थियों ने इस काम में अपना योगदान दिया। ये academic satellite एक प्रकार से युवा भारत के हौसले की उड़ान का जीता जागता नमूना है। और ये हमारे छात्रों ने बनाया। इन छोटे से satellite के पीछे जो सपने हैं, वो बहुत बड़े हैं। उसकी जो उड़ान है, बहुत ऊँची है और उसकी जो मेहनत है, वो बहुत गहरी है। जैसे पुणे के छात्रों ने किया, वैसे ही तमिलनाडु, चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी के students द्वारा भी एक satellite बनाया गया और वो SathyabamaSat को भी प्रक्षेपित किया गया। हम तो बचपन से ये बातें सुनते आये हैं और हर बालक के मन में आसमान को छूने और कुछ तारों को मुठ्ठी में कैद करने की ख्वाहिश हमेशा रहती है और इस लिहाज़ से। SRO द्वारा भेजे गये, छात्रों के द्वारा बनाये हुए दोनों satellite मेरी दृष्टि से बहुत अहम् हैं, बेहद ख़ास हैं। ये सभी छात्र बधाई के पात्र हैं। मैं देशवासियों को भी बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूँ कि 22 जून को। SRO के हमारे वैज्ञानिकों ने एक साथ 20 satellite अन्तरिक्ष में भेजकर अपने ही पुराने रेकॉर्डों को तोड़ करके एक नया रिकॉर्ड बना दिया और ये भी खुशी की बात है कि भारत में ये जो 20 satellite launch किये गए, उसमें से 17 satellite अन्य देशों के हैं। अमेरिका सहित कई देशों के satellite launch करने का काम भारत की धरती से, भारत के वैज्ञानिकों के द्वारा हुआ और इनके साथ वही दो satellite , जो हमारे छात्रों ने बनाये थे, वे भी अन्तरिक्ष में पहुँचे। और ये भी विशेषता है कि ISRO ने कम लागत और सफलता की guarantee के चलते दुनिया में ख़ास जगह बना ली है और उसके कारण विश्व के कई देश launching के लिए आज भारत की तरफ़ नज़र कर रहे हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पूर्व पूरे विश्व ने 21 जून को ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ की वर्षगाँठ पर भव्य कार्यक्रम किये। एक भारतीय के नाते पूरा विश्व जब योग से जुड़ता है, तब हम अहसास करते हैं, जैसे दुनिया हमारे कल, आज और कल से जुड़ रही है। विश्व के साथ हमारा एक अनोखा नाता बन रहा है। भारत में भी एक लाख से अधिक स्थानों पर बहुत उमंग और उत्साह के साथ, भांति-भांति के रंग-रूप के साथ रंगारंग माहौल में अन्तर्राष्ट्रीय योग-पर्व मनाया गया। मुझे भी चंडीगढ़ में हजारों योग प्रेमियों के साथ उनके बीच योग करने का अवसर मिला। आबाल-वृद्ध सबका उत्साह देखने लायक था। आपने देखा होगा, पिछले सप्ताह भारत सरकार ने इस अन्तर्राष्ट्रीय योग-पर्व के निमित्त ही ‘सूर्य नमस्कार’ की डाक टिकट भी जारी की है। इस बार विश्व में ‘Yoga Day’ के साथ-साथ दो चीज़ों पर लोगों का विशेष ध्यान गया। एक तो अमेरिका के New York शहर में जहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ की building है , उस building के ऊपर योगासन की भिन्न-भिन्न कृतियों का विशेष projection किया गया और वहाँ आते-जाते लोग उसकी फोटो लेते रहते थे और और दुनिया भर में वो फोटो प्रचलित हो गयी। ये बातें किस भारतीय को गौरव नहीं दिलाएँगी – ये बताइये न! और भी एक बात हुई, technology अपना काम कर रही है। Social media की अपनी एक पहचान बन गयी है और इस बार योग में Twitter ने Yoga। mages के साथ celebration का एक हल्का-फुल्का प्रयोग भी किया। hashtag ‘Yoga Day’ type करते ही Yoga वाले। mages का चित्र हमारे मोबाइल फोन पर आ जाता था और दुनिया भर में वो प्रचलित हो गया। योग का मतलब ही होता है जोड़ना। योग में पूरे जगत को जोड़ने की ताक़त है। बस, ज़रूरत है, हम योग से जुड़ जाएँ।
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+ “मैं चाहती हूँ कि मेरा पूरा देश स्वस्थ रहे, उसका ग़रीब व्यक्ति भी निरोग रहे। इसके लिए मैं चाहती हूँ कि दूरदर्शन में हर एक सीरियल के बीच में जो सारे ads (advertisement) आते हैं, उसमें से किसी एक ad में योग के बारे में बताएँ। उसे कैसे करते हैं? उसके क्या लाभ होते हैं?” स्वाति जी, आपका सुझाव तो अच्छा है, लेकिन अगर आप थोड़ा ध्यान से देखोगे, तो आपके ध्यान में आएगा; न सिर्फ़ दूरदर्शन इन दिनों भारत और भारत बाहर, टी.वी. मीडिया के जगत में प्रतिदिन योग के प्रचार में भारत के और दुनिया के सभी टी.वी. चैनल कोई-न-कोई अपना योगदान दे रही हैं। हर एक के अलग-अलग समय हैं। लेकिन अगर आप ध्यान से देखोगी, तो योग के विषय में जानकारी पाने के लिए ये सब हो ही रहा है। और मैंने तो देखा है, दुनिया के कुछ देश ऐसे हैं कि जहाँ चौबीसों घंटे योग को समर्पित चैनल भी चलती हैं। और आपको पता होगा कि मैं जून महीने में ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ निमित्त प्रतिदिन Twitter और Facebook के माध्यम से हर दिन एक नये आसन का वीडियो शेयर करता था। अगर आप आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर जायेंगे, तो 40-45 मिनट का एक-के-बाद एक शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के लिए किस प्रकार के योग कर सकते हैं, हर आयु के लोग कर सकते हैं, ऐसे सरल योगों का, योग का एक अच्छा वीडियो वेबसाइट पर उपलब्ध है। मैं आपको भी और आपके माध्यम से सभी योग के जिज्ञासुओं को कहूँगा कि वे ज़रूर इसके साथ जुड़ें।
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+ अभी-अभी जब मेरी सरकार के 2 साल पूरे हुए, तो कुछ आधुनिक विचार वाले नौजवानों ने मुझे सुझाव दिया कि आप इतनी बड़ी लोकतंत्र की बातें करते हैं, तो क्यों न आप अपनी सरकार का मूल्यांकन लोगों से करवाएँ। वैसे एक प्रकार से उनका चुनौती का ही स्वर था, सुझाव का भी स्वर था। लेकिन उन्होंने मेरे मन को झकझोर दिया। मैंने कुछ अपने वरिष्ठ साथियों के बीच में ये विषय रखा, तो प्रथम प्रतिक्रिया तो reaction ऐसा ही था कि नहीं-नहीं जी साहब, ये आप क्या करने जा रहे हो? आज तो technology इतनी बदल चुकी है कि अगर कोई इकट्ठे हो जाये, कोई गुट बन जाये और technology का दुरूपयोग कर गये, तो पता नहीं Survey कहाँ से कहाँ ले जाएंगे। उन्होंने चिंता जाहिर की। लेकिन मुझे लगा, नहीं-नहीं, risk लेना चाहिए, कोशिश करनी चाहिए। देखें, क्या होता है, और मेरे प्यारे देशवासियो, खुशी की बात है कि जब मैंने technology के माध्यम से अलग-अलग भाषाओं का उपयोग करते हुए जनता को मेरी सरकार का मूल्यांकन करने के लिए आवाहन किया। चुनाव के बाद भी तो बहुत survey होते हैं, चुनाव के दरम्यान भी survey होते हैं, कभी-कभी बीच में कुछ issues पर भी survey होते हैं, लोकप्रियता पर survey होते हैं, लेकिन उसकी sample size ज्यादा नहीं होती है। आप में से बहुत लोगों ने ‘Rate My Government-MyGov.in’ पर अपना opinion दिया है। वैसे तो लाखों लोगों ने इसमें रूचि दिखाई लेकिन 3 लाख लोगों ने एक-एक सवाल का जवाब देने के लिए मेहनत की है, काफी समय निकाला है। मैं उन 3 लाख लोगों का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने स्वयं सक्रियता दिखाई, सरकार का मूल्यांकन किया। मैं नतीजों की चर्चा नहीं करता हूँ, वो हमारे Media के लोग जरूर करेंगे। लेकिन एक अच्छा प्रयोग था, इतना तो मैं जरूर कहूँगा और मेरे लिए भी खुशी की बात थी कि हिंदुस्तान की सभी भाषाएँ बोलने वाले, हर कोने में रहने वाले, हर प्रकार के background वाले लोगों ने इसमें हिस्सा लिया और सबसे बड़ी मेरे लिए अचरज़ तो है ही है कि भारत सरकार की जो ग्रामीण रोजगार की योजना चलती है, उस योजना की जो Website है, उस Portal पर सब से ज्यादा लोगों ने बढ़-चढ़ कर के हिस्सा लिया। इसका मतलब कि ग्रामीण जीवन से जुड़े, गरीबी से जुड़े हुए लोगों का इसमें बहुत बड़ा सक्रिय योगदान था, ऐसा मैं प्राथमिक अनुमान लगाता हूँ। ये मुझे और ज्यादा अच्छा लगा। तो आपने देखा, एक वो भी दिन था, जब कुछ वर्ष पहले 26 जून को जनता की आवाज दबोच दी गई थी और ये भी वक्त है कि जब जनता खुद तय करती है, बीच-बचाव तय करती है कि देखें तो सही, सरकार ठीक कर रही है कि गलत कर रही है, अच्छा कर रही है, बुरा कर रही है। यही तो लोकतंत्र की ताकत है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, इस देश का सामान्य मानव देश के लिए बहुत-कुछ करने के लिए अवसर खोजता रहता है। जब मैंने लोगों से कहा – रसोई गैस की subsidy छोड़ दीजिये, इस देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने स्वेच्छा से subsidy छोड़ दी। मैं खास करके जिनके पास अघोषित आय है, उनके लिए एक खास उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मैं कल Smart City के कार्यक्रम के निमित्त पुणे जब गया था, तो वहाँ मुझे श्रीमान चन्द्रकान्त दामोदर कुलकर्णी और उनके परिवारजनों से मिलने का सौभाग्य मिला। मैंने उनको खास मिलने के लिए बुलाया था और कारण क्या है, जिसने कभी भी कर चोरी की होगी, उनको मेरी बात शायद प्रेरणा दे या ना दे, लेकिन श्रीमान चन्द्रकान्त कुलकर्णी की बात तो ज़रूर प्रेरणा देगी। आप जानते हैं, क्या कारण है? ये चन्द्रकान्त कुलकर्णी जी एक सामान्य मध्यम-वर्गीय परिवार के व्यक्ति हैं। सरकार में नौकरी करते थे, retire हो गए, 16 हजार रुपया उनको pension मिलती है। और मेरे प्यारे देशवासियो, आपको ताज्जुब होगा और जो कर-चोरी करने की आदत रखते हैं, उनको तो बड़ा सदमा लगेगा कि ये चन्द्रकान्त जी कुलकर्णी हैं, जिन्हें सिर्फ 16 हजार रूपये का pension मिलता है, लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी और कहा था कि मैं मेरे 16 हजार रुपये के pension में से हर महीने 5 हजार रुपया स्वच्छता अभियान के लिए donate करना चाहता हूँ और इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे 52 Cheque, Fifty Two Cheque, post-dated, जो कि हर महीना एक-एक Cheque की date है, Cheque भेज दिए हैं। जिस द��श का एक सरकारी मुलाज़िम निवृत्ति के बाद सिर्फ 16 हजार के pension में से 5 हजार रुपया स्वच्छता के अभियान के लिए दे देता हो, इस देश में कर चोरी करने का हमें हक़ नहीं बनता है। चन्द्रकान्त कुलकर्णी से बड़ा कोई हमारी प्रेरणा का कारण नहीं हो सकता है। और स्वच्छता अभियान से जुड़े हुये लोगों के लिए भी चन्द्रकान्त कुलकर्णी से बड़ा उत्तम उदाहरण नहीं हो सकता है। मैंने चन्द्रकान्त जी को रूबरू बुलाया, उनसे मिला, मेरे मन को उनका जीवन छू गया। उस परिवार को मैं बधाई देता हूँ और ऐसे तो अनगिनत लोग होंगे, शायद हो सकता है, मेरे पास उनकी जानकारी न हो, लेकिन यही तो लोग हैं, यही तो लोक-शक्ति है, यही तो ताकत है। 16 हजार की pension वाला व्यक्ति, दो लाख साठ हजार के Cheque advance में मुझे भेज दे, क्या ये छोटी बात है क्या? आओ, हम भी अपने मन को जरा टटोलें, हम भी सोचें कि सरकार ने हमारी आय को घोषित करने के लिये अवसर दिया है, हम भी चन्द्रकान्त जी को याद करके, हम भी जुड़ जाएँ।
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+ “हमने आपकी प्रेरणा से अपने विद्यालय में वर्षा जल ऋतु शुरू होने से पहले ही 4 फीट के छोटे-छोटे ढाई-सौ गड्ढे खेल के मैदान के किनारे-किनारे बना दिए थे, ताकि वर्षा जल उसमें समा सके। इस प्रक्रिया में खेल का मैदान भी खराब नहीं हुआ, बच्चों के डूबने का खतरा भी नहीं हुआ और करोड़ों लीटर पानी मैदान का हमने वर्षा जल सब बचाया है।”
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+ आज सुबह-सुबह मुझे दिल्ली के नौजवानों के साथ कुछ पल बिताने का अवसर मिला और मैं मानता हूँ कि आने वाले दिनों में पूरे देश में खेल का रंग हर नौजवान को उत्साह-उमंग के रंग से रंग देगा। हम सब जानते हैं कि कुछ ही दिनों में विश्व का सबसे बड़ा खेलों का महाकुम्भ होने जा रहा है। Rio हमारे कानों में बार-बार गूँजने वाला है। सारी दुनिया खेलती होगी, दुनिया का हर देश अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बारीकी से नज़र रखता होगा, आप भी रखेंगे। हमारी आशा-अपेक्षायें तो बहुत होती हैं, लेकिन Rio में जो खेलने के लिये गए हैं, उन खिलाड़ियों को, उनका हौसला बुलंद करने का काम भी सवा-सौ करोड़ देशवासियों का है। आज दिल्ली में भारत सरकार ने ‘Run for Rio’, ‘खेलो और जिओ’, ‘खेलो और खिलो’ – एक बड़ा अच्छा आयोजन किया। हम भी आने वाले दिनों में, जहाँ भी हों, हमारे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के लिये कुछ-न-कुछ करें। यहाँ तक जो खिलाड़ी पहुँचता है, वो बड़ी कड़ी मेहनत के बाद पहुंचता है। एक प्रकार की कठोर तपस्या करता है। खाने का कितना ही शौक क्यों न हो, सब कुछ छोड़ना पड़ता है। ठण्ड में नींद लेने का इरादा हो, तब भी बिस्तर छोड़ करके मैदान में भागना पड़ता है और न सिर्फ़ खिलाड़ी, उनके माँ-बाप भी, उतने ही मनोयोग से अपने बालकों के पीछे शक्ति खपाते हैं। खिलाड़ी रातों-रात नहीं बनते। एक बहुत बड़ी तपस्या के बाद बनते हैं। जीत और हार उतने महत्वपूर्ण हैं, लेकिन साथ-साथ इस खेल तक पहुँचना, वो भी उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है और इसीलिए हम सभी देशवासी Rio Olympic के लिए गए हुए हमारे सभी खिलाड़ियों को शुभकामनायें दें। आपकी तरफ़ से ये काम मैं भी करने के लिए तैयार हूँ। इन खिलाड़ियों को आपका सन्देश पहुँचाने के लिए देश का प्रधानमंत्री postman बनने को तैयार है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, वैसे जब भी ‘मन की बात’ का समय आता है, तो MyGov पर या NarendraModiApp पर अनेकों-अनेक सुझाव आते हैं। विविधता से भरे हुए होते हैं, लेकिन मैंने देखा कि इस बार तो ज्यादातर, हर किसी ने मुझे आग्रह किया कि Rio Olympic के संबंध में आप ज़रूर कुछ बातें करें। सामान्य नागरिक का Rio Olympic के प्रति इतना लगाव, इतनी जागरूकता और देश के प्रधानमंत्री पर दबाव करना कि इस पर कुछ बोलो, मैं इसको एक बहुत सकारात्मक देख रहा हूँ। क्रिकेट के बाहर भी भारत के नागरिकों में और खेलों के प्रति भी इतना प्यार है, इतनी जागरूकता है और उतनी जानकारियाँ हैं। मेरे लिए तो यह संदेश पढ़ना, ये भी एक अपने आप में, बड़ा प्रेरणा का कारण बन गया। एक श्रीमान अजित सिंह ने NarendraModiApp पर लिखा है – “कृपया इस बार ‘मन की बात’ में बेटियों की शिक्षा और खेलों में उनकी भागीदारी पर ज़रूर बोलिए, क्योंकि Rio Olympic में medal जीतकर उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है।” कोई श्रीमान सचिन लिखते हैं कि आपसे अनुरोध है कि इस बार के ‘मन की बात’ में सिंधु, साक्षी और दीपा कर्माकर का ज़िक्र ज़रूर कीजिए। हमें जो पदक मिले, बेटियों ने दिलाए। हमारी बेटियों ने एक बार फिर साबित किया कि वे किसी भी तरह से, किसी से भी कम नहीं हैं। इन बेटियों में एक उत्तर भारत से है, तो एक दक्षिण भारत से है, तो कोई पूर्व भारत से है, तो कोई हिन्दुस्तान के किसी और कोने से है। ऐसा लगता है, जैसे पूरे भारत की बेटियों ने देश का नाम रोशन करने का बीड़ा उठा लिया है|
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+ मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ, तो मुझे तो मेरे शिक्षकों की इतनी कथायें याद हैं, क्योंकि हमारे छोटे से गाँव में तो वो ही हमारे Hero हुआ करते थे। लेकिन मैं आज ख़ुशी से कह सकता हूँ कि मेरे एक शिक्षक – अब उनकी 90 साल की आयु हो गयी है – आज भी हर महीने उनकी मुझे चिट्ठी आती है। हाथ से लिखी हुई चिट्ठी आती है। महीने भर में उन्होंने जो किताबें पढ़ी हैं, उसका कहीं-न-कहीं ज़िक्र आता है, quotations आता है। महीने भर मैंने क्या किया, उनकी नज़र में वो ठीक था, नहीं था। जैसे आज भी मुझे class room में वो पढ़ाते हों। वे आज भी मुझे एक प्रकार से correspondence course करा रहे हैं। और 90 साल की आयु में भी उनकी जो handwriting है, मैं तो आज भी हैरान हूँ कि इस अवस्था में भी इतने सुन्दर अक्षरों से वो लिखते हैं और मेरे स्वयं के अक्षर बहुत ही खराब हैं, इसके कारण जब भी मैं किसी के अच्छे अक्षर देखता हूँ, तो मेरे मन में आदर बहुत ज़्यादा ही हो जाता है। जैसे मेरे अनुभव हैं, आपके भी अनुभव होंगे। आपके शिक्षकों से आपके जीवन में जो कुछ भी अच्छा हुआ है, अगर दुनिया को बताएँगे, तो शिक्षक के प्रति देखने के रवैये में बदलाव आएगा, एक गौरव होगा और समाज में हमारे शिक्षकों का गौरव बढ़ाना हम सबका दायित्व है। आप NarendraModiApp पर, अपने शिक्षक के साथ फ़ोटो हो, अपने शिक्षक के साथ की कोई घटना हो, अपने शिक्षक की कोई प्रेरक बात हो, आप ज़रूर share कीजिए। देखिए, देश में शिक्षक के योगदान को विद्यार्थियों की नज़र से देखना, यह भी अपने आप में बहुत मूल्यवान होता है।
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+ ये बात सही है कि उत्सव समाज की शक्ति होता है। उत्सव व्यक्ति और समाज के जीवन में नये प्राण भरता है। उत्सव के बिना जीवन असंभव होता है। लेकिन समय की माँग के अनुसार उसको ढालना भी पड़ता है। इस बार मैंने देखा है कि मुझे कई लोगों ने ख़ास करके गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा – उन चीजों पर काफ़ी लिखा है। और उनको चिंता हो रही है पर्यावरण की। कोई श्रीमान शंकर नारायण प्रशांत करके हैं, उन्होंने बड़े आग्रह से कहा है कि मोदी जी, आप ‘मन की बात’ में लोगों को समझाइए कि Plaster of Paris से बनी हुई गणेश जी की मूर्तियों का उपयोग न करें। क्यों न गाँव के तालाब की मिट्टी से बने हुए गणेश जी का उपयोग करें! POP की बनी हुई प्रतिमायें पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं होती हैं। उन्होंने तो बहुत पीड़ा व्यक्त की है, औरों ने भी की है। मैं भी आप सब से प्रार्थना करता हूँ, क्यों न हम मिट्टी का उपयोग करके गणेश की मूर्तियाँ, दुर्गा की मूर्तियाँ – हमारी उस पुरानी परंपरा पर वापस क्यों न आएं। पर्यावरण की रक्षा, हमारे नदी-तालाबों की रक्षा, उसमें होने वाले प्रदूषण से इस पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा – ये भी ईश्वर की सेवा ही तो है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। तो हमें ऐसे गणेश जी नहीं बनाने चाहिए, जो विघ्न पैदा करें। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी इन बातों को आप किस रूप में लेंगे। लेकिन ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूँ, कई लोग हैं और मैंने कइयों के विषय में कई बार सुना है – पुणे के एक मूर्तिकार श्रीमान अभिजीत धोंड़फले, कोल्हापुर की संस्थायें निसर्ग-मित्र, विज्ञान प्रबोधिनी। विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग-कट्टा, पुणे की ज्ञान प्रबोधिनी, मुंबई के गिरगाँवचा राजा। ऐसी अनेक-विद संस्थायें, व्यक्ति मिट्टी के गणेश के लिए बहुत मेहनत करते हैं, प्रचार भी करते हैं। Eco-friendly गणेशोत्सव – ये भी एक समाज सेवा का काम है। दुर्गा पूजा के बीच अभी समय है। अभी हम तय करें कि हमारे उन पुराने परिवार जिस मूर्तियाँ बनाते थे, उनको भी रोजगार मिलेगा और तालाब या नदी की मिट्टी से बनेगा, तो फिर से उसमें जा कर के मिल जाएगा, तो पर्यावरण की भी रक्षा होगी। आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज़्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी। किसी ने अंग्रेज़ी में लिख दिया, किसी ने हिंदी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। Toilet बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे, तो चलेगा, लेकिन Toilet ज़रूर बनाओ। Iसात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया। और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना emotional impact हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन school आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी Teacher को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फ़लानी तारीख तक वह Toilet बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई, उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया, उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गंभीर ले करके Toilet बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।
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+ कर्नाटक के कोप्पाल ज़िला, इस ज़िले में सोलह साल की उम्र की एक बेटी मल्लम्मा – इस बेटी ने अपने परिवार के ख़िलाफ़ ही सत्याग्रह कर दिया। वो सत्याग्रह पर बैठ गई। कहते हैं कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था और वो भी ख़ुद के लिए कुछ माँगने के लिये नहीं, कोई अच्छे कपड़े लाने के लिये नहीं, कोई मिठाई खाने के लिये नहीं, बेटी मल्लम्मा की ज़िद ये थी कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। अब परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी, बेटी ज़िद पर अड़ी हुई थी, वो अपना सत्याग्रह छोड़ने को तैयार नहीं थी। गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी, उनको पता चला कि मल्लम्मा ने Toilet के लिए सत्याग्रह किया है, तो गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी की भी विशेषता देखिए कि उन्होंने अठारह हज़ार रुपयों का इंतज़ाम किया और एक सप्ताह के भीतर-भीतर Toilet बनवा दिया। ये बेटी मल्लम्मा की ज़िद की ताक़त देखिए और मोहम्मद शफ़ी जैसे गाँव के प्रधान देखिए। समस्याओं के समाधान के लिए कैसे रास्ते खोले जाते हैं, यही तो जनशक्ति है I
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की हमेशा-हमेशा ये कोशिश रही है कि हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध गहरे हों, हमारे संबंध सहज हों, हमारे संबंध जीवंत हों। एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण बात पिछले दिनों हुई, हमारे राष्ट्रपति आदरणीय “प्रणब मुखर्जी” ने कोलकाता में एक नये कार्यक्रम की शुरुआत की ‘“आकाशवाणी मैत्री चैनल’”। अब कई लोगों को लगेगा कि राष्ट्रपति को क्या एक Radio के Channel का भी उद्घाटन करना चाहिये क्या? लेकिन ये सामान्य Radio की Channel नहीं है, एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण क़दम है। हमारे पड़ोस में बांग्लादेश है। हम जानते हैं, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल एक ही सांस्कृतिक विरासत को ले करके आज भी जी रहे हैं। तो इधर “आकाशवाणी मैत्री” और उधर “बांग्लादेश बेतार। वे आपस में content share करेंगे और दोनों तरफ़ बांग्लाभाषी लोग “आकाशवाणी” का मज़ा लेंगे। People to People Contact का “आकाशवाणी” का एक बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रपति जी ने इसको launch किया। मैं बांग्लादेश का भी इसके लिये धन्यवाद करता हूँ कि इस काम के लिये हमारे साथ वे जुड़े। मैं आकाशवाणी के मित्रों को भी बधाई देता हूँ कि विदेश नीति में भी वे अपना contribution दे रहे हैं।
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+ देशवासियो, आपको पता होगा कि मैंने कोशिश की है कि जिन-जिन लोगों ने Gas Subsidy छोड़ दी, उनको एक पत्र भेजूँ और कोई-न-कोई मेरा प्रतिनिधि उनको रूबरू जा कर के पत्र दे। एक करोड़ से ज़्यादा लोगों को पत्र लिखने का मेरा प्रयास है। उसी योजना के तहत मेरा ये पत्र इस माँ के पास पहुँचा। उन्होंने मुझे पत्र लिखा कि आप अच्छा काम कर रहे हैं। गरीब माताओं को चूल्हे के धुएं से मुक्ति का आपका अभियान और इसलिए मैं एक retired teacher हूँ, कुछ ही वर्षों में मेरी उम्र 90 साल हो जायेगी, मैं एक 50 हज़ार रूपये का donation आपको भेज रही हूँ, जिससे आप ऐसी ग़रीब माताओं को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए काम में लगाना। आप कल्पना कर सकते हैं, एक सामान्य शिक्षक के नाते retired pension पर गुज़ारा करने वाली माँ, जब 50 हज़ार रूपए और गरीब माताओं-बहनों को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए और gas connection देने के लिए देती हो। सवाल 50 हज़ार रूपये का नहीं है, सवाल उस माँ की भावना का है और ऐसी कोटि-कोटि माँ-बहनें उनके आशीर्वाद ही हैं, जिससे मेरा देश के भविष्य के लिए भरोसा और ताक़तवर बन जाता है। और मुझे चिट्ठी भी उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नहीं लिखी। सीधा-साधा पत्र लिखा – “मोदी भैया। उस माँ को मैं प्रणाम करता हूँ और भारत की इन कोटि-कोटि माताओं को भी प्रणाम करता हूँ कि जो ख़ुद कष्ट झेल करके हमेशा कुछ-न-कुछ किसी का भला करने के लिए करती रहती हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले वर्ष अकाल के कारण हम परेशान थे, लेकिन ये अगस्त महीना लगातार बाढ़ की कठिनाइयों से भरा रहा। देश के कुछ हिस्सों में बार-बार बाढ़ आई। राज्य सरकारों ने, केंद्र सरकार ने, स्थानीय स्वराज संस्था की इकाइयों ने, सामाजिक संस्थाओं ने, नागरिकों ने, जितना भी कर सकते हैं, करने का पूरा प्रयास किया। लेकिन इन बाढ़ की ख़बरों के बीच भी, कुछ ऐसी ख़बरें भी रही, जिसका ज़्यादा स्मरण होना ज़रूरी था। एकता की ताकत क्या होती है, साथ मिल कर के चलें, तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है ? ये इस वर्ष का अगस्त महीना याद रहेगा। अगस्त, 2016 में घोर राजनैतिक विरोध रखने वाले दल, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ एक भी मौका न छोड़ने वाले दल, और पूरे देश में क़रीब-क़रीब 90 दल, संसद में भी ढेर सारे दल, सभी दलों ने मिल कर के GST का क़ानून पारित किया। इसका credit सभी दलों को जाता है। और सब दल मिल करके एक दिशा में चलें, तो कितना बड़ा काम होता है, उसका ये उदाहरण है। उसी प्रकार से कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, उस कश्मीर की स्थिति के संबंध में, देश के सभी राजनैतिक दलों ने मिल करके एक स्वर से कश्मीर की बात रखी। दुनिया को भी संदेश दिया, अलगाववादी तत्वों को भी संदेश दिया और कश्मीर के नागरिकों के प्रति हमारी संवेदनाओं को भी व्यक्त किया। और कश्मीर के संबंध में मेरा सभी दलों से जितना interaction हुआ, हर किसी की बात में से एक बात ज़रूर जागृत होती थी। अगर उसको मैंने कम शब्दों में समेटना हो, तो मैं कहूँगा कि एकता और ममता, ये दो बातें मूल मंत्र में रहीं। और हम सभी का मत है, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का मत है, गाँव के प्रधान से ले करके प्रधानमंत्री तक का मत है कि कश्मीर में अगर कोई भी जान जाती है, चाहे वह किसी नौजवान की हो या किसी सुरक्षाकर्मी की हो, ये नुकसान हमारा ही है, अपनों का ही है, अपने देश का ही है। जो लोग इन छोटे-छोटे बालकों को आगे करके कश्मीर में अशांति पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं, कभी-न-कभी उनको इन निर्दोष बालकों को भी जवाब देना पड़ेगा।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में, एक आतंकी हमले में, हमारे देश के 18 वीर सपूतों को हमने खो दिया। मैं इन सभी बहादुर सैनिकों को नमन करता हूँ और उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। इस कायराना घटना पूरे देश को झकझोरने के लिए काफ़ी थी। देश में शोक भी है, आक्रोश भी है और ये क्षति सिर्फ़ उन परिवारों की नहीं है, जिन्होंने अपना बेटा खोया, भाई खोया, पति खोया। ये क्षति पूरे राष्ट्र की है। और इसलिए मैं देशवासियों को आज इतना ही कहूँगा और जो मैंने उसी दिन कहा था, मैं आज उसको फिर से दोहराना चाहता हूँ कि दोषी सज़ा पा करके ही रहेंगे।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें। भारत के हर कोने में उत्साह और उमंग के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है कि 365 दिन, देश के किसी-न-किसी कोने में, कोई-न-कोई उत्सव नज़र आता है। दूर से देखने वाले को तो कभी यही लगेगा कि जैसे भारतीय जन-जीवन, ये उत्सव का दूसरा नाम है, और ये स्वाभाविक भी है। वेद-काल से आज तक भारत में जो उत्सवों की परम्परा रही है, वे समयानुकूल परिवर्तन वाले उत्सव रहे हैं, कालबाह्य उत्सवों की परम्परा को समाप्त करने की हिम्मत हमने देखी है और समय और समाज की माँग के अनुसार उत्सवों में बदलाव भी सहज रूप से स्वीकार किया गया है। लेकिन इन सबमें एक बात हम भली-भाँति देख सकते हैं कि भारत के उत्सवों की ये पूरी यात्रा, उसका व्याप, उसकी गहराई, जन-जन में उसकी पैठ, एक मूल-मन्त्र से जुड़ी हुई है – स्व को समष्टि की ओर ले जाना। व्यक्ति और व्यक्तित्व का विस्तार हो, अपने सीमित सोच के दायरे को, समाज से ब्रह्माण्ड तक विस्तृत करने का प्रयास हो और ये उत्सवों के माध्यम से करना। भारत के उत्सव कभी खान-पान की महफ़िल जैसे दिखते हैं। लेकिन उसमें भी, मौसम कैसा है, किस मौसम में क्या खाना चाहिये। किसानों की कौन सी पैदावार है, उस पैदावार को उत्सव में कैसे पलटना। आरोग्य की दृष्टि से क्या संस्कार हों। ये सारी बातें, हमारे पूर्वजों ने बड़े वैज्ञानिक तरीक़े से, उत्सव में समेट ली हैं। आज पूरा विश्व environment की चर्चा करता है। प्रकृति-विनाश चिंता का विषय बना है। भारत की उत्सव परम्परा, प्रकृति-प्रेम को बलवान बनाने वाली, बालक से लेकर के हर व्यक्ति को संस्कारित करने वाली रही है। पेड़ हो, पौधे हों, नदी हो, पशु हो, पर्वत हो, पक्षी हो, हर एक के प्रति दायित्व भाव जगाने वाले उत्सव रहे हैं। आजकल तो हम लोग Sunday को छुट्टी मनाते हैं, लेकिन जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, मज़दूरी करने वाला वर्ग हो, मछुआरे हों, आपने देखा होगा सदियों से हमारे यहाँ परम्परा थी – पूर्णिमा और अमावस्या को छुट्टी मनाने की। और विज्ञान ने इस बात को सिद्ध किया है कि पूर्णिमा और अमावस को, समुद्र के जल में किस प्रकार से परिवर्तन आता है, प्रकृति पर किन-किन चीज़ों का प्रभाव होता है। और वो मानव-मन पर भी प्रभाव होता है। यानि यहाँ तक हमारे यहाँ छुट्टी भी ब्रह्माण्ड और विज्ञान के साथ जोड़ करके मनाने की परम्परा विकसित हुई थी। आज जब हम दीपावली का पर्व मनाते हैं तब, जैसा मैंने कहा, हमारा हर पर्व एक शिक्षादायक होता है, शिक्षा का बोध लेकर के आता है। ये दीपावली का पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ – अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का एक सन्देश देता है। और अन्धकार, वो प्रकाश के अभाव का ही अन्धकार वाला अन्धकार नहीं है, अंध-श्रद्धा का भी अन्धकार है, अशिक्षा का भी अन्धकार है, ग़रीबी का भी अन्धकार है, सामाजिक बुराइयों का भी अन्धकार है। दीपावली का दिया जला कर के, समाज दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, व्यक्ति दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, उससे भी मुक्ति और वही तो दिवाली का दिया जला कर के, प्रकाश पहुँचाने का पर्व बनता है।
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+ एक बात हम सब भली-भांति जानते हैं, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में चले जाइए, अमीर-से-अमीर के घर में चले जाइए, ग़रीब-से-ग़रीब की झोपड़ी में चले जाइए, दिवाली के त्योहार में, हर परिवार में स्वच्छता का अभियान चलता दिखता है। घर के हर कोने की सफ़ाई होती है। ग़रीब अपने मिट्टी के बर्तन होंगे, तो मिट्टी के बर्तन भी ऐसे साफ़ करते हैं, जैसे बस ये दिवाली आयी है। दिवाली एक स्वच्छता का अभियान भी है। लेकिन, समय की माँग है कि सिर्फ़ घर में सफ़ाई नहीं, पूरे परिसर की सफ़ाई, पूरे मोहल्ले की सफ़ाई, पूरे गाँव की सफ़ाई, हमने हमारे इस स्वभाव और परम्परा को विस्तृत करना है, विस्तार देना है। दीपावली का पर्व अब भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा है। विश्व के सभी देशों में किसी-न-किसी रूप में दीपावली के पर्व को याद किया जाता है, मनाया जाता है। दुनिया की कई सरकारें भी, वहाँ की संसद भी, वहाँ के शासक भी, दीपावली के पर्व के हिस्से बनते जा रहे हैं। चाहे देश पूर्व के हों या पश्चिम के, चाहे विकसित देश हों या विकासमान देश हों, चाहे Africa हो, चाहे Ireland हो, सब दूर दिवाली की धूम-धाम नज़र आती है। आप लोगों को पता होगा, America की US Postal Service, उन्होंने इस बार दीपावली का postage stamp जारी किया है। Canada के प्रधानमंत्री जी ने दीपावली के अवसर पर दिया जलाते हुए अपनी तस्वीर Twitter पर share की है।
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+ मैं दीपावली के पर्व की बात कहूँ, छठ-पूजा की बात कहूँ – ये समय है आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें देने का, लेकिन साथ-साथ मेरे लिये समय और भी है, ख़ासकर के देशवासियों का धन्यवाद करना है, आभार व्यक्त करना है। पिछले कुछ महीनों से, जो घटनायें आकार ले रही हैं, हमारे सुख-चैन के लिये हमारे सेना के जवान ��पना सब कुछ लुटा रहे हैं। मेरे भाव-विश्व पर सेना के जवानों की, सुरक्षा बलों के जवानों की, ये त्याग, तपस्या, परिश्रम, मेरे दिल-दिमाग पर छाया हुआ रहता है। और उसी में से एक बात मन में कर गई थी कि यह दिवाली सुरक्षा बलों के नाम पर समर्पित हो। मैंने देशवासियों को ‘Sandesh to Soldiers’ एक अभियान के लिए निमंत्रित किया। लेकिन मैं आज सिर झुका कर के कहना चाहता हूँ, हिंदुस्तान का कोई ऐसा इन्सान नहीं होगा, जिसके दिल में देश के जवानों के प्रति जो अप्रतिम प्यार है, सेना के प्रति गौरव है, सुरक्षा-बलों के प्रति गौरव है। जिस प्रकार से उसकी अभिव्यक्ति हुई है, ये हर देशवासी को ताक़त देने वाली है। सुरक्षा-बल के जवानों को तो हम कल्पना नहीं कर सकते, इतना हौसला बुलंद करने वाला, आपका एक संदेश ताक़त के रूप में प्रकट हुआ है। स्कूल हो, कॉलेज हो, छात्र हो, गाँव हो, ग़रीब हो, व्यापारी हो, दुकानदार हो, राजनेता हो, खिलाड़ी हो, सिने-जगत हो – शायद ही कोई बचा होगा, जिसने देश के जवानों के लिए दिया न जलाया हो, देश के जवानों के लिए संदेश न दिया हो। मीडिया ने भी इस दीपोत्सव को सेना के प्रति आभार व्यक्त करने के अवसर में पलट दिया और क्यों न करें, चाहे BSF हो, CRPF हो, Indo-Tibetan Police हो, Assam Rifles हो, जल-सेना हो, थल-सेना हो, नभ-सेना हो, Coast Guard हो, मैं सब के नाम बोल नहीं पाता हूँ, अनगिनत। ये हमारे जवान किस-किस प्रकार से कष्ट झेलते हैं – हम जब दिवाली मना रहे हैं, कोई रेगिस्तान में खड़ा है, कोई हिमालय की चोटियों पर, कोई उद्योग की रक्षा कर रहा है, तो कोई airport की रक्षा कर रहा है। कितनी-कितनी जिम्मेवारियाँ निभा रहे हैं। हम जब उत्सव के मूड में हों, उसी समय उसको याद करें, तो उस याद में भी एक नई ताक़त आ जाती है। एक संदेश में सामर्थ्य बढ़ जाता है और देश ने कर के दिखाया। मैं सचमुच में देशवासियों का आभार प्रकट करता हूँ। कइयों ने, जिसके पास कला थी, कला के माध्यम से किया। कुछ लोगों ने चित्र बनाए, रंगोली बनाई, cartoon बनाए, जो सरस्वती की जिन पर कृपा थी, उन्होंने कवितायें बनाईं I कइयों ने अच्छे नारे प्रकट किये। ऐसा मुझे लग रहा है, कि जैसे मेरा Narendra Modi App या मेरा My Gov, जैसे उसमें भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा है – शब्द के रूप में, पिंछी के रूप में, कलम के रूप में, रंग के रूप में, अनगिनत प्रकार की भावनायें, मैं कल्पना कर सकता हूँ, मेरे देश के जवानों के लिये कितना गर्व का एक पल है। ‘Sandesh to Soldiers’ इस Hashtag पर इतनी सारी चीज़���ं-इतनी सारी चीज़ें आई हैं, प्रतीकात्मक रूप में।
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+ “नमस्कार प्रधानमंत्री जी, मैं शिवानी मोहन बोल रही हूँ। इस दीपावली पर जो ‘Sandesh to Soldiers’ अभियान शुरू किया गया है, उससे हमारे फ़ौजी भाइयों को बहुत ही प्रोत्साहन मिल रहा है। मैं एक Army Family से हूँ। मेरे पति भी Army ऑफिसर हैं। मेरे Father और Father-in-law, दोनों Army Officers रह चुके हैं। तो हमारी तो पूरी family soldiers से भरी हुई है और सीमा पर हमारे कई ऐसे Officers हैं, जिनको इतने अच्छे संदेश मिल रहे हैं और बहुत प्रोत्साहन मिल रहा है Army Circle में सभी को। और मैं कहना चाहूँगी कि Army Officers और Soldiers के साथ उनके परिवार, उनकी पत्नियाँ भी काफ़ी sacrifices करती हैं। तो एक तरह से पूरी Army Community को बहुत अच्छा संदेश मिल रहा है और मैं आपको भी Happy Diwali कहना चाहूँगी। Thank You .”
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, ये बात सही है कि सेना के जवान सिर्फ़ सीमा पर नहीं, जीवन के हर मोर्चे पर खड़े हुए पाए जाते हैं। प्राकृतिक आपदा हो, कभी क़ानूनी व्यवस्था के संकट हों, कभी दुश्मनों से भिड़ना हो, कभी ग़लत राह पर चल पड़े नौजवानों को वापिस लाने के लिये साहस दिखाना हो – हमारे जवान ज़िंदगी के हर मोड़ पर राष्ट्र भावना से प्रेरित हो करके काम करते रहते हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, महात्मा गाँधी हम सब के लिए हमेशा-हमेशा मार्गदर्शक हैं। उनकी हर बात आज भी देश कहाँ जाना चाहिए, कैसे जाना चाहिए, इसके लिये मानक तय करती है। गाँधी जी कहते थे, आप जब भी कोई योजना बनाएँ, तो आप सबसे पहले उस ग़रीब और कमज़ोर का चेहरा याद कीजिए और फिर तय कीजिए कि आप जो करने जा रहे हैं, उससे उस ग़रीब को कोई लाभ होगा कि नहीं होगा। कहीं उसका नुकसान तो नहीं हो जाएगा। इस मानक के आधार पर आप फ़ैसले कीजिए। समय की माँग है कि हमें अब, देश के ग़रीबों का जो aspirations जगा है, उसको address करना ही पड़ेगा। मुसीबतों से मुक्ति मिले, उसके लिए हमें एक-के-बाद एक कदम उठाने ही पड़ेंगे। हमारी पुरानी सोच कुछ भी क्यों न हो, लेकिन समाज को बेटे-बेटी के भेद से मुक्त करना ही होगा। अब स्कूलों में बच्चियों के लिये भी toilet हैं, बच्चों के लिये भी toilet हैं। हमारी बेटियों के लिये भेदभाव-मुक्त भारत की अनुभूति का ये अवसर है।
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+ सरकार की तरफ़ से टीकाकरण तो होता ही है, लेकिन फिर भी लाखों बच्चे टीकाकरण से छूट जाते हैं। बीमारी के शिकार हो जाते हैं। ‘मिशन इन्द्रधनुष’ टीकाकरण का एक ऐसा अभियान, जो छूट गए हुए बच्चों को भी समेटने के लिए लगा है, जो बच्चों को ��ंभीर रोगों से मुक्ति के लिए ताक़त देता है। 21वीं सदी हो और गाँव में अँधेरा हो, अब नहीं चल सकता और इसलिये गाँवों को अंधकार से मुक्त करने के लिये, गाँव बिजली पहुँचाने का बड़ा अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। समय सीमा में आगे बढ़ रहा है। आज़ादी के इतने सालों के बाद, गरीब माँ, लकड़ी के चूल्हे पर खाना पका करके दिन में 400 सिगरेट का धुआं अपने शरीर में ले जाए, उसके स्वास्थ्य का क्या होगा। कोशिश है 5 करोड़ परिवारों को धुयें से मुक्त ज़िंदगी देने के लिये। सफलता की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आप सभी को क्रिसमस की अनेक-अनेक शुभकामनायें। आज का दिन सेवा, त्याग और करुणा को अपने जीवन में महत्व देने का अवसर है। ईसा मसीह ने कहा “गरीबों को हमारा उपकार नहीं, हमारा स्वीकार चाहिये”। Saint Luke के Gospel में लिखा है “जीसस ने न केवल गरीबों की सेवा की है, बल्कि गरीबों के द्वारा की गयी सेवा की भी सराहना की है” और यही तो असली empowerment है। इससे जुड़ी एक कहानी भी बहुत प्रचलित है। उस कहानी में बताया गया है कि जीसस एक temple treasury के पास खड़े थे। कई अमीर लोग आए, ढेर सारे दान दिए। उसके बाद एक ग़रीब विधवा आई और उसने दो तांबे के सिक्के डाले। एक तरह से देखा जाए दो तांबे के सिक्के, कुछ मायने नहीं रखते। वहाँ खड़े भक्तों के मन में, कौतुहल होना बड़ा स्वाभाविक था, तब जीसस ने कहा, कि उस विधवा महिला ने सबसे ज्यादा दान किया है, क्योंकि औरों ने बहुत कुछ दिया, लेकिन इस विधवा ने तो अपना सब कुछ दे दिया है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे ये जान करके ख़ुशी होती है कि देश में technology का उपयोग कैसे करना, e-payment कैसे करना, online payment कैसे करना, इसकी जागरूकता बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। पिछले कुछ ही दिनों में cashless कारोबार, बिना नगद का कारोबार, 200 से 300 प्रतिशत बढ़ा है। इसको बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है। ये फैसला कितना बड़ा है इसका अंदाज़ तो व्यापारी बहुत अच्छी तरह लगा सकते हैं। जो व्यापारी digital लेन-देन करेंगे, अपने कारोबार में नगद के बज़ाय online payment की पद्धति विकसित करेंगे, ऐसे व्यापारियों को Income Tax में छूट दे दी गई है।
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+ भाइयो-बहनो, हमारी अर्थव्यवस्था में, हमारी जीवन व्यवस्था में, Informal Sector बहुत बढ़ा है और ज्यादातर इन लोगों का मज़दूरी का पैसा, काम का पैसा या पगार नग़द में दिया जाता है, Cash में salary दी जाती है और हमें पता है, उसके कारण मजदूरों का शोषण भी होता है। 100 रूपए मिलने चाहिये तो 80 मिलते हैं, 80 मिलने चाहिये तो 50 मिलते हैं और insurance जैसे health sector की दृष्टि से अन्य कई सुविधाएँ होती हैं उससे वो वंचित रह जाते हैं लेकिन अब cashless payment हो रहा है। सीधा पैसा बैंक में जमा हो रहा है। एक प्रकार से Informal Sector formal convert होता जा रहा है, शोषण बंद हो रहा है, cut देना पड़ता था वो cut भी अब बंद हो रहा है और मज़दूर को, कारीगर को, ऐसे ग़रीब व्यक्ति को पूरे पैसे मिलना संभव हुआ है। साथ-साथ अन्य जो लाभ मिलते हैं वे लाभ का भी वो हक़दार बन रहा है। हमारा देश तो स��्वाधिक युवाओं वाला देश है। Technology हमें सहज़ साध्य है। भारत जैसे देश ने तो इस क्षेत्र में सबसे आगे होना चाहिये। हमारे नौजवानों ने Start-Up से काफ़ी प्रगति की है। ये digital movement एक सुनहरा अवसर है हमारे नौजवान नये-नये idea के साथ, नयी-नयी technology के साथ, नयी-नयी पद्धति के साथ इस क्षेत्र को जितना बल दे सकते हैं देना चाहिये, लेकिन देश को काले धन से, भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के अभियान में पूरी ताक़त से हमें जुड़ना चाहिये।
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+ तीसरे पत्र, लेखकों का ग्रुप ऐसा है, वे भी बहुत बड़ी संख्या में हैंI वो कहते हैं मोदी जी थक मत जाना, रुक मत जाना और जितना कठोर कदम उठा सकते हो, उठाओ, लेकिन अब एक बार रास्ता पकड़ा है तो मंजिल तक पहुंचना ही हैI मैं ऐसे पत्र लिखने वाले सब को विशेष रूप से धन्यवाद करता हूँ क्योंकि उनके पत्र में एक प्रकार से विश्वास भी है, आशीर्वाद भी हैI मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ये पूर्ण विराम नहीं है, ये तो अभी शुरुआत है, ये जंग जीतना है और थकने का तो सवाल ही कहाँ उठता है, रुकने का तो सवाल ही नहीं उठता है और जिस बात पर सवा-सौ करोड़ देशवासियों का आशीर्वाद हो, उसमें तो पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता हैI आपको मालूम होगा हमारे देश में ‘बेनामी संपत्ति’ का एक कानून हैI Nineteen Eighty Eight, उन्नीस सौ अठास्सी में बना था, लेकिन कभी भी न उसके Rules बनें, उसको Notify नहीं किया, ऐसे ही वो ठंडे बस्ते में पड़ा रहाI हमनें उसको निकाला है और बड़ा धार-धार ‘बेनामी संपत्ति’ का कानून हमने बनाया हैI आने वाले दिनों में वो कानून भी अपना काम करेगाI देशहित के लिये, जनहित के लिये, जो भी करना पड़े, ये हमारी प्राथमिकता हैI
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, पिछली बार भी ‘मन की बात’ में मैंने कहा था कि इन कठिनाइयों के बीच भी हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत कर के ‘बुवाई’ में पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दियाI कृषि क्षेत्र के दृष्टि से ये शुभ संकेत हैंI इस देश का मजदूर हो, इस देश का किसान हो, इस देश का नौजवान हो इन सब के परिश्रम आज नये रंग ला रहे हैंI पिछले दिनों विश्व के ‘अर्थ मंच’ पर भारत ने अनेक क्षेत्र में अपना नाम बड़े गौरव के साथ अंकित करवाया हैI हमारे देशवासियों के लगातार प्रयासों का परिणाम है कि अलग-अलग Indicators के ज़रिये अलग-अलग Indicators के ज़रिये भारत की वैश्विक ranking में बढ़ोतरी दिखाई दे रही हैI World Bank की doing business report में भारत की ranking बढ़ी हैI हम भारत में business practices को दुनिया के best Practices के बराबर बन���ने का तेज़ी से प्रयास कर रहे हैं और सफलता मिल रही हैI UNCTAD उसके द्वारा जारी world investment report के अनुसार top prospective host economies for 2016-18 में भारत का स्थान तीसरा पहुँच गया हैI World Economic Forum के global competitiveness Report में भारत ने 32 Rank की छलांग लगाई हैI global innovation index 2016 में हमने 16 स्थानों की बढ़त हासिल की है और World Bank के Logistics Performance Index 2016 में 19 rank की बढ़ोतरी हुई हैI कई report ऐसे हैं जिसके मूल्यांकन भी इसी ओर इशारा करते हैंI भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है I
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार संसद का सत्र देशवासियों की नाराज़गी का कारण बना, चारों तरफ संसद के गतिविधि के संबंध में रोष प्रकट हुआI राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति जी ने भी प्रकट रूप से नाराज़गी व्यक्त की, लेकिन इस हालत में भी, कभी-कभी कुछ अच्छी बात भी हो जाती है और तब मन को एक बहुत संतोष मिलता हैI संसद के हो-हल्ले के बीच एक ऐसा उत्तम काम हुआ जिसकी तरफ देश का ध्यान नहीं गया हैI भाइयो-बहनो, आज मुझे इस बात को बताते हुए गर्व और हर्ष की अनुभूति हो रही है कि दिव्यांग-जनों पर जिस Mission को ले करके मेरी सरकार चली थी, उससे जुड़ा एक बिल संसद में पारित हो गया, इसके लिये मैं लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों का आभार व्यक्त करता हूँ, देश के करोड़ों दिव्यांग-जनों की तरफ से आभार व्यक्त करता हूँI दिव्यांगों के लिए हमारी सरकार Committed हैI मैंने निजी-तौर पर भी इसे लेकर मुहिम को गति देने की कोशिश भी की है I मेरा इरादा था, दिव्यांग-जनों को उनका हक़ मिले, सम्मान मिले, जिसके वो अधिकारी हैंI हमारे प्रयासों और भरोसों को हमारे दिव्यांग भाई-बहनों ने उस वक़्त और मजबूती दी जब वे Paralympics में चार Medal जीत करके ले आये, उन्होंने अपनी जीत से न केवल देश का मान बढ़ाया बल्कि अपनी क्षमता से लोगों को आश्चर्य चकित भी कर दियाI हमारे दिव्यांग भाई-बहन भी देश के हर नागरिक की तरह हमारी एक अनमोल विरासत है, अनमोल शक्ति हैI मैं आज बेहद खुश हूँ कि दिव्यांग-जनों के हित के लिए ये कानून पास होने के बाद दिव्यांगों के पास नौकरी के ज्यादा अवसर होंगेI सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ा करके 4% कर दी गयी हैI इस कानून से दिव्यांगो की शिक्षा, सुविधा और शिकायतों के लिए विशेष प्रावधान भी किये गए हैंI दिव्यांगों को ले करके सरकार कितनी संवेदनशील है इसका अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्ष में दिव्यांग-जनों के लिए चार हज़ार तीन सौ पचास कैंप लगाएI तीन सौ बाव��� करोड़ रूपयों की राशि खर्च करके पाँच लाख अस्सी हज़ार दिव्यांग भाई-बहनों को उपकरण बाँटेI सरकार ने United Nation की भावना के अनुरूप ही नया कानून पारित किया हैI पहले दिव्यांगों की श्रेणी सात प्रकार की हुआ करती थी, लेकिन अब कानून बना करके उसे इक्कीस प्रकार की कर दी गई हैंI इसमें चौदह नई श्रेणियाँ और जोड़ दी हैंI दिव्यांगों की कई ऐसी श्रेणियाँ शामिल की गयी हैं जिसे पहली बार न्याय मिला है, अवसर मिला हैI जैसे- Thalassemia, Parkinson’s, या फिर बौनापन, ऐसे क्षेत्रों को भी इस श्रेणी के साथ जोड़ दिया गया हैI मेरे युवा साथियो, पिछले कुछ हफ्तों में खेल के मैदान में ऐसी ख़बरें आईं जिसने हम सब को गौरवान्वित कर दियाI भारतीय होने के नाते हम सब को गर्व होना बहुत स्वाभाविक हैI भारतीय cricket टीम की इंग्लैंड के खिलाफ़ चार शून्य से सीरीज में जीत हुई हैI इसमें कुछ युवा खिलाड़ियों की Performance काबिले तारीफ़ रहीI हमारे नौजवान करुण नायर ने Triple Century लगाई, तो, के.एल. राहुल ने 199 रनों की पारी खेलीI टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने तो अच्छी batting के साथ-साथ अच्छा नेतृत्व भी दियाI भारतीय क्रिकेट टीम के off-spinner गेंदबाज आर. अश्विन को ICC ने वर्ष 2016 का ‘Cricketer Of The Year’ और ‘Best Test Cricketer’ घोषित किया हैI इन सब को मेरी बहुत-बहुत बधाईयाँ, ढेर सारी शुभकामनायेंI हॉकी के क्षेत्र में भी पंद्रह साल के बाद बहुत अच्छी खबर आई, शानदार खबर आई। Junior Hockey Team ने World Cup पर कब्ज़ा कर लियाI पंद्रह साल के बाद ये मौका आया है जब Junior Hockey Team ने World Cup जीताI इस उपलब्धि के लिये नौजवान खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई। ये उपलब्धि भारतीय हॉकी टीम के भविष्य के लिये शुभ संकेत हैI पिछले महीने हमारी महिला खिलाड़ियों ने भी कमाल करके दिखायाI भारत की महिला हॉकी टीम ने Asian Champions Trophy भी जीती और अभी-अभी कुछ ही दिन पहले Under 18 Asia Cup भारत की महिला हॉकी टीम ने Bronze Medal हासिल कियाI मैं क्रिकेट और हॉकी टीम के सभी खिलाड़ियों को ह्रदय से बहुत-बहुत अभिनन्दन करता हूँI
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 2017 का वर्ष नई उमंग और उत्साह का वर्ष बने, आपके सारे संकल्प सिद्ध हों, विकास की नई ऊँचाइयों को हम पार करेंI सुख चैन की ज़िन्दगी जीने के लिए ग़रीब से ग़रीब को अवसर मिले, ऐसा हमारा 2017 का वर्ष रहेI 2017 के वर्ष के लिये मेरी तरफ से सभी देशवासियों को अनेक-अनेक शुभकामनायेंI बहुत-बहुत धन्यवादI
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। 26 जनवरी, हमारा ‘गणतंत्र दिवस’ देश के कोने-कोने में उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। भारत का संविधान, नागरिकों के कर्तव्य, नागरिकों के अधिकार, लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, एक प्रकार से ये संस्कार उत्सव भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र के प्रति, लोकतान्त्रिक जिम्मेवारियों के प्रति, जागरूक भी करता है, संस्कारित भी करता है। लेकिन अभी भी हमारे देश में, नागरिकों के कर्तव्य और नागरिकों के अधिकार – उस पर जितनी बहस होनी चाहिए, जितनी गहराई से बहस होनी चाहिए, जितनी व्यापक रूप में चर्चा होनी चाहिए, वो अभी नहीं हो रही है। मैं आशा करता हूँ कि हर स्तर पर, हर वक़्त, जितना बल अधिकारों पर दिया जाता है, उतना ही बल कर्तव्यों पर भी दिया जाए। अधिकार और कर्तव्य की दो पटरी पर ही, भारत के लोकतंत्र की गाड़ी तेज़ गति से आगे बढ़ सकती है।
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+ हमारे देश में सेना के प्रति, सुरक्षा बलों के प्रति, एक सहज आदर भाव प्रकट होता रहता है। इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, विभिन्न वीरता पुरस्कारों से, जो वीर-जवान सम्मानित हुए, उनको, उनके परिवारजनों को, मैं बधाई देता हूँ। इन पुरस्कारों में, ‘कीर्ति चक्र’, ‘शौर्य चक्र’, ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’, ‘विशिष्ट सेवा मेडल’ – अनेक श्रेणियाँ हैं। मैं ख़ास करके नौजवानों से आग्रह करना चाहता हूँ। आप social media में बहुत active हैं। आप एक काम कर सकते हैं? इस बार, जिन-जिन वीरों को ये सम्मान मिला है – आप Net पर खोजिए, उनके संबंध में दो अच्छे शब्द लिखिए और अपने साथियों में उसको पहुँचाइए। जब उनके साहस की, वीरता की, पराक्रम की बात को गहराई से जानते हैं, तो हमें आश्चर्य भी होता है, गर्व भी होता है, प्रेरणा भी मिलती है।
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+ खैर, सवाल तो सृष्टि ने पूछा है, लेकिन ये सवाल आप सबके मन में होगा। परीक्षा अपने-आप में एक ख़ुशी का अवसर होना चाहिये। साल भर मेहनत की है, अब बताने का अवसर आया है, ऐसा उमंग-उत्साह का ये पर्व होना चाहिए। बहुत कम लोग हैं, जिनके लिए exam में pleasure होती है, ज़्यादातर लोगों के लिए exam एक pressure होती है। निर्णय आपको करना है कि इसे आप pleasure मानेंगे कि pressure मानेंगे। जो pleasure मानेगा, वो पायेगा; जो pressure मानेगा, वो पछताएगा। और इसलिये मेरा मत है कि परीक्षा एक उत्सव है, परीक्षा को ऐसे लीजिए, जैसे मानो त्योहार है। और जब त्योहार होता है, जब उत्सव होता है, तो ह��ारे भीतर जो सबसे best होता है, वही बाहर निकल कर के आता है। समाज की भी ताक़त की अनुभूति उत्सव के समय होती है। जो उत्तम से उत्तम है, वो प्रकट होता है। सामान्य रूप से हमको लगता है कि हम लोग कितने Indisciplined हैं, लेकिन जब 40-45 दिन चलने वाले कुम्भ के मेलों की व्यवस्था देखें, तो पता चलता है कि ये make-shift arrangement और क्या discipline है लोगों में। ये उत्सव की ताक़त है। exam में भी पूरे परिवार में, मित्रों के बीच, आस-पड़ोस के बीच एक उत्सव का माहौल बनना चाहिये। आप देखिए, ये pressure, pleasure में convert हो जाएगा। उत्सवपूर्ण वातावरण बोझमुक्त बना देगा। और मैं इसमें माता-पिता को ज़्यादा आग्रह से कहता हूँ कि आप इन तीन-चार महीने एक उत्सव का वातावरण बनाइए। पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी-अपनी भूमिका उत्साह से निभाए। देखिए, देखते ही देखते बदलाव आ जाएगा। हक़ीक़त तो ये है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक और कच्छ से ले करके कामरूप तक, अमरेली से ले करके अरुणाचल प्रदेश तक, ये तीन-चार महीने परीक्षा ही परीक्षायें होती हैं। ये हम सब का दायित्व है कि हम हर वर्ष इन तीन-चार महीनों को अपने-अपने तरीक़े से, अपनी-अपनी परंपरा को लेते हुए, अपने-अपने परिवार के वातावरण को लेते हुए, उत्सव में परिवर्तित करें। और इसलिए मैं तो आपसे कहूँगा ‘smile more score more’. जितनी ज़्यादा ख़ुशी से इस समय को बिताओगे, उतने ही ज़्यादा नंबर पाओगे, करके देखिए। और आपने देखा होगा कि जब आप खुश होते हैं, मुस्कुराते हैं, तो आप relax अपने-आप को पाते हैं। आप सहज रूप से relax हो जाते हैं और जब आप relax होते हैं, तो आपकी वर्षों पुरानी बातें भी सहज रूप से आपको याद आ जाती हैं। एक साल पहले classroom में teacher ने क्या कहा, पूरा दृश्य याद आ जाता है। और आपको ये पता होना चाहिए, memory को recall करने का जो power है, वो relaxation में सबसे ज़्यादा होता है। अगर आप तनाव में है, तो सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं, बाहर का अंदर नहीं जाता, अंदर का बाहर नहीं आता है। विचार प्रक्रिया में ठहराव आ जाता है, वो अपने-आप में एक बोझ बन जाता है। exam में भी आपने देखा होगा, आपको सब याद आता है। किताब याद आती है, chapter याद आता है, page number याद आता है, page में ऊपर की तरफ़ लिखा है कि नीचे की तरफ़, वो भी याद आता है, लेकिन वो particular शब्द याद नहीं आता है। लेकिन जैसे ही exam दे करके बाहर निकलते हो और थोड़ा सा कमरे के बाहर आए, अचानक आपको याद आ जाता है – हाँ यार, यही शब्द था। अंदर क्यों याद नहीं आया, pressure था। बाहर कैसे याद आया? आप ही तो थे, किसी ने बताया तो नहीं था। लेकिन जो अंदर था, तुरंत बाहर आ गया और बाहर इसलिये आया, क्योंकि आप relax हो गए। और इसलिये memory recall करने की सबसे बड़ी अगर कोई औषधि है, तो वो relaxation है। और ये मैं अपने स्वानुभव से कहता हूँ कि अगर pressure है, तो अपनी चीज़ें हम भूल जाते हैं और relax हैं, तो कभी हम कल्पना नहीं कर सकते, अचानक ऐसी-ऐसी चीज़ें याद आ जाती हैं, वो बहुत काम आ जाती हैं। और ऐसा नहीं है कि आप के पास knowledge नहीं है, ऐसा नहीं है कि आप के पास Information नहीं है, ऐसा नहीं है कि आपने मेहनत नहीं की है। लेकिन जब tension होता है, तब आपका knowledge, आपका ज्ञान, आपकी जानकारी नीचे दब जाती हैं और आपका tension उस पर सवार हो जाता है। और इसलिये आवश्यक है, ‘A happy mind is the secret for a good mark-sheet’. कभी-कभी ये भी लगता है कि हम proper perspective में परीक्षा को देख नहीं पाते हैं। ऐसा लगता है कि वो जीवन-मरण का जैसे सवाल है। आप जो exam देने जा रहे हैं, वो साल भर में आपने जो पढ़ाई की है, उसकी exam है। ये आपके जीवन की कसौटी नहीं है। आपने कैसा जीवन जिया, कैसा जीवन जी रहे हो, कैसा जीवन जीना चाहते हो, उसकी exam नहीं है। आपके जीवन में, classroom में, notebook ले करके दी गई परीक्षा के सिवाय भी कई कसौटियों से गुज़रने के अवसर आए होंगे। और इसलिये, परीक्षा को जीवन की सफलता-विफलता से कोई लेना-देना है, ऐसे बोझ से मुक्त हो जाइए। हमारे सबके सामने, हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी का बड़ा प्रेरक उदाहरण है। वे वायुसेना में भर्ती होने गए, fail हो गए। मान लीजिए, उस विफलता के कारण अगर वो मायूस हो जाते, ज़िंदगी से हार जाते, तो क्या भारत को इतना बड़ा वैज्ञानिक मिलता, इतने बड़े राष्ट्रपति मिलते! नहीं मिलते। कोई ऋचा आनंद जी ने मुझे एक सवाल भेजा है: –
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+ “आज के इस दौर में शिक्षा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती देख पाती हूँ, वो यह कि शिक्षा परीक्षा केन्द्रित हो कर रह गयी है। अंक सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसकी वजह से प्रतिस्पर्द्धा तो बहुत बढ़ी ही है, साथ में विद्यार्थियों में तनाव भी बहुत बढ़ गया है। तो शिक्षा की इस वर्तमान दिशा और इसके भविष्य को ले करके आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी।”
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+ ऋचा जी, ने एक बात ये भी कही है ‘प्रतिस्पर्द्धा’। ये एक बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक लड़ाई है। सचमुच में, जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा काम नहीं आती है। जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अनुस्पर्द्धा काम आत�� है और जब हम अनुस्पर्द्धा मैं कहता हूँ, तो उसका मतलब है, स्वयं से स्पर्द्धा करना। बीते हुए कल से आने वाला कल बेहतर कैसे हो? बीते हुए परिणाम से आने वाला अवसर अधिक बेहतर कैसे हो? अक्सर आपने खेल जगत में देखा होगा। क्योंकि उसमें तुरंत समझ आता है, इसलिए मैं खेल जगत का उदहारण देता हूँ। ज़्यादातर सफल खिलाड़ियों के जीवन की एक विशेषता है कि वो अनुस्पर्द्धा करते हैं। अगर हम श्रीमान सचिन तेंदुलकर जी का ही उदहारण ले लें। बीस साल लगातार अपने ही record तोड़ते जाना, खुद को ही हर बार पराजित करना और आगे बढ़ना। बड़ी अदभुत जीवन यात्रा है उनकी, क्योंकि उन्होंने प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा अनुस्पर्द्धा का रास्ता अपनाया।
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+ बहुत साल पहले की बात है। हमारे एक परिचित व्यक्ति heart attack के कारण अस्पताल में थे, तो हमारे भारत के लोक सभा के पहले Speaker गणेश दादा मावलंकर, उनके पुत्र पुरुषोत्तम मावलंकर, वो कभी M.P. भी रहे थे, वो उनकी तबीयत देखने आए। मैं उस समय मौजूद था और मैंने देखा कि उन्होंने आ करके उनकी तबीयत के संबंध में एक भी सवाल नहीं पूछा। बैठे और आते ही उन्होंने वहाँ क्या स्थिति है, बीमारी कैसी है, कोई बातें नहीं, चुटकुले सुनाना शुरू कर दिया और पहले दो-चार मिनट में ही ऐसा माहौल उन्होंने हल्का-फुल्का कर दिया। एक प्रकार से बीमार व्यक्ति को जाकर के जैसे हम बीमारी से डरा देते हैं। अभिभावकों से मैं कहना चाहूँगा, कभी-कभी हम भी बच्चों के साथ ऐसा ही करते हैं। क्या आपको कभी लगा कि exam के दिनों में बच्चों को हँसी-ख़ुशी का भी कोई माहौल दें। आप देखिए, वातावरण बदल जाएगा।
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+ “नमस्कार, प्रधानमंत्री जी, मैं अपना नाम तो नहीं बता सकता, क्योंकि मैंने काम ही कुछ ऐसा किया था अपने बचपन में। मैंने बचपन में एक बार नक़ल करने की कोशिश की थी, उसके लिये मैंने बहुत तैयारी करना शुरू किया कि मैं कैसे नक़ल कर सकता हूँ, उसके तरीक़ों को ढूँढ़ने की कोशिश की, जिसकी वजह से मेरा बहुत सारा time बर्बाद हो गया। उस time में मैं पढ़ करके भी उतने ही नंबर ला सकता था, जितना मैंने नक़ल करने के लिए दिमाग लगाने में ख़र्च किया। और जब मैंने नक़ल करके पास होने की कोशिश की, तो मैं उसमें पकड़ा भी गया और मेरी वजह से मेरे आस-पास के कई दोस्तों को काफ़ी परेशानी हुई।”
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+ मान लीजिए, आप भी अपने रास्तों को गड्ढे में परिवर्तित कर रहे हो और मैंने तो देखा है, कुछ लोग ऐसे होते हैं कि नक़ल के तौर-तरी��े ढूँढ़ने में इतनी talent का उपयोग कर देते हैं, इतना Investment कर देते हैं; अपनी पूरी creativity जो है, वो नक़ल करने के तौर-तरीक़ों में खपा देते हैं। अगर वही creativity, यही time आप अपने exam के मुद्दों पर देते, तो शायद नक़ल की ही ज़रुरत नहीं पड़ती। अपनी ख़ुद की मेहनत से जो परिणाम प्राप्त होगा, उससे जो आत्मविश्वास बढ़ेगा, वो अद्भुत होगा।
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+ “नमस्कार, प्रधानमंत्री जी। My name is Monica and since I am a class 12th student, I wanted to ask you a couple of questions regarding the Board Exams. My first question is, what can we do to reduce the stress that builds up during our exams and my second question is, why exams all about work and no play are. Thank you.”
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। हर ‘मन की बात’ से पहले, देश के हर कोने से, हर आयु वर्ग के लोगों से, ‘मन की बात’ को ले करके ढ़ेर सारे सुझाव आते हैं। आकाशवाणी पर आते हैं, Narendra Modi App पर आते हैं, MyGov के माध्यम से आते हैं, फ़ोन के द्वारा आते हैं, recorded message के द्वारा आते हैं। और जब कभी-कभी मैं उसे समय निकाल करके देखता हूँ तो मेरे लिये एक सुखद अनुभव होता है। इतनी विविधताओं से भरी हुई जानकारियाँ मिलती हैं।
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+ शुरू में ‘मन की बात’ को लेकर के भी जब सुझाव आते थे, सलाह के शब्द सुनाई देते थे, पढ़ने को मिलते थे, तो हमारी टीम को भी यही लगता था कि ये बहुत सारे लोगों को शायद ये आदत होगी, लेकिन हमने ज़रा बारीकी से देखने की कोशिश की तो मैं सचमुच में इतना भाव-विभोर हो गया। ज़्यादातर सुझाव देने वाले लोग वो हैं, मुझ तक पहुँचने का प्रयास करने वाले लोग वो हैं, जो सचमुच में अपने जीवन में कुछ-न-कुछ करते हैं। कुछ अच्छा हो उस पर वो अपनी बुद्धि, शक्ति, सामर्थ्य, परिस्थिति के अनुसार प्रयत्नरत हैं। और ये चीजें जब ध्यान में आयी तो मुझे लगा कि ये सुझाव सामान्य नहीं हैं। ये अनुभव के निचोड़ से निकले हुए हैं। कुछ लोग सुझाव इसलिये भी देतें हैं कि उनको लगता है कि अगर यही विचार वहाँ, जहाँ काम कर रहे हैं, वो विचार अगर और लोग सुनें और उसका एक व्यापक रूप मिल जाए तो बहुत लोगों को फायदा हो सकता है। और इसलिये उनकी स्वाभाविक इच्छा रहती है कि ‘मन की बात’ में अगर इसका ज़िक्र हो जाए। ये सभी बातें मेरी दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक हैं।
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+ पिछली बात ‘मन की बात’ में कुछ लोगों ने मुझे सुझाव दिया था food waste हो रहा है, उसके संबंध में चिंता जताई थी और मैंने उल्लेख किया। और जब उल्लेख किया तो उसके बाद Narendra Modi App पर, MyGov पर देश के अनेक कोने में से अनेक लोगों ने, कैसे-कैसे Innovative ideas के साथ food waste को बचाने के लिये क्या-क्या प्रयोग किये हैं। मैंने भी कभी सोचा नहीं था आज हमारे देश में खासकर के युवा-पीढ़ी, लम्बे अरसे से इस काम को कर रही है। कुछ सामाजिक संस्थायें करती हैं, ये तो हम कई वर्षों से जानते आए हैं, लेकिन मेरे देश के युवा इसमें लगे हुए हैं – ये तो मुझे बाद में पता चला। कइयों ने मुझे videos भेजे हैं। कई स्थान हैं जहाँ रोटी बैंक चल रही हैं। लोग रोटी बैंक में, अपने यहाँ से रोटी जमा करवाते हैं, सब्जी जमा करवाते हैं और जो needy लोग हैं वे वहाँ उसे प्राप्त भी कर लेते हैं। देने वा���े को भी संतोष होता है, लेने वाले को भी कभी नीचा नहीं देखना पड़ता है। समाज के सहयोग से कैसे काम होते हैं, इसका ये उदाहरण है।
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+ एक ज़माना था जब climate change ये academic world का विषय रहता था, seminar का विषय रहता था। लेकिन आज, हम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, हम अनुभव भी करते हैं, अचरज़ भी करते हैं। कुदरत ने भी, खेल के सारे नियम बदल दिये हैं। हमारे देश में मई-जून में जो गर्मी होती है, वो इस बार मार्च-अप्रैल में अनुभव करने की नौबत आ गयी। और मुझे ‘मन की बात’ पर जब मैं लोगों के सुझाव ले रहा था, तो ज़्यादातर सुझाव इन गर्मी के समय में क्या करना चाहिये, उस पर लोगों ने मुझे दिये हैं। वैसे सारी बातें प्रचलित हैं। नया नहीं होता है लेकिन फिर भी समय पर उसका पुनःस्मरण बहुत काम आता है।
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+ श्रीमान प्रकाश त्रिपाठी ने emergency को याद करते हुए लिखा है कि 25 जून को लोकतंत्र के इतिहास में एक काला कालखंड के रूप में उन्होंने प्रस्तुत किया है। प्रकाश त्रिपाठी जी की लोकतंत्र के प्रति ये जागरूकता सराहनीय है और लोकतंत्र एक व्यवस्था ही है, ऐसा नहीं है, वो एक संस्कार भी है। Eternal Vigilance is the Price of Liberty लोकतंत्र के प्रति नित्य जागरूकता ज़रूरी होती है और इसलिये लोकतंत्र को आघात करने वाली बातों को भी स्मरण करना होता है और लोकतंत्र की अच्छी बातों की दिशा में आगे बढ़ना होता है। 1975 – 25 जून – वो ऐसी काली रात थी, जो कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भुला नहीं सकता है। कोई भारतवासी भुला नहीं सकता है। एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी। अख़बारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था। आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी जेल में थे। जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मनःस्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। मनुष्य का मन ही ऐसा है कि वर्षाकाल मन के लिये बड़ा लुभावना काल होता है। पशु, पक्षी, पौधे, प्रकृति – हर कोई वर्षा के आगमन पर प्रफुल्लित हो जाते हैं। लेकिन कभी-कभी वर्षा जब विकराल रूप लेती है, तब पता चलता है कि पानी की विनाश करने की भी कितनी बड़ी ताक़त होती है। प्रकृति हमें जीवन देती है, हमें पालती है, लेकिन कभी-कभी बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें, उसका भीषण स्वरूप, बहुत विनाश कर देता है। बदलते हुए मौसम-चक्र और पर्यावरण में जो बदलाव आ रहा है, उसका बड़ा ही negative impact भी हो रहा है। पिछले कुछ दिनों से भारत के कुछ हिस्सों में विशेषकर असम, North-East, गुजरात, राजस्थान, बंगाल के कुछ हिस्से, अति-वर्षा के कारण प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ी है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पूरी monitoring हो रही है। व्यापक स्तर पर राहत कार्य किए जा रहे हैं। जहाँ हो सके, वहाँ मंत्रिपरिषद के मेरे साथी भी पहुँच रहे हैं। राज्य सरकारें भी अपने-अपने तरीक़े से बाढ़ पीड़ितों को मदद करने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं। सामाजिक संगठन भी, सांस्कृतिक संगठन भी, सेवा-भाव से काम करने वाले नागरिक भी, ऐसी परिस्थिति में लोगों को मदद पहुँचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार की तरफ़ से, सेना के जवान हों, वायु सेना के लोग हों, NDRF के लोग हों, paramilitary forces हों, हर कोई ऐसे समय आपदा पीड़ितों की सेवा करने में जी-जान से जुड़ जाते हैं। बाढ़ से जन-जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है। फसलों, पशुधन, infrastructure, roads, electricity, communication links सब कुछ प्रभावित हो जाता है। खास कर के हमारे किसान भाइयों को, फ़सलों को, खेतों को जो नुकसान होता है, तो इन दिनों तो हमने insurance कंपनियों को और विशेष करके crop insurance कंपनियों को भी proactive होने के लिये योजना बनाई है, ताकि किसानों के claim settlement तुरंत हो सकें। और बाढ़ की परिस्थिति को निपटने के लिये 24×7 control room helpline number 1078 लगातार काम कर रहा है। लोग अपनी कठिनाइयाँ बताते भी हैं। वर्षा ऋतु के पूर्व अधिकतम स्थानों पर mock drill करके पूरे सरकारी तंत्र को तैयार किया गया। NDRF की टीमें लगाई गईं। स्थान-स्थान पर आपदा-मित्र बनाना और आपदा-मित्र के do’s & don’ts की training करना, volunteers तय करना, एक जन-संगठन खड़ा कर-करके ऐसी परिस्थिति में काम करना। इन दिनों मौसम का जो पूर्वानुमान मिलता है, अब technology इतनी आगे बढ़ी है, space science का भी बहुत बड़ा role रहा है, उसके कारण क़रीब-क़रीब अनुमान सही निकलते हैं। धीरे-धीरे हम लोग भी स्वभाव बनाएँ कि मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार अपने कार्यकलापों की भी रचना कर सकते हैं, तो उससे हम नुकसान से बच सकते हैं।
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+ जब भी मैं ‘मन की बात’ के लिये तैयारी करता हूँ, तो मैं देख रहा हूँ, मुझसे ज्यादा देश के नागरिक तैयारी करते हैं। इस बार तो GST को लेकर के इतनी चिट्ठियाँ आई हैं, इतने सारे phone call आए हैं और अभी भी लोग GST के संबंध में खुशी भी व्यक्त करते हैं, जिज्ञासा भी व्यक्त करते हैं। एक phone call मैं आपको भी सुनाता हूँ: –
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+ “नमस्कार, प्रधानमंत्री जी, मैं गुड़गांव से नीतू गर्ग बोल रही हूँ। मैंने आपकी Chartered Accountants Day की speech सुनी और बहुत प्रभावित हुई। इसी तरह हमारे देश में पिछले महीने आज ही की तारीख़ पर Goods and Services Tax- GST की शुरुआत हुई। क्या आप बता सकते हैं कि जैसा सरकार ने expect किया था, वैसे ही result एक महीने बाद आ रहे हैं या नहीं? मैं इसके बारे में आपके विचार सुनना चाहूँगी, धन्यवाद।”
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+ GST के लागू हुए क़रीब एक महीना हुआ है और उसके फ़ायदे दिखने लगे हैं। और मुझे बहुत संतोष होता है, खुशी होती है, जब कोई ग़रीब मुझे चिट्ठी लिख करके कहता है कि GST के कारण एक ग़रीब की ज़रुरत की चीज़ों में कैसे दाम कम हुए हैं, चीज़ें कैसे सस्ती हुई हैं। अगर North-East, दूर-सुदूर पहाड़ों में, जंगलों में रहने वाला कोई व्यक्ति चिट्ठी लिखता है कि शुरू में डर लगता था कि पता नहीं क्या है; लेकिन अब जब मैं उसमें सीखने-समझने लगा, तो मुझे लगता है, पहले से ज़्यादा आसान हो गया काम। व्यापार और आसान हो गया। और सबसे बड़ी बात है, ग्राहकों का व्यापारी के प्रति भरोसा बढ़ने लगा है। अभी मैं देख रहा था कि transport and logistics sector पर कैसे GST का impact पड़ा। कैसे अब ट्रकों की आवाजाही बढ़ी है! दूरी तय करने में समय कैसे कम हो रहा है ! highways clutter free हुए हैं। ट्रकों की गति बढ़ने के कारण pollution भी कम हुआ है। सामान भी बहुत जल्दी से पहुँच रहा है। ये सुविधा तो है ही, लेकिन साथ-साथ आर्थिक गति को भी इससे बल मिलता है। पहले अलग-अलग tax structure होने के कारण transport and logistics sector का अधिकतम resources paperwork maintain करने में लगता था और उसको हर state के अन्दर अपने नये-नये warehouse बनाने पड़ते थे। GST – जिसे मैं Good and Simple Tax कहता हूँ, सचमुच में उसने हमारी अर्थव्यवस्था पर एक बहुत ही सकारात्मक प्रभाव और बहुत ही कम समय में उत्पन्न किया है। जिस तेज़ी से smooth transition हुआ है, जिस तेज़ी से migration हुआ है, नये registration हुए हैं, इसने पूरे देश में एक नया विश्वास पैदा किया ��ै। और कभी-न-कभी अर्थव्यवस्था के पंडित, management के पंडित, technology के पंडित, भारत के GST के प्रयोग को विश्व के सामने एक model के रूप में research करके ज़रूर लिखेंगे। दुनिया की कई युनिवर्सिटियों के लिए एक case study बनेगा। क्योंकि इतने बड़े scale पर इतना बड़ा change और इतने करोड़ों लोगों के involvement के साथ इतने बड़े विशाल देश में उसको लागू करना और सफलतापूर्वक आगे बढ़ना, ये अपने-आप में सफलता की एक बहुत बड़ी ऊँचाई है। विश्व ज़रूर इस पर अध्ययन करेगा। और GST लागू किया है, सभी राज्यों की उसमें भागीदारी है, सभी राज्यों की ज़िम्मेवारी भी है। सारे निर्णय राज्यों ने और केंद्र ने मिलकर के सर्वसम्मति से किए हैं। और उसी का परिणाम है कि हर सरकार की एक ही प्राथमिकता रही कि GST के कारण ग़रीब की थाली पर कोई बोझ न पड़े। और GST App पर आप भली-भाँति जान सकते हैं कि GST के पहले जिस चीज़ का जितना दाम था, तो नई परिस्थिति में कितना दाम होगा, वो सारा आपके mobile phone पर available है। One Nation – One Tax, कितना बड़ा सपना पूरा हुआ। GST के मसले को मैंने देखा है कि जिस प्रकार से तहसील से ले करके भारत सरकार तक बैठे हुए सरकार के अधिकारियों ने जो परिश्रम किया है, जिस समर्पण भाव से काम किया है, एक प्रकार से जो friendly environment बना सरकार और व्यापारियों के बीच, सरकार और ग्राहकों के बीच, उसने विश्वास को बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। मैं इस कार्य से लगे हुए सभी मंत्रालयों को, सभी विभागों को, केंद्र और राज्य सरकार के सभी मुलाज़िमों को ह्दय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। GST भारत की सामूहिक शक्ति की सफलता का एक उत्तम उदाहरण है। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। और ये सिर्फ tax reform नहीं है, एक नयी ईमानदारी की संस्कृति को बल प्रदान करने वाली अर्थव्यवस्था है। एक प्रकार से एक सामाजिक सुधार का भी अभियान है। मैं फिर एक बार सरलतापूर्वक इतने बड़े प्रयास को सफल बनाने के लिए कोटि-कोटि देशवासियों को कोटि-कोटि वंदन करता हूँ।
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+ ‘असहयोग आन्दोलन’ और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ 1920 और 1942 महात्मा गाँधी के दो अलग-अलग रूप दिखाई देते हैं। ‘असहयोग आन्दोलन’ के रूप-रंग अलग थे और 42 की वो स्थिति आई, तीव्रता इतनी बढ़ गई कि महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष ने ‘करो या मरो’ का मंत्र दे दिया। इस सारी सफलता के पीछे जन-समर्थन था, जन-सामर्थ्य थी, जन-संकल्प था, जन-संघर्ष था। पूरा देश एक होकर के लड़ रहा था। और मैं कभी-कभी सोचता हूँ, अगर इतिहास के पन्नों को थोड़ा जोड़ करके देखें, तो भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ। 1857 से प्रारंभ हुआ स्वतंत्रता संग्राम 1942 तक हर पल देश के किसी-न-किसी कोने में चलता रहा। इस लम्बे कालखंड ने देशवासियों के दिल में आज़ादी की ललक पैदा कर दी। हर कोई कुछ-न-कुछ करने के लिये प्रतिबद्ध हो गया। पीढ़ियाँ बदलती गईं, लेकिन संकल्प में कोई कमी नहीं आई। लोग आते गए, जुड़ते गए, जाते गए, नये आते गए, नये जुड़ते गए और अंग्रेज़ सल्तनत को उखाड़ करके फेंकने के लिये देश हर पल प्रयास करता रहा। 1857 से 1942 तक के इस परिश्रम ने, इस आन्दोलन ने एक ऐसी स्थिति पैदा की कि 1942 इसकी चरम सीमा पर पहुँचा और ‘भारत छोड़ो’ का ऐसा बिगुल बजा कि 5 वर्ष के भीतर-भीतर 1947 में अंग्रेज़ों को जाना पड़ा। 1857 से 1942 – आज़ादी की वो ललक जन-जन तक पहुँची। और 1942 से 1947 – पाँच साल, एक ऐसा जन-मन बन गया, संकल्प से सिद्धि के पाँच निर्णायक वर्ष के रूप में सफलता के साथ देश को आज़ादी देने का कारण बन गए। ये पाँच वर्ष निर्णायक वर्ष थे।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, फिर एक बार स्मरण कराता हूँ अगस्त क्रान्ति को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 9 अगस्त को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 15 अगस्त को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 2022, आज़ादी के 75 साल। हर देशवासी संकल्प करे, हर देशवासी संकल्प को सिद्ध करने का 5 साल का road-map तैयार करे। हम सबको देश को नयी ऊँचाइयों पर पहुँचाना है, पहुँचाना है और पहुँचाना है। आओं, हम मिल करके चलें, कुछ-न-कुछ करते चलें। देश का भाग्य, भविष्य उत्तम हो के रहेगा, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें। बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, इन दिनों हिन्दुस्तान के हर कोने में गणेश चतुर्थी की धूम मची हुई है और जब गणेश चतुर्थी की बात आती है तो सार्वजनिक-गणेशोत्सव की बात स्वाभाविक है | बालगंगाधर लोकमान्य तिलक ने 125 साल पूर्व इस परंपरा को जन्म दिया और पिछले 125 साल आज़ादी के पहले वो आज़ादी के आन्दोलन का प्रतीक बन गए थे | और आज़ादी के बाद वे समाज-शिक्षा, सामाजिक-चेतना जगाने के प्रतीक बन गये हैं | गणेश चतुर्थी का पर्व 10 दिनों तक चलता है | इस महापर्व को एकता, समता और शुचिता का प्रतीक कहा जाता है | सभी देशवासियों को गणेशोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ |
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+ इन त्योहारों की श्रृंखला में कुछ ही दिन बाद देश भर में ‘ईद-उल-जुहा’ का पर्व भी मनाया जाएगा | सभी देशवासियों को ‘ईद-उल-जुहा’ की बहुत-बहुत बधाइयाँ, बहुत शुभकामनाएँ | त्योहार हमारे लिए आस्था और विश्वास के प्रतीक तो हैं ही, हमें नये भारत में त्योहारों को स्वच्छता का भी प्रतीक बनाना है | पारिवारिक जीवन में तो त्योहार और स्वच्छता जुड़े हुए हैं | त्योहार की तैयारी का मतलब है – साफ़-सफाई | ये हमारे लिए कोई नयी चीज़ नहीं है लेकिन ये सामाजिक स्वभाव बनाना भी ज़रूरी है | सार्वजनिक रूप से स्वच्छता का आग्रह सिर्फ़ घर में नहीं, हमारे पूरे गाँव में, पूरे नगर में, पूरे शहर में, हमारे राज्य में, हमारे देश में – स्वच्छता, ये त्योहारों के साथ एक अटूट हिस्सा बनना ही चाहिये |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आधुनिक होने की परिभाषाएँ बदलती चली जा रही हैं | इन दिनों एक नया dimension, एक नया parameter, आप कितने संस्कारी हो, कितने आधुनिक हो, आपकी thought-process कितनी modern है, ये सब जानने में एक तराजू भी काम में आने लगा है और वो है environment के प्रति आप कितने सजग हैं | आपके अपनी गतिविधियों में eco-friendly, environment-friendly व्यवहार है कि उसके खिलाफ़ है | समाज में अगर उसके ख़िलाफ़ है तो आज बुरा माना जाता है | और उसी का परिणाम आज मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों ये गणेशोत्सव में भी eco-friendly गणपति, मानो एक बड़ा अभियान खड़ा हो गया है | अगर आप You Tube पर जा करके देखेंगे, हर घर में बच्चे गणेश जी बना रहे हैं, मिट्टी ला करके गणेश जी बना रहे हैं | उसमें रंग पुताई कर रहे हैं | कोई vegetable के colour लगा रहा है, कोई कागज़ के टुकड़े चिपका रहा है | भांति-भांति के प्रयोग हर परिवार में हो रहे हैं | एक प्रकार से environment consciousness का इतना बड़ा व्यापक प्रशिक्षण इस गणेशोत्सव में देखने को मिला है, शायद ���ी पहले कभी मिला हो | Media house भी बहुत बड़ी मात्रा में eco friendly गणेश की मूर्तियों के लिए लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं, प्रेरित कर रहे हैं, guide कर रहे हैं | देखिए कितना बड़ा बदलाव आया है और ये सुखद बदलाव है | और जैसा मैंने कहा हमारा देश, करोड़ों – करोड़ों तेजस्वी दिमागों से भी भरा हुआ है | और बड़ा अच्छा लगता है जब कोई नये-नये innovation जानते हैं | मुझे किसी ने बताया कि कोई एक सज्जन हैं जो स्वयं engineer हैं, उन्होंने एक विशिष्ट प्रकार से मिट्टी इकट्ठी करके, उसका combination करके, गणेश जी बनाने की training लोगों की और वो एक छोटी से बाल्टी में, पानी में गणेश विसर्जन होता है तो उसी में रखते हैं तो पानी में तुरंत dilute हो जाती है | और उन्होंने यहाँ पर रुके नहीं हैं उसमें एक तुलसी का पौधा बो दिया और पौधे बो दिए | तीन वर्ष पूर्व जब स्वच्छता का अभियान प्रारंभ किया था, 2 अक्टूबर को उसको तीन साल हो जायेंगे | और, उसके सकारात्मक परिणाम नज़र आ रहे हैं | शौचालयों की coverage 39% से करीब-करीब 67% पहुँची हैं | 2 लाख 30 हज़ार से भी ज्यादा गाँव, खुले में शौच से अपने आपको मुक्त घोषित कर चुके हैं |
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+ पिछले दिनों गुजरात में भयंकर बाढ़ आई | काफ़ी लोग अपनी जान गंवा बैठे लेकिन बाढ़ के बाद जब पानी कम हुआ तो हर जगह इतनी गन्दगी फ़ैल गई थी | ऐसे समय में गुजरात के बनासकांठा ज़िले के धानेरा में, जमीयत उलेमा–ए–हिन्द के कार्यकर्ताओं ने बाढ़ – प्रभावित 22 मंदिरों एवं 3 मस्जिदों की चरणबद्ध तरीक़े से साफ़-सफ़ाई की | ख़ुद का पसीना बहाया, सब लोग निकल पड़े | स्वच्छता के लिए एकता का उत्तम उदाहरण, हर किसी को प्रेरणा देने वाला ऐसा उदाहरण, जमीयत उलेमा–ए–हिन्द के सभी कार्यकर्ताओं ने दिया | स्वच्छता के लिए समर्पण भाव से किया गया प्रयास, ये अगर हमारा स्थायी स्वभाव बन जाए तो हमारा देश कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आप सभी से एक आह्वान करता हूँ कि एक बार फिर 2 अक्टूबर गाँधी जयंती से 15-20 दिन पहले से ही ‘स्वच्छता ही सेवा’ – जैसे पहले कहते थे ‘जल सेवा यही प्रभु सेवा’, ‘स्वच्छता ही सेवा’ की एक मुहिम चलायें | पूरे देश में स्वच्छता के लिए माहौल बनाएं | जैसा अवसर मिले, जहाँ भी अवसर मिले, हम अवसर ढूंढें | लेकिन हम सभी जुड़ें | इसे एक प्रकार से दिवाली की तैयारी मान लें, इसे एक प्रकार से नवरात्र की तैयारी मान लें, दुर्गा पूजा की तैयारी मान लें | श्रमदान करें | छुट्टी के दिन या रविवार को इकठ्ठा हो कर एक-साथ काम करें | आस-पड़ोस की बस्ती में जायें, नज़दीक के गाँव में जायें, लेकिन एक आन्दोलन के रूप में करें | मैं सभी NGOs को, स्कूलों को, colleges को, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक नेतृत्व को, सरकार के अफसरों को, कलेक्टरों को, सरपंचों को हर किसी से आग्रह करता हूँ कि 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी की जन्म-जयंती के पहले ही, 15 दिन, हम एक ऐसी स्वच्छता का वातावरण बनाएं, ऐसा स्वच्छता खड़ी कर दें कि 2 अक्टूबर सचमुच में गाँधी के सपनों वाली 2 अक्टूबर हो जाए | पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, MyGov.in पर एक section बनाया है जहाँ शौचालय निर्माण के बाद आप अपना नाम और उस परिवार का नाम प्रविष्ट कर सकते हैं, जिसकी आपने मदद की है | मेरे social media के मित्र कुछ रचनात्मक अभियान चला सकते हैं और virtual world का धरातल पर काम हो, उसकी प्रेरणा बना सकते हैं | स्वच्छ-संकल्प से स्वच्छ-सिद्धि प्रतियोगिता, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा ये अभियान जिसमें आप निबंध की स्पर्धा है, लघु-फिल्म बनाने की स्पर्धा है, चित्रकला-प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है | इसमें आप विभिन्न भाषाओँ में निबंध लिख सकते हैं और उसमें कोई उम्र की मर्यादा नहीं है, कोई age limit नहीं है | आप short film बना सकते हैं, अपने mobile से बना सकते हैं | 2-3 मिनट की फिल्म बना सकते हैं जो स्वच्छता के लिए प्रेरणा दे | वो किसी भी language में हो सकती है, वो silent भी हो सकती है | ये जो प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे उसमें से जो best तीन लोग चुने जायेंगे, district level पर तीन होंगे, state level पर तीन होंगे उनको पुरस्कार दिया जाएगा | तो मैं हर किसी को निमंत्रण देता हूँ कि आइये, स्वच्छता के इस अभियान के इस रूप में भी आप जुड़ें |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आज एक विशेष रूप से आप सब का ऋण स्वीकार करना चाहता हूँ | ह्रदय की गहराई से मैं आप का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इसलिए नहीं कि इतने लम्बे अरसे तक आप ‘मन की बात’ से जुड़े रहे | मैं इसलिए आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, ऋण स्वीकार करना चाहता हूँ क्योंकि ‘मन की बात’ के इस कार्यक्रम के साथ देश के हर कोने से लाखों लोग जुड़ जाते हैं | सुनने वालों की संख्या तो करोड़ों में है, लेकिन लाखों लोग मुझे कभी पत्र लिखते हैं, कभी message देते हैं, कभी फ़ोन पे सन्देश आ जाता है, मेरे लिए एक बहुत बड़ा खज़ाना है | देश के जन-जन के मन को जानने के लिए ये मेरे लिए एक बहुत बड़ा अवसर बन गया है | आप जितना ‘मन की बात’ का इंतज़ार करते हैं उससे ज़्यादा मैं आपके संदेशों का इंतज़ार करता हूँ | मैं लालायित रहता हूँ क्योंकि आप की हर बात से मुझे कुछ सीखने को मिलता है | मैं जो कर रहा हूँ उसको कसौटी पर कसने का अवसर मिल जाता है | बहुत-सी बातों को नये तरीक़े से सोचने के लिए आपकी छोटी-छोटी बातें भी मुझे काम आती हैं और इसलिए मैं आपके इस योगदान के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ, आपका ऋण स्वीकार करता हूँ और मेरे प्रयास रहता है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा आपकी बातों को मैं स्वयं देखूँ, सुनूँ, पढूँ, समझूँ और ऐसी-ऐसी बातें आती हैं | अब देखिये, अब इस phone call से आप भी अपने आपको co-relate करते होंगे | आपको भी लगता होगा हाँ यार, आपने कभी ऐसी गलती की है | कभी-कभी तो कुछ चीज़ें हमारी आदत का ऐसा हिस्सा बन जाती हैं कि हमें लगता ही नहीं है कि हम ग़लत करते हैं |
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+ अब ये phone call सुनने के बाद, मुझे पक्का विश्वास है कि आप चौंक भी गये होंगे, चौकन्ने भी हो गये होंगे और हो सकता है आगे से ऐसी गलती न करने का मन में तय भी कर लिये होंगे | क्या आपको नहीं लगता है कि जब हम, हमारे घर के आस-पास कोई सामान बेचने के लिए आता है, कोई फेरी लगाने वाला आता है, किसी छोटे दुकानदार से, सब्ज़ी बेचने वालों से हमारा संबंध आ जाता है, कभी ऑटो-रिक्शा वाले से संबंध आता है – जब भी हमारा किसी मेहनतकश व्यक्ति के साथ संबंध आता है तो हम उससे भाव का तोल-मोल करने लग जाते हैं, मोल-भाव करने लग जाते हैं – नहीं इतना नहीं, दो रूपया कम करो, पाँच रुपया कम करो | और हम ही लोग किसी बड़े restaurant में खाना खाने जाते हैं तो बिल में क्या लिखा है देखते भी नहीं हैं, धड़ाम से पैसे दे देते हैं | इतना ही नहीं showroom में साड़ी ख़रीदने जायें, कोई मोल-भाव नहीं करते हैं लेकिन किसी ग़रीब से अपना नाता आ जाये तो मोल-भाव किये बिना रहते नहीं हैं | ग़रीब के मन को क्या होता होगा, ये कभी आपने सोचा है ? उसके लिए सवाल दो रूपये – पांच रूपये का नहीं है | उसके ह्रदय को चोट पहुँचती है कि आपने वो ग़रीब है इसलिए उसकी ईमानदारी पर शक किया है | दो रूपया – पांच रूपया आपके जीवन में कोई फ़र्क नहीं पड़ता है लेकिन आपकी ये छोटी-सी आदत उसके मन को कितना गहरा धक्का लगाती होगी कभी ये सोचा है ? मैडम, मैं आप का आभारी हूँ आपने इतना ह्रदय को छूने वाला phone call करके एक message मुझे दिया | मुझे विश्वास है कि मेरे देशवासी भी ग़रीब के साथ ऐसा व्यवहार करने की आदत होगी तो ज़रुर छोड़ देंगे|
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, आप सबको नमस्कार । आकाशवाणी के माध्यम से ‘मन की बात’ करते-करते तीन वर्ष पूरे हो गए हैं । आज ये 36वाँ episode है । ‘मन की बात’ एक प्रकार से भारत की जो सकारात्मक शक्ति है, देश के कोने-कोने में जो भावनाएँ भरी पड़ी हैं, इच्छाएँ हैं, अपेक्षाएँ हैं, कहीं-कहीं शिकायत भी है – एक जन-मन में जो भाव उमड़ते रहते हैं ‘मन की बात’ ने उन सब भावों से मुझे जुड़ने का एक बड़ा अद्भुत अवसर दिया और मैंने कभी ये नहीं कहा है कि मेरे मन की बात है । ये ‘मन की बात’ देशवासियों के मन से जुड़ी हैं, उनके भाव से जुड़ी हैं, उनकी आशा-अपेक्षाओं से जुड़ी हुई हैं । और जब ‘मन की बात’ में बातें मैं बताता हूँ तो उसे देश के हर कोने से जो लोग मुझे अपनी बातें भेजते हैं, आपको तो शायद मैं बहुत कम कह पाता हूँ लेकिन मुझे तो भरपूर खज़ाना मिल जाता है । चाहे email पर हो, टेलीफोन पर हो, mygov पर हो, NarendraModiApp पर हो, इतनी बातें मेरे तक पहुँचती हैं । अधिकतम तो मुझे प्रेरणा देने वाली होती हैं । बहुत सारी, सरकार में सुधार के लिए होती हैं । कहीं व्यक्तिगत शिकायत भी होती हैं तो कहीं सामूहिक समस्या पर ध्यान आकर्षित किया जाता है । और मैं तो महीने में एक बार आधा घंटा आपका लेता हूँ, लेकिन लोग, तीसों दिन ‘मन की बात’ के ऊपर अपनी बातें पहुँचाते हैं । और उसका परिणाम ये आया है कि सरकार में भी संवेदनशीलता, समाज के दूर-सुदूर कैसी-कैसी शक्तियाँ पड़ी हैं, उस पर उसका ध्यान जाना, ये सहज अनुभव आ रहा है । और इसलिए ‘मन की बात’ की तीन साल की ये यात्रा देशवासियों की, भावनाओं की, अनुभूति की एक यात्रा है । और शायद इतने कम समय में देश के सामान्य मानव के भावों को जानने-समझने का जो मुझे अवसर मिला है और इसके लिए मैं देशवासियों का बहुत आभारी हूँ । ‘मन की बात’ में मैंने हमेशा आचार्य विनोबा भावे की उस बात को याद रखा है । आचार्य विनोबा भावे हमेशा कहते थे ‘अ-सरकारी, असरकारी ’ । मैंने भी ‘मन की बात’ को, इस देश के जन को केंद्र में रखने का प्रयास किया है । राजनीति के रंग से उसको दूर रखा है । तत्कालीन, जो गर्मी होती है, आक्रोश होता है, उसमें भी बह जाने के बजाय, एक स्थिर मन से, आपके साथ जुड़े रहने का प्रयास किया है । मैं ज़रूर मानता हूँ, अब तीन साल के बाद social scientists, universities, reseach scholars, media experts ज़रूर इसका analysis करेंगे । plus-minus हर चीज़ को उजागर करेंगे । और मुझे विश्वास है कि ये विचार-विमर्श भविष्य ‘मन की बात’ के लिए भी अधिक उपयोगी होगा, उसमें एक नयी चेतना, नयी ऊर्जा मिलेगी । और मैंने जब एक बार ‘मन की बात’ में कही थी कि हमें भोजन करते समय चिंता करनी चाहिये कि जितनी ज़रूरत है उतना ही लें, हम उसको बर्बाद न करें । लेकिन उसके बाद मैंने देखा कि देश के हर कोने से मुझे इतनी चिट्ठियाँ आयी, अनेक सामाजिक संगठन, अनेक नवयुवक पहले से ही इस काम को कर रहे हैं । जो अन्न थाली में छोड़ दिया जाता है उसको इकट्ठा करके, उसका सदुपयोग कैसे हो इसमें काम करने वाले इतने लोग मेरे इतने ध्यान में आये, मेरे मन को इतना बड़ा संतोष हुआ, इतना आनंद हुआ ।
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+ हम लोग बहुत स्वाभाविक रूप से कहते हैं – विविधता में एकता, भारत की विशेषता । विविधता का हम गौरव करते हैं लेकिन क्या कभी आपने इस विविधता को अनुभव करने का प्रयास किया है क्या? मैं बार-बार हिंदुस्तान के मेरे देशवासियों से कहना चाहूँगा और ख़ास करके मेरी युवा-पीढ़ी को कहना चाहूँगा कि हम एक जागृत-अवस्था में हैं । इस भारत की विविधताओं का अनुभव करें, उसको स्पर्श करें, उसकी महक को अनुभव करें । आप देखिये, आपके भीतर के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी हमारे देश की ये विविधतायें एक बहुत बड़ी पाठशाला का काम करती है । Vacation है, दिवाली के दिन है, हमारे देश में चारों तरफ कहीं-न-कहीं जाने का स्वभाव बना हुआ है ,लोग जाते हैं tourist के नाते और बहुत स्वाभाविक है । लेकिन कभी-कभी चिंता होती है कि हम अपने देश को तो देखते नहीं हैं, देश की विविधताओं को जानते नहीं, समझते नहीं, लेकिन चका-चौंध के प्रभाव में आकर के विदेशों में ही tour करना पसंद करना शुरू किये हैं । आप दुनिया में जायें मुझे कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन कभी अपने घर को भी तो देखें ! उत्तर-भारत के व्यक्ति को पता नहीं होगा कि दक्षिण-भारत में क्या है? पश्चिम-भारत के व्यक्ति को पता नहीं होगा कि पूर्व-भारत में क्या है? हमारा देश कितनी विविधताओं से भरा हुआ है ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नवरात्रि का पर्व चल रहा है । माँ दुर्गा की पूजा का अवसर है । पूरा माहौल पावन पवित्र सुगंध से व्याप्त है । चारों तरफ़ एक आध्यात्मिकता का वातावरण, उत्सव का वातावरण, भक्ति का वातावरण और ये सब कुछ शक्ति की साधना का पर्व माना जाता है । ये शारदीय-नवरात्रि के रूप में जाना जाता है । और यहीं से शरद-ऋतु का आरंभ होता है । नवरात्रि के इस पावन-पर्व पर मैं देशवासियों को अनेक-अनेक शुभकामना���ें देता हूँ और माँ-शक्ति से प्रार्थना करता हूँ कि देश के सामान्य-मानव के जीवन की आशा-आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए हमारा देश नई ऊँचाइयों को प्राप्त करे । हर चुनौतियों का सामना करने का सामर्थ्य देश को आए । देश तेज़ गति से आगे बढ़े और दो हज़ार बाईस (2022) भारत की आज़ादी के 75 साल- आज़ादी के दीवानों के सपनों को पूरा करने का प्रयास, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प, अथाह मेहनत, अथाह पुरुषार्थ और संकल्प को साकार करने के लिए पांच साल का road map बना करके हम चल पड़े और माँ शक्ति हमे आशीर्वाद दे । आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ । उत्सव भी मनायें, उत्साह भी बढ़ायें ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ की सराहना भी होती रही है, आलोचना भी होती रही है। लेकिन जब कभी मैं ‘मन की बात’ के प्रभाव की ओर देखता हूँ तो मेरा विश्वास दृढ़ हो जाता है कि इस देश के जनमानस के साथ ‘मन की बात’ शत-प्रतिशत अटूट रिश्ते से बंध चुकी है। खादी और hand-loom का ही उदाहरण ले लीजिए। गाँधी- जयन्ती पर मैं हमेशा hand-loom के लिए, खादी के लिए वकालत करता रहता हूँ और उसका परिणाम क्या है! आपको भी यह जानकर के खुशी होगी। मुझे बताया गया है कि इस महीने 17 अक्तूबर को ‘धनतेरस’ के दिन दिल्ली के खादी ग्रामोद्योग भवन स्टोर में लगभग एक करोड़ बीस लाख रुपये की record बिक्री हुई है। खादी और hand-loom का , एक ही स्टोर पर इतना बड़ा बिक्री होना, ये सुन करके आपको भी आनंद हुआ होगा, संतोष हुआ होगा। दिवाली के दौरान खादी gift coupon की बिक्री में क़रीब-क़रीब 680 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। खादी और handicraft की कुल बिक्री में भी पिछले वर्ष से, इस वर्ष क़रीब-क़रीब 90 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है। यह दिखता है कि आज युवा, बड़े-बूढ़े, महिलाएँ, हर आयु वर्ग के लोग खादी और hand-loom को पसन्द कर रहे हैं। मैं कल्पना कर सकता हूँ कि इससे कितने बुनकर परिवारों को, ग़रीब परिवारों को, हथकरघा पर काम करने वाले परिवारों को, कितना लाभ मिला होगा। पहले खादी, ‘Khadi for nation’ था और हमने ‘Khadi for fashion’ की बात कही थी, लेकिन पिछले कुछ समय से मैं अनुभव से कह सकता हूँ कि Khadi for nation और Khadi for fashion के बाद अब, Khadi for transformation की जगह ले रहा है। खादी ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति के जीवन में, hand-loom ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाते हुए उन्हें सशक्त बनाने का, शक्तिशाली साधन बनकर के उभर रहा है। ग्रामोदय के लिए ये बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है।
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+ फोनकॉल : माननीय प्रधानमंत्री जी , मेरा नाम डॉ.पार्थ शाह है.. १४ नवम्बर को हम बाल दिन के रूप में मनाते हैं क्योंकि वो हमारे पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल जी का जन्म दिन है ..उसी दिन को विश्व डायबिटीज दिन भी माना जाता है … डायबिटीज केवल बड़ों का रोग नहीं है , वो काफी सारे बच्चों में भी पाया जाता है ..तो इस चुनौती के लिए हम क्या कर सकते हैं?
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+ आपके phone call के लिए धन्यवाद। सबसे पहले तो हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले Children’s Day, बाल दिवस की सभी बच्चों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। बच्चे नए भारत के निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण hero हैं, नायक हैं। आप���ी चिंता सही है कि पहले जो बीमारियाँ बड़ी उम्र में आती थीं, जीवन के अंतिम पड़ाव के आस-पास आती थीं – वह आजकल बच्चों में भी दिखने लगी हैं। आज बड़ा आश्चर्य होता है, जब सुनते हैं कि बच्चे भी diabetes से पीड़ित हो रहे हैं। पहले के ज़माने में ऐसे रोगों को ‘राज-रोग’ के नाम से जाना जाता था। राज-रोग अर्थात ऐसी बीमारियाँ जो केवल संपन्न लोगों को, ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी जीने वालों को ही हुआ करती थी। युवा लोगों में ऐसी बीमारियाँ बहुत rare होती थीं। लेकिन हमारा lifestyle बदल गया है। आज इन बीमारियों को lifestyle disorder के नाम से जाना जाता है। युवा उम्र में इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त होने का एक प्रमुख कारण है – हमारी जीवनशैली में physical activities की कमी और हमारे खान-पान के तरीक़ों में बदलाव। समाज और परिवार को इस चीज़ पर ध्यान देने की ज़रुरत है। जब वह इस पर सोचेंगे तो आप देखिएगा कि कुछ भी extraordinary करने की ज़रुरत नहीं है। बस ज़रुरत है , छोटी-छोटी चीज़ों को सही तरीक़े से, नियमित रूप से करते हुए उन्हें अपनी आदत में बदलने की, उसे अपना एक स्वभाव बनाने की। मैं तो चाहूँगा कि परिवारजन जागरूकतापूर्वक ये प्रयास करें कि बच्चे, खुले मैदानों में खेलने की आदत बनाएं। संभव हो तो हम परिवार के बड़े लोग भी इन बच्चों के साथ ज़रा खुले में जाकर कर के खेलें। बच्चों को lift में ऊपर जाने-आने की बजाय सीढियाँ चढ़ने की आदत लगाएं। Dinner के बाद पूरा परिवार बच्चों को लेकर के कुछ walk करने का प्रयास करें। Yoga for Young India। योग, विशेष रूप से हमारे युवा मित्रों को एक healthy lifestyle बनाये रखने और lifestyle disorder से बचाने में मददगार सिद्ध होगा। School से पहले 30 मिनट का योग, देखिए कितना लाभ देगा! घर में भी कर सकते हैं और योग की विशेषता भी तो यही है – वो सहज है, सरल है, सर्व-सुलभ है और मैं सहज है इसलिए कह रहा हूँ कि किसी भी उम्र का व्यक्ति आसानी से कर सकता है। सरल इसलिए है कि आसानी से सीखा जा सकता है और सर्व-सुलभ इसलिए है कि कहीं पर भी किया जा सकता है – विशेष tools या मैदान की ज़रूरत नहीं होती है। Diabetes control करने में योग कितना असरकारी है, इस पर कई studies चल रही हैं। AIIMS में भी इस पर study की जा रही है और अभी तक जो परिणाम आए हैं, वो काफी encouraging हैं। आयुर्वेद और योग को हम सिर्फ उपचार treatment के माध्यम के तौर पर न देखें, उन्हें हम अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, खासकर के मेरे युवा साथियो, खेल के क्षेत्र में पिछले दिनों अच्छी ख़बरें आई हैं। अलग-अलग खेल में हमारे खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। हॉकी में भारत ने शानदार खेल दिखाके एशिया कप हॉकी का ख़िताब जीता है। हमारे खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और इसी के बल पर भारत दस साल बाद एशिया कप champion बना है। इससे पहले भारत 2003 और 2007 में एशिया कप champion बना था। पूरी टीम और support staff को मेरी तरफ से, देशवासियों की तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
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+ हॉकी के बाद बैडमिंटन में भी भारत के लिए अच्छी ख़बर आयी। बैडमिंटन स्टार किदाम्बी श्रीकांत ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए Denmark open ख़िताब जीतकर हर भारतीय को गौरव से भर दिया है। Indonesia open और Australia open के बाद ये उनका तीसरा super series premiere ख़िताब है। मैं, हमारे युवा साथी को उनकी इस उपलब्धि के लिए और भारत के गौरव को बढाने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, स्वच्छ भारत के विषय में मुझे जितने लोग लिखते हैं, मुझे लगता है कि उनकी भावनाओं के साथ यदि मैं न्याय करने की सोचूँ तो मुझे हर रोज ‘मन की बात’ का कार्यक्रम करना पड़ेगा और हर रोज़ मुझे स्वच्छता के विषय पर ही ‘मन की बात’ को समर्पित करना पड़ेगा। कोई नन्हें-मुन्ने बच्चों के प्रयासों के photo भेजते हैं तो कहीं युवाओं की टीम efforts का किस्सा होता है। कहीं स्वच्छता को लेकर किसी innovation की कहानी होती है या फिर किसी अधिकारी के जुनून को लेकर आए परिवर्तन की news होती है। पिछले दिनों मुझे बहुत विस्तृत एक report मिली है, जिसमें महाराष्ट्र के चंद्रपुर किले के कायाकल्प की कहानी है। वहां Ecological Protection Organisation नाम के एक NGO की पूरी टीम ने चंद्रपुर किले में सफाई का अभियान चलाया। दो-सौ दिनों तक चले इस अभियान में लोगों ने बिना रुके, बिना थके, एक team-work के साथ किले की सफाई का कार्य किया। दो-सौ दिन लगातार। ‘before और after’ – ये photo उन्होंने मुझे भेजे हैं। photo देख कर के भी मैं दंग रह गया और जो भी इस photo को देखेगा जिसके भी मन में अपने आस-पास की गंदगी को देख कर कभी निराशा होती हो, कभी उसको लगता हो कि स्वच्छता का सपना कैसे पूरा होगा – तो मैं ऐसे लोगो को कहूँगा Ecological Protection Organisation के युवाओं को, उनके पसीनों को, उनके हौसले को, उनके संकल्प को, उन जीती-जागती तस्वीरों में आप देख सकते हैं। उसे देखते ही आपकी निराशा, विश्वास में ही बदल जाएगी। स्वच्छता का ये भगीरथ प्रयास सौन्दर्य, सामूहिकता और सातत्यता का एक अद्भुत उदाहरण है। किले तो हमारी विरासत का प्रतीक हैं। ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित और स्वच्छ रखने की ज़िम्मेवारी हम सभी देशवासियों की है। मैं Ecological Protection Organisation के और उनकी पूरी टीम को और चंद्रपुर के नागरिकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आने वाले 4 नवम्बर को हम सब गुरु नानक जयंती मनाएंगे। गुरु नानक देव जी, सिक्खों के पहले गुरु ही नहीं बल्कि वो जगत-गुरु हैं। उन्होंने पूरी मानवता के कल्याण के बारे में सोचा, उन्होंने सभी जातियों को एक समान बताया। महिला सशक्तिकरण एवं नारी सम्मान पर ज़ोर दिया था। गुरु नानक देव जी ने पैदल ही 28 हज़ार किलोमीटर की यात्रा की और अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने सच्ची मानवता का सन्देश दिया। उन्होंने लोगों से संवाद किया, उन्हें सच्चाई, त्याग और कर्म-निष्ठा का मार्ग दिखाया। उन्होंने समाज में समानता का सन्देश दिया और अपने इस सन्देश को बातों से ही नहीं, अपने कर्म से करके दिखाया। उन्होंने लंगर चलाया जिससे लोगों में सेवा-भावना पैदा हुई। इकट्ठे बैठकर लंगर ग्रहण करने से लोगों में एकता और समानता का भाव जागृत हुआ। गुरु नानक देव जी ने सार्थक जीवन के तीन सन्देश दिए – परमात्मा का नाम जपो, मेहनत करो – काम करो और ज़रुरतमंदों की मदद करो। गुरु नानक देव जी ने अपनी बात कहने के लिए ‘गुरबाणी’ की रचना भी की। आने वाले वर्ष 2019 में, हम गुरु नानक देव जी का 550वाँ प्रकाश वर्ष मनाने जा रहे हैं। आइए, हम उनके सन्देश और शिक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ने की कोशिश करें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, यह वर्ष गुरुगोविन्द सिंह जी का 350वाँ प्रकाश पर्व का भी वर्ष था। गुरुगोविन्द सिंह जी का साहस और त्याग से भरा असाधारण जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। गुरुगोविन्द सिंह जी ने महान जीवन मूल्यों का उपदेश दिया और उन्हीं मूल्यों के आधार पर उन्होंने अपना जीवन जिया भी। एक गुरु, कवि, दार्शनिक, महान योद्धा, गुरुगोविन्द सिंह जी ने इन सभी भूमिकाओं में लोगों को प्रेरित करने का काम किया। उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। लोगों को जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ने की शिक्षा दी। इन प्रयासों में उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ गँवाना भी पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी भी द्वेष की भावना को जगह नहीं दी। जीवन के हर-पल में प्रेम, त्याग और शांति का सन्देश – कितनी महान विशेषताओं से भरा हुआ उनका व्यक्तित्व था! ये मेरे लिए सौभाग्य की बात रही कि मैं इस वर्ष की शुरुआत में गुरुगोविन्द सिंह जी 350वीं जयन्ती के अवसर पर पटनासाहिब में आयोजित प्रकाशोत्सव में शामिल हुआ। आइए, हम सब संकल्प लें और गुरुगोविन्द सिंह जी की महान शिक्षा और उनके प्रेरणादायी जीवन से, सीख लेते हुए जीवन को ढालने का प्रयास करें।
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+ # मेरा नाम दीपांशु आहूजा, मोहल्ला सादतगंज , ज़िला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। दो घटनाएँ हैं जो हमारे भारतीय सैनिकों के द्वारा – एक तो पाकिस्तान में उनके द्वारा की गयी surgical strike जिससे कि आतंकवाद के launching pads थे, उनको नेस्तनाबूद कर दिया गया और साथ-ही-साथ हमारे भारतीय सैनिकों का डोकलाम में जो पराक्रम देखने को मिला वो अतुलनीय है।
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+ ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने-अपने स्तर पर ऐसे कार्य कर रहे हैं जिनसे कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। वास्तव में, यही तो ‘New India’ है जिसका हम सब मिल कर निर्माण कर रहे हैं। आइए, इन्हीं छोटी-छोटी खुशियों के साथ हम नव-वर्ष में प्रवेश करें, नव-वर्ष की शुरूआत करें और ‘positive India’ से ‘progressive India’ की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाएँ। जब हम सब positivity की बात करते हैं तो मुझे भी एक बात share करने का मन करता है। हाल ही में मुझे कश्मीर के प्रशासनिक सेवा के topper अंजुम बशीर खान खट्टक ( Anjum Bashir Khan Khattak) की प्रेरणादायी कहानी के बारे में पता चला। उन्होंने आतंकवाद और घृणा के दंश से बाहर निकल कर Kashmir Administrative Service की परीक्षा में top किया है। आप ये जानकर के हैरान रह जाएंगे कि 1990 ��ें आतंकवादियों ने उनके पैतृक-घर को जला दिया था। वहाँ आतंकवाद और हिंसा इतनी अधिक थी कि उनके परिवार को अपनी पैतृक-ज़मीन को छोड़ के बाहर निकलना पड़ा। एक छोटे बच्चे के लिए उसके चारों ओर इतनी हिंसा का वातावरण, दिल में अंधकारात्मक और कड़वाहट पैदा करने के लिए काफ़ी था – पर अंजुम ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने कभी आशा नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना – जनता की सेवा का रास्ता। वो विपरीत हालात से उबर कर बाहर आए और सफलता की अपनी कहानी ख़ुद लिखी। आज वो सिर्फ जम्मू और कश्मीर के ही नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं। अंजुम ने साबित कर दिया है कि हालात कितने ही ख़राब क्यों न हों, सकारात्मक कार्यों के द्वारा निराशा के बादलों को भी ध्वस्त किया जा सकता है।
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+ अभी पिछले हफ़्ते ही मुझे जम्मू-कश्मीर की कुछ बेटियों से मिलने का अवसर मिला। उनमें जो जज़्बा था, जो उत्साह था, जो सपने थे और जब मैं उनसे सुन रहा था, वो जीवन में कैसे-कैसे क्षेत्र में प्रगति करना चाहती हैं। और वो कितनी आशा-भरी ज़िन्दगी वाले लोग थे! उनसे मैंने बातें की, कहीं निराशा का नामोनिशान नहीं था – उत्साह था, उमंग था, ऊर्जा थी, सपने थे, संकल्प थे। उन बेटियों से, जितना समय मैंने बिताया, मुझे भी प्रेरणा मिली और ये ही तो देश की ताकत हैं , ये ही तो मेरे युवा हैं, ये ही तो मेरे देश का भविष्य हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश के ही नहीं, जब भी कभी विश्व के प्रसिद्ध धार्मिक-स्थलों की चर्चा होती है तो केरल के सबरीमाला मंदिर की बात होनी बहुत स्वाभाविक है। विश्व-प्रसिद्ध इस मंदिर में, भगवान अय्यप्पा स्वामी का आशीर्वाद लेने के लिए हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। जहाँ इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु आते हों, जिस स्थान का इतना बड़ा माहात्म्य हो, वहाँ स्वच्छता बनाये रखना कितनी बड़ी चुनौती हो सकती है ? और विशेषकर उस जगह पर, जो पहाड़ियों और जंगलों के बीच स्थित हो। लेकिन इस समस्या को भी संस्कार में कैसे बदला जा सकता है, समस्या में से उबरने का रास्ता कैसे खोजा जा सकता है और जन-भागीदारी में इतनी क्या ताक़त होती है- ये अपने आप में सबरीमाला मंदिर एक उदाहरण के तौर पर है। पी.विजयन नाम के एक पुलिस अफ़सर ने ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam), एक programme शुरू किया और उस programme के तहत, स्वच्छता के लिए जागरूकता का एक स्वै���्छिक-अभियान शुरू किया। और एक ऐसी परम्परा बना दी कि जो भी यात्री आते हैं, उनकी यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि वो स्वच्छता के कार्यक्रम में कोई-न-कोई शारीरिक श्रम न करते हों। इस अभियान में न कोई बड़ा होता है , न कोई छोटा होता है। हर यात्री, भगवान की पूजा का ही भाग समझ करके कुछ-न-कुछ समय स्वच्छता के लिए करता है, काम करता है, गन्दगी हटाने के लिए काम करता है। हर सुबह यहाँ सफाई का दृश्य बड़ा ही अद्भुत होता है और सारे तीर्थयात्री इसमें जुट जाते हैं। कितनी बड़ी celebrity क्यों न हो, कितना ही धनी व्यक्ति क्यों न हो, कितना ही बड़ा अफ़सर क्यों न हो, हर कोई एक सामान्य-यात्री के तौर पर इस ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam) कार्यक्रम का हिस्सा बन जाते हैं, सफाई को करके ही आगे बढ़ते हैं। हम देशवासियों के लिए ऐसे कई उदाहरण हैं। सबरीमाला में इतना आगे बढ़ा हुआ ये स्वच्छता – अभियान और उसमें ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ (Punyam Poonkavanam), ये हर यात्री के यात्रा का हिस्सा बन जाता है। वहाँ कठोर-व्रत के साथ स्वच्छता का कठोर-संकल्प भी साथ-साथ चलता है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 2 अक्तूबर 2014 पूज्य बापू की जन्म जयन्ती पर हम सब ने संकल्प किया है कि पूज्य बापू का जो अधूरा काम है यानी कि ‘स्वच्छ-भारत’, ‘गन्दगी से मुक्त-भारत’। पूज्य बापू जीवन-भर इस काम के लिए जूझते रहे, कोशिश भी करते रहे। और हम सब ने तय किया कि जब पूज्य बापू की 150वीं जयंती हो तो उन्हें हम उनके सपनों का भारत, ‘स्वच्छ भारत’, देने की दिशा में कुछ-न-कुछ करें। स्वच्छता की दिशा में देशभर में व्यापक स्तर पर प्रयास हो रहा है। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में व्यापक जन-भागीदारी से भी परिवर्तन नज़र आने लगा है। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता के स्तर की उपलब्धियों का आकलन करने के लिए आगामी 4 जनवरी से 10 मार्च 2018 के बीच दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2018’ किया जाएगा। ये सर्वे, चार हज़ार से भी अधिक शहरों में लगभग चालीस (40) करोड़ आबादी में किया जाएगा। इस सर्वे में जिन तथ्यों का आकलन किया जाएगा उनमें हैं – शहरों में खुले में शौच से मुक्ति, कूड़े का कलेक्शन, कूड़े को उठा कर ले जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था, वैज्ञानिक तरीक़े से कूड़े की processing, behavioral change के लिए किए जा रहे प्रयास, capacity building और स्वच्छता के लिए किये गए innovative प्रयास और इस काम के लिए जन-भागीदारी। इस सर्वे के दौरान, अलग-अलग दल जा करके शहरों का inspection करेंगे। नागरिकों से बात करके उनकी प्रतिक्रिया लेंगे। स्वच्छता App के उपयोग का तथा विभिन्न प्रकार के सेवा-स्थलों में सुधार का analysis करेंगे। इसमें यह भी देखा जाएगा कि क्या ऐसी सारी व्यवस्था शहरों के द्वारा बनायी गई हैं जिनसे शहर की स्वच्छता एक जन-जन का स्वभाव बने, शहर का स्वभाव बन जाए। स्वच्छता, सिर्फ़ सरकार करे ऐसा नहीं। हर नागरिक एवं नागरिक संगठनों की भी बहुत बड़ी ज़िम्मेवारी है। और मेरी हर नागरिक से अपील है कि वे, आने वाले दिनों में जो स्वच्छता-सर्वे होने वाला है उसमें बढ़-चढ़ करके भाग लें। और आपका शहर पीछे न रह जाए, आपका गली-मोहल्ला पीछे न रह जाए – इसका बीड़ा उठाएं। मुझे पूरा विश्वास है कि घर से सूखा-कूड़ा और गीला-कूड़ा, अलग-अलग करके नीले और हरे dustbin का उपयोग, अब तो आपकी आदत बन ही गई होगी। कूड़े के लिए reduce, re-use और re-cycle का सिद्धांत बहुत क़ारगर होता है। जब शहरों की ranking इस सर्वे के आधार पर की जाएगी – अगर आपका शहर एक लाख से अधिक आबादी का है तो पूरे देश की ranking में, और एक लाख से कम आबादी का है तो क्षेत्रीय ranking में ऊँचे-से-ऊँचा स्थान प्राप्त करे, ये आपका सपना होना चाहिए, आपका प्रयास होना चाहिए। 4 जनवरी से 10 मार्च 2018, इस बीच होने वाले स्वच्छता-सर्वेक्षण में, स्वच्छता के इस healthy competition में आप कहीं पिछड़ न जाएँ – ये हर नगर में एक सार्वजनिक चर्चा का विषय बनना चाहिए। और आप सब का सपना होना चाहिए, ‘हमारा शहर- हमारा प्रयास’, ‘हमारी प्रगति-देश की प्रगति’। आइए, इस संकल्प के साथ हम सब फिर से एक बार पूज्य बापू का स्मरण करते हुए स्वच्छ-भारत का संकल्प लेते हुए पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करें।
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+ अर्थात, एक बेटी दस बेटों के बराबर है। दस बेटों से जितना पुण्य मिलेगा एक बेटी से उतना ही पुण्य मिलेगा। यह हमारे समाज में नारी के महत्व को दर्शाता है। और तभी तो, हमारे समाज में नारी को ‘शक्ति’ का दर्जा दिया गया है। यह नारी शक्ति पूरे देश को, सारे समाज को, परिवार को, एकता के सूत्र में बाँधती है। चाहे वैदिक काल की विदुषियां लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी की विद्वता हो या अक्का महादेवी और मीराबाई का ज्ञान और भक्ति हो, चाहे अहिल्याबाई होलकर की शासन व्यवस्था हो या रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, नारी शक्ति हमेशा हमें प्रेरित करती आयी है। देश का मान-सम्मान बढ़ाती आई है।
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+ हम बार-बार सुनते आये हैं कि लोग कहते हैं – ‘कुछ बात है ऐसी कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’। वो बात क्या है, वो बात है, Flexibility – लचीलापन, Transformation। जो काल-बाह्य है उसे छोड़ना, जो आवश्यक है उसका सुधार स्वीकार करना। और हमारे समाज की विशेषता है – आत्मसुधार करने का निरंतर प्रयास, Self-Correction, ये भारतीय परम्परा, ये हमारी संस्कृति हमें विरासत में मिली है। किसी भी जीवन-समाज की पहचान होती है उसका Self Correcting Mechanism। सामाजिक कुप्रथाओं और कुरीतियों के ख़िलाफ सदियों से हमारे देश में व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर लगातार प्रयास होते रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले बिहार ने एक रोचक पहल की। राज्य में सामाजिक कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए 13 हज़ार से अधिक किलोमीटर की विश्व की सबसे लम्बी मानव-श्रृंखला, Human Chain बनाई गयी। इस अभियान के द्वारा लोगों को बाल-विवाह और दहेज़-प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ़ जागरूक किया गया। दहेज़ और बाल-विवाह जैसी कुरीतियों से पूरे राज्य ने लड़ने का संकल्प लिया। बच्चे, बुजुर्ग, जोश और उत्साह से भरे युवा, माताएँ, बहनें हर कोई अपने आप को इस जंग में शामिल किये हुए थे। पटना का ऐतिहासिक गाँधी मैदान से आरंभ हुई मानव-श्रृंखला राज्य की सीमाओं तक अटूट-रूप से जुड़ती चली गई। समाज के सभी लोगों को सही मायने में विकास का लाभ मिले इसके लिए ज़रुरी है कि हमारा समाज इन कुरीतियों से मुक्त हो। आइये हम सब मिलकर ऐसी कुरीतियों को समाज से ख़त्म करने की प्रतिज्ञा लें और एक New India, एक सशक्त एवं समर्थ भारत का निर्माण करें। मैं बिहार की जनता, राज्य के मुख्यमंत्री, वहाँ के प्रशासन और मानव –श्रृंखला में शामिल हर व्यक्ति की सराहना करता हूँ कि उन्होंने समाज कल्याण की ���िशा में इतनी विशेष एवं व्यापक पहल की।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, हर वर्ष 9 जनवरी को हम प्रवासी भारतीय दिवस मनाते हैं। यही 9 जनवरी है, जब पूज्य महात्मा गाँधी SOUTH AFRICA से भारत लौटे थे। इस दिन हम भारत और विश्व भर में रह रहे भारतीयों के बीच, अटूट-बंधन का जश्न मनाते हैं। इस वर्ष प्रवासी भारतीय दिवस पर हमने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जहाँ विश्व भर में रह रहे भारतीय-मूल के सभी सांसदों को और मेयरों ( MAYORS) को आमंत्रित किया था। आपको यह जानकर खुशी होगी कि उस कार्यक्रम में Malaysia, New Zealand, Switzerland, Portugal, Mauritius, Fiji, Tanzania, Kenya, Canada, Britain, Surinam, दक्षिण अफ्रीका और America से, और भी कई देशों से वहाँ जहाँ-जहाँ हमारे मेयर हैं मूल- भारतीय, जहाँ-जहाँ सांसद है मूल-भारतीय, उन सब ने भाग लिया था। मुझे खुशी है कि विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय-मूल के लोग उन देशों की सेवा तो कर ही रहे हैं साथ ही साथ, वे भारत के साथ भी अपने मजबूत संबंध बनाए रखे हैं। इस बार यूरोपीय संघ, यूरोपियन यूनियन ने मुझे कैलेंडर भेजा है जिसमें उन्होनें यूरोप के विभिन्न देशों में रह रहे भारतीयों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदानों को एक अच्छे ढंग से दर्शाया है। हमारे मूल-भारतीय लोग जो यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों में बस रहे हैं – कोई CYBER SECURITY में काम कर रहा है, तो कोई आयुर्वेद को समर्पित है, कोई अपने संगीत से समाज के मन को डुलाता लाता है तो कोई अपनी कविताओं से। कोई climate change पर शोध कर रहा है तो कोई भारतीय ग्रंथों पर काम कर रहा है। किसी ने ट्रक चलाकर गुरुद्वारा खड़ा किया है तो किसी ने मस्जिद बनाई है। यानी जहाँ भी हमारे लोग हैं, उन्होंने वहाँ की धरती को किसी न किसी तरीके से सुसज्जित किया है। मैं धन्यवाद देना चाहूँगा यूरोपीय यूनियन के इस उल्लेखनीय कार्य के लिए, भारतीय मूल के लोगों को recognise करने के लिए और उनके माध्यम से दुनिया भर के लोगों को जानकारी देने के लिए भी।
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+ 30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य-तिथि है, जिन्होंने हम सभी को एक नया रास्ता दिखाया है। उस दिन हम ‘शहीद दिवस’ मनाते हैं। उस दिन हम देश की रक्षा में अपनी जान गवां देने वाले महान शहीदों को 11 बजे श्रद्दांजलि अर्पित करते हैं। शांति और अहिंसा का रास्ता, यही बापू का रास्ता। चाहे भारत हो या दुनिया, चाहे व्यक्ति हो परिवार हो या समाज-पूज्य बापू जिन आदर्शों को ले करके जिए, पूज्य बापू ने जो बातें हमें बताई, वे आज भी अत्यंत relevant हैं। वे सिर्फ कोरे सिद्दांत नहीं थे। वर्तमान में भी हम डगर-डगर पर देखते हैं कि बापू की बातें कितनी सही थीं। अगर हम संकल्प करें कि बापू के रास्ते पर चलें -जितना चल सके, चलें – तो उससे बड़ी श्रद्दांजलि क्या हो सकती है?
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+ आदरणीय प्रधानमंत्री जी, मैं कोमल त्रिपाठी मेरठ से बोल रही हूँ.. 28 तारीख को national science day है … India की progress और उसका growth, science से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है.. जितना ही हम इसमें research और innovation करेंगे उतना ही हम आगे बढ़ेंगे और prosper करेंगे .. क्या आप हमारे युवाओं को motivate करने के लिए कुछ ऐसे शब्द कह सकते हैं जिससे कि वो scientific तरीक़े से अपनी सोच को आगे बढाएं और हमारे देश को भी आगे बढ़ा सकें ..धन्यवाद .
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+ आपके फ़ोन-कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। विज्ञान को लेकर ढ़ेर सारे प्रश्न मेरे युवा साथियों ने मुझसे पूछे हैं, कुछ-न-कुछ लिखते रहते हैं। हमने देखा है कि समुन्दर का रंग नीला नज़र आता है लेकिन हम अपने दैनिक जीवन के अनुभवों से जानते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है। क्या कभी हमने सोचा है कि नदी हो, समुन्दर हो, पानी रंगीन क्यों हो जाता है ? यही प्रश्न 1920 के दशक में एक युवक के मन में आया था। इसी प्रश्न ने आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक को जन्म दिया। जब हम विज्ञान की बात करते हैं तो सबसे पहले भारत-रत्न सर सी.वी. रमन का नाम हमारे सामने आता है। उन्हें light scattering यानि प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिए नोबल-पुरस्कार प्रदान किया गया था। उनकी एक ख़ोज ‘Raman effect’ के नाम से प्रसिद्ध है। हम हर वर्ष 28 फ़रवरी को ‘National Science Day’ मनाते हैं क्योंकि कहा जाता है कि इसी दिन उन्होंने light scattering की घटना की ख़ोज की थी। जिसके लिए उन्हें नोबल- पुरस्कार दिया गया। इस देश ने विज्ञान के क्षेत्र में कई महान वैज्ञानिकों को जन्म दिया है। एक तरफ़ महान गणितज्ञ बोधायन, भास्कर, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट की परंपरा रही है तो दूसरी तरफ़ चिकित्सा के क्षेत्र में सुश्रुत और चरक हमारा गौरव हैं। सर जगदीश चन्द्र बोस और हरगोविंद खुराना से लेकर सत्येन्द्र नाथ बोस जैसे वैज्ञानिक-ये भारत के गौरव हैं। सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर तो famous particle ‘Boson’ का नामकरण भी किया गया। हाल ही मुझे मुम्बई में एक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला – Wadhwani Institute for Artificial Intelligence के उद्घाटन का। विज्ञान के क्षेत्र में जो चमत्कार हो रहे हैं, उनके बारे में जानना बड़ा दिलचस्प था। Artificial Intelligence के माध्यम से Robots, Bots और specific task करने वाली मशीनें बनाने में सहायता मिलती है। आजकल मशीनें self learning से अपने आप के intelligence को और smart बनाती जाती हैं। इस technology का उपयोग ग़रीबों, वंचितों या ज़रुरतमंदों का जीवन बेहतर करने के काम आ सकता ���ै। Artificial Intelligence के उस कार्यक्रम में मैंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि दिव्यांग भाइयों और बहनों का जीवन सुगम बनाने के लिए, किस तरह से Artificial Intelligence से मदद मिल सकती है ? क्या हम Artificial Intelligence के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं के बारे में बेहतर अनुमान लगा सकते हैं ? किसानों को फ़सलों की पैदावार को लेकर कोई सहायता कर सकते हैं ? क्या Artificial Intelligence स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को आसान बनाने और आधुनिक तरीक़े से बीमारियों के इलाज़ में सहायक हो सकता है ?
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+ Light Bulb का आविष्कार करने वाले Thomas Alva Edison अपने प्रयोगों में कई बार असफ़ल रहे। एक बार उनसे जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया –“मैंने Light Bulb नहीं बनाने के दस हज़ार तरीक़े खोज़े हैं”, यानि Edison ने अपनी असफलताओं को भी अपनी शक्ति बना लिया। संयोग से सौभाग्य है कि आज मैं महर्षि अरबिन्दो की कर्मभूमि ‘Auroville’ में हूँ। एक क्रांतिकारी के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, उनके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, उनके शासन पर सवाल उठाए। इसी प्रकार उन्होंने एक महान ऋषि के रूप में, जीवन के हर पहलू के सामने सवाल रखा। उत्तर खोज़ निकाला और मानवता को राह दिखाई। सच्चाई को जानने के लिए बार-बार प्रश्न पूछने की भावना, महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक ख़ोज के पीछे की असल प्रेरणा भी तो यही है। तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिये जब तक क्यों, क्या और कैसे जैसे प्रश्नों का उत्तर न मिल पाए। National Science Day के अवसर पर हमारे वैज्ञानिकों, विज्ञान से जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूँ। हमारी युवा-पीढ़ी, सत्य और ज्ञान की खोज़ के लिए प्रेरित हो, विज्ञान की मदद से समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित हो, इसके लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, हर बार की तरह इस बार भी मुझे आप सबके सारे पत्र,email, phone-call और comments बहुत बड़ी मात्रा में मिले हैं। कोमल ठक्कर जी ने MyGovपर – आपने संस्कृत के on-line courses शुरू करने के बारे में जो लिखा वो मैंने पढ़ा।IT professional होने के साथ-साथ, संस्कृत के प्रति आपका प्रेम देखकर बहुत अच्छा लगा।मैंने सम्बंधित विभाग से इस ओर हो रहे प्रयासों की जानकारी आप तक पहुँचाने के लिए कहा है। ‘मन की बात’ के श्रोता जो संस्कृत को लेकर कार्यकरते हैं, मैं उनसे भी अनुरोध करूंगा कि इस पर विचार करें कि कोमल जी के सुझाव को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
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+ श्रीमान शकल शास्त्री जी, कर्नाटक – आपने शब्दों के बहुत ही सुन्दर तालमेल के साथ लिखा कि ‘आयुष्मान भारत’ तभी होगा जब ‘आयुष्मान भूमि’ होगी और ‘आयुष्मान भूमि’ तभी होगी जब हम इस भूमि पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी की चिंता करेंगे।आपने गर्मियों में पशु-पक्षियों के लिए पानी रखने के लिए भी सभी से आग्रह किया है। शकल जी, आपकी भावनाओं को मैंने सभी श्रोताओं तक पहुँचा दिया है।
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+ श्रीमान योगेश भद्रेशा जी, उनका कहना है कि मैं इस बार युवाओं से उनके स्वास्थ्य के बारे में बात करूँ। उन्हें लगता है कि Asian countries में तुलना करें तो हमारे युवा physically weak हैं। योगेश जी, मैंने सोचा है कि इस बार health को लेकर के सभी के साथ विस्तार से बात करूँ -Fit India की बात करूँ। और आप सब नौजवान मिल करके Fit India काmovement भी चला सकते हैं।
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+ Chennai से अनघा, जयेशऔर बहुत सारे बच्चों ने Exam Warrior पुस्तक के पीछे जो gratitude cards दिए हैं उन पर उन्होंने, अपने दिल में जो विचार आये, वो लिख कर मुझे ही भेज दिए हैं। अनघा, जयेश,मैं आप सब बच्चों को बताना चाहता हूँ कि आपके इन पत्रों से मेरे दिनभर की थकान छू-मन्तर हो जाती है। इतने सारे पत्र, इतने सारे phone call, comments,इनमें से जो कुछ भी मैं पढ़ पाया, जो भी मैं सुन पाया और उसमें से बहुत सी चीजें हैं जो मेरे मन को छू गयी – सिर्फ़ उनके बारे में ही बात करूँ तो भी शायद महीनों तक मुझे लगातार कुछ-न-कुछ कहते ही जाना पड़ेगा।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो,इस वर्ष महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती-वर्ष के महोत्सव की शुरुआत होगी। यह एक ऐतिहासिक अवसर है। देश कैसे यह उत्सव मनाये? स्वच्छ भारत तो हमारा संकल्प है ही, इसके अलावा सवा-सौ करोड़ देशवासी कंधे-से-कंधा मिलाकर कैसे गाँधी जी को उत्तम-से-उत्तम श्रद्धांजलि दे सकते हैं? क्या नये-नये कार्यक्रम ���िये जा सकते हैं? क्या नये-नये तौर-तरीक़े अपनाए जा सकते हैं? आप सबसे मेरा आग्रह है, आप MyGovके माध्यम से इस पर अपने विचार सबके साथ share करें।‘गाँधी 150’ का logo क्या हो? sloganया मंत्र या घोष-वाक्य क्या हो? इस बारे में आप अपने सुझाव दें। हम सबको मिलकर बापू को एक यादगार श्रद्धांजलि देनी है और बापू को स्मरण करके उनसे प्रेरणा लेकर के हमारे देश को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाना है।
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+ धन्यवाद, आपने सही कहा है और मैं मानता हूँ कि स्वच्छ भारत और स्वस्थ भारत दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आज देश conventional approach से आगे बढ़ चुका है। देश में स्वास्थ्य से जुड़ा हर काम जहाँ पहले सिर्फ Health Ministry की ज़िम्मेदारी होती थी, वहीं अब सारे विभाग और मंत्रालय चाहे वो स्वच्छता-मंत्रालय हो, आयुष-मंत्रालय हो, Ministry of Chemicals and Fertilizersहो, उपभोक्ता -मंत्रालय हो या महिला एवं बाल विकास मंत्रालय हो या तो राज्य सरकारें हों – साथ मिलकर स्वस्थ-भारत के लिए काम कर रहे हैं और preventive health के साथ-साथ affordable health के ऊपर ज़ोर दिया जा रहा है।Preventive health-care सबसे सस्ता भी है और सबसे आसान भी है।और हम लोग,preventive health-care के लिए जितना जागरूक होंगें उतना व्यक्ति को भी, परिवार को भी और समाज को भी लाभ होगा। जीवन स्वस्थ हो इसके लिए पहली आवश्यकता है – स्वच्छता। हम सबने एक देश के रूप में बीड़ा उठाया और इसका परिणाम यह आया कि पिछले लगभग 4 सालों में sanitation coverage दोगुना होकर करीब-करीब 80प्रतिशत (80%)हो चुका है। इसके अलावा, देश-भर में Health Wellness Centresबनाने की दिशा में व्यापक स्तर पर काम हो रहा है।Preventive health-care के रूप में योग ने, नये सिरे से दुनिया-भर में अपनी पहचान बनाई है। योग,fitness और wellness दोनों की गारंटी देता है। यह हम सबके commitment का ही परिणाम है कि योग आज एक mass movement बन चुका है, घर-घर पहुँच चुका है। इस बार के अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून – इसके बीच 100 दिन से भी कम दिन बचे हैं। पिछले तीन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवसों पर देश और दुनिया के हर जगह, लोगों ने काफी उत्साह से इसमें भाग लिया। इस बार भी हमें सुनिश्चित करना है कि हम स्वयं योग करें और पूरे परिवार, मित्रों, सभी को, योग के लिए अभी से प्रेरित करें। नए रोचक तरीक़ों से योग को बच्चों में, युवाओं में, senior citizensमें – सभी आयु-वर्ग में, पुरुष होया महिला, हर किसी में popular करना है।वैसे तो देश का TV और electronic media साल-भर योग को लेकर अलग-अलग कार्यक्रम करता ही है, पर क्या अभी से लेकर योग द��वस तक – एक अभियान के रूप में योग के प्रति जागरूकता पैदा कर सकते हैं ?
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+ मैं मनिका बत्रा जो Commonwealth में चार medal लायी हूँ। दो Gold, एक Silver, एक Bronze। ‘मन की बात’ programme सुनने वालों को मैं बताना चाहती हूँ कि मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि पहली बार India में table tennis इतना popular हो रहा है। हाँ मैंने अपना best table tennis खेला होगा। पूरे life का best table tennis खेला होगा। जो उससे पहले मैंने practice करी है उसके बारे में मैं बताऊँगी कि मैंने बहुत, अपने coach संदीप sir के साथ practice करी है। Commonwealth से पहले जो हमारे camps थे Portugal में, हमें tournaments भेजा government ने और मैं thank you government को करती हूँ क्योंकि उन्होंने इतने सारे international exposure दिए हमें। Young generation को बस एक message दूंगी कभी give up मत करो। explore yourself.
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+ मीराबाई चानू, मैंने 21st Commonwealth Games में India के लिए first Gold medal जीता था। तो इसी में मुझे बहुत खुशी हुआ। मेरी एक dream थी India के लिए और Manipur के लिए एक अच्छा वाला players बनने के लिए, तो मैंने सारी movie में देखती है। जैसे कि Manipur का मेरी दीदी और वो सब कुछ देखने के बाद मुझे भी ऐसे सोचा था कि India के लिए Manipur के लिए अच्छा वाला player बनना चाहती हूँ। ये मेरा successful होने के कारण मेरा discipline भी है और sincerity, dedication and a hard work .
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+ पिछले महीने ‘मन की बात’ के दौरान मैंने देशवासियों से ख़ास-करके हमारे युवकों से fit India का आह्वान किया था और मैंने हर किसी को निमंत्रण दिया था आइये! fit India से जुड़िये, fit India को lead कीजिये। और मुझे बहुत खुशी हुई कि लोग बड़े उत्साह के साथ इसके साथ जुड़ रहे हैं। बहुत सारे लोगों ने इसके लिए अपना support दिखाते हुए मुझे लिखा है, पत्र भेजे हैं, social media पर अपना fitness मंत्र – fit India stories भी share की हैं।
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+ ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार आप सबसे रूबरू होने का अवसर मिला है। आप लोगों को भलीभांति याद होगा नौ-सेना की 6 महिला कमांडरों, ये एक दल पिछले कई महीनों से समुद्र की यात्रा पर था। ‘नाविका सागर परिक्रमा’ – जी मैं उनके विषय में कुछ बात करना चाहता हूँ। भारत की इन 6 बेटियों ने, उनकी इस team ने Two Hundred And Fifty Four Days- 250 से भी ज़्यादा दिनसमुद्र के माध्यम से INSV तारिणी में पूरी दुनिया की सैर कर 21 मई को भारत वापस लौटी हैं और पूरे देश ने उनका काफी गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने विभिन्न महासागरों और कई समुद्रों में यात्रा करते हुए लगभग बाईस हज़ार nautical miles की दूरी तय की। यह विश्व में अपने आप में एक पहली घटना थी। गत बुधवार को मुझे इन सभी बेटियों से मिलने का, उनके अनुभव सुनने का अवसर मिला। मैं एक बार फिर इन बेटियों कोउनके adventure को, Navy की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए, भारत का मान-सम्मान बढ़ाने के लिये और विशेषकर दुनिया को भी लगे कि भारत की बेटियाँ कम नहीं हैं – ये सन्देश पहुँचाने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। Sense of adventure कौन नहीं जानता है। अगर हम मानव जाति की विकास यात्रा देखें तो किसी-न-किसी adventure की कोख में ही प्रगति पैदा हुई है। विकास adventure की गोद में ही तो जन्म लेता है। कुछ कर गुजरने का इरादा, कुछ लीक से हटकर के करने का मायना, कुछ extra ordinary करने की बात, मैं भी कुछ कर सकता हूँ – ये भाव,करने वाले भले कम हों, लेकिन युगों तक, कोटि-कोटि लोगों को प्रेरणा मिलती रहती है। पिछले दिनों आपने देखा होगा Mount Everest पर चढ़ने वालों के विषय में कई नयी-नयी बातें ध्यान में आयी हैं और सदियों से Everest मानव जाति को ललकारता रहा और बहादुर लोग उस चुनौती को स्वीकारते भी रहे हैं ।
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+ सदियों पहले ये कही गई बात का सीधा-सीधा मतलब है कि नियमित योगा अभ्यास करने पर कुछ अच्छे गुण सगे-सम्बन्धियों और मित्रों की तरह हो जाते हैं। योग करने से साहस पैदा होता है जो सदा ही पिता की तरह हमारी रक्षा करता है। क्षमा का भाव उत्पन्न होता है जैसा माँ का अपने बच्चों के लिए होता है और मानसिक शांति हमारी स्थायी मित्र बन जाती है। भर्तृहरि ने कहा है कि नियमित योग करने से सत्य हमारी संतान, दया हमारी बहन, आत्मसंयम हमारा भाई, स्वयं धरती हमारा बिस्तर और ज्ञान हमारी भूख मिटाने वाला बन जाता है। जब इतने सारे गुण किसी के साथी बन जाएँ तो योगी सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त कर ल��ता है। एक बार फिर मैं सभी देशवासियों से अपील करता हूँ कि वे योग की अपनी विरासत को आगे बढ़ायें और एक स्वस्थ, खुशहाल और सद्भावपूर्ण राष्ट्र का निर्माण करें।
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+ ऐसी होती है ये गुरु की महानता और ऐसे ही एक गुरु हैं, जगतगुरु – गुरु नानक देव। जिन्होंने कोटि-कोटि लोगों को सन्मार्ग दिखाया, सदियों से प्रेरणा देते रहें। गुरु नानक देव ने समाज में जातिगत भेदभाव को ख़त्म करने और पूरे मानवजाति को एक मानते हुए उन्हें गले लगाने की शिक्षा दी। गुरु नानक देव कहते थे गरीबों और जरुरतमंदों की सेवा ही भगवान की सेवा है। वे जहाँ भी गए उन्होंने समाज की भलाई के लिए कई पहल की। सामाजिक भेदभाव से मुक्त रसोई की व्यवस्था जहाँ हर जाति, पंथ, धर्म या सम्प्रदाय का व्यक्ति आकर खाना खा सकता था। गुरु नानक देव ने ही तो इस लंगर व्यवस्था की शुरुआत की। 2019 में गुरु नानक देव जी का 550वाँ प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। मैं चाहता हूँ हम सब लोग उत्साह और उमंग के साथ इससे जुड़े। आप लोगो से भी मेरा आग्रह गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर पूरे समाज में और विश्वभर में इसे कैसे मनाया जाए, नए-नए ideas क्या हों, नए-नए सुझाव क्या हों, नई-नई कल्पनाएँ क्या हों, उस पर हम सोचें, तैयारियाँ करें और बड़े गौरव के साथ उसको हम सब, इस प्रकाश पर्व को प्रेरणा पर्व भी बनाएं |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। इन दिनों बहुत से स्थान पर अच्छी वर्षा की ख़बरें आ रही हैं। कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण चिन्ता की भी ख़बर आ रही है और कुछ स्थानों पर अभी भी लोग वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारत की विशालता, विविधता, कभी-कभी वर्षा भी पसंद-नापसंद का रूप दिखा देती है, लेकिन हम वर्षा को क्या दोष दें, मनुष्य ही है जिसने प्रकृति से संघर्ष का रास्ता चुन लिया और उसी का नतीज़ा है कि कभी-कभी प्रकृति हम पर रूठ जाती है। और इसीलिये हम सबका दायित्व बनता है – हम प्रकृति प्रेमी बनें, हम प्रकृति के रक्षक बनें, हम प्रकृति के संवर्धक बनें, तो प्रकृतिदत्त जो चीज़े हैं उसमें संतुलन अपने आप बना रहता है।
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+ पिछले दिनों वैसे ही एक प्राकृतिक आपदा की घटना ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया, मानव-मन को झकझोर दिया। आप सब लोगों ने टी.वी. पर देखा होगा, थाईलैंड में 12 किशोर फुटबॉल खिलाड़ियों की टीम और उनके coach घूमने के लिए गुफ़ा में गए। वहाँ आमतौर पर गुफ़ा में जाने और उससे बाहर निकलने, उन सबमें कुछ घंटों का समय लगता है। लेकिन उस दिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। जब वे गुफ़ा के भीतर काफी अन्दर तक चले गए – अचानक भारी बारिश के कारण गुफ़ा के द्वार के पास काफी पानी जम गया। उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। कोई रास्ता न मिलने के कारण वे गुफ़ा के अन्दर के एक छोटे से टीले पर रुके रहे – और वो भी एक-दो दिन नहीं – 18 दिन तक। आप कल्पना कर सकते हैं किशोर अवस्था में सामने जब मौत दिखती हो और पल-पल गुजारनी पड़ती हो तो वो पल कैसे होंगे ! एक तरफ वो संकट से जूझ रहे थे, तो दूसरी तरफ पूरे विश्व में मानवता एकजुट होकर के ईश्वरदत्त मानवीय गुणों को प्रकट कर रही थी। दुनिया भर में लोग इन बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे। यह पता लगाने का हर-संभव प्रयास किया गया कि बच्चे हैं कहाँ, किस हालत में हैं। उन्हें कैसे बाहर निकाला जा सकता है। अगर बचाव कार्य समय पर नहीं हुआ तो मानसून के season में उन्हें कुछ महीनों तक निकालना संभव नहीं होता। खैर जब अच्छी ख़बर आयी तो दुनिया भर को शान्ति हुई, संतोष हुआ, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को एक और नज़रिये से भी देखने का मेरा मन करता है कि पूरा operation कैसा चला। हर स्तर पर ज़िम्मेवारी का जो अहसास हुआ वो अद्भुत था। सभी ने, चाहे सरकार हो, इन बच्चों के माता-पिता हों, उनके परिवारजन हों, media हो, देश के नागरिक हों – हर किसी ने शान्ति और धैर्य का अदभुत आचरण करके दिखाया। सबके-सब लोग एक team बनकर अपने mission में जुटे हुए थे। हर किसी का संयमित व्यवहार – मैं समझता हूँ एक सीखने जैसा विषय है, समझने जैसा है। ऐसा नहीं कि माँ-बाप दुखी नहीं हुए होंगे, ऐसा नहीं कि माँ के आँख से आँसूं नहीं निकलते होंगे, लेकिन धैर्य, संयम, पूरे समाज का शान्तचित्त व्यवहार – ये अपने आप में हम सबके लिए सीखने जैसा है। इस पूरे operation में थाईलैंड की नौसेना के एक जवान को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। पूरा विश्व इस बात पर आश्चर्यचकित है कि इतनी कठिन परिस्थितियों के बावज़ूद पानी से भरी एक अंधेरी गुफ़ा में इतनी बहादुरी और धैर्य के साथ उन्होंने अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी। यह दिखाता है कि जब मानवता एक साथ आती है, अदभुत चीज़ें होती हैं। बस ज़रूरत होती है हम शांत और स्थिर मन से अपने लक्ष्य पर ध्यान दें, उसके लिए काम करते रहें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो ! नमस्कार। आज पूरा देश रक्षाबंधन का त्योंहार मना रहा है। सभी देशवासियों को इस पावन पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। रक्षाबंधन का पर्व बहन और भाई के आपसी प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार सदियों से सामाजिक सौहार्द का भी एक बड़ा उदाहरण रहा है। देश के इतिहास में अनेक ऐसी कहानियाँ हैं, जिनमें एक रक्षा सूत्र ने दो अलग-अलग राज्यों या धर्मों से जुड़े लोगों को विश्वास की डोर से जोड़ दिया था। अभी कुछ ही दिन बाद जन्माष्टमी का पर्व भी आने वाला है। पूरा वातावरण हाथी, घोड़ा, पालकी – जय कन्हैयालाल की, गोविन्दा-गोविन्दा की जयघोष से गूँजने वाला है। भगवान कृष्ण के रंग में रंगकर झूमने का सहज आनन्द अलग ही होता है। देश के कई हिस्सों में और विशेषकर महाराष्ट्र में दही-हाँडी की तैयारियाँ भी हमारे युवा कर रहे होंगे। सभी देशवासियों को रक्षाबन्धन एवं जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो ! इस बार मैं ‘मन की बात’ के लिए आये सुझावों को देख रहा था। तब देशभर के लोगों ने जिस विषय पर सबसे अधिक लिखा, वह विषय है –‘हम सब के प्रिय श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी’। गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बैनर्जी, बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे, न जाने कितने अनगिनत लोगों ने Narendra Modi Mobile App पर और Mygov पर लिखकर मुझे अटल जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बात करने का आग्रह किया है। 16 अगस्त को जैसे ही देश और दुनिया ने अटल जी के निधन का समाचार सुना, हर कोई शोक में डूब गया। एक ऐसे राष्ट्र नेता, जिन्होंने 14 वर्ष पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। एक प्रकार से गत् 10 वर्ष से वे सक्रिय राजनीति से काफ़ी दूर चले गए थे। ख़बरों में कहीं दिखाई नहीं देते थे, सार्वजनिक रूप से नज़र नहीं आते थे। 10 साल का अन्तराल बहुत बड़ा होता है लेकिन 16 अगस्त के बाद देश और दुनिया ने देखा कि हिन्दुस्तान के सामान्य मानवी (मानव)के मन में ये दस साल के कालखंड ने एक पल का भी अंतराल नहीं होने दिया। अटल जी के लिए जिस प्रकार का स्नेह, जो श्रद्धा और जो शोक की भावना पूरे देश में उमड़ पड़ी, वो उनके विशाल व्यक्तित्व को दर्शाती है। पिछले कई दिनों से अटल जी के उत्तम से उत्तम पहलू देश के सामने आ ही गए हैं। लोगों ने उन्हें उत्तम सांसद, संवेदनशील लेखक, श्रेष्ठ वक्ता, लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में याद किया है और करते हैं। सुशासन यानी good governance को मुख्य धारा में लाने के लिए यह देश सदा अटल जी का आभारी रहेगा लेकिन मैं आज अटल जी के विशाल व्यक्तित्व का एक और पहलू, उसे सिर्फ स्पर्श करना चाहता हूँ और यह अटल जी ने भारत को जो political culture दिया,political culture में जो बदलाव लाने का प्रयास किया, उसको व्यवस्था के ढांचे में ढालने का प्रयास किया और जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला है। ये भी पक्का है। भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम two thousand three के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किये।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। शायद ही कोई भारतीय हो सकता है जिसको हमारे सशस्त्र बलों पर, हमारे सेना के जवानों पर गर्व न हो। प्रत्येक भारतीय चाहे वो किसी भी क्षेत्र, जाति, धर्म, पंथ या भाषा का क्यों न हो – हमारे सैनिकों के प्रति अपनी खुशी अभिव्यक्त करने और समर्थन दिखाने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। कल भारत के सवा-सौ करोड़ देशवासियों ने, पराक्रम पर्व मनाया था। हमने 2016 में हुई उस surgical strike को याद किया जब हमारे सैनिकों ने हमारे राष्ट्र पर आतंकवाद की आड़ में proxy war की धृष्टता करने वालों को मुँहतोड़ ज़वाब दिया था। देश में अलग-अलग स्थानों पर हमारे सशस्त्र बलों ने exhibitions लगायेताकि अधिक से अधिक देश के नागरिक खासकर युवा-पीढ़ी यह जान सके कि हमारी ताक़त क्या है। हम कितने सक्षम हैं और कैसे हमारे सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर के हम देशवासियों की रक्षा करते हैं। पराक्रम पर्व जैसा दिवस युवाओं को हमारी सशस्त्र सेना के गौरवपूर्ण विरासत की याद दिलाता है। और देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए हमें प्रेरित भी करता है। मैंने भी वीरों की भूमि राजस्थान के जोधपुर में एक कार्यक्रम में भाग लिया, अब यह तय हो चुका है कि हमारे सैनिक उन सबको मुंहतोड़ ज़वाब देंगे जो हमारे राष्ट्र में शांति और उन्नति के माहौल को नष्ट करने का प्रयास करेंगे। हम शांति में विश्वास करते हैं और इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन सम्मान से समझौता करके और राष्ट्र की सम्प्रभुता की कीमत पर कतई नहीं। भारत सदा ही शांति के प्रति वचनबद्ध और समर्पित रहा है। 20वीं सदी में दो विश्वयुद्धों में हमारे एक लाख से अधिक सैनिकों ने शांति के प्रति अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और यह तब, जब हमारा उस युद्ध से कोई वास्ता नहीं था। हमारी नज़र किसी और की धरती पर कभी भी नहीं थी। यह तो शांति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता थी। कुछ दिन पहले ही 23 सितम्बर को हमने इस्राइल में Haifa की लड़ाई के सौ वर्ष पूरे होने पर मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर lancers के हमारेवीर सैनिकों को याद किया जिन्होंने आक्रान्ताओं से Haifa को मुक्ति दिलाई थी। यह भी शांति की दिशा में हमारे सैनिकों द्वारा किया गया एक पराक्रम था। आज भी United Nations कीअलग-अलग peace keeping forces में भारत सबसे अधिक सैनिक भेजने वाले देशों में से एक है। दशकों से हमारे बहादुर सैनिकों ने blue helmet पहन विश्व में शांति कायम रखन�� में अहम भूमिका निभाई है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 2 अक्टूबर हमारे राष्ट्र के लिए इस दिन का क्या महत्व है, इसे बच्चा-बच्चा जानता है। इस वर्ष का 2 अक्टूबर का और एक विशेष महत्व है। अब से 2 साल के लिए हम महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के निमित्त विश्वभर में अनेक विविध कार्यक्रम करने वाले हैं। महात्मा गाँधी के विचार ने पूरी दुनिया को प्रेरित किया है।Dr. Martin Luther King Junior हों या Nelson Mandela जैसी महान विभूतियाँ, हर किसी ने गाँधी जी के विचारों से शक्ति पाई और अपने लोगों को समानता और सम्मान का हक दिलाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ सके। आज की ‘मन की बात’ में, मैं आपके साथ पूज्य बापू के एक और महत्वपूर्ण कार्य की चर्चा करना चाहता हूँ, जिसे अधिक-से-अधिक देशवासियों को जानना चाहिए।nineteen forty one में,1941 में महात्मा गाँधी ने Constructive Programme यानी रचनात्मक कार्यक्रम के रूप में कुछ विचारों को लिखना शुरू किया। बाद में 1945 में जब स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा तब उन्होंने, उस विचार की संशोधित प्रति तैयार की। पूज्य बापू ने किसानों, गाँवों, श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा, स्वच्छता, शिक्षा के प्रसार जैसे अनेक विषयों पर अपने विचारों को देशवासियों के सामने रखा है। इसे गाँधी चार्टर (Gandhi Charter) भी कहते हैं। पूज्य बापू लोक संग्राहक थे। लोगों से जुड़ जाना और उन्हें जोड़ लेना बापू की विशेषता थी, ये उनके स्वभाव में था। यह उनके व्यक्तित्व की सबसे अनूठी विशेषता के रूप में हर किसी ने अनुभव किया है। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को ये अनुभव कराया कि वह देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण और नितांत आवश्यक है। स्वतंत्रता संग्राम में उनका सबसे बड़ा योगदान ये रहा कि उन्होंने इसे एक व्यापक जन-आंदोलन बना दिया। स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में महात्मा गाँधी के आह्वान पर समाज के हर क्षेत्र, हर वर्ग के लोगों ने स्वयं को समर्पित कर दिया। बापू ने हम सब को एक प्रेरणादायक मंत्र दिया था जिसे अक्सर, गाँधी जी का तलिस्मान के नाम से जाना जाता है। उसमें गाँधी जी ने कहा था, “मैं आपको एक जन्तर देता हूँ, जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी आजमाओ, जो सबसे ग़रीब और कमज़ोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उससे, उसे कुछ लाभ पहुंचेगा! क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा! यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है। तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम् समाप्त हो रहा है।”
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आज जब हम पूज्य बापू का स्मरण कर रहें हैं तो बहुत स्वाभाविक है कि स्वच्छता की बात के बिना रह नहीं सकते। 15 सितम्बर से ‘स्वच्छता ही सेवा’ एक अभियान प्रारंभ हुआ। करोड़ों लोग इस अभियान में जुड़े और मुझे भी सौभाग्य मिला कि मैं दिल्ली के अम्बेडकर स्कूल में बच्चों के साथ स्वच्छता श्रमदान करूँ। मैं उस स्कूल में गया जिनकी नींव खुद पूज्य बाबा साहब ने रखी थी। देशभर में हर तबके के लोग, इस 15 तारीख़ को इस श्रमदान से जुड़े। संस्थाओं ने भी इसमें बढ़-चढ़कर के अपना योगदान दिया। स्कूली बच्चों, कॉलेज के छात्रों, NCC, NSS, युवा संगठन, Media groups, Corporate जगत सभी ने, सभी ने बड़े पैमाने पर स्वच्छता श्रमदान किया। मैं इसके लिए इन सभी स्वच्छता प्रेमी देशवासियों को ह्रदय पूर्वक बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। आइये सुनते हैं एक फ़ोन कॉल –
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+ “नमस्कार। मेरा नाम शैतान सिंह जिला-बीकानेर, तहसील – पूगल, राजस्थान से बोल रहा हूँ। मैं blind व्यक्ति हूँ। दोनों आँखों से मुझे दिखाई नहीं देता मैं totally blind हूँ तो मैं ये कहना चाहता हूँ ‘मन की बात’ में जो स्वच्छ भारत का जो मोदी जी ने कदम उठाया था बहुत ही बढ़िया है। हम blind लोग शौच में जाने के लिए परेशान होते थे। अभी क्या है हर घर में शौचालय बन चुका है तो हमारा बहुत बढ़िया फायदा हुआ है उसमें। ये कदम बहुत ही बढ़िया उठाया था और आगे चलता रहे ये काम।”
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, ‘स्वच्छ भारत मिशन’ केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक सफ़ल कहानी बन चुका है जिसके बारे में हर कोई बात कर रहा है।इस बार भारत इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सम्मेलन आयोजित कर रहा है। ‘महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन’ यानी ‘Mahatma Gandhi International Sanitation Convention’ दुनिया भर के Sanitation Ministers और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ एक साथ आकर स्वच्छता से जुड़े अपने प्रयोग और अनुभव साझा कर रहे हैं।‘Mahatma Gandhi International Sanitation Convention’ का समापन 2 अक्तूबर 2018 को बापू के 150वीं जयंती समारोह के शुभारम्भ के साथ होगा।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, अक्तूबर महीना हो, जय प्रकाश नारायण जी की जन्म-जयन्ती हो, राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी ���ी जन्म शताब्दी वर्ष का प्रारंभ होता हो – ये सभी महापुरुष हम सब को प्रेरणा देते रहे हैं उनको हम नमन करते हैं और 31 अक्तूबर सरदार साहब की जयंती है, मैं अगली ‘मन की बात’ में विस्तार से बात करूँगा लेकिन आज मैं जरुर इसलिए उल्लेख करना चाहता हूँ कि कुछ वर्षों से सरदार साहब की जन्म-जयंती पर 31 अक्तूबर को ‘Run for Unity’हिन्दुस्तान के हर छोटे-मोटे शहर में, कस्बों में, गाँवों में ‘एकता के लिए दौड़’ इसका आयोजन होता है। इस वर्ष भी हम प्रयत्नपूर्वक अपने गाँव में, कस्बे में, शहर में, महानगर में ‘Run for Unity’को organise करें। ‘एकता के लिए दौड़’ यही तो सरदार साहब का, उनको स्मरण करने का उत्तम मार्ग है क्योंकि उन्होंने जीवनभर देश की एकता के लिए काम किया। मैं आप सब से आग्रह करता हूँ कि 31 अक्तूबर को ‘Run for Unity’के ज़रिये समाज के हर वर्ग को, देश की हर इकाई को एकता के सूत्र में बांधने के हमारे प्रयासों को हम बल दें और यही उनके लिए अच्छी श्रद्धांजलि होगी।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। 31 अक्तूबर हम सबके प्रिय सरदार वल्लभभाई पटेल की जयन्ती और हर वर्ष की तरह ‘Run for Unity’ के लिए देश का युवा एकता के लिए दौड़ने को तैयार हो गया है। अब तो मौसम भी बहुत सुहाना होता है।यह ‘Run for Unity’ के लिए जोश को और बढ़ाने वाला है।मेरा आग्रह है कि आप सब बहुत बड़ी संख्या में एकता की इस दौड़ में ‘Run for Unity’ में अवश्य भाग लें। आज़ादी से लगभग साढ़े छह महीने पहले,27 जनवरी 1947 को विश्व कीप्रसिद्ध international magazine ‘Time Magazine’ ने जो संस्करण प्रकाशित किया था,उसके cover page पर सरदार पटेल का फोटो लगा था।अपनी lead story में उन्होंने भारत का एक नक्शा दिया था और ये वैसा नक्शा नहीं था जैसा हम आज देखते हैं।ये एक ऐसे भारत का नक्शा था जो कई भागों में बंटा हुआ था। तब 550 से ज्यादा देशी रियासते थीं।भारत को लेकर अंग्रेजों की रूचि ख़त्म हो चुकी थी, लेकिन वो इस देश को छिन्न-भिन्न करके छोड़ना चाहते थे।‘Time Magazine’ ने लिखा था कि भारत पर विभाजन, हिंसा, खाद्यान्न -संकट, महँगाई और सत्ता की राजनीति से जैसे खतरे मंडरा रहे थे।आगे ‘Time Magazine’ लिखता है कि इन सबके बीच देश को एकता के सूत्र में पिरोने और घावों को भरने की क्षमता यदि किसी में है तो वो है सरदार वल्लभभाई पटेल।‘Time Magazine’ की story लौह पुरुष के जीवन के दूसरे पहलुओं को भी उजागर करती है।कैसे उन्होंने 1920 के दशक में अहमदाबाद में आयी बाढ़ को लेकर राहत कार्यों का प्रबंधन किया। कैसे उन्होंने बारडोली सत्याग्रह को दिशा दी। देश के लिए उनकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता ऐसी थी कि किसान, मजदूर से लेकर उद्योगपति तक, सब उन पर भरोसा करते थे।गांधी जी ने सरदार पटेल से कहा कि राज्यों की समस्याएँ इतनी विकट हैं कि केवल आप ही इनका हल निकाल सकते हैं और सरदार पटेल ने एक-एक कर समाधान निकाला और देश को एकता के सूत्र में पिरोने के असंभव कार्य को पूरा कर दिखाया।उन्होंने सभी रियासतों का भारत में विलय कराया। चाहे जूनागढ़ हो या हैदराबाद, त्रावणकोर हो या फिर राजस्थान की रियासतें – वे सरदार पटेल ही थे जिनकी सूझबूझ और रणनीतिक कौशल से आज हम एक हिन्दुस्तान देख पा रहे हैं।एकता के बंधन में बंधे इस राष्ट्र को, हमारी भारत माँ को देख करके हम स्वाभाविक रूप से सरदार वल्लभभाई पटेल का पुण्य स्मरण करते हैं।इस 31 अक्तूबर को सरदार पटेल की जयन्ती तो और भी विशेष होगी – इस दिन सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए हम Statue of Unity राष्ट्र को समर्पित करेंगे।गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर स्थापित इस प्रतिमा की ऊँचाई अमेरिका के Statue of Liberty से दो गुनी है।ये विश्व की सबसे ऊंची गगनचुम्बी प्रतिमा है। हर भारतीय इस बात पर अब गर्व कर पायेगा कि दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा भारत की धरती पर है।वो सरदार पटेल जो जमीन से जुड़े थे, अब आसमान कीभीशोभा बढ़ाएँगे। मुझे आशा है कि देश का हर नागरिक ‘माँ-भारती’ की इस महान उपलब्धि को लेकर के विश्व के सामने गर्व के साथ सीना तानकरके, सर ऊँचा करके इसका गौरवगान करेगा और स्वाभाविक है हर हिन्दुस्तानी को Statue of Unity देखने का मन करेगा और मुझे विश्वास है हिन्दुस्तान से हर कोने से लोग, अब इसको भी अपना एक बहुत ही प्रिय destination के रूप में पसंद करेंगे।
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+ मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, कल ही हम देशवासियों ने ‘Infantry Day’ मनाया है। मैं उन सभी को नमन करता हूँ जो भारतीय सेना का हिस्सा हैं। मैं अपने सैनिकों के परिवार को भी उनके साहस के लिए salute करता हूँ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम सब हिन्दुस्तान के नागरिक ये ‘Infantry Day’ क्यों मानते हैं?यह वही दिन है, जब भारतीय सेना के जवान कश्मीर की धरती पर उतरे थे और घुसपैठियों से घाटी की रक्षा की थी।इस ऐतिहासिक घटना का भी सरदार वल्लभभाई पटेल से सीधा सम्बन्ध है। मैं भारत के महान सैन्य अधिकारी रहे Sam Manekshawका एक पुराना interview पढ़ रहा था। उस interview में Field Marshal Manekshawउस समय को याद कर रहे थे,जब वो कर्नल थे। इसी दौरान अक्तूबर 1947 में, कश्मीर में सैन्य अभियान शुरू हुआ था।Field Marshal Manekshawने बताया कि किस प्रकार से एक बैठक के दौरान कश्मीर में सेना भेजने में हो रहे विलम्ब को लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल नाराज हो गए थे। सरदार पटेल ने बैठक के दौरान अपने ख़ास अंदाज़ में उनकी तरफ देखा और कहा कि कश्मीर में सैन्य अभियान में ज़रा भी देरी नहीं होनी चाहिये और जल्द से जल्द इसका समाधान निकाला जाए।इसी के बाद सेना के जवानों ने कश्मीर के लिए उड़ान भरी और हमने देखा कि किस तरह से सेना को सफलता मिली।31 अक्तूबर को हमारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की भी पुण्यतिथि है।इंदिराजी को भी आदरपूर्वक श्रद्धांजलि।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, खेल किसको पसंद नहीं है।खेल जगत में spirit, strength, skill, stamina- ये सारी बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।यह किसी खिलाड़ी की सफलता की कसौटी होते हैं और यही चारों गुण किसी राष्ट्र के निर्माण के ��ी महत्वपूर्ण होते हैं। किसी देश के युवाओं के भीतर अगर ये हैं तो वो देश न सिर्फ अर्थव्यवस्था, विज्ञान और technologyजैसे क्षेत्रों में तरक्की करेगा बल्कि sportsमें भी अपना परचम फहराएगा। हाल ही में मेरी दो यादगार मुलाकातें हुई। पहले जकार्ता में हुईAsian Para Games 2018 के हमारे Para Athletes से मिलने का मौका मिला। इन खेलों में भारत ने कुल 72 पदक जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया और भारत का गौरव बढ़ाया।इन सभी प्रतिभावान Para Athletesसे मुझे निजी तौर पर मिलने का सौभाग्य मिला और मैंने उन्हें बधाई दी। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और हर विपरीत परिस्थिति से लड़कर आगे बढ़ने का उनका जज़्बा हम सभी देशवासियों को प्रेरित करने वाला है।इसी तरह से Argentina में हुई Summer Youth Olympics 2018 के विजेताओं से मिलने का मौका मिला। आपको ये जान करके प्रसन्नता होगी कि Youth Olympics 2018 में हमारे युवाओं ने अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस आयोजन में हमने 13 पदक के अलावा mix event में 3 और पदक हासिल किये। आपको याद होगा कि इस बार Asian Games में भी भारत का प्रदर्शन बेहतरीन रहा था। देखिये पिछले कुछ मिनटों में मैंने कितनी बार अब तक का सबसे अच्छा, अब तक का सबसे शानदार ऐसे शब्दों का प्रयोग किया। ये है आज के भारतीय खेलों की कहानी जो दिनों दिन नई ऊचाईयाँ छू रही है। भारत सिर्फ खेलों में ही नहीं बल्कि उन क्षेत्रों में भी नए रिकॉर्ड बना रहा है जिनके बारे में कभी सोचा तक नहीं गया था। उदाहरण के लिए मैं आपको Para Athlete नारायण ठाकुर के बारे में बताना चाहता हूँ। जिन्होंने 2018 के Asian Para Games में देश के लिए Athletics में Gold Medal जीता है।वह जन्म से ही दिव्यांग है। जब 8 वर्ष के हुए तो उन्होंने अपने पिता को खो दिया। फिर अगले 8 वर्ष उन्होंने एक अनाथालय में बिताये। अनाथालय छोड़ने के बाद ज़िन्दगी की गाड़ी चलाने के लिए DTC की बसों को साफ़ करने और दिल्ली में सड़क के किनारे ढाबों में वेटर के तौर पर कार्य किया। आज वही नारायण International Events में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत रहे हैं। इतना ही नहीं, भारत की खेलों में उत्कृष्टता के बढ़ते दायरे को देखिये, भारत ने जूडो में कभी भी, चाहे वो सीनियर लेवल हो या जूनियर लेवल कोई ओलिंपिक मेडल नहीं जीता है। पर तबाबी देवी ने Youth Olympics में जूडो में सिल्वर मेडल जीत कर इतिहास रच दिया। 16 वर्ष की युवा खिलाड़ी तबाबी देवी मणिपुर के एक गाँव की रहने वाली है। उनके पिता एक मजदूर हैं जबकि माँ मछली बेचने का काम करती है। कई बार उनके पर��वार के सामने ऐसा भी समय आया जब उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। ऐसी परिस्थितियों में भी तबाबी देवी का हौसला डिगा नहीं सकी। और उन्होंने देश के लिए मेडल जीत कर इतिहास रचा है। ऐसी तो अनगिनत कथाएँ हैं। हर एक जीवन प्रेरणा का स्रोत है। हर युवा खिलाड़ी उसकाजज़्बा New India की पहचान है।
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+ मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, इस बार जब मैं ‘मन की बात’ को लेकर आप लोगों के सुझाव देख रहा था तो मुझे पुडुचेरी से श्री मनीष महापात्र की एक बहुत ही रोचक टिप्पणी देखने को मिली। उन्होंने Mygovपर लिखा है-‘कृपया आप ‘मन की बात’ में इस बारें में बात कीजिये कि कैसे भारत की जनजातियाँ उनके रीति-रिवाज और परंपराएँ प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं’।Sustainable development के लिए कैसे उनके traditionsको हमें अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है,उनसे कुछ सीखने की जरुरत है। मनीष जी- इस विषय को ‘मन की बात’ के श्रोताओं के बीच रखने के लिए मैं आपकी सराहना करता हूँ। यह एक ऐसा विषय है जो हमें अपने गौरवपूर्ण अतीत और संस्कृति की ओर देखने के लिए प्रेरित करता है। आज सारा विश्व विशेष रूप से पश्चिम के देश पर्यावरण संरक्षण की चर्चा कर रहे हैंऔर संतुलित जीवनशैली balance life के लिए नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। वैसे आज हमारा भारतवर्ष भी इस समस्या से अछूता नहीं है, लेकिन इसके हल के लिए हमें बस अपने भीतर झाँकना है, अपने समृद्ध इतिहास, परंपराओं को देखना है और ख़ासकर अपने जनजातीय समुदायों की जीवनशैली को समझना है। प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर के रहना हमारे आदिवासी समुदायों की संस्कृति में शामिल रहा है। हमारे आदिवासी भाई-बहन पेड़-पौधों और फूलों की पूजा देवी-देवताओं की तरह करते हैं।मध्य भारत की भील जनजाति में विशेषकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोग पीपल और अर्जुन जैसे पेड़ों की श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। राजस्थान जैसी मरुभूमि में बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण का रास्ता हमें दिखाया है। खासतौर से वृक्षों के संरक्षण के संदर्भ में उन्हें अपने जीवन का त्याग करना मंजूर है लेकिन एक भी पेड़ का नुकसान पहुँचे ये उन्हें स्वीकार नहीं है। अरुणाचल के मिशमी,बाघों के साथ खुद का रिश्ता होने का दावा करते हैं। उन्हें वो अपना भाई-बहन तक मानते हैं। नागालैंड में भी बाघों को वनों के रक्षक के रूप में देखा जाता है। महाराष्ट्र के वार्ली समुदाय क��� लोग बाघ को अतिथि मानते हैं उनके लिए बाघों की मौजूदगी समृद्धि लाने वाली होती है। मध्य भारत के कोल समुदाय के बीच एक मान्यता है कि उनका खुद का भाग्य बाघों से जुड़ा है, अगर बाघों को निवाला नहीं मिला तो गाँव वालों को भी भूखा रहना पड़ेगा – ऐसी उनकी श्रद्धा है। मध्य भारत की गोंड जनजाति breeding season में केथन नदी के कुछ हिस्सों में मछली पकड़ना बंद कर देते हैं। इन क्षेत्रों को वो मछलियों का आश्रय स्थान मानते हैं इसी प्रथा के चलते उन्हें स्वस्थ और भरपूर मात्रा में मछलियाँ मिलती हैं। आदिवासी समुदाय अपने घरों को natural material से बनाते हैं ये मजबूत होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। दक्षिण भारत के नीलगिरी पठार के एकांत क्षेत्रों में एक छोटा घुमन्तु समुदाय तोड़ा, पारंपरिक तौर पर उनकी बस्तियाँ स्थानीय स्थर पर उपलब्ध चीजों से ही बनी होती हैं।
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+ मेरे प्यारे भाइयो-बहनो ये सच है कि आदिवासी समुदाय बहुत शांतिपूर्ण और आपस में मेलजोल के साथ रहने में विश्वास रखता है, पर जब कोई उनके प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान कर रहा हो तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने से डरते भी नहीं हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे सबसे पहले स्वतंत्र सेनानियों में आदिवासी समुदाय के लोग ही थे। भगवान बिरसा मुंडा को कौन भूल सकता है जिन्होंने अपनी वन्य भूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ कड़ा संघर्ष किया। मैंने जो भी बातें कहीं हैं उनकी सूची काफ़ी लम्बी है आदिवासी समुदाय के ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो हमें सिखाते हैं कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर कैसे रहा जाता है और आज हमारे पास जो जंगलों की सम्पदा बची है, इसके लिए देश हमारे आदिवासियों का ऋणी है। आइये ! हम उनके प्रति आदर भाव व्यक्त करें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो ‘मन की बात’ में हम उन व्यक्तियों और संस्थाओं के बारें में बाते करते हैं जो समाज के लिए कुछ असाधारण कार्य कर रहेहैं। ऐसे कार्य जो देखने में तो मामूली लगते हैं लेकिन वास्तव में उनका गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारी मानसिकता बदलने में, समाज की दिशा बदलने में।कुछ दिन पहले मैं पंजाब के किसान भाई गुरबचन सिंह जी के बारे में पढ़ रहा था। एक सामान्य और परिश्रमी किसान गुरबचन सिंह जी के बेटे का विवाह था।इस विवाह से पहले गुरबचन जी ने दुल्हन के माता-पिता से कहा था कि हम शादी सादगी से करेंगे।बारात हों और चीजे�� हों, खर्चा कोई ज्यादा करने की जरुरत नहीं है। हमें इसे एक बहुत सादा अवसर ही रखना है, फिर अचानक उन्होंने कहा लेकिन मेरी एक शर्त है और आजकल जब शादी-ब्याह के समय शर्त की बात आती है तो आमतौर पर लगता यही है कि सामने वाला कोई बड़ी माँग करने वाला है। कुछ ऐसी चीजें माँगेगा जो शायद बेटी के परिवारजनों के लिए मुश्किल हो जाएँ, लेकिन आपको जानकर के आश्चर्य होगा ये तो भाई गुरबचन सिंह थे सादे-सीधे किसान, उन्होंने दुल्हन के पिता से जो कहा, जो शर्त रखी, वो हमारे समाज की सच्ची ताकत है।गुरबचन सिंह जी ने उनसे कहा कि आप मुझे वचन दीजिये कि अब आप खेत में पराली नहीं जलायेंगे।आप कल्पना कर सकते हैं कितनी बड़ी सामाजिक ताकत है इसमें।गुरबचन सिंह जी की ये बात लगती तो बहुत मामूली है लेकिन ये बताती है कि उनका व्यक्तित्व कितना विशाल है और हमने देखा है कि हमारे समाज में ऐसे बहुत परिवार होते हैं जो व्यक्तिगत प्रसंग को समाज हित के प्रसंग में परिवर्तित करते हैं। श्रीमान् गुरबचन सिंह जी के परिवार ने वैसी एक मिसाल हमारे सामने दी है। मैंने पंजाब के एक और गाँव कल्लर माजरा के बारे में पढ़ा है जो नाभा के पास है।कल्लर माजरा इसलिए चर्चित हुआ है क्योंकि वहाँ के लोग धान की पराली जलाने की बजाय उसे जोतकर उसी मिट्टी में मिला देते हैं उसके लिए जो technology उपयोग मेंलानी होती है वो जरूर लाते हैं। भाई गुरबचन सिंह जी को बधाई।कल्लरमाजरा और उन सभी जगहों के लोगों को बधाई जो वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए अपना श्रेष्ठ प्रयास कर रहें हैं। आप सब स्वस्थ जीवनशैली की भारतीय विरासत को एक सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं। जिस तरह बूंद-बूंद से सागर बनता है, उसी तरह छोटी-छोटी जागरुक और सक्रियता और सकारात्मक कार्य हमेशा सकारात्मक माहौल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है।
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+ जब कभी भी विश्व शान्ति की बात होती है तो इसको लेकर भारत का नाम और योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित दिखेगा। भारत के लिए इस वर्ष 11 नवम्बर का विशेष महत्व है क्योंकि 11 नवम्बर को आज से 100 वर्ष पूर्व प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ, उस समाप्ति को 100 साल पूरे हो रहे हैं यानी उस दौरान हुए भारी विनाश और जनहानि की समाप्ति की भी एक सदी पूरी हो जाएगी। भारत के लिए प्रथम विश्व युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना थी। सही मायने में कहा जाए तो हमारा उस युद्ध से सीधा कोई लेना-देन��� नहीं था। इसके बावजूद भी हमारे सैनिक बहादुरी से लड़े और बहुत बड़ी भूमिका निभाई, सर्वोच्य बलिदान दिया। भारतीय सैनिकों ने दुनिया को दिखाया कि जब युद्ध की बात आती है तो वह किसी से पीछे नहीं हैं। हमारे सैनिकों ने दुर्गम क्षेत्रों में, विषम परिस्थितियों में भी अपना शौर्य दिखाया है। इन सबके पीछे एक ही उद्देश्य रहा – शान्ति की पुन: स्थापना।प्रथम विश्व युद्ध में दुनिया ने विनाश का तांडव देखा। अनुमानों के मुताबिक क़रीब 1 करोड़ सैनिक और लगभग इतने ही नागरिकों ने अपनी जान गंवाई। इससे पूरे विश्व ने शान्ति का महत्व क्या होता है – इसको समझा। पिछले 100 वर्षों में शान्ति की परिभाषा बदल गई है। आज शान्ति और सौहार्द का मतलब सिर्फ युद्ध का न होना नहीं है। आतंकवाद से लेकर जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास से लेकर सामाजिक न्याय, इन सबके लिए वैश्विक सहयोग और समन्वय के साथ काम करने की आवश्यकता है।ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति का विकास ही शांति का सच्चा प्रतीक है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। 3 अक्टूबर, 2014 विजयादशमी का पावन पर्व।‘मन की बात’ के माध्यम से हम सबने एक साथ, एक यात्रा का प्रारम्भ किया था। ‘मन की बात’, इस यात्रा के आज 50 एपिसोड पूरे हो गए हैं। इस तरह आज ये Golden Jubilee Episode स्वर्णिम एपिसोड है। इस बार आपके जो पत्र और फ़ोन आये हैं, अधिकतर वे इस 50 एपिसोड के सन्दर्भ में ही हैं।MyGov पर दिल्ली के अंशु कुमार, अमर कुमार और पटना से विकास यादव, इसी तरह से NarendraModiApp पर दिल्ली की मोनिका जैन, बर्दवान, West Bengal के प्रसेनजीत सरकार और नागपुर की संगीता शास्त्री इन सब लोगों ने लगभग एक ही तरह का प्रश्न पूछा है। उनका कहना है कि अक्सर लोग आपको latest technology, Social Media और Mobile Apps के साथ जोड़ते हैं, लेकिन आपने लोगों के साथ जुड़ने के लिये रेडियो को क्यों चुना ? आपकी ये जिज्ञासा बहुत स्वाभाविक है कि आज के युग में, जबकि करीब रेडियो भुला दिया गया था उस समय मोदी रेडियो लेकर के क्यों आया ? मैं आपको एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ। ये 1998 की बात है, मैं भारतीय जनता पार्टी के संगठन के कार्यकर्ता के रूप में हिमाचल में काम करता था। मई का महीना था और मैं शाम के समय travel करता हुआ किसी और स्थान पर जा रहा था।हिमाचल की पहाड़ियों में शाम को ठण्ड तो हो ही जाती है, तो रास्ते में एक ढाबे पर चाय के लिये रुका और जब मैं चाय के लिए order किया तो उसके पहले, वो बहुत छोटा सा ढाबा था, एक ही व्यक्ति खुद चाय बनाता था, बेचता था। ऊपर कपड़ा भी नहीं था ऐसे ही road के किनारे पर छोटा साठेला लगा के खड़ा था। तो उसने अपने पास एक शीशे का बर्तन था, उसमें से लड्डू निकाला, पहले बोला –साहब, चाय बाद में, लड्डू खाइए। मुँह मीठा कीजिये। मैं भी हैरान हो गया तो मैंने पूछा क्या बात है कोई घर में कोई शादी-वादी कोई प्रसंग-वसंग है क्या ! उसने कहा नहीं-नहीं भाईसाहब, आपको मालूम नहीं क्या ? अरे बहुत बड़ी खुशी की बात है वो ऐसा उछल रहा था, ऐसा उमंग से भरा हुआ था, तो मैंने कहा क्या हुआ ! अरे बोले आज भारत ने bomb फोड़ दिया है। मैंने कहा भारत ने bomb फोड़ दिया है ! मैं कुछ समझा नहीं ! तो उसने कहा – देखिये साहब,रेडियो सुनिये। तो रेडियो पर उसी की चर्चा चल रही थी। तो उसने कहा उस समय हमारे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने – वो परमाणु परीक्षण का दिन था और मीडिया के सामने आकर के घोषणा की थी और इसने ये घोषणा रेडियो पर सुनी थी और नाच रहा था और मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि इस जंगल के सुनसान इलाके में, बर्फीली पहाड़ियों के बीच, एक सामान्य इंसान जो चाय का ठेला लेकर के अपना काम कर रहा है और दिन-भर रेडियो सुनता रहता होगा और उस रेडियो की ख़बर का उसके मन पर इतना असर था, इतना प्रभाव था और तब से मेरे मन में एक बात घर कर गयी थी कि रेडियो जन-जन से जुड़ा हुआ है और रेडियो की बहुत बड़ी ताकत है।communication की reach और उसकी गहराई, शायद रेडियो की बराबरी कोई नहीं कर सकता ये मेरा उस समय से मेरे मन में भरा पड़ा है और उसकी ताकत का मैं अंदाज करता था। तो जब मैं प्रधानमंत्री बना तो सबसे ताकतवर माध्यम की तरफ़ मेरा ध्यान जाना बहुत स्वाभाविक था। और जब मैंने मई 2014 में एक ‘प्रधान-सेवक’ के रूप में कार्यभार संभाला तो मेरे मन में इच्छा थी कि देश की एकता, हमारे भव्य इतिहास, उसका शौर्य, भारत की विविधताएँ, हमारी सांस्कृतिक विविधताएँ, हमारे समाज के रग-रग में समायी हुई अच्छाइयाँ, लोगों का पुरुषार्थ, जज़्बा, त्याग, तपस्या इन सारी बातों को, भारत की यह कहानी, जन-जन तक पहुँचनी चाहिये। देश के दूर-सुदूर गावों से लेकर Metro Cities तक, किसानों से लेकर के युवा professionals तक और बस उसी में से ये ‘मन की बात’ की यात्रा प्रारंभ हो गयी। हर महीने लाखों की संख्या में पत्रों को पढ़ते,phone calls सुनते, App और MyGov पर comment देखते और इन सबको एक सूत्र में पिरोकर के, हल्की-फुल्की बातें करते-करते 50 episode की एक सफ़र, ये यात्रा हम सबने मिलकर के कर ली है। हाल ही में आकाशवाणी ने ‘मन की बात’ पर survey भी कराया। मैंने उनमें से कुछ ऐसे feedback को देखा जो काफी दिलचस्प हैं। जिन लोगों के बीच survey किया गया है, उनमें से औसतन 70% नियमित रूप से ‘मन की बात’ सुनने वाले लोग हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि ‘मन की बात’ का सबसे बड़ा योगदान ये है कि इसने समाज में positivity की भावना बढ़ायी है। ‘मन की बात’ के माध्यम से बड़े पैमाने पर जन-आन्दोलनों को बढ़ावा मिला है।#indiapositiveको लेकर व्यापक चर्चा भी हुई है। ये हमारे देशवासियों के मन में बसी positivity की भावना की, सकारात्मकता की भावना की भी झलक है। लोगों ने अपना ये अनुभव भी share किया है कि ‘मन की बात’ से volunteerism यानी स्वेच्छा से कुछ करने की भावना बढ़ी है। एक ऐसा बदलाव आया है जिसमें समाज की सेवा के लिए लोग बढ़चढ़ करके आगे आ रहे हैं। मुझे यह देखकर के खुशी हुई कि ‘मन की बात’ के कारण रेडियो, और अधिक लोकप्रिय हो रहा है। लेकिन यह केवल रेडियो ही नहीं है जिसके माध्यम से लोग इस कार्यक्रम में जुड़ ���हे हैं। लोग टी.वी., एफ़.एम. रेडियो, मोबाइल, इन्टरनेट, फ़ेसबुक लाइव, औरperiscope के साथ-साथ NarendraModiApp के माध्यम से भी ‘मन की बात’ में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। मैं ‘मन की बात’ परिवार के आप सभी सदस्यों को इस पर विश्वास जताने और इसका हिस्सा बनने के लिये अंतःकरणपूर्वक धन्यवाद देता हूँ।
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+ “नमस्ते मोदी जी ! मैं निधि बहुगुणा बोल रही हूँ मसूरी उत्तराखण्ड से। मैं दो युवा बच्चों की माँ हूँ। मैंने अक्सर यह देखा है कि इस उम्र के बच्चे यह पसंद नहीं करते कि उन्हें कोई बताए कि उन्हें क्या करना है ? चाहे वे teachers हों या वे उनके माता-पिता हों। पर जब आपके ‘मन की बात’ होती है और आप बच्चों से कुछ कहते हैं तो वे दिल से समझते हैं और उस बात को करते भी हैं – तो आप हमसे इस secret को share करेंगे क्या ? क्या जिस तरह से आप बोलते हैं या जो आप issue उठाते हैं कि वे बच्चे अच्छी तरह समझ के implement करते हैं। धन्यवाद।” (फ़ोन कॉल समाप्त)
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+ Expect की बजाय accept और dismiss करने की बजाय discuss करने से संवाद प्रभावी बनेगा। अलग-अलग कार्यक्रमों या फिर Social Media के माध्यम से युवाओं के साथ लगातार बातचीत करने का मेरा प्रयास रहता है। वे जो कर रहे हैं या क्या सोच रहे हैं – उससे सीखने का मैं हमेशा प्रयास करता रहता हूँ। उनके पास हमेशा ideas का भण्डार होता है। वे अत्यधिक energetic, innovative और focussedहोते हैं। ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं युवाओं के प्रयासों को, उनकी बातों को, ज्यादा से ज्यादा साझा करने का प्रयास करता हूँ। अक्सर शिकायत होती है कि युवा बहुत ही अधिक सवाल करते हैं। मैं कहता हूँ कि अच्छा है कि नौजवान सवाल करते हैं। ये अच्छी बात इसलिए है क्योंकि इसका अर्थ हुआ कि वे सभी चीज़ों की जड़ से छानबीन करना चाहते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि युवाओं में धैर्य नहीं होता, लेकिन मेरा मानना है कि युवाओं के पास बर्बाद करने के लिए समय नहीं है। यही वो चीज़ है जो आज के नौजवानों को अधिक innovative बनने में मदद करती है, क्योंकि, वे चीज़ों को तेज़ी से करना चाहते हैं। हमें लगता है आज के युवा बहुत महत्वाकांक्षी हैं और बहुत बड़ी-बड़ी चीज़ें सोचते हैं। अच्छा है, बड़े सपने देखें और बड़ी सफलताओं को हासिल करें – आखिर, यही तो New India है।कुछ लोग कहते हैं कि युवा पीढ़ी एक ही समय में कई चीज़ें करना चाहती है। मैं कहता हूँ – इसमें बुराई क्या है ? वे multitasking में पारंगत हैं इसलिए ऐसा करते हैं। अगर हम आस-पास नज़र दौड़ायें तो वो चाहे Social Entrepreneurship हो, Start-Ups हो, Sports हो या फिर अन्य क्षेत्र – समाज में बड़ा बदलाव लाने वाले युवा ही हैं। वे युवा, जिन्होंने सवाल पूछने और बड़े सपने देखने का साहस दिखाया। अगर हम युवाओं के विचारों को धरातल पर उतार दें और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए खुला वातावरण दें तो वे देश में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। वे ऐसा कर भी रहे हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, संविधान सभा के बारे में बात करते हुए उस महापुरुष का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता जो संविधान सभा के केंद्र में रहे। ये महापुरुष थे पूजनीय डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर। 6 दिसम्बर को उनका महा-परिनिर्वाण दिवस है। मैं सभी देशवासियों की ओर से बाबा साहब को नमन् करता हूँ जिन्होंने करोड़ों भारतीयों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया। लोकतंत्र बाबा साहब के स्वभाव में रचा-बसा था और वो कहते थे कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्य कहीं बाहर से नहीं आए हैं। गणतंत्र क्या होता है और संसदीय व्यवस्था क्या होती है – ये भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। संविधान सभा में उन्होंने एक बहुत भावुक अपील की थी कि इतने संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता की रक्षा हमें अपने खून की आखिरी बूँद तक करनी है। वे यह भी कहते थे कि हम भारतीय भले ही अलग-अलग background के हों लेकिन हमें सभी चीज़ों से ऊपर देशहित को रखना होगा।India First – डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का यही मूलमंत्र था। एक बार फिर पूज्य बाबा साहब को विनम्र श्रद्धांजलि।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 50 episode के बाद हम फिर एक बार मिलेंगे अगले ‘मन की बात’ में और मुझे विश्वास है कि आज ‘मन की बात’ के इस कार्यक्रम के पीछे की भावनाओं को मुझे पहली बार आपके समक्ष कहने का मौका मिला क्योंकि आप लोगों ने ऐसे ही सवाल पूछे लेकिन हमारी यात्रा जारी रहेगी। आपका साथ जितना ज्यादा जुड़ेगा, उतनी यात्रा हमारी और गहरी होगी और हर किसी को संतोष देनेवाली मिलेगी। कभी-कभी लोगों के मन में सवाल उठता है कि ‘मन की बात’ से मुझे क्या मिला ? मैं आज कहना चाहूँगा कि ‘मन की बात’ के जो feedback आते हैं, उसमें एक बात जो मेरे मन को बहुत छू जाती है। अधिकतम लोगों ने ये कहा कि जब हम परिवार के सब लोगों के साथ बैठकर के ‘मन की बात’ सुनते हैं तो ऐसे लगता है कि हमारे परिवार का मुखिया हमारे बीच में बैठ करके हमारी अपनी ही बातों को हमारे साथ share कर रहा है। जब ये बात मैंने व्यापक रूप से सुनी मुझे बहुत संतोष हुआ कि मैं ��पका हूँ, आप में से ही हूँ, आपके बीच हूँ, आप ही ने मुझे बड़ा बनाया है और एक प्रकार से मैं भी आपके परिवार के सदस्य के रूप में ही ‘मन की बात’ के माध्यम से बार-बार आता रहूँगा, आपसे जुड़ता रहूँगा। आपके सुख-दुःख, मेरे सुख-दुःख। आपकी आकांक्षा, मेरी आकांक्षा। आपकी महत्वाकांक्षा, मेरी महत्वाकांक्षा।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।साल 2018 ख़त्म होने वाला है। हम 2019 में प्रवेश करने वाले हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसे समय,बीते वर्ष की बातें चर्चा में होती हैं, तो आने वाले वर्ष के संकल्प की भी चर्चा सुनाई देती है। चाहे व्यक्ति का जीवन हो, समाज का जीवन हो, राष्ट्र का जीवन हो – हर किसी को पीछे मुड़कर के देखना भी होता है और आगे की तरफ जितना दूर तक देख सकें,देखने की कोशिश भी करनी होती है और तभी अनुभवों का लाभ भी मिलता है और नया करने का आत्मविश्वास भी पैदा होता है। हम ऐसा क्या करें जिससे अपने स्वयं के जीवन में बदलाव ला सकें और साथ-ही-साथ देश एवं समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकें।आप सबको 2019 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।आप सभी ने सोचा होगा कि 2018 को कैसे याद रखा जाए। 2018 को भारत एक देश के रूप में, अपनी एक सौ तीस करोड़ की जनता के सामर्थ्य के रूप में, कैसे याद रखेगा – यह याद करना भी महत्वपूर्ण है। हम सब को गौरव से भर देने वाला है।
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+ 2018 में, विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत’ की शुरुआत हुई। देश के हर गाँव तक बिजली पहुँच गई। विश्व की गणमान्य संस्थाओं ने माना है कि भारत रिकॉर्ड गति के साथ, देश को ग़रीबी से मुक्ति दिला रहा है।देशवासियों के अडिग संकल्प से स्वच्छता कवरेज बढ़कर के95% को पार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
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+ इसी तरह, 25 दिसम्बर को कर्नाटक की सुलागिट्टी नरसम्मा के निधन की जानकारी मिली। सुलागिट्टी नरसम्मा गर्भवती माताओं-बहनों को प्रसव में मदद करने वाली सहायिका थीं। उन्होंने कर्नाटक में, विशेषकर वहाँ के दुर्गम इलाकों में हजारों माताओं-बहनों को अपनी सेवायें दीं। इस साल की शुरुआत में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया था। डॉ. जयाचंद्रन और सुलागिट्टी नरसम्मा जैसे कई प्रेरक व्यक्तित्व हैं,जिन्होंने समाज में सब की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जब हम health care की बातें कर रहे हैं, तो मैं यहाँ उत्तर प्रदेश के बिजनौर में डॉक्टरों के सामाजिक प्रयासों के बारे में भी चर्चा करना चाहूँगा। पिछले दिनों हमारी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि शहर के कुछ युवा डॉक्टर कैंप लगाकर ग़रीबों का फ्री उपचार करतेहैं। यहाँ के Heart Lungs Critical Centre की ओर से हर महीने ऐसे मेडिकल कैंप लगाये जाते हैं जहाँ कई तरह की बीमारियों की मुफ्त जाँच और इलाज की व्यवस्था होती है। आज, ��र महीने सैकड़ों ग़रीब मरीज़ इस कैंप से लाभान्वित हो रहे हैं। निस्वार्थ भाव से सेवा में जुटे इन doctors मित्रों का उत्साह सचमुच तारीफ़ के काबिल है। आज मैं यह बात बहुत ही गर्व के साथ बता रहा हूँ कि सामूहिक प्रयासों के चलते ही ‘स्वच्छ भारत मिशन’ एक सफल अभियान बन गया है। मुझे कुछ लोगों ने बताया कि कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक साथ तीन लाख से ज्यादा लोग सफाई अभियान में जुटे। स्वच्छता के इस महायज्ञ में नगर निगम, स्वयं सेवी संगठन, स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी, जबलपुर की जनता-जनार्दन, सभी लोगों ने बढ़-चढ़ करके भाग लिया।मैंने अभी thebetterindia.com का उल्लेख किया था। जहाँ मुझे डॉ. जयाचंद्रन के बारे में पढ़ने को मिला और जब मौका मिलता है तो मैं जरुर thebetterindia.comwebsite पर जाकर के ऐसी प्रेरित चीजों को जानने का प्रयास करता रहता हूँ। मुझे ख़ुशी है कि आजकल ऐसी कई website हैंजो ऐसे विलक्षण लोगों के जीवन से प्रेरणा देने वाली कई कहानियों से हमें परिचित करा रही है। जैसे thepositiveindia.com समाज में positivity फ़ैलाने और समाज को ज्यादा संवेदनशील बनाने का काम कर रही है। इसी तरह yourstory.com उस पर young innovators और उद्यमियों की सफलता की कहानी को बखूबी बताया जाता है।इसी तरह samskritabharati.in के माध्यम से आप घर बैठे सरल तरीके से संस्कृत भाषा सीख सकते हैं। क्या हम एक काम कर सकते हैं – ऐसी website के बारे में आपस में share करें।Positivity को मिलकर viral करें। मुझे विश्वास है कि इसमें अधिक-से-अधिक लोग समाज में परिवर्तन लाने वाले हमारे नायकों के बारे में जान पाएँगे।Negativity फैलाना काफी आसान होता है, लेकिन, हमारे समाज में, हमारे आस-पास बहुत कुछ अच्छे काम हो रहे हैं और ये सब 130 करोड़ भारतवासियों के सामूहिक प्रयासों से हो रहा है।
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+ सुभाष बाबू को हमेशा एक वीर सैनिक और कुशल संगठनकर्ता के रूप में याद किया जाएगा। एक ऐसा वीर सैनिक जिसने आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।“ दिल्ली चलो’,‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा”, जैसे ओजस्वी नारों से नेताजी ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई।कई वर्षों तक यह मांग रही कि नेता जी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया जाए और मुझे इस बात की खुशी है, यह काम हम लोग कर पाए।मुझे वो दिन याद है, जब नेताजी का सारा परिवार प्रधानमंत्री निवास आया था। हमने मिलकर नेताजी से जुड़ी बहुत सारी बातें की और नेताजी सुभाष बोस को श्रद्दांजलि अर्पित की।
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+ अब आप सोच रहे होंगे कि यहाँ बात कला की हो रही है और मैं आपसे गुरुदेव टैगोर के उत्कृष्ट कार्यों को देखने की बात कर रहा हूँ। आपने अभी तक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर को एक लेखक और एक संगीतकार के रूप में जाना होगा। लेकिन मैं बताना चाहूँगा कि गुरुदेव एक चित्रकार भी थे।उन्होंने कई विषयों पर पेंटिंग्स बनाई हैं। उन्होंने पशु पक्षियों के भी चित्र बनाए हैं, उन्होंने कई सारे सुंदर परिदृश्यों के भी चित्र बनाए हैं और इतना ही नहीं उन्होंने human characters को भी कला के माध्यम से canvas पर उकेरने का काम किया है।और खास बात ये है कि गुरुदेव टैगोर ने अपने अधिकांश कार्यों को कोई नाम ही नहीं दिया। उनका मानना था कि उनकी पेंटिंग देखने वाला खुद ही उस पेंटिंग को समझे, पेंटिंग में उनके द्वारा दिए गए संदेश को अपने नजरिए से जाने।उनकी पेंटिंग्स को यूरोपीय देशों में, रूस में और अमेरिका में भी प्रदर्शित किया गया है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।‘मन की बात’ शुरू करते हुए आज मन भरा हुआ है। 10 दिन पूर्व, भारत-माता ने अपने वीर सपूतों को खो दिया। इन पराक्रमी वीरों ने, हम सवा-सौ करोड़ भारतीयों की रक्षा में ख़ुद को खपा दिया। देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसलिए, इन हमारे वीर सपूतों ने, रात-दिन एक करके रखा था। पुलवामा के आतंकी हमले में, वीर जवानों की शहादत के बाद देश-भर में लोगों को, और लोगों के मन में, आघात और आक्रोश है।शहीदों और उनके परिवारों के प्रति, चारों तरफ संवेदनाएँ उमड़ पड़ी हैं। इस आतंकी हिंसा के विरोध में, जो आवेग आपके और मेरे मन में है, वही भाव, हर देशवासी के अंतर्मन में है और मानवता में विश्वास करने वाले विश्व के भी मानवतावादी समुदायों में है। भारत-माता की रक्षा में,अपने प्राण न्योछावर करने वाले, देश के सभी वीर सपूतों को, मैं नमन करता हूँ।यह शहादत, आतंक को समूल नष्ट करने के लिए हमें निरन्तर प्रेरित करेगी,हमारे संकल्प को और मजबूत करेगी। देश के सामने आयी इस चुनौती का सामना,हम सबको जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद और बाकिसभी मतभेदों को भुलाकर करना है ताकि आतंक के खिलाफ़ हमारे कदम पहले से कहीं अधिक दृढ़ हों, सशक्त हों और निर्णायक हों। हमारे सशस्त्र बल हमेशा ही अद्वितीय साहस और पराक्रम का परिचय देते आये हैं। शांति की स्थापना के लिए जहाँ उन्होंने अद्भुत क्षमता दिखायी है वहीँ हमलावरों को भी उन्हीं की भाषा में जबाव देने का काम किया है। आपने देखा होगा कि हमले के 100 घन्टे के भीतर ही किस प्रकार से कदम उठाये गये हैं। सेना ने आतंकवादियों और उनके मददगारों के समूल नाश का संकल्प ले लिया है। वीर सैनिकों की शहादत के बाद, मीडिया के माध्यम से उनके परिजनों की जो प्रेरणादायी बातें सामने आयी हैं उसने पूरे देश के हौंसले को और बल दिया है।बिहार के भागलपुर के शहीद रतन ठाकुर के पिता रामनिरंजन जी ने,दुःख की इस घड़ी में भी जिस ज़ज्बे का परिचय दिया है, वह हम सबको प्रेरित करता है।उन्होंने कहा कि वे अपने दूसरे बेटे को भी दुश्मनों से लड़ने के लिए भेजेंगे और जरुरत पड़ी तो ख़ुद भी लड़ने जाएँगे। ओड़िशा के जगतसिंह पुर के शहीद प्रसन्ना साहू की पत्नी मीना जी के अदम्य साहस को पूरा देश सलाम कर रहा है। उन्होंने अपने इकलौते बेटे को भी CRPF join कराने का प्रण लिया है। जब तिरंगे में लिपटे शहीद विजय शोरेन का शव झारखण्ड क��� गुमला पहुँचा तो मासूम बेटे ने यही कहा कि मैं भी फौज़ में जाऊँगा।इस मासूम का जज़्बा आज भारतवर्ष के बच्चे-बच्चे की भावना को व्यक्त करता है। ऐसी ही भावनाएँ, हमारे वीर, पराक्रमी शहीदों के घर-घर में देखने को मिल रही हैं।हमारा एक भी वीर शहीद इसमें अपवाद नहीं है, उनका परिवार अपवाद नहीं है। चाहे वो देवरिया के शहीद विजय मौर्य का परिवार हो, कांगड़ा के शहीद तिलकराज के माता-पिता हों या फिर कोटा के शहीद हेमराज का छः साल का बेटा हो – शहीदों के हर परिवार की कहानी,प्रेरणा से भरी हुई हैं। मैं युवा-पीढ़ी से अनुरोध करूँगा कि वो, इन परिवारों ने जो जज़्बा दिखाया है, जो भावना दिखायी है उसको जानें, समझने का प्रयास करें। देशभक्ति क्या होती है, त्याग-तपस्या क्या होती है – उसके लिए हमें इतिहास की पुरानी घटनाओं की ओर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। हमारी आँखों के सामने, ये जीते-जागते उदहारण हैं और यही उज्ज्वल भारत के भविष्य के लिए प्रेरणा का कारण हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आजादी के इतने लम्बे समय तक, हम सबको, जिस war memorial का इन्तजार था, वह अब ख़त्म होने जा रहा है।इसके बारे में देशवासियों की जिज्ञासा, उत्सुकता बहुत स्वाभाविक है।NarendraModiApp पर उडुपी, कर्नाटक के श्री ओंकार शेट्टी जी ने National War Memorial तैयार होने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की है। मुझे आश्चर्य भी होता था और पीड़ा भी कि भारत में कोई National War Memorial नहीं था। एक ऐसा मेमोरियल, जहाँ राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर जवानों की शौर्य-गाथाओं को संजो कर रखा जा सके। मैंने निश्चय किया कि देश में, एक ऐसा स्मारक अवश्य होना चाहिये।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ के लिए आपके हजारों पत्र और comment, मुझे अलग-अलग माध्यमों से पढ़ने को मिलते रहते हैं। इस बार जब मैं आपके comment पढ़ रहा था तब मुझे ‘आतिश मुखोपाध्याय जी’ की एक बहुत ही रोचक टिप्पणी मेरे ध्यान में आई। उन्होंने लिखा है कि वर्ष 1900 में 3 मार्च को, अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया था तब उनकी उम्र सिर्फ 25 साल की थी ये संयोग ही है कि 3 मार्च को ही जमशेदजी टाटा की जयंती भी है। और वे आगे लिखते हैं ये दोनों व्यक्तित्व पूरी तरह से दो अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं जिन्होंने झारखण्ड की विरासत और इतिहास को समृद्ध किया। ‘मन की बात’ में ‘बिरसा मुंडा’ और ‘जमशेदजी टाटा’ को श्रद्दांजलि देने का एक प्रकार से झारखण्ड के गौरवशाली इतिहास और विरासत को नमन् करने जैसा है। आतिश जी मैं आपसे सहमत हूँ। इन दो महान विभूतियों ने झारखण्ड का नहीं पूरे देश का नाम बढ़ाया है। पूरा देश उनके योगदान के लिए कृतज्ञ है। आज, अगर हमारे नौजवानों को मार्गदर्शन के लिए किसी प्रेरणादायी व्यक्तित्व की जरुरत है तो वह है भगवान‘बिरसा मुंडा’। अंग्रेजों ने छिप कर, बड़ी ही चालाकी से उन्हें उस वक़्त पकड़ा था जब वे सो रहे थे। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ऐसी कायरतापूर्ण कार्यवाही का सहारा क्यों लिया ? क्योंकि इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले अंग्रेज भी उनसे भयभीत रहते थे। भगवान‘बिरसा मुंडा’ ने सिर्फ अपने पारंपरिक तीर-कमान से ही बंदूकों और तोपों से लैस अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया था। दरअसल, जब लोगों को एक प्रेरणादायी नेतृत्व मिलता है तो फिर हथियारों की शक्ति पर लोगों की सामूहिक इच्छाशक्ति भारी पड़ती है। भगवान ‘बिरसा मुंडा’ ने अंग्रेजों से ना केवल राजनीतिक आज़ादी के लिए संघर्ष किया बल्कि आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। अपने छोटे से जीवन में उन्होंने ये सब कर दिखाया। वंचितों और शोषितों के अंधेरे से भरे जीवन में सूरज की तरह चमक बिखेरी। भगवान बिरसा मुंडा ने 25 वर्ष की अल्प आयु में ही अपना बलिदान दे दिया। बिरसा मुंडा जैसे भारत माँ के सपूत, देश के हर भाग में हुए है। शायद हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा होगा कि सदियों तक चली हुई आज़ादी की इस जंग में, किसी ने योगदान ना दिया हो। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इनके त्याग, शौर्य और बलिदान की कहानियाँ नई पीढ़ी तक पहुँची ही नहीं। अगर, भगवान ‘बिरसा मुंडा’ जैसे व्यक्तित्व ने हमें अपने अस्तित्व का बोध कराया तो जमशेदजी टाटा जैसी शख्सियत ने देश को बड़े-बड़े संस्थान दिए। जमशेदजी टाटा सही मायने में एक दूरदृष्टा थे, जिन्होंने ना केवल भारत के भविष्य को देखा बल्कि उसकी मजबूत नींव भी रखी। वे भलीभांति जानते थे कि भारत को science, technology और industry का hub बनाना भविष्य के लिए आवश्यक है। ये उनका ही vision था जिसके परिणामस्वरूप Tata Institute of Science की स्थापना हुई जिसे अब Indian Institute of Science कहा जाता है। यही नहीं उन्होंने Tata Steel जैसे कई विश्वस्तरीय संस्थानों को और उद्योगों की भी स्थापना की।‘जमशेदजी टाटा’ और ‘स्वामी विवेकानंद जी’ की मुलाकात अमेरिकी यात्रा के दौरान ship में हुई थी, तब ���न दोनों की चर्चा में एक महत्वपूर्ण topic भारत में science और technology के प्रचार-प्रसार से जुड़ा हुआ था। कहते हैं… इसी चर्चा से Indian Institute of Science की नींव पड़ी।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, हर साल की तरह इस बार भीपद्म अवार्ड को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता थी। आज हम एक न्यू इंडिया की ओर अग्रसर हैं। इसमें हम उन लोगों का सम्मान करना चाहते हैं जो grass-root level पर अपना कामनिष्काम भाव से कर रहे हैं। अपने परिश्रम के बल पर अलग-अलग तरीके से दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।दरअसल वे सच्चे कर्मयोगी हैं, जो जनसेवा, समाजसेवा और इन सबसे से बढ़कर राष्ट्रसेवा में निःस्वार्थ जुटे रहते हैं। आपने देखा होगा जब पद्म अवार्ड की घोषणा होती है तो लोग पूछते हैं कि ये कौन है ? एक तरह से इसे मैं बहुत बड़ी सफलता मानता हूँ क्योंकि ये वो लोग हैं जो T.V., Magazine या अख़बारों के front page पर नहीं हैं। ये चकाचौंध की दुनिया से दूर हैं, लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जो अपने नाम की परवाह नहीं करते बस जमीनी स्तर पर काम करने में विश्वास रखते हैं। ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ गीता के सन्देश को वो एक प्रकार से जीते हैं। मैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आपको बताना चाहता हूँ। ओडिशा के दैतारी नायक के बारे में आपने जरुर सुना होगा उन्हें ‘Canal Man of the Odisha’ यूँ ही नहीं कहा जाता, दैतारी नायक ने अपने गाँव में अपने हाथों से पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर तक नहर का रास्ता बना दिया। अपने परिश्रम से सिंचाई और पानी की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म कर दी। गुजरात के अब्दुल गफूर खत्री जी को ही लीजिए,उन्होंने कच्छ के पारंपरिक रोगन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का अद्भुत कार्य किया। वे इस दुर्लभ चित्रकारी को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का बड़ा कार्य कर रहे हैं। अब्दुल गफूर द्वारा बनाई गई ‘Tree of Life’ कलाकृति को ही मैंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उपहार में दिया था। पद्म पुरस्कार पाने वालों में मराठवाड़ा के शब्बीर सैय्यद गौ-माता के सेवक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने जिस प्रकार अपना पूरा जीवन गौमाता की सेवा में खपा दिया ये अपने आप में अनूठा है। मदुरै चिन्ना पिल्लई वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सबसे पहले तमिलनाडु में कलन्जियम आन्दोलन के जरिए पीड़ितों और शोषितों को सशक्त करने का प्रयास किया। साथ ही समुदाय आधारित लघु वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत की। अमेरिका की Tao Porchon-Lynch के बारे में सुनक��� आप सुखद आश्चर्य से भर जाएंगे।Lynch आज योग की जीती-जागती संस्था बन गई है।सौ वर्ष की उम्र में भी वे दुनिया भर के लोगों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैंऔर अब तक डेढ़ हज़ार लोगों को योग शिक्षक बना चुकी हैं। झारखण्ड में ‘Lady Tarzan’ के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया उन्होंने न केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया। ये जमुना जी के परिश्रम का ही प्रताप है कि आज गाँववाले हर बच्चे के जन्म पर 18 पेड़ और लड़की की शादी पर 10 पेड़ लगाते हैं। गुजरात की मुक्ताबेन पंकजकुमार दगली की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी, खुद दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के उत्थान के लिए जो कार्य किए, ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है। चक्षु महिला सेवाकुन्ज नाम की संस्था की स्थापना कर वे नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के पुनीत कार्य में जुटी हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की किसान चाची, यानि राजकुमारी देवी की कहानी बहुत ही प्रेरक है। महिला सशक्तिकरण और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने एक मिसाल पेश की है। किसान चाची ने अपने इलाके की 300 महिलाओं को ‘Self Help Group’ से जोड़ा और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गाँव की महिलाओं को खेती के साथ ही रोज़गार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण दिया। खास बात यह है कि उन्होंने खेती के साथ technology को जोड़ने का काम किया और मेरे देशवासियों, शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि इस वर्ष जो पद्म पुरस्कार दिए गए उसमें 12 किसानों को पद्म पुरस्कार मिले हैं। आमतौर पर कृषि जगत से जुड़े हुए बहुत ही कम लोग और प्रत्यक्ष किसानी करने वाले बहुत ही कम लोग पद्मश्री की सूची में आये हैं। ये अपने आप में, ये बदलते हुए हिन्दुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आज आप सब के साथ एक ऐसे दिल को छूने वाले अनुभव के बारे में बात करना चाहता हूँ जो पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ। आजकल देश में जहाँ भी जा रहा हूँ, मेरा प्रयास रहता है कि ‘आयुष्मान भारत’ की योजना PM-JAY यानि PM जन आरोग्य योजना के कुछ लाभार्थियों से मिलूं। कुछ लोगों से बातचीत करने का अवसर मिला है। अकेली माँ उसके छोटे बच्चे पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पा रही ���ी। इस योजना से उसका इलाज हुआ और वो स्वस्थ हो गई। घर का मुखिया, मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार की देखभाल करने वाला accident का शिकार हो गया, काम नहीं कर पा रहा था – इस योजना से उसको लाभ मिला और वो पुनः स्वस्थ हुआ, नई ज़िन्दगी जीने लगा।
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+ कुछ दिन पहले दिल्ली में ‘परीक्षा पे चर्चा’ का एक बहुत बड़ा आयोजन Town Hall के format में हुआ। इस Town Hall कार्यक्रम में मुझे technology के माध्यम से, देश-विदेश के करोड़ों students के साथ, उनके अभिभावकों के साथ, teachers के साथ, बात करने का अवसर मिला। ‘परीक्षा पे चर्चा’ इसकी एक विशेषता यह रही कि परीक्षा से जुड़ें विभिन्न विषयों पर खुल कर बातचीत हुई। कई ऐसे पहलू सामने आए जो निश्चित रूप से विद्यार्थियों के लिए लाभदायक हो सकते हैं। सभी विद्यार्थी, उनके शिक्षक, माता-पिता YouTube पर इस पूरे कार्यक्रम की recording देख सकते हैं,तो आने वाली परीक्षा के लिए मेरे सभी exam warriors को ढ़ेरो शुभकामनाएँ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की बात हो और त्यौहार की बात न हो। ऐसा हो ही नहीं सकता। शायद ही हमारे देश में कोई दिन ऐसा नहीं होता है, जिसका महत्व ही न हो, जिसका कोई त्यौहार न हो। क्योंकि हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति की ये विरासत हमारे पास है। कुछ दिन बाद महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है और इस बार तो शिवरात्रि सोमवार को है और जब शिवरात्रि सोमवार को हो तो उसका एक विशेष महत्व हमारे मन-मंदिर में छा जाता है। इस शिवरात्रि के पावन पर्व पर मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं।
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+ दोस्तों, चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है। अगले दो महीने, हम सभी चुनाव की गहमा-गहमी में व्यस्त होगें। मैं स्वयं भी इस चुनाव में एक प्रत्याशी रहूँगा। स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुएअगली ‘मन की बात’ मई महीने के आखरी रविवार को होगी। यानि कि मार्च महीना, अप्रैल महीना और पूरा मई महीना ये तीन महीने की सारी हमारी जो भावनाएँ हैं उन सबको मैं चुनाव के बाद एक नए विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की ताकत के साथ फिर एक बार ‘मन की बात’ के माध्यम से हमारी बातचीत के सिलसिले का आरम्भ करूँगा और सालों तक आपसे ‘मन की बात’ करता रहूँगा। फिर एक बार आप सबका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ।
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+ जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा था, राजनेताओं तक सीमित नहीं रहा था, जेल के सलाखों तक, आन्दोलन सिमट नहीं गया था। जन-जन के दिल में एक आक्रोश था। खोये हुए लोकतंत्र की एक तड़प थी। दिन-रात जब समय पर खाना खाते हैं तब भूख क्या होती है इसका पता नहीं होता है वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकारों की क्या मज़ा है वो तो तब पता चलता है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेता है।आपातकाल में, देश के हर नागरिक को लगने लगा था कि उसका कुछ छीन लिया गया है। जिसका उसने जीवन में कभी उपयोग नहीं किया था वो भी अगर छिन गया है तो उसका एक दर्द, उसके दिल में था और ये इसलिए नहीं था कि भारत के संविधान ने कुछ व्यवस्थायें की हैं जिसके कारण लोकतंत्र पनपा है।समाज व्यवस्था को चलाने के लिए, संविधान की भी जरुरत होती है, कायदे, कानून, नियमों की भी आवश्यकता होती है, अधिकार और कर्तव्य की भी बात होती है लेकिन, भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हमारे लिए, कानून नियमों से परे लोकतंत्र हमारे संस्कार हैं, लोकतंत्र हमारी संस्कृति है, लोकतंत्र हमारी विरासत है और उस विरासत को लेकरके हम पले-बड़े लोग हैं और इसलिए उसकी कमी देशवासी महसूस करते हैं और आपातकाल में हमने अनुभव किया था और इसीलिए देश, अपने लिए नहीं, एक पूरा चुनाव अपने हित के लिए नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए आहूत कर चुका था। शायद, दुनिया के किसी देश में वहाँ के जन-जन ने, लोकतंत्र के लिए, अपने बाकी हकों की, अधिकारों की,आवश्यकताओं की, परवाह ना करते हुए सिर्फ लोकतंत्र के लिए मतदान किया हो,तो ऐसा एक चुनाव, इस देश ने 77 (सतत्तर) में देखा था। हाल ही में लोकतंत्र का महापर्व, बहुत बड़ा चुनाव अभियान, हमारे देश में संपन्न हुआ। अमीर से लेकर ग़रीब, सभी लोग इस पर्व में खुशी से हमारे देश के भविष्य का फैसला करने के लिए तत्पर थे।
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+ गुजरात में वांचे गुजरात अभियान एक सफल प्रयोग रहा। लाखों की संख्या में हर आयु वर्ग के व्यक्ति ने पुस्तकें पढ़ने के इस अभियान में हिस्सा लिया था।आज की digital दुनिया में, Google गुरु के समय में, मैं आपसे भी आग्रह करूँगा कि कुछ समय निकालकर अपने daily routine में किताब को भी जरुर स्थान दें। आप सचमुच में बहुत enjoy करेंगे और जो भी पुस्तक पढ़े उसके बारे में NarendraModi App पर जरुर लिखें ताकि ‘मन की बात’ के सारे श्रोता भी उसके बारे में जान पायेंगे।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे इस बात की ख़ुशी है कि हमारे देश के लोग उन मुद्दों के बारे में सोच रहे हैं, जो न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी बड़ी चुनौती है। मैं NarendraModi App और Mygov पर आपके Comments पढ़ रहा था और मैंने देखा कि पानी की समस्या को लेकर कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा है। बेलगावी (Belagavi)के पवन गौराई, भुवनेश्वर के सितांशू मोहन परीदा इसके अलावा यश शर्मा, शाहाब अल्ताफ और भी कई लोगों ने मुझे पानी से जुड़ी चुनौतियों के बारे में लिखा है। पानी का हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है। ऋग्वेद के आपः सुक्तम् में पानी के बारे में कहा गया है :
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+ बिरसा मुंडा की धरती, जहाँ प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना संस्कृति का हिस्सा है। वहाँ के लोग, एक बार फिर जल संरक्षण के लिए अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। मेरी तरफ से, सभी ग्राम प्रधानों को, सभी सरपंचों को, उनकी इस सक्रियता के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें। देशभर में ऐसे कई सरपंच हैं, जिन्होंने जल संरक्षण का बीड़ा उठा लिया है। एक प्रकार से पूरे गाँव का ही वो अवसर बन गया है। ऐसा लग रहा है कि गाँव के लोग, अब अपने गाँव में, जैसे जल मंदिर बनाने के स्पर्धा में जुट गए हैं। जैसा कि मैंने कहा, सामूहिक प्रयास से बड़े सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। पूरे देश में जल संकट से निपटने का कोई एक फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता है। इसके लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग तरीके से, प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन सबका लक्ष्य एक ही है, और वह है पानी बचाना, जल संरक्षण।
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+ पंजाब में drainage lines को ठीक किया जा रहा है। इस प्रयास से water logging की समस्या से छुटकारा मिल रहा है। तेलंगाना के Thimmaipalli (थिमाईपल्ली) में टैंक के निर्माण से गाँवों के लोगों की जिंदगी बदल रही है। राजस्थान के कबीरधाम में, खेतों में बनाए गए छोटे तालाबों से एक बड़ा बदलाव आया है। मैं तमिलनाडु के वेल्लोर (Vellore)में एक सामूहिक प्रयास के बारे में पढ़ रहा था जहाँ नागनदी (Naagnadhi)को पुनर्जीवित करने के लिए 20 हजार महिलाएँ एक साथ आई। मैंने गढ़वाल की उन महिलाओं के बारे में भी पढ़ा है, जो आपस में मिलकर rainwater harvesting पर बहुत अच्छा काम कर रही हैं। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार के कई प्रयास किये जा रहे हैं और जब हम एकजुट होकर, मजबूती से प्रयास करते हैं तो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं। जब जन-जन जुड़ेगा, जल बचेगा। आज ‘मन की बात’ के ���ाध्यम से मैं देशवासियों से 3 अनुरोध कर रहा हूँ।
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+ मेरा पहला अनुरोध है – जैसे देशवासियों ने स्वच्छता को एक जन आंदोलन का रूप दे दिया। आइए, वैसे ही जल संरक्षण के लिए एक जन आंदोलन की शुरुआत करें। हम सब साथ मिलकर पानी की हर बूंद को बचाने का संकल्प करें और मेरा तो विश्वास है कि पानी परमेश्वर का दिया हुआ प्रसाद है, पानी पारस का रूप है। पहले कहते थे कि पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। मैं कहता हूँ, पानी पारस है और पारस से, पानी के स्पर्श से, नवजीवन निर्मित हो जाता है। पानी की एक-एक बूंद को बचाने के लिए एक जागरूकता अभियान की शुरुआत करें। इसमें पानी से जुड़ी समस्याओं के बारे में बतायें, साथ ही, पानी बचाने के तरीकों का प्रचार-प्रसार करें। मैं विशेष रूप से अलग-अलग क्षेत्र की हस्तियों से, जल संरक्षण के लिए,innovative campaigns का नेतृत्व करने का आग्रह करता हूँ। फिल्म जगत हो, खेल जगत हो, मीडिया के हमारे साथी हों, सामाजिक संगठनों से जुड़ें हुए लोग हों, सांस्कृतिक संगठनों से जुड़ें हुए लोग हों, कथा-कीर्तन करने वाले लोग हों, हर कोई अपने-अपने तरीके से इस आंदोलन का नेतृत्व करें। समाज को जगायें, समाज को जोड़ें, समाज के साथ जुटें। आप देखिये, अपनी आंखों के सामने हम परिवर्तन देख पायेंगें।
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+ देशवासियों से मेरा दूसरा अनुरोध है। हमारे देश में पानी के संरक्षण के लिए कईपारंपरिकतौर-तरीके सदियों से उपयोग में लाए जा रहे हैं। मैं आप सभी से, जल संरक्षण के उन पारंपरिक तरीकों को share करने का आग्रह करता हूँ। आपमें से किसी को अगर पोरबंदर,पूज्य बापू के जन्म स्थान पर जाने का मौका मिला होगा तो पूज्य बापू के घर के पीछे ही एक दूसरा घर है, वहाँ पर, 200 साल पुराना पानी काटांका(Water Storage Tank) है और आज भी उसमें पानी है और बरसात के पानी को रोकने की व्यवस्था है, तो मैं, हमेशा कहता था कि जो भी कीर्ति मंदिर जायें वो उस पानी के टांके को जरुर देखें। ऐसे कई प्रकार के प्रयोग हर जगह पर होंगे।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी को याद होगा कि 29 अगस्त को ‘राष्ट्र खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर हम देश भर में ‘FIT INDIA MOVEMENT’ launch करने वाले हैं। खुद को fit रखना है। देश को fit बनाना है। हर एक के लिए बच्चे, बुजुर्ग, युवा, महिला सब के लिए ये बड़ा interesting अभियान होगा और ये आपका अपना होगा। लेकिन उसकी बारीकियां आज मैं बताने नहीं जा रहा हूँ। 29 अगस्त का इंतजार कीजिये। मैं खुद उस दिन विस्तार से विषय में बताने वाला हूँ और आपको जोड़े बिना रहने वाला नहीं हूँ। क्योंकि आपको मैं fit देखना चाहता हूँ। आपको fitness के लिए जागरूक बनाना चाहता हूँ और fit India के लिए देश के लिए हम मिल करके कुछ लक्ष्य भी निर्धारित करें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे आपका इंतजार रहेगा 29 अगस्त को fit India में। सितम्बर महीने में ‘पोषण अभियान’ में। और विशेषकर 11 सितम्बर से 02 अक्टूबर ‘स्वच्छता अभियान’ में। और 02 अक्टूबर totally dedicated plastic के लिए। Plastic से मुक्ति पाने के लिए हम सब, घर, घर के बाहर सब जगह से पूरी ताकत से लगेंगे और मुझे पता है ये सारे अभियान social media में तो धूम मचा देंगे। आइये, एक नए उमंग, नए संकल्प, नई शक्ति के साथ चल पड़ें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | साथियो, आज की ‘मन की बात’ में, देश की उस महान शख्सियत, मैं, उनकी भी बात करूँगा | हम सभी हिन्दुस्तानवासियों के दिल में, उनके प्रति बहुत सम्मान है, बहुत लगाव है | शायद ही, हिन्दुस्तान का कोई नागरिक होगा, जो, उनके प्रति आदर ना रखता हो, सम्मान ना करता हो | वो उम्र में हम सभी से बहुत बड़ी हैं, और देश के अलग-अलग पड़ावों, अलग-अलग दौर की, वो साक्षी हैं | हम उन्हें दीदी कहते हैं – ‘लता दीदी’ | वो, इस 28 सितम्बर को 90 वर्ष की हो रही हैं | विदेश यात्रा पर निकलने से पहले, मुझे, दीदी से फ़ोन पर बात करने का सौभाग्य मिला था | ये बातचीत वैसे ही थी, जैसे, बहुत दुलार में, छोटा भाई, अपनी बड़ी बहन से बात करता है | मैं, इस तरह के व्यक्तिगत संवाद के बारे में, कभी बताता नहीं, लेकिन आज चाहता हूँ, कि, आप भी, लता दीदी की बातें सुनें, उस बातचीत को सुनें | सुनिये, कि कैसे, आयु के इस पड़ाव में भी लता दीदी, देश से जुड़ी तमाम बातों के लिये उत्सुक हैं, तत्पर हैं, और जीवन का संतोष भी, भारत की प्रगति में है, बदलते हुई भारत में है, नई ऊंचाईयों को छू रहे भारत में है |
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+ रमेश जी, आपकी माताजी को मेरी प्रणाम | Twitter पर active रहने वाली गीतिका स्वामी का कहना है कि उनके लिये मेजर खुशबू कंवर ‘भारत की लक्ष्मी है’ जो bus conductor की बेटी है और उन्होंने असम Rifles की All – Women टुकड़ी का नेतृत्व किया था | कविता तिवारी जी के लिए तो भारत की लक्ष्मी, उनकी बेटी हैं, जो उनकी ताकत भी है | उन्हें गर्व है कि उनकी बेटी बेहतरीन painting करती है | उसने CLAT की परीक्षा में बहुत अच्छी rank भी हासिल की है | वहीं मेघा जैन जी ने लिखा है कि Ninety Two Year की, 92 साल की एक बुजुर्ग महिला, वर्षों से ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को मुफ्त में पानी पिलाती है | मेघा जी, इस भारत की लक्ष्मी की विनम्रता और करुणा से काफी प्रेरित हुई हैं | ऐसी अनेक कहानियाँ लोगों ने share की हैं | आप जरुर पढ़िये, प्रेरणा लीजिये और खुद भी ऐसा ही कुछ अपने आस-पास से share कीजिये और मेरा, भारत की इन सभी लक्ष्मियों को आदरपूर्वक नमन है |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 17वीं शताब्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री साँची होनम्मा (Sanchi Honnamma), उन्होंने, 17वीं शताब्दी में, कन्नड़ भाषा में, एक कविता लिखी थी | वो भाव, वो शब्द, भारत की हर लक्ष्मी, ये जो हम बात कर रहे हैं ना ! ऐसा लगता है, जैसे कि उसका foundation 17वीं शताब्दी में ही रच दिया गया था | कितने बढ़िया शब्द, कितने बढ़िया भाव और कितने उत्तम विचार, कन्नड़ भाषा की इस कविता में हैं |
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+ मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, मुझे विश्वास है कि 31 अक्तूबर की तारीख़ आप सबको अवश्य याद होगी | यह दिन भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म जयंती का है जो देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले महानायक थे | सरदार पटेल में जहाँ लोगों को एकजुट करने की अद्भुत क्षमता थी, वहीँ, वे उन लोगों के साथ भी तालमेल बिठा लेते थे जिनके साथ वैचारिक मतभेद होते थे | सरदार पटेल बारीक़-से-बारीक़ चीजों को भी बहुत गहराई से देखते थे, परखते थे | सही मायने में, वे ‘Man of detail’ थे | इसके साथ ही वे संगठन कौशल में भी निपुण थे | योजनाओं को तैयार करने और रणनीति बनाने में उन्हें महारत हासिल थी | सरदार साहब की कार्यशैली के विषय में जब पढ़ते हैं, सुनते हैं, तो पता चलता है कि उनकी planning कितनी जबरदस्त होती थी | 1921 में Nineteen Twenty One में अहमदाबाद में कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने के लिए देशभर से हजारों की संख्या में delegates पहुँचने वाले थे | अधिवेशन की सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी सरदार पटेल पर थी | इस अवसर का उपयोग उन्होंने शहर में पानी supply के Network को भी सुधारने के लिए किया | यह सुनिश्चित किया कि किसी को भी पानी की दिक्कत न हो | यहीं नही, उन्हें, इस बात की भी फ़िक्र थी कि अधिवेशन स्थल से किसी delegate का सामान या उसके जूते चोरी न हो जाएँ और इसे ध्यान में रखते हुए सरदार पटेल ने जो किया वो जानकर आपको बहुत आश्चर्य होगा | उन्होंने किसानों से संपर्क किया और उनसे खादी के बैग बनाने का आग्रह किया | किसानों ने बैग बनाये और प्रतिनिधियों को बेचे | इन bags में जूते डाल, अपने साथ रखने से delegates के मन से जूते चोरी होने की tension ख़त्म हो गई | वहीँ दूसरी तरफ खादी की बिक्री में भी काफ़ी वृद्धि हुई | संविधान सभा में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के लिए हमारा देश, सरदार पटेल का सदैव कृतज्ञ रहेगा | उन्होंने मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिससे, जाति और संप्रदाय के आधार पर होने वाले किसी भी भेदभाव की गुंजाइश न बचे |
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+ तरन्नुम खान : सर, मैं आपको बताना चाहूंगी कि मेरा सबसे अच्छा अनुभव जो रहा वो ‘एक भारत-श्रेष्ठभारत’ कैम्प में रहा था। ये हमारा कैम्प अगस्त में हुआ था जिसमें NER‘North Eastern Region’ के बच्चे भी आये थे। उन Cadets के साथ हम 10 दिन के लिये रहे। हमने उनका रहन-सहन सीखा। हमने देखा कि उनकी language क्या है। उनका tradition, उनका culture हमने उनसे ऐसी कई सारी चीजें सीखी। जैसेvaizomeका मतलब होता है… हेलो …. वैसे ही, हमारी cultural night हुई थी,उसके अन्दर उन्होंने हमें अपना dance सिखाया, तेहरा कहते हैं उनके dance को।और उन्होंने मुझे ‘मेखाला’(mekhela) पहनना भी सिखाया। मैं सच बताती हूँ , उसके अन्दर बहुत खूबसूरत हम सभी लग रहे थे दिल्ली वाले as well as हमारे नागालैंड के दोस्त भी। हम उनको दिल्ली दर्शन पर भी लेकर गये थे ,जहां हमने उनको National War Memorial और India Gate दिखाया । वहां पर हमने उनको दिल्ली की चाट भी खिलायी, भेल-पूरी भी खिलाईलेकिन उनको थोड़ा तीखा लगा क्योंकि जैसा उन्होंने बताया हमको कि वो ज्यादातर soup पीना पसंद करते हैं, थोड़ी उबली हुई सब्जियां खाते हैं, तो उनको खाना तो इतना भाया नहीं, लेकिन, उसके अलावा हमने उनके साथ काफी picturesखींची, काफी हमने अनुभव share करे अपने।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, हम अलग-अलग colleges में, universities में, schools में पढ़ते तो हैं, लेकिन, पढाई पूरी होने के बाद alumni meet एक बहुत ही सुहाना अवसर होता है और alumni meet,ये सब नौजवान मिलकर के पुरानी यादों में खो जाते हैं,जिनकी, 10 साल, 20 साल, 25 साल पीछे चली जाती हैं।लेकिन, कभी-कभी ऐसी alumni meet, विशेष आकर्षण का कारण बन जाती है, उस पर ध्यान जाता है और देशवासियों का भी ध्यान उस तरफ जाना बहुत जरुरी होता है। Alumni meet, दरअसल, पुराने दोस्तों के साथ मिलना, यादों को ताज़ा करना, इसका अपना एक अलग ही आनंद है और जब इसके साथ shared purpose हो, कोई संकल्प हो, कोई भावात्मक लगाव जुड़ जाए, फिर तो, उसमें कई रंग भर जाते हैं।आपने देखा होगा कि alumni group कभी-कभी अपने स्कूलों के लिए कुछ-न-कुछ योगदान देते हैं।कोई computerized करने के लिए व्यवस्थायें खड़ी कर देते हैं,कोई अच्छी library बना देते हैं, कोई अच्छी पानी की सुविधायें खड़ी कर देते हैं,कुछ लोग नए कमरे बनाने के लिए करते हैं,कुछ लोग sports complex के लिए करते हैं।कुछ-न-कुछ कर लेते हैं।उनको आनंद आता है कि जिस जगह पर अपनी ज़िन्दगी बनी उसके लिए जीवन में कुछ करना, ये, हर किसी के मन में रहता है और रहना भी चाहिएऔर इसके लिए लोग आगे भी आते हैं।लेकिन, मैं आज किसी एक विशेष अवसर को आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ I अभी पिछले दिनों, मीडिया में, बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के भैरवगंज हेल्थ सेंटर की कहानी जब मैंने सुनी, मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं आप लोगों को बताये बिना रह नहीं सकता हूँ I इस भैरवगंज Healthcentre के, यानि, स्वास्थ्य केंद्र में, मुफ्त में, health check up करवाने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोगों की भीड़ जुट गई I अब, ये कोई बात सुन करके, आपको, आश्चर्य नहीं होगा। आपको लगता है, इसमें क्या नई बात है?आये होंगे लोग ! जी नहीं! बहुत कुछ नया है।ये कार्यक्रम सरकार का नहीं था, न ही सरकार का initiative था।ये वहां के K.R High School, उसके जो पूर्व-छात्र थे, उनकी जो Alumni Meet थी, उसके तहत उठाया गया कदम था, और, इसका नाम दिया था ‘संकल्प Ninety Five’। ‘संकल्प Ninety Five’ का अर्थ है- उस High School के 1995 (Nineteen Ninety Five) Batch के विद्यार्थियों का संकल्प I दरअसल, इस Batch के विद्यार्थियों ने एक Alumni Meet रखी और कुछ अलग करने के लिए सोचा Iइसमें पूर्व-छात्रों ने, समाज के लिए, कुछ करने की ठानी और उन्होंने जिम्मा उठाया Public Health Awareness का I‘संकल्प Ninety Five’ की इस मुहिम में बेतिया के सरकारी Medical College और कई अस्पताल भी जुड़ गये।उसके बाद तो, जैस���, जन-स्वास्थ्य को लेकर एक पूरा अभियान ही चल पड़ा।निशुल्क जाँच हो, मुफ्त में दवायें देना हो, या फिर, जागरूकता फ़ैलाने का, ‘संकल्प Ninety Five’ हर किसी के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है I हम अक्सर ये बात कहते हैं कि जब देश का हर नागरिक एक कदम आगे बढ़ता है, तो ये देश, 130 करोड़ कदम आगे बढ़ जाता है I ऐसी बातें जब समाज में प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलती हैं तो हर किसी को आनंद आता है, संतोष मिलता है और जीवन में कुछ करने की प्ररेणा भी मिलती है I एक तरफ, जहाँ बिहार के बेतिया में,पूर्व-छात्रों के समूह नेस्वास्थ्य-सेवा का बीड़ा उठाया, वहीं उत्तर प्रदेश के फूलपुर की कुछ महिलाओं ने अपनी जीवटता से, पूरे इलाके को प्रेरणा दी है। इन महिलाओं ने साबित किया है कि अगर एकजुटता के साथ कोई संकल्प ले तो फिर परिस्थितियों को बदलने से कोई रोक नहीं सकता। कुछ समय पहले तक, फूलपुर की ये महिलाएँ आर्थिक तंगी और गरीबी से परेशान थीं, लेकिन, इनमें अपने परिवार और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा था I इन महिलाओं ने, कादीपुर के स्वंय सहायता समूह,Women Self Help Group उसके साथ जुड़कर चप्पल बनाने का हुनर सीखा, इससे इन्होंने, न सिर्फ अपने पैरों में चुभे मजबूरी के कांटे को निकाल फेंका, बल्कि, आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का सम्बल भी बन गईं I ग्रामीण आजीविका मिशन की मदद से अब तो यहाँ चप्पल बनाने काplant भीस्थापित हो गया है, जहाँ, आधुनिक मशीनों से चप्पलें बनाई जा रही हैं। मैं विशेष रूप से स्थानीय पुलिस और उनके परिवारों को भी बधाई देता हूँ, उन्होंने, अपने लिए और अपने परिजनों के लिए, इन महिलाओं द्वारा बनाई गई चप्पलों को खरीदकर, इनको प्रोत्साहित किया है।आज, इन महिलाओं के संकल्प से न केवल उनके परिवार के आर्थिक हालत मजबूत हुए हैं, बल्कि, जीवन स्तर भी ऊँचा उठा है I जब फूलपुर के पुलिस के जवानों की या उनके परिवारजनों की बातें सुनता हूँ तो आपको याद होगा कि मैंने लाल किले से 15 अगस्त को देशवासियों को एक बात के लिए आग्रह किया था और मैंने कहा था कि हम देशवासी local खरीदने का आग्रह रखें।आज फिर से एक बार मेरा सुझाव है, क्या हम स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों को प्रोत्साहन दे सकते हैं? क्या अपनी खरीदारी में उन्हें प्राथमिकता दे सकतें हैं? क्या हम Local Products को अपनी प्रतिष्ठा और शान से जोड़ सकते हैं? क्या हम इस भावना के साथ अपने साथी देशवासियों के लिए समृद्धि लाने का माध्यम बन सकते हैं? साथियो, महात्मा गाँधी ने, स्वदेशी की इस भावना को, एक ऐसे दीपक के रूप में देखा, जो, लाखों लोगों के जीवन को रोशन करता हो। ग़रीब-से-ग़रीब के जीवन में समृद्धि लाता हो। सौ-साल पहले गाँधी जी ने एक बड़ा जन-आन्दोलन शुरू किया था। इसका एक लक्ष्य था, भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना। आत्मनिर्भर बनने का यही रास्ता गाँधी जी ने दिखाया था। दो हज़ार बाईस (2022) में, हम हमारी आज़ादी के 75 साल पूरे करेंगे।जिस आज़ाद भारत में हम सांस ले रहे हैं, उस भारत को आज़ाद कराने के लिए लक्ष्यावधि सपूतोंने, बेटे-बेटियों ने, अनेक यातनाएं सही हैं, अनेकों ने प्राण की आहुति दी है।लक्ष्यावधि लोगों के त्याग, तपस्या, बलिदान के कारण, जहाँ आज़ादी मिली, जिस आज़ादी का हम भरपूर लाभ उठा रहे हैं, आज़ाद ज़िन्दगी हम जी रहे हैं और देश के लिए मर-मिटने वाले, देश के लिए जीवन खपाने वाले, नामी-अनामी, अनगिनत लोग, शायद, मुश्किल से हम, बहुत कम ही लोगों के नाम जानते होंगे, लेकिन, उन्होंने बलिदान दिया – उस सपनों को ले करके, आज़ाद भारत के सपनों को ले करके – समृद्ध, सुखी, सम्पन्न, आज़ाद भारत के लिए !
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, क्या हम संकल्प कर सकते हैं, कि 2022, आज़ादी के 75 वर्ष हो रहे हैं, कम-से-कम, ये दो-तीन साल, हम स्थानीय उत्पाद खरीदने के आग्रही बनें? भारत में बना, हमारे देशवासियों के हाथों से बना, हमारे देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो, ऐसी चीजों को, हम, खरीद करने का आग्रह कर सकते हैं क्या ? मैं लम्बे समय के लिए नहीं कहता हूँ, सिर्फ 2022 तक, आज़ादी के 75 साल हो तब तक। और ये काम, सरकारी नहीं होना चाहिए, स्थान-स्थान पर नौजवान आगे आएं, छोटे-छोटे संगठन बनायें, लोगों को प्रेरित करें, समझाएं और तय करें – आओ, हम लोकल खरीदेंगे, स्थानीय उत्पादों पर बल देंगे, देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो – वही, मेरे आज़ाद भारत का सुहाना पल हो, इन सपनों को लेकर के हम चलें।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों , मुझे सुझाव बहुत आते हैं लेकिन मैं कह सकता हूँ कि इस प्रकार का सुझाव शायद पहली बार मेरे पास आया है।वैसे विज्ञान पर, कई पहलुओं पर बातचीत करने का मौका मिला है।खासकर के युवा पीढ़ी के आग्रह पर मुझे बातचीत करने का अवसर मिला है। लेकिन ये विषय तो अछूता ही रहा था और अभी 26 तारीख को ही सूर्य-ग्रहण हुआ है तो लगता है कि शायद इस विषय में आपको भी कुछ न कुछ रूचि रहेगी।तमाम देशवासियों , विशेष त��र पर मेरे युवा-साथियों की तरह मैं भी,जिस दिन, 26 तारीख को, सूर्य-ग्रहण था, तो देशवासियों की तरह मुझे भी और जैसे मेरी युवा-पीढ़ी के मन में जो उत्साह था वैसे मेरे मन में भी था, और मैं भी, सूर्य-ग्रहण देखना चाहता था, लेकिन, अफसोस की बात ये रही कि उस दिन, दिल्ली में आसमान में बादल छाए हुए थे और मैं वो आनन्द तो नहीं ले पाया, हालाँकि, टी.वी पर कोझीकोड और भारत के दूसरे हिस्सों में दिख रहे सूर्य-ग्रहण की सुन्दर तस्वीरें देखने को मिली। सूर्य चमकती हुई ring के आकार का नज़र आ रहा था।और उस दिन मुझे कुछ इस विषय के जो experts हैं उनसे संवाद करने का अवसर भी मिला और वो बता रहे थे कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि चंद्रमा, पृथ्वी से काफी दूर होता है और इसलिए, इसका आकार, पूरी तरह से सूर्य को ढक नहीं पाता है।इस तरह से, एक ring का आकार बन जाता है।यह सूर्य ग्रहण, एक annular solar eclipse जिसे वलय-ग्रहण या कुंडल-ग्रहण भी कहते हैं।ग्रहण हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हम पृथ्वी पर रहकर अंतरिक्ष में घूम रहे हैं । अंतरिक्ष में सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों जैसे और खगोलीय पिंड घूमते रहते हैं । चंद्रमा की छाया से ही हमें, ग्रहण के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं । साथियो, भारत में Astronomy यानि खगोल-विज्ञान का बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है । आकाश में टिमटिमाते तारों के साथ हमारा संबंध, उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी सभ्यता है । आप में से बहुत लोगों को पता होगा कि भारत के अलग-अलग स्थानों में बहुत ही भव्य जंतर-मंतर हैं , देखने योग्य हैं । और, इस जंतर-मंतर का Astronomy से गहरा संबंध है । महान आर्यभट की विलक्षण प्रतिभा के बारे में कौननहीं जानता ! अपनी काल -क्रिया में उन्होंने सूर्य-ग्रहण के साथ-साथ, चन्द्र-ग्रहण की भी विस्तार से व्याख्या की है । वो भी philosophical और mathematical, दोनों ही angle से की है । उन्होंने mathematically बताया कि पृथ्वी की छाया या shadow की size का calculation कैसे कर सकते हैं।उन्होंने ग्रहण के duration और extent को calculate करने की भी सटीक जानकारियाँ दी। भास्कर जैसे उनके शिष्यों ने इस spirit को और इस knowledge को आगे बढ़ाने के लिएभरसक प्रयास किये।बाद में, चौदहवीं–पंद्रहवीं सदी में, केरल में, संगम ग्राम के माधव, इन्होंने ब्रहमाण्ड में मौजूद ग्रहों की स्थिति की गणना करने के लिए calculus का उपयोग किया।रात में दिखने वाला आसमान, सिर्फ, जिज्ञासा का ही विषय नहीं था बल्कि गणित की दृष्टि से सोचने वालों और वैज्ञानिकों के लिए एक महवपूर्ण sourceथा।कुछ वर्ष पहले मैंने ‘Pre-Modern Kutchi (कच्छी) Navigation Techniques and Voyages’, इस पुस्तक का अनावरण किया था । ये पुस्तक एक प्रकार से तो ‘मालम (maalam) की डायरी’ है । मालम, एक नाविक के रूप में जो अनुभव करते थे, उन्होंने, अपने तरीक़े से उसको डायरी में लिखा था । आधुनिक युग में उसी मालम की पोथी को और वो भी गुजराती पांडुलिपियों का संग्रह, जिसमें, प्राचीन navigation technology का वर्णन करती है और उसमें बार-बार ‘मालम नी पोथी’ में आसमान का, तारों का, तारों की गति का, वर्णन किया है, और ये, साफ बताया है कि समन्दर में यात्रा करते समय, तारों के सहारे, दिशा तय की जाती है। Destination पर पहुँचने का रास्ता, तारे दिखाते हैं ।
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+ हमारे देश के Planetarium, Night Sky को समझने के साथ Star Gazing को शौक के रूप में विकसित करने के लिए भी motivate करते हैं।कई लोग Amateur telescopes को छतों या Balconies में लगाते हैं। Star Gazing से Rural Camps और Rural Picnic को भी बढ़ावा मिल सकता है। और कई ऐसे school-colleges हैंजो Astronomy के club भी गठन करते हैं और इस प्रयोग को आगे भी बढ़ाना चाहिए।
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+ आज 26 जनवरी है | गणतंत्र पर्व की अनेक-अनेक शुभकामनायें | 2020 का ये प्रथम ‘मन की बात’का मिलन है | इस वर्ष का भी यह पहला कार्यक्रम है, इस दशक का भी यह पहला कार्यक्रम है | साथियो, इस बार ‘गणतंत्र दिवस’ समारोह की वजह से आपसे ‘मन की बात’,उसके समय में परिवर्तन करना, उचित लगा | और इसीलिए, एक अलग समय तय करके आज आपसे ‘मन की बात’ कर रहा हूँ | साथियो, दिन बदलते हैं, हफ्ते बदल जाते हैं, महीने भी बदलते हैं, साल बदल जाते हैं, लेकिन, भारत के लोगों का उत्साह और हम भी कुछ कम नहीं हैं, हम भी कुछ करके रहेंगे| ‘Can do’, ये ‘Can do’ का भाव, संकल्प बनता हुआ उभर रहा है | देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना, हर दिन, पहले से अधिक मजबूत होती जाती है | साथियो, ‘मन की बात’ के मंच पर, हम सब, एक बार फिर इकट्ठा हुए हैं | नये-नये विषयों पर चर्चा करने के लिए और देशवासियों की नयी-नयी उपलब्धियों को celebrate करने के लिए, भारत को celebrate करने के लिए |‘मन की बात’ -sharing, learning और growing together का एक अच्छा और सहज platform बन गया है | हर महीने हज़ारों की संख्या में लोग, अपने सुझाव, अपने प्रयास, अपने अनुभव share करते हैं |उनमें से, समाज को प्रेरणा मिले, ऐसी कुछ बातों, लोगों के असाधारण प्रयासों पर हमें चर्चा करने का अवसर मिलता है |
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+ एक ओर परीक्षाएँ और दूसरी ओर सर्दी का मौसम | इस दोनों के बीच मेरा आग्रह है कि खुद को fit जरूर रखें | थोड़ी बहुत exercise जरूर करें, थोड़ा खेलें, कूदें | खेल-कूद Fit रहने का मूल मंत्र है | वैसे, मैं इन दिनों देखता हूँ कि ‘Fit India’ को लेकर कई सारे events होते हैं | 18 जनवरी को युवाओं नेदेशभर में cyclothonका आयोजन किया | जिसमें शामिल लाखों देशवासियों ने fitness का संदेश दिया | हमारा New India पूरी तरह से Fit रहे इसके लिए हर स्तर पर जो प्रयास देखने को मिल रहे हैं वे जोश और उत्साह से भर देने वाले हैं | पिछले साल नवम्बर में शुरू हुई ‘फिट इंडिया स्कूल’ की मुहीम भी अब रंग ला रही है | मुझे बताया गया है कि अब तक 65000 से ज्यादा स्कूलों ने online registration करके ‘फिट इंडिया स्कूल’ certificate प्राप्त किया है | देश के बाकी सभी स्कूलों से भी मेरा आग्रह है कि वे physical activity और खेलों को पढ़ाई के साथ जोड़कर ‘फिट स्कूल’ ज़रूर बनें | इसके साथ ही मैं सभी देशवासियों से यह appeal करता हूँ वह अपनी दिनचर्या में physical activity को अधिक से अधिक बढ़ावा दें | रोज़ अपने आप को याद दिलाएँ हम फिट तो इंडिया फिट |
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+ इसका अर्थ है कि हम जो जानते हैं, वह महज़, मुट्ठी-भर एक रेत है लेकिन, जो हम नहीं जानते हैं, वो, अपने आप में पूरे ब्रह्माण्ड के समान है। इस देश की विविधता के साथ भी ऐसा ही है जितना जाने उतना कम है। हमारी biodiversity भी पूरी मानवता के लिए अनोखा खजाना है जिसे हमें संजोना है, संरक्षित रखना है, और, explore भी करना है।
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+ 31 जनवरी 2020 को लद्दाख़ की खूबसूरत वादियाँ, एक ऐतिहासिक घटना की गवाह बनी। लेह के कुशोक बाकुला रिम्पोची एयरपोर्ट से भारतीय वायुसेना के AN-32 विमान ने जब उड़ान भरी तो एक नया इतिहास बन गया। इस उड़ान में 10% इंडियन Bio-jet fuel का मिश्रण किया गया था I ऐसा पहली बार हुआ जब दोनों इंजनो में इस मिश्रण का इस्तेमाल किया गया। यही नहीं, लेह के जिस हवाई अड्डे पर इस विमान ने उड़ान भरी, वह न केवल भारत में, बल्कि दुनिया में सबसे ऊँचाई पर स्थित एयरपोर्ट में से एक है। ख़ास बात ये है कि Bio-jet fuel को non-edible tree borne oil से तैयार किया गया है। इसे भारत के विभिन्न आदिवासी इलाकों से खरीदा जाता है। इन प्रयासों से न केवल carbon के उत्सर्जन में भी कमी आएगी, बल्कि कच्चे-तेल के आयात पर भी भारत की निर्भरता कम हो सकती है। मैं इस बड़े कार्य में जुड़े सभी लोगो को बधाई देता हूँ। विशेष रूप से CSIR, Indian Institute of Petroleum, Dehradun के वैज्ञानिकों को, जिन्होनें bio-fuel से विमान उड़ाने की तकनीक को संभव कर दिया। उनका ये प्रयास, Make in India को भी सशक्त करता है I
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+ हमारे देश की महिलाओं, हमारी बेटियों की उद्यमशीलता, उनका साहस, हर किसी के लिए गर्व की बात है। अपने आस पास हमें अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं। जिनसे पता चलता है कि बेटियाँ किस तरह पुरानी बंदिशों को तोड़ रही हैं, नई ऊँचाई प्राप्त कर रही हैं। मैं, आपके साथ, बारह साल की बेटी काम्या कार्तिकेयन की उपलब्धि की चर्चा जरुर करना चाहूँगा। काम्या ने, सिर्फ, बारह साल की उम्र में ही Mount Aconcagua, उसको फ़तेह करने का कारनामा कर दिखाया है। ये, दक्षिण अमेरिका में ANDES पर्वत की सबसे ऊँची चोटी है, जो लगभग 7000 meter ऊँची है। हर भारतीय को ये बात छू जायेगी कि जब इस महीने की शुरुआत में काम्या ने चोटी को फ़तेह किया और सबसे पहले, वहाँ, हमारा तिरंगा फहराया। मुझे यह भी बताया गया है कि देश को गौरवान्वित करने वाली काम्या, एक नये Mission पर है, जिसका नाम है ‘Mission साहस’। इसके तहत वो सभी महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों को फ़तेह करने में जुटी है। इस अभियान में उसे North और South poles पर Ski भी करना है�� मैं काम्या को ‘Mission साहस’ के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ। वैसे, काम्या की उपलब्धि सभी को fit रहने के लिए भी प्रेरित करती है। इतनी कम उम्र में, काम्या, जिस ऊँचाई पर पहुंची है, उसमें fitness का भी बहुत बड़ा योगदान है। A Nation that is fit, will be a nation that is hit. यानी जो देश fit है, वो हमेशा hit भी रहेगा। वैसे आने वाले महीने तो adventure Sports के लिए भी बहुत उपयुक्त हैं। भारत की geography ऐसी है जो हमारे देश में adventure Sports के लिए ढेरों अवसर प्रदान करती है। एक तरफ जहाँ ऊँचे – ऊँचे पहाड़ हैं तो वहीँ दूसरी तरफ, दूर-दूर तक फैला रेगिस्तान है। एक ओर जहाँ घने जंगलों का बसेरा है, तो वहीँ दूसरी ओर समुद्र का असीम विस्तार है। इसलिए मेरा आप सब से विशेष आग्रह है कि आप भी, अपनी पसंद की जगह, अपनी रूचि की activity चुनें और अपने जीवन को adventure के साथ जरूर जोड़ें। ज़िन्दगी में adventure तो होना ही चाहिए ना ! वैसे साथियो, बारह साल की बेटी काम्या की सफलता के बाद, आप जब, 105 वर्ष की भागीरथी अम्मा की सफलता की कहानी सुनेंगे तो और हैरान हो जाएंगे। साथियो, अगर हम जीवन में प्रगति करना चाहते हैं, विकास करना चाहते हैं, कुछ कर गुजरना चाहते हैं, तो पहली शर्त यही होती है, कि हमारे भीतर का विद्यार्थी, कभी मरना नहीं चाहिए। हमारी 105 वर्ष की भागीरथी अम्मा, हमें यही प्रेरणा देती है। अब आप सोच रहे होंगे कि भागीरथी अम्मा कौन है ? भागीरथी अम्मा kerala के kollam में रहती है। बहुत बचपन में ही उन्होंने अपनी माँ को खो दिया। छोटी उम्र में शादी के बाद पति को भी खो दिया। लेकिन, भागीरथी अम्मा ने अपना हौसला नहीं खोया, अपना ज़ज्बा नहीं खोया। दस साल से कम उम्र में उन्हें अपना school छोड़ना पड़ा था। 105 साल की उम्र में उन्होंने फिर school शुरू किया। पढाई शुरू की। इतनी उम्र होने के बावजूद भागीरथी अम्मा ने level-4 की परीक्षा दी और बड़ी बेसब्री से result का इंतजार करने लगी। उन्होंने परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इतना ही नहीं, गणित में तो शत-प्रतिशत अंक हासिल किए। अम्मा अब और आगे पढ़ना चाहती हैं । आगे की परीक्षाएं देना चाहती हैं। ज़ाहिर है, भागीरथी अम्मा जैसे लोग, इस देश की ताकत हैं। प्रेरणा की एक बहुत बड़ी स्रोत हैं। मैं आज विशेष-रूप से भागीरथी अम्मा को प्रणाम करता हूँ।
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+ आमतौर पर ‘मन की बात’, उसमें मैं कई विषयों को ले करके आता हूँ | लेकिन आज, देश और दुनिया के मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही बात है- ‘कोरोना वैश्विक महामारी’ से आया हुआ ये भयंकर संकट | ऐसे में , मैं और कुछ बातें करूं वो उचित नहीं होगा | लेकिन सबसे पहले मैं सभी देशवासियों से क्षमा माँगता हूँ | और मेरी आत्मा कहती है कि आप मुझे जरुर क्षमा करेंगें क्योंकि कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े हैं जिसकी वजह से आपको कई तरह की कठिनाइयाँ उठानी पड़ रही हैं, खास करके मेरे गरीब भाई-बहनों को देखता हूँ तो जरुर लगता है कि उनको लगता होगा की ऐसा कैसा प्रधानमंत्री है, हमें इस मुसीबत में डाल दिया | उनसे भी मैं विशेष रूप से क्षमा मांगता हूँ | हो सकता है, बहुत से लोग मुझसे नाराज भी होंगे कि ऐसे कैसे सबको घर में बंद कर रखा है | मैं आपकी दिक्कतें समझता हूँ, आपकी परेशानी भी समझता हूँ लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ की आबादी वाले देश को, कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई के लिए, ये कदम उठाये बिना कोई रास्ता नहीं था | कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई, जीवन और मृत्य के बीच की लड़ाई है और इस लड़ाई में हमें जीतना है और इसीलिए ये कठोर कदम उठाने बहुत आवश्यक थे | किसी का मन नहीं करता है ऐसे कदमों के लिए लेकिन दुनिया के हालात देखने के बाद लगता है कि यही एक रास्ता बचा है | आपको, आपके परिवार को सुरक्षित रखना है | मैं फिर एक बार, आपको जो भी असुविधा हुई है, कठिनाई हुई है, इसके लिए क्षमा मांगता हूँ | साथियों, हमारे यहाँ कहा गया है – ‘एवं एवं विकारः, अपी तरुन्हा साध्यते सुखं’ यानि बीमारी और उसके प्रकोप से शुरुआत में ही निबटना चाहिए | बाद में रोग असाध्य हो जाते हैं तब इलाज भी मुश्किल हो जाता है | और आज पूरा हिंदुस्तान, हर हिन्दुस्तानी यही कर रहा है. भाइयों,बहनों, माताओं, बुजर्गो कोरोना वायरस ने दुनिया को क़ैद कर दिया है | ये ज्ञान, विज्ञान, गरीब, संपन्न, कमज़ोर, ताक़तवर हर किसी को चुनौती दे रहा है | ये ना तो राष्ट्र की सीमाओं में बंधा है, न ही ये कोई क्षेत्र देखता है और न ही कोई मौसम | ये वायरस इंसान को मारने पर, उसे समाप्त करने की जिद उठाकर बैठा है और इसीलिए सभी लोगों को, पूरी मानवजाति को इस वायरस के ख़त्म करने के लिए, एकजुट होकर संकल्प लेना ही होगा | कुछ लोगों को लगता है कि वो लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं तो ऐसा करके वो मानो जैसे दूसरों की मदद कर रहे हैं | अरे भाई, ये भ्रम पालना सही नहीं है | ये लॉकडाउन आपके खुद के बचने के लिए है | आपको अपने को बचाना है, अपने परिवार को बचाना है | अभी आपको आने वाले कई दिनों तक इसी तरह धैर्य दिखाना ही है, लक्ष्मण-रेखा का पालन करना ही है | साथियों, मैं यह भी जानता हूँ कि कोई कानून नहीं तोड़ना चाहता, नियम नहीं तोड़ना चाहता लेकिन कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं क्योंकि अब भी वो स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं | ऐसे लोगों को यही कहूँगा कि लॉकडाउन का नियम तोड़ेंगे तो कोरोना वायरस से बचना मुश्किल हो जायेगा | दुनिया भर में बहुत से लोगों को कुछ इसी तरह की खुशफ़हमी थी | आज ये सब पछता रहे हैं | साथियों, हमारे यहाँ कहा गया है – ‘आर्योग्यम परं भागय्म स्वास्थ्यं सर्वार्थ साधनं’ यानि आरोग्य ही सबसे बड़ा भाग्य है | दुनिया में सभी सुख का साधन, स्वास्थ्य ही है| ऐसे में नियम तोड़ने वाले अपने जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं | साथियों, इस लड़ाई के अनेकों योद्धा ऐसे हैं जो घरों में नहीं, घरों के बाहर रहकर कोरोना वायरस का मुकाबला कर रहे हैं | जो हमारे FRONT LINE SOLDIERS हैं | ख़ासकर के हमारी नर्सेज बहनें हैं, नर्सेज का काम करने वाले भाई हैं, डॉक्टर हैं, PARA-MEDICAL STAFF हैं | ऐसे साथी, जो कोरोना को पराजित कर चुके हैं | आज हमें उनसे प्रेरणा लेनी है | बीते दिनों में मैंने ऐसे कुछ लोगों से फ़ोन पर बात की है, उनका उत्साह भी बढ़ाया है और उनसे बातें करके मेरा भी उत्साह बढ़ा है | मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है. मेरा बहुत मन था इसलिए इस बार ‘मन की बात’ में ऐसे साथियों के अनुभव, उनसे हुई बातचीत, उसमें से कुछ बातें आपसे साझा करूँ | सबसे पहले हमारे साथ जुड़ेंगे श्री रामगम्पा तेजा जी | वैसे तो वे IT PROFESSIONAL हैं, आइये उनके अनुभव सुनते हैं | यस राम
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+ ये सुखद संयोग ही है, कि, आज जब आपसे मैं ‘मन की बात’ कर रहा हूँ तो अक्षय-तृतीया का पवित्र पर्व भी है। साथियो, ‘क्षय’ का अर्थ होता है विनाश लेकिन जो कभी नष्ट नहीं हो, जो कभी समाप्त नहीं हो वो ‘अक्षय’ है। अपने घरों में हम सब इस पर्व को हर साल मनाते हैं लेकिन इस साल हमारे लिए इसका विशेष महत्व है। आज के कठिन समय में यह एक ऐसा दिन है जो हमें याद दिलाता है कि हमारी आत्मा, हमारी भावना, ‘अक्षय’ है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ रास्ता रोकें, चाहे कितनी भी आपदाएं आएं, चाहे कितनी भी बीमारियोँ का सामना करना पड़े – इनसे लड़ने और जूझने की मानवीय भावनाएं अक्षय है। माना जाता है कि यही वो दिन है जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण और भगवान सूर्यदेव के आशीर्वाद से पांडवों को अक्षय-पात्र मिला था। अक्षय-पात्र यानि एक ऐसा बर्तन जिसमें भोजन कभी समाप्त नही होता है। हमारे अन्नदाता किसान हर परिस्थिति में देश के लिए, हम सब के लिए, इसी भावना से परिश्रम करते हैं। इन्हीं के परिश्रम से, आज हम सबके लिए, गरीबों के लिए, देश के पास अक्षय अन्न-भण्डार है। इस अक्षय-तृतीया पर हमें अपने पर्यावरण, जंगल, नदियाँ और पूरे Ecosystem के संरक्षण के बारे में भी सोचना चाहिए, जो, हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर हम ‘अक्षय’ रहना चाहते हैं तो हमें पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी धरती अक्षय रहे।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | आज 26 जुलाई है, और, आज का दिन बहुत खास है | आज, ‘कारगिल विजय दिवस’ है | 21 साल पहले आज के ही दिन कारगिल के युद्ध में हमारी सेना ने भारत की जीत का झंडा फहराया था | साथियो, कारगिल का युद्ध जिन परिस्थितियों में हुआ था, वो, भारत कभी नहीं भूल सकता | पाकिस्तान ने बड़े-बड़े मनसूबे पालकर भारत की भूमि हथियाने और अपने यहाँ चल रहे आन्तरिक कलह से ध्यान भटकाने को लेकर दुस्साहस किया था | भारत तब पाकिस्तान से अच्छे संबंधों के लिए प्रयासरत था, लेकिन, कहा जाता है ना
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+ यानी, दुष्ट का स्वभाव ही होता है, हर किसी से बिना वजह दुश्मनी करना | ऐसे स्वभाव के लोग, जो हित करता है, उसका भी नुकसान ही सोचते हैं इसीलिए भारत की मित्रता के जवाब में पाकिस्तान द्वारा पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश हुई थी, लेकिन, उसके बाद भारत की वीर सेना ने जो पराक्रम दिखाया, भारत ने अपनी जो ताकत दिखाई, उसे पूरी दुनिया ने देखा | आप कल्पना कर सकते हैं – ऊचें पहाडों पर बैठा हुआ दुश्मन और नीचे से लड़ रही हमारी सेनाएँ, हमारे वीर जवान, लेकिन, जीत पहाड़ की ऊँचाई की नहीं – भारत की सेनाओं के ऊँचे हौंसले और सच्ची वीरता की हुई | साथियो, उस समय, मुझे भी कारगिल जाने और हमारे जवानों की वीरता के दर्शन का सौभाग्य मिला, वो दिन, मेरे जीवन के सबसे अनमोल क्षणों में से एक है | मैं, देख रहा हूँ कि, आज देश भर में लोग कारगिल विजय को याद कर रहे है | Social Media पर एक hashtag #courageinkargil के साथ लोग अपने वीरों को नमन कर रहें हैं, जो शहीद हुए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दे रहें हैं | मैं, आज, सभी देशवासियों की तरफ से, हमारे इन वीर जवानों के साथ-साथ, उन वीर माताओं को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने, माँ-भारती के सच्चे सपूतों को जन्म दिया | मेरा, देश के नौजवानों से आग्रह है, कि, आज दिन-भर कारगिल विजय से जुड़े हमारे जाबाजों की कहानियाँ, वीर-माताओं के त्याग के बारे में, एक-दूसरे को बताएँ, share करें | मैं, साथियो, आपसे एक आग्रह करता हूँ – आज | एक Website है www.gallantryawards.gov.in आप उसको ज़रूर Visit करें | वहां आपको, हमारे वीर पराक्रमी योद्धाओं के बारे में, उनके पराक्रम के बारे में, बहुत सारी जानकारियां प्राप्त होगी, और वो जानकारियां, जब, आप, अपने साथियों के साथ चर्चा करेंगे – उनके लिए भी प्रेरणा का कारण बनेगी | आप ज़रूर इस Website को Visit कीजिये, और मैं तो कहूँगा, बार-बार कीजिये |
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+ साथियो, विशेषकर मेरे युवा साथियो, ह���ारा देश बदल रहा है | कैसे बदल रहा है? कितनी तेज़ी से बदल रहा है ? कैसे-कैसे क्षेत्रों में बदल रहा है ? एक सकारात्मक सोच के साथ अगर निगाह डालें तो हम खुद अचंभित रह जायेंगे | एक समय था, जब, खेल-कूद से लेकर के अन्य sectors में अधिकतर लोग या तो बड़े-बड़े शहरों से होते थे या बड़े-बड़े परिवार से या फिर नामी-गिरामी स्कूल या कॉलेज से होते थे | अब, देश बदल रहा है | गांवों से, छोटे शहरों से, सामान्य परिवार से हमारे युवा आगे आ रहे हैं | सफलता के नए शिखर चूम रहे हैं | ये लोग संकटों के बीच भी नए-नए सपने संजोते हुए आगे बढ़ रहे हैं | कुछ ऐसा ही हमें अभी हाल ही में जो Board exams के result आये, उसमें भी दिखता है | आज ‘मन की बात’ में हम कुछ ऐसे ही प्रतिभाशाली बेटे-बेटियों से बात करते हैं | ऐसी ही एक प्रतिभाशाली बेटी है कृतिका नांदल | कृतिका जी हरियाणा में पानीपत से हैं |
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+ आमतौर पर ये समय उत्सव का होता है, जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं | कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग तो है, उत्साह भी है, लेकिन, हम सबको मन को छू जाए, वैसा अनुशासन भी है | बहुत एक रूप में देखा जाए तो नागरिकों में दायित्व का एहसास भी है | लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं | देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है | गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो, ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है | साथियो, हम, बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य हमारे ध्यान में आयेगी – हमारे पर्व और पर्यावरण | इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता रहा है | जहां एक ओर हमारे पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सहजीवन का सन्देश छिपा होता है तो दूसरी ओर कई सारे पर्व प्रकृति की रक्षा के लिये ही मनाए जाते हैं | जैसे, बिहार के पश्चिमी चंपारण में, सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के lockdown या उनके ही शब्दों में कहें तो ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं | प्रकृति की रक्षा के लिये बरना को थारु समाज ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और सदियों से बनाया है | इस दौरान न कोई गाँव में आता है, न ही कोई अपने घरों से बाहर निकलता है और लोग मानते हैं कि अगर वो बाहर निकले या कोई बाहर से आया, तो उनके आने-जाने से, लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियों से, नए पेड़-पौधों को नुकसान हो सकता है | बरना की शुरुआत में भव्य तरीके से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजा-पाठ करते हैं और उसकी समाप्ति पर आदिवासी परम्परा के गीत,संगीत, नृत्य जमकर के उसके कार्यक्रम भी होते हैं |
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+ इन दिनों ओणम का पर्व भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है | ये पर्व चिनगम महीने में आता है | इस दौरान लोग कुछ नया खरीदते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, पूक्क्लम बनाते हैं, ओनम-सादिया का आनंद लेते हैं, तरह-तरह के खेल और प्रतियोगिताएं भी होती हैं | ओणम की धूम तो, आज, दूर-सुदूर विदेशों तक पहुँची हुई है | अमेरिका हो, यूरोप हो, या खाड़ी देश हों, ओणम का उल्लास आपको हर कहीं मिल जाएगा | ओणम एक International Festival बनता जा रहा है |
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+ कोरोना के इस कालखंड में देश कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है, लेकिन इसके साथ-साथ, कई बार मन में ये भी सवाल आता रहा कि इतने ���म्बे समय तक घरों में रहने के कारण, मेरे छोटे-छोटे बाल-मित्रों का समय कैसे बीतता होगा | और इसी से मैंने गांधीनगर की Children University जो दुनिया में एक अलग तरह का प्रयोग है, भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय, इन सभी के साथ मिलकर, हम बच्चों के लिये क्या कर सकते हैं, इस पर मंथन किया, चिंतन किया | मेरे लिए ये बहुत सुखद था, लाभकारी भी था क्योंकि एक प्रकार से ये मेरे लिए भी कुछ नया जानने का, नया सीखने का अवसर बन गया |
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+ हमारे चिंतन का विषय था- खिलौने और विशेषकर भारतीय खिलौने | हमने इस बात पर मंथन किया कि भारत के बच्चों को नए-नए Toys कैसे मिलें, भारत, Toy Production का बहुत बड़ा hub कैसे बने | वैसे मैं ‘मन की बात’ सुन रहे बच्चों के माता-पिता से क्षमा माँगता हूँ, क्योंकि हो सकता है, उन्हें, अब, ये ‘मन की बात’ सुनने के बाद खिलौनों की नयी-नयी demand सुनने का शायद एक नया काम सामने आ जाएगा |
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+ हमारे देश में Local खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है | कई प्रतिभाशाली और कुशल कारीगर हैं, जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते हैं | भारत के कुछ क्षेत्र Toy Clusters यानी खिलौनों के केन्द्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं | जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी – कई ऐसे स्थान हैं, कई नाम गिना सकते हैं | आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि Global Toy Industry, 7 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की है | 7 लाख करोड़ रुपयों का इतना बड़ा कारोबार, लेकिन, भारत का हिस्सा उसमें बहुत कम है | अब आप सोचिए कि जिस राष्ट्र के पास इतनी विरासत हो, परम्परा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, क्या खिलौनों के बाजार में उसकी हिस्सेदारी इतनी कम होनी, हमें, अच्छा लगेगा क्या? जी नहीं, ये सुनने के बाद आपको भी अच्छा नहीं लगेगा | देखिये साथियो, Toy Industry बहुत व्यापक है | गृह उद्योग हो, छोटे और लघु उद्योग हो, MSMEs हों, इसके साथ-साथ बड़े उद्योग और निजी उद्यमी भी इसके दायरे में आते हैं | इसे आगे बढ़ाने के लिए देश को मिलकर मेहनत करनी होगी | अब जैसे आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में श्रीमान सी.वी. राजू हैं | उनके गांव के एति-कोप्पका Toys एक समय में बहुत प्रचलित थे | इनकी खासियत ये थी कि ये खिलौने लकड़ी से बनते थे, और दूसरी बात ये कि इन खिलौनों में आपको कहीं कोई angle या कोण नहीं मिलता था | ये खिलौने हर तरफ से round होते थे, इसलिए, बच्चों को चोट की भी गुंजाइश नहीं होती थी | सी.वी. राजू ने एति-कोप्पका toys के लिये, अब, अपने गाँव के कारीगरों के साथ मिलकर एक तरह से नया movement शुरू कर दिया है | बेहतरीन quality के एति-कोप्पका Toys बनाकर सी.वी. राजू ने स्थानीय खिलौनों की खोई हुई गरिमा को वापस ला दिया है | खिलौनों के साथ हम दो चीजें कर सकते हैं – अपने गौरवशाली अतीत को अपने जीवन में फिर से उतार सकते हैं और अपने स्वर्णिम भविष्य को भी सँवार सकते हैं | मैं अपने start-up मित्रों को, हमारे नए उद्यमियों से कहता हूँ – Team up for toys… आइए मिलकर खिलौने बनाएं | अब सभी के लिये Local खिलौनों के लिये Vocal होने का समय है | आइए, हम अपने युवाओं के लिये कुछ नए प्रकार के, अच्छी quality वाले, खिलौने बनाते हैं | खिलौना वो हो जिसकी मौजूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी | हम ऐसे खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों |
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। कोरोना के इस कालखंड में पूरी दुनिया अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है। आज, जब दो गज की दूरी एक अनिवार्य जरुरत बन गई है, तो इसी संकट काल ने, परिवार के सदस्यों को आपस में जोड़ने और करीब लाने का काम भी किया है। लेकिन, इतने लम्बे समय तक, एक साथ रहना, कैसे रहना, समय कैसे बिताना, हर पल खुशी भरी कैसे हो ? तो, कई परिवारों को दिक्कतें आईं और उसका कारण था, कि, जो हमारी परम्पराएं थी, जो परिवार में एक प्रकार से संस्कार सरिता के रूप में चलती थी, उसकी कमी महसूस हो रही है, ऐसा लग रहा है, कि, बहुत से परिवार है जहाँ से ये सब कुछ खत्म हो चुका है, और, इसके कारण, उस कमी के रहते हुए, इस संकट के काल को बिताना भी परिवारों के लिए थोड़ा मुश्किल हो गया, और, उसमें एक महत्वपूर्ण बात क्या थी? हर परिवार में कोई-न-कोई बुजुर्ग, बड़े व्यक्ति परिवार के, कहानियाँ सुनाया करते थे और घर में नई प्रेरणा, नई ऊर्जा भर देते हैं। हमें, जरुर एहसास हुआ होगा, कि, हमारे पूर्वजों ने जो विधायें बनाई थी, वो, आज भी कितनी महत्वपूर्ण हैं और जब नहीं होती हैं तो कितनी कमी महसूस होती है। ऐसी ही एक विधा जैसा मैंने कहा, कहानी सुनाने की कला story telling। साथियो, कहानियों का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी कि मानव सभ्यता।
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+ कहानियाँ, लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्ष को सामने लाती हैं, उसे प्रकट करती हैं। कहानी की ताकत को महसूस करना हो तो जब कोई माँ अपने छोटे बच्चे को सुलाने के लिए या फिर उसे खाना खिलाने के लिए कहानी सुना रही होती है तब देखें। मैं अपने जीवन में बहुत लम्बे अरसे तक एक परिव्राजक (A wandering ascetic) के रूप में रहा। घुमंत ही मेरी जिंदगी थी। हर दिन नया गाँव, नए लोग, नए परिवार, लेकिन, जब मैं परिवारों में जाता था, तो, मैं, बच्चों से जरुर बात करता था और कभी-कभी बच्चों को कहता था, कि, चलो भई, मुझे, कोई कहानी सुनाओ, तो मैं हैरान था, बच्चे मुझे कहते थे, नहीं uncle, कहानी नहीं, हम, चुटकुला सुनायेंगे, और मुझे भी, वो, यही कहते थे, कि, uncle आप हमें चुटकुला सुनाओ यानि उनको कहानी से कोई परिचय ही नहीं था। ज्यादातर, उनकी जिंदगी चुटकुलों में समाहित हो गई थी।
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+ साथियो, भारत में कहानी कहने की, या कहें किस्सा-गोई की, एक समृद्ध परंपरा रही है। हमें गर्व है कि हम उस देश के वासी है, जहाँ, हितोपदेश और पंचतंत्र की परंपरा रही है, जहाँ, कहानियों में पशु-पक��षियों और परियों की काल्पनिक दुनिया गढ़ी गयी, ताकि, विवेक और बुद्धिमता की बातों को आसानी से समझाया जा सके। हमारे यहाँ कथा की परंपरा रही है। ये धार्मिक कहानियाँ कहने की प्राचीन पद्धति है। इसमें ‘कताकालक्षेवम्’ भी शामिल रहा। हमारे यहाँ तरह-तरह की लोक-कथाएं प्रचलित हैं। तमिलनाडु और केरल में कहानी सुनाने की बहुत ही रोचक पद्धति है। इसे ‘विल्लू पाट्’ कहा जाता है। इसमें कहानी और संगीत का बहुत ही आकर्षक सामंजस्य होता है। भारत में कठपुतली की जीवन्त परम्परा भी रही है। इन दिनों science और science fiction से जुड़ी कहानियाँ एवं कहानी कहने की विधा लोकप्रिय हो रही है। मैं देख रहा हूँ कि कई लोग किस्सागोई की कला को आगे बढाने के लिए सराहनीय पहल कर रहे हैं। मुझे gaathastory.in जैसी website के बारे में जानकारी मिली, जिसे, अमर व्यास, बाकी लोगों के साथ मिलकर चलाते हैं। अमर व्यास, IIM अहमदाबाद से MBA करने के बाद विदेशों में चले गए, फिर वापिस आए। इस समय बेंगलुरु में रहते हैं और समय निकालकर कहानियों से जुड़ा, इस प्रकार का, रोचक कार्य कर रहे है। कई ऐसे प्रयास भी हैं जो ग्रामीण भारत की कहानियों को खूब प्रचलित कर रहे हैं। वैशाली व्यवहारे देशपांडे जैसे कई लोग हैं जो इसे मराठी में भी लोकप्रिय बना रहे हैं।
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+ चेन्नई की श्रीविद्या वीर राघवन भी हमारी संस्कृति से जुड़ी कहानियों को प्रचारित, प्रसारित, करने में जुटी है, वहीँ, कथालय और The Indian story telling network नाम की दो website भी इस क्षेत्र में जबरदस्त कार्य कर रही हैं। गीता रामानुजन ने kathalaya.org में कहानियों को केन्द्रित किया है, वहीँ, The Indian story telling network के ज़रिये भी अलग-अलग शहरों के story tellers का network तैयार किया जा रहा है I बेंगलुरु में एक विक्रम श्रीधर हैं, जो बापू से जुड़ी कहानियों को लेकर बहुत उत्साहित हैं। और भी कई लोग, इस क्षेत्र में, काम कर रहे होंगे – आप ज़रूर उनके बारे में Social media पर शेयर करेंI
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+ Aparna:- सर। मैं Aparna Athreya हूँ, मैं दो बच्चों की माँ हूँ, एक भारतीय वायुसेना के अफसर की बीवी हूँ और एक passionate storyteller हूँ सर। Storytelling की शुरुआत 15 साल पहले हुई थी जब मैं software industry में काम कर रही थी। तब मैं CSR projects में voluntary काम करने के लिए जब गई थी तब हजारों बच्चों को कहानियों के माध्यम से शिक्षा देने का मौका मिला और ये कहानी जो मैं बता रही थी वो अपनी दादी माँ से सुनी थी। लेकिन जब कहानी सुनते वक़्त मैंने जो ख़ुशी उन बच्चों में देखी, मैं क्या बोलू आपको क���तनी मुस्कराहट थी, कितनी ख़ुशी थी तो उसी समय मैंने तय किया कि Storytelling मेरे जीवन का एक लक्ष्य होगा, सर।
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+ Aparna: मेरा नाम Aparna जयशंकर है। वैसे तो मेरा सौभाग्य है कि मैं अपनी नाना-नानी और दादी के साथ इस देश के विभिन्न भागों में पली हूँ इसलिए रामायण, पुराणों और गीता की कहानियाँ मुझे विरासत में हर रात को मिलती थी और Bangalore Storytelling Society जैसी संस्था है तो मुझे तो storyteller बनना ही था। मेरे साथ मेरी साथी लावण्या प्रसाद है।
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+ आज विजयादशमी यानि दशहरे का पर्व है। इस पावन अवसर पर आप सभी को ढ़ेरों शुभकामनाएं। दशहरे का ये पर्व, असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। लेकिन, साथ ही, ये एक तरह से संकटों पर धैर्य की जीत का पर्व भी है। आज, आप सभी बहुत संयम के साथ जी रहे हैं, मर्यादा में रहकर पर्व, त्योहार मना रहे हैं, इसलिए, जो लड़ाई हम लड़ रहे हैं, उसमें जीत भी सुनिश्चित है। पहले, दुर्गा पंडाल में, माँ के दर्शनों के लिए इतनी भीड़ जुट जाती थी – एकदम, मेले जैसा माहौल रहता था, लेकिन, इस बार ऐसा नही हो पाया। पहले, दशहरे पर भी बड़े-बड़े मेले लगते थे, लेकिन इस बार उनका स्वरुप भी अलग ही है। रामलीला का त्योहार भी, उसका बहुत बड़ा आकर्षण था, लेकिन उसमें भी कुछ-न-कुछ पाबंदियाँ लगी हैं। पहले, नवरात्र पर, गुजरात के गरबा की गूंज हर तरफ़ छाई रहती थी, इस बार, बड़े-बड़े आयोजन सब बंद हैं। अभी, आगे और भी कई पर्व आने वाले हैं। अभी, ईद है, शरद पूर्णिमा है, वाल्मीकि जयंती है, फिर, धनतेरस, दिवाली, भाई-दूज, छठी मैया की पूजा है, गुरु नानक देव जी की जयंती है – कोरोना के इस संकट काल में, हमें संयम से ही काम लेना है, मर्यादा में ही रहना है।
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+ जब हम त्योहार की बात करते हैं, तैयारी करते हैं, तो, सबसे पहले मन में यही आता है, कि बाजार कब जाना है? क्या-क्या खरीदारी करनी है? ख़ासकर, बच्चों में तो इसका विशेष उत्साह रहता है – इस बार, त्योहार पर, नया, क्या मिलने वाला है? त्योहारों की ये उमंग और बाजार की चमक, एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। लेकिन इस बार जब आप खरीदारी करने जायें तो ‘Vocal for Local’ का अपना संकल्प अवश्य याद रखें। बाजार से सामान खरीदते समय, हमें स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी है।
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+ त्योहारों के इस हर्षोल्लास के बीच में Lockdown के समय को भी याद करना चाहिए। Lockdown में हमने, समाज के उन साथियों को और करीब से जाना है, जिनके बिना, हमारा जीवन बहुत ही मुश्किल हो जाता – सफाई कर्मचारी, घर में काम करने वाले भाई-बहन, Local सब्जी वाले, दूध वाले, Security Guards, इन सबका हमारे जीवन में क्या रोल है, हमने अब भली-भांति महसूस किया है। कठिन समय में, ये आपके साथ थे, हम सबके साथ थे। अब, अपने पर्वों में, अपनी खुशियों में भी, हमें इनको साथ रखना है। मेरा आग्रह है कि, जैसे भी संभव हो, इन्हें अपनी खुशियों में जरुर शामिल करिये। परिवार के सदस्य की तरह करिये, फिर आप देखिये, आपकी खुशियाँ, कितनी बढ़ जाती हैं।
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+ हमें अपने उन जाबा��� सैनिकों को भी याद रखना है, जो, इन त्योहारों में भी सीमाओं पर डटे हैं। भारत-माता की सेवा और सुरक्षा कर रहें हैं। हमें उनको याद करके ही अपने त्योहार मनाने हैं। हमें घर में एक दीया, भारत माता के इन वीर बेटे-बेटियों के सम्मान में भी जलाना है। मैं, अपने वीर जवानों से भी कहना चाहता हूँ कि आप भले ही सीमा पर हैं, लेकिन पूरा देश आपके साथ हैं, आपके लिए कामना कर रहा है। मैं उन परिवारों के त्याग को भी नमन करता हूँ जिनके बेटे-बेटियाँ आज सरहद पर हैं। हर वो व्यक्ति जो देश से जुड़ी किसी-न-किसी जिम्मेदारी की वजह से अपने घर पर नहीं है, अपने परिवार से दूर है – मैं, ह्रदय से उसका आभार प्रकट करता हूँ।
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+ दिल्ली के Connaught Place के खादी स्टोर में इस बार गाँधी जयंती पर एक ही दिन में एक करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीदारी हुई। इसी तरह कोरोना के समय में खादी के मास्क भी बहुत popular हो रहे हैं। देशभर में कई जगह self help groups और दूसरी संस्थाएँ खादी के मास्क बना रहे हैं। यू.पी. में, बाराबंकी में एक महिला हैं – सुमन देवी जी। सुमन जी ने self help group की अपनी साथी महिलाओं के साथ मिलकर खादी मास्क बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे उनके साथ अन्य महिलाएँ भी जुड़ती चली गई, अब वे सभी मिलकर हजारों खादी मास्क बना रही हैं। हमारे local products की खूबी है कि उनके साथ अक्सर एक पूरा दर्शन जुड़ा होता है।
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+ जब हमें अपनी चीजों पर गर्व होता है, तो दुनिया में भी उनके प्रति जिज्ञासा बढती है। जैसे हमारे आध्यात्म ने, योग ने, आयुर्वेद ने, पूरी दुनिया को आकर्षित किया है। हमारे कई खेल भी दुनिया को आकर्षित कर रहे हैं। आजकल, हमारा मलखम्ब भी, अनेकों देशों में प्रचलित हो रहा है। अमेरिका में चिन्मय पाटणकर और प्रज्ञा पाटणकर ने जब अपने घर से ही मलखम्ब सिखाना शुरू किया था, तो, उन्हें भी अंदाजा नहीं था, कि इसे इतनी सफलता मिलेगी। अमेरिका में आज, कई स्थानों पर, मलखम्ब Training Centers चल रहे हैं। बड़ी संख्या में अमेरिका के युवा इससे जुड़ रहे हैं, मलखम्ब सीख रहे हैं। आज, जर्मनी हो, पोलैंड हो, मलेशिया हो, ऐसे करीब 20 अन्य देशो में भी मलखम्ब खूब popular हो रहा है। अब तो, इसकी, World Championship शुरू की गई है, जिसमें, कई देशों के प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं। भारत में तो प्रचीन काल से कई ऐसे खेल रहे हैं, जो हमारे भीतर, एक असाधारण विकास करते हैं। हमारे Mind, Body Balance को एक नए आयाम पर ले जाते हैं। लेकिन संभवतः, नई पीढ़ी के हमारे युवा साथी, मलखम्ब से उतना परिचित ना हों। आप इसे इन्टरनेट पर जरूर search करिए और देखिये।
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+ कहा जाता है ‘Learning is Growing’। आज, ‘मन की बात’ में, मैं आपका परिचय एक ऐसे व्यक्ति से कराऊँगा जिसमें एक अनोखा जुनून है। ये जुनून है दूसरों के साथ reading और learning की खुशियों को बाँटने का। ये हैं पोन मरियप्पन, पोन मरियप्पन तमिलनाडु के तुतुकुड़ी में रहते है। तुतुकुड़ी को pearl city यानि मोतियों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। यह कभी पांडियन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ रहने वाले मेरे दोस्त पोन मरियप्पन, hair cutting के पेशे से जुड़े हैं और एक saloon चलाते हैं। बहुत छोटा सा saloon है। उन्होंने एक अनोखा और प्रेरणादायी काम किया है। अपने saloon के एक हिस्से को ही पुस्तकालय बना दिया है। यदि व्यक्ति saloon में अपनी बारी का इंतज़ार करने के दौरान वहाँ कुछ पढ़ता है, और जो पढ़ा है उसके बारे में थोड़ा लिखता है, तो पोन मरियप्पन जी उस ग्राहक को discount देते हैं – है न मजेदार!
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+ साथियो, इस महीने 12 नवंबर से डॉक्टर सलीम अली जी का 125वाँ जयंती समारोह शुरू हुआ है। डॉक्टर सलीम ने पक्षियों की दुनिया में Bird watching को लेकर उल्लेखनीय कार्य किया है। दुनिया के bird watchers को भारत के प्रति आकर्षित भी किया है। मैं, हमेशा से Bird watching के शौकीन लोगों का प्रशंसक रहा हूं। बहुत धैर्य के साथ, वो, घंटों तक, सुबह से शाम तक, Bird watching कर सकते हैं, प्रकृति के अनूठे नजारों का लुत्फ़ उठा सकते हैं, और, अपने ज्ञान को हम लोगों तक भी पहुंचाते रहते हैं। भारत में भी, बहुत–सी Bird watching society सक्रिय हैं। आप भी, जरूर, इस विषय के साथ जुड़िये। मेरी भागदौड़ की ज़िन्दगी में, मुझे भी, पिछले दिनों केवड़िया में, पक्षियों के साथ, समय बिताने का बहुत ही यादगार अवसर मिला। पक्षियों के साथ बिताया हुआ समय, आपको, प्रकृति से भी जोड़ेगा, और, पर्यावरण के लिए भी प्रेरणा देगा ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की संस्कृति और शास्त्र, हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए आकर्षण के केंद्र रहे हैं। कई लोग तो, इनकी खोज में भारत आए, और, हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए, तो, कई लोग, वापस अपने देश जाकर, इस संस्कृति के संवाहक बन गए। मुझे “Jonas Masetti” के काम के बारे में जानने का मौका मिला, जिन्हें, ‘विश्वनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है। जॉनस ब्राजील में लोगों को वेदांत और गीता सिखाते हैं। वे विश्वविद्या नाम की एक संस्था चलाते हैं, जो रियो डि जेनेरो (Rio de Janeiro) से घंटें भर की दूरी पर Petrópolis (पेट्रोपोलिस) के पहाड़ों में स्थित है। जॉनस ने Mechanical Engineering की पढ़ाई करने के बाद, stock market में अपनी कंपनी में काम किया, बाद में, उनका रुझान भारतीय संस्कृति और खासकर वेदान्त की तरफ हो गया। Stock से लेकर के Spirituality तक, वास्तव में, उनकी, एक लंबी यात्रा है। जॉनस ने भारत में वेदांत दर्शन का अध्ययन किया और 4 साल तक वे कोयंबटूर के आर्ष विद्या गुरूकुलम में रहे हैं । जॉनस में एक और खासियत है, वो, अपने मैसेज को आगे पहुंचाने के लिए technology का प्रयोग कर रहे हैं। वह नियमित रूप से online programmes करते हैं । वे, प्रतिदिन पोडकास्ट (Podcast) करते हैं। पिछले 7 वर्षों में जॉनस ने वेदांत पर अपने Free Open Courses के माध्यम से डेढ़ लाख से अधिक students को पढ़ाया है। जॉनस ना केवल एक बड़ा काम कर रहे हैं, बल्कि, उसे एक ऐसी भाषा में कर रहे हैं, जिसे, समझने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। लोगों में इसको लेकर काफी रुचि है कि Corona और Quarantine के इस समय में वेदांत क���से मदद कर सकता है? ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं जॉनस को उनके प्रयासों के लिए बधाई देता हूं और उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
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+ साथियो, इसी तरह, अभी, एक खबर पर आपका ध्यान जरूर गया होगा। न्यूजीलैंड में वहाँ के नवनिर्वाचित एम.पी. डॉ० गौरव शर्मा ने विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा में शपथ ली है। एक भारतीय के तौर पर भारतीय संस्कृति का यह प्रसार हम सब को गर्व से भर देता है। ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं गौरव शर्मा जी को शुभकामनाएं देता हूं। हम सभी की कामना है, वो, न्यूजीलैंड के लोगों की सेवा में नई उपलब्धियां प्राप्त करें।
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+ साथियो, क्या आप जानते हैं कि कच्छ में एक गुरुद्वारा है, लखपत गुरुद्वारा साहिब। श्री गुरु नानक जी अपने उदासी के दौरान लखपत गुरुद्वारा साहिब में रुके थे। 2001 के भूकंप से इस गुरूद्वारे को भी नुकसान पहुँचा था। यह गुरु साहिब की कृपा ही थी, कि, मैं, इसका जीर्णोद्धार सुनिश्चित कर पाया। ना केवल गुरुद्वारा की मरम्मत की गई बल्कि उसके गौरव और भव्यता को भी फिर से स्थापित किया गया । हम सब को गुरु साहिब का भरपूर आशीर्वाद भी मिला। लखपत गुरुद्वारा के संरक्षण के प्रयासों को 2004 में UNESCO Asia Pacific Heritage Award में Award of Distinction दिया गया। Award देने वाली Jury ने ये पाया कि मरम्मत के दौरान शिल्प से जुड़ी बारीकियों का विशेष ध्यान रखा गया। Jury ने यह भी नोट किया कि गुरुद्वारा के पुनर्निर्माण कार्य में सिख समुदाय की ना केवल सक्रिय भागीदारी रही, बल्कि, उनके ही मार्गदर्शन में ये काम हुआ। लखपत गुरुद्वारा जाने का सौभाग्य मुझे तब भी मिला था जब मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था । मुझे वहाँ जाकर असीम ऊर्जा मिलती थी। इस गुरूद्वारे में जाकर हर कोई खुद को धन्य महसूस करता है। मैं, इस बात के लिए बहुत कृतज्ञ हूँ कि गुरु साहिब ने मुझसे निरंतर सेवा ली है। पिछले वर्ष नवम्बर में ही करतारपुर साहिब corridor का खुलना बहुत ही ऐतिहासिक रहा। इस बात को मैं जीवनभर अपने ह्रदय में संजो कर रखूँगा। यह, हम सभी का सौभाग्य है, कि, हमें श्री दरबार साहिब की सेवा करने का एक और अवसर मिला। विदेश में रहने वाले हमारे सिख भाई–बहनों के लिए अब दरबार साहिब की सेवा के लिए राशि भेजना और आसान हो गया है। इस कदम से विश्व–भर की संगत, दरबार साहिब के और करीब आ गई है ।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, 5 दिसम्बर को श्री अरबिंदो की पुण्य��िथि है। श्री अरबिंदो को हम जितना पढ़ते हैं, उतनी ही गहराई, हमें, मिलती जाती है। मेरे युवा साथी श्री अरबिंदो को जितना जानेंगें, उतना ही अपने आप को जानेंगें, खुद को समृद्ध करेंगें। जीवन की जिस भाव अवस्था में आप हैं, जिन संकल्पों को सिद्ध करने के लिए आप प्रयासरत हैं, उनके बीच, आप, हमेशा से ही श्री अरबिंदो को एक नई प्रेरणा देते पाएंगें, एक नया रास्ता दिखाते हुए पाएंगें। जैसे, आज, जब हम, ‘लोकल के लिए वोकल’ इस अभियान के साथ आगे बढ़ रहे हैं तो श्री अरबिंदो का स्वदेशी का दर्शन हमें राह दिखाता है। बांग्ला में एक बड़ी ही प्रभावी कविता है ।
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+ वो कहते भी थे, स्वदेशी का अर्थ है कि हम अपने भारतीय कामगारों, कारीगरों की बनाई हुई चीजों को प्राथमिकता दें। ऐसा भी नहीं कि श्री अरबिंदों ने विदेशों से कुछ सीखने का भी कभी विरोध किया हो। जहाँ जो नया है वहां से हम सीखें जो हमारे देश में अच्छा हो सकता है उसका हम सहयोग और प्रोत्साहन करें, यही तो आत्मनिर्भर भारत अभियान में, Vocal for Local मन्त्र की भी भावना है। ख़ासकर स्वदेशी अपनाने को लेकर उन्होंने जो कुछ कहा वो आज हर देशवासी को पढ़ना चाहिये। साथियो, इसी तरह शिक्षा को लेकर भी श्री अरबिंदो के विचार बहुत स्पष्ट थे। वो शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान, डिग्री और नौकरी तक ही सीमित नहीं मानते थे। श्री अरबिंदो कहते थे हमारी राष्ट्रीय शिक्षा, हमारी युवा पीढ़ी के दिल और दिमाग की training होनी चाहिये, यानि, मस्तिष्क का वैज्ञानिक विकास हो और दिल में भारतीय भावनाएं भी हों, तभी एक युवा देश का और बेहतर नागरिक बन पाता है, श्री अरबिंदो ने राष्ट्रीय शिक्षा को लेकर जो बात तब कही थी, जो अपेक्षा की थी आज देश उसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए पूरा कर रहा है।
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+ मेरे प्यारे देशवासियों, भारत मे खेती और उससे जुड़ी चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे है। बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। बरसों से किसानों की जो माँग थी, जिन मांगो को पूरा करने के लिए किसी न किसी समय में हर राजनीतिक दल ने उनसे वायदा किया था, वो मांगे पूरी हुई हैं। काफ़ी विचार विमर्श के बाद भारत की संसद ने कृषि सुधारों को कानूनी स्वरुप दिया। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बन्धन समाप्त हुये हैं , बल्कि उन्हें नये अधिकार भी मिले हैं, नये अवसर भी मिले हैं। इन अधिकारों ने बहुत ही कम ��मय में, किसानों की परेशानियों को कम करना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र के धुले ज़िले के किसान, जितेन्द्र भोइजी ने, नये कृषि कानूनों का इस्तेमाल कैसे किया, ये आपको भी जानना चाहिये। जितेन्द्र भोइजी ने मक्के की खेती की थी और सही दामों के लिए उसे व्यापारियों को बेचना तय किया। फसल की कुल कीमत तय हुई करीब तीन लाख बत्तीस हज़ार रूपये। जितेन्द्र भोइ को पच्चीस हज़ार रूपये एडवांस भी मिल गए थे। तय ये हुआ था कि बाकी का पैसा उन्हें पन्द्रह दिन में चुका दिया जायेगा। लेकिन बाद में परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें बाकी का पेमेन्ट नहीं मिला। किसान से फसल खरीद लो, महीनों – महीनों पेमेन्ट न करो, संभवतः मक्का खरीदने वाले बरसों से चली आ रही उसी परंपरा को निभा रहे थे। इसी तरह चार महीने तक जितेन्द्र जी का पेमेन्ट नहीं हुआ। इस स्थिति में उनकी मदद की सितम्बर मे जो पास हुए हैं, जो नए कृषि क़ानून बने हैं – वो उनके काम आये। इस क़ानून में ये तय किया गया है, कि फसल खरीदने के तीन दिन में ही, किसान को पूरा पेमेन्ट करना पड़ता है और अगर पेमेन्ट नहीं होता है, तो, किसान शिकायत दर्ज कर सकता है। कानून में एक और बहुत बड़ी बात है, इस क़ानून में ये प्रावधान किया गया है कि क्षेत्र के एस.डी.एम(SDM) को एक महीने के भीतर ही किसान की शिकायत का निपटारा करना होगा। अब, जब, ऐसे कानून की ताकत हमारे किसान भाई के पास थी, तो, उनकी समस्या का समाधान तो होना ही था, उन्होंने शिकायत की और चंद ही दिन में उनका बकाया चुका दिया गया। यानि कि कानून की सही और पूरी जानकारी ही जितेन्द्र जी की ताकत बनी। क्षेत्र कोई भी हो, हर तरह के भ्रम और अफवाहों से दूर, सही जानकारी, हर व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा सम्बल होती है। किसानों में जागरूकता बढ़ाने का ऐसा ही एक काम कर रहे हैं, राजस्थान के बारां जिले में रहने वाले मोहम्मद असलम जी । ये एक किसान उत्पादक संघ के CEO भी हैं। जी हाँ, आपने सही सुना, किसान उत्पादक संघ के CEO । उम्मीद है, बड़ी बड़ी कम्पनियों के CEOs को ये सुनकर अच्छा लगेगा कि अब देश के दूर दराज वाले इलाको में काम कर रहे किसान संगठनों मे भी CEOs होने लगे हैं, तो साथियो, मोहम्मद असलम जी ने अपने क्षेत्र के अनेकों किसानों को मिलाकर एक WhatsApp group बना लिया है। इस group पर वो हर रोज़, आस–पास की मंडियो में क्या भाव चल रहा है, इसकी जानकारी किसानों को देते हैं। खुद उनका FPO भी किसानों से फ़सल खरीदत��� है, इसलिए, उनके इस प्रयास से किसानों को निर्णय लेने में मदद मिलती है।
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+ साथियो, जागरूकता है, तो, जीवंतता है। अपनी जागरूकता से हजारों लोगों का जीवन प्रभावित करने वाले एक कृषि उद्यमी श्री वीरेन्द्र यादव जी हैं। वीरेन्द्र यादव जी, कभी ऑस्ट्रेलिया में रहा करते थे। दो साल पहले ही वो भारत आए और अब हरियाणा के कैथल में रहते हैं। दूसरे लोगों की तरह ही, खेती में पराली उनके सामने भी एक बड़ी समस्या थी। इसके solution के लिए बहुत व्यापक स्तर पर काम हो रहा है, लेकिन, आज, ‘मन की बात’ में, मैं, वीरेन्द्र जी को विशेष तौर पर जिक्र इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि, उनके प्रयास अलग हैं, एक नई दिशा दिखाते हैं। पराली का समाधान करने के लिए वीरेन्द्र जी ने, पुआल की गांठ बनाने वाली straw baler मशीन खरीदी। इसके लिए उन्हें कृषि विभाग से आर्थिक मदद भी मिली। इस मशीन से उन्होंने पराली के गठठे बनाने शुरू कर दिया। गठठे बनाने के बाद उन्होंने पराली को Agro Energy Plant और paper mill को बेच दिया। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि वीरेन्द्र जी ने पराली से सिर्फ दो साल में डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापार किया है, और उसमें भी, लगभग 50 लाख रुपये मुनाफा कमाया है। इसका फ़ायदा उन किसानों को भी हो रहा है, जिनके खेतों से वीरेन्द्र जी पराली उठाते हैं। हमने कचरे से कंचन की बात तो बहुत सुनी है, लेकिन, पराली का निपटारा करके, पैसा और पुण्य कमाने का ये अनोखा उदाहरण है। मेरा नौजवानों, विशेषकर कृषि की पढ़ाई कर रहे लाखों विद्यार्थियों से आग्रह है, कि, वो अपने आस–पास के गावों में जाकर किसानों को आधुनिक कृषि के बारे में, हाल में हुए कृषि सुधारो के बारे में, जागरूक करें। ऐसा करके आप देश में हो रहे बड़े बदलाव के सहभागी बनेंगे।
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+ NamoApp पर मुम्बई के अभिषेक जी ने एक message पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि 2020 ने जो-जो दिखा दिया, जो-जो सिखा दिया, वो कभी सोचा ही नहीं था। कोरोना से जुड़ी तमाम बातें उन्होंने लिखी हैं। इन चिट्ठियों में, इन संदेशों में, मुझे, एक बात जो common नजर आ रही है, ख़ास नजर आ रही है, वो मैं आज आपसे share करना चाहूँगा। अधिकतर पत्रों में लोगों ने देश के सामर्थ्य, देशवासियों की सामूहिक शक्ति की भरपूर प्रशंसा की है। जब जनता कर्फ्यू जैसा अभिनव प्रयोग, पूरे विश्व के लिए प्रेरणा बना, जब, ताली-थाली बजाकर देश ने हमारे कोरोना वारियर्स का सम्मान किया था, एकजुटता दिखाई थी, उसे भी, कई लोगों ने याद किया है।
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+ देश के सामान्य से सामान्य मानवी ने इस बदलाव को महसूस किया है। मैंने, देश में आशा का एक अद्भुत प्रवाह भी देखा है। चुनौतियाँ खूब आईं। संकट भी अनेक आए। कोरोना के कारण दुनिया में supply chain को लेकर अनेक बाधाएं भी आईं, लेकिन, हमने हर संकट से नए सबक लिए। देश में नया सामर्थ्य भी पैदा हुआ। अगर शब्दों में कहना है, तो इस सामर्थ्य का नाम है ‘आत्मनिर्भरता’।
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+ मुझे विशाखापत्तनम से वेंकट मुरलीप्रसाद जी ने जो लिखा है, उसमें भी एक अलग ही तरह का idea है। वेंकट जी ने लिखा है, मैं, आपको, twenty, twenty one के लिए, दो हजार इक्कीस के लिए, अपना ABCattach कर रहा हूँ। मुझे कुछ समझ में नहीं आया, कि आखिर ABC से उनका क्या मतलब है। तब मैंने देखा कि वेंकट जी ने चिट्ठी के साथ एक चार्ट भी attach कर रखा है। मैंने वो चार्ट देखा, और फिर समझा कि ABCका उनका मतलब है – आत्मनिर्भरभारत चार्ट ABC। यह बहुत ही दिलचस्प है। वेंकट जी ने उन सभी चीजों की पूरी list बनायी है, जिन्हें वो प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं। इसमें electronics, stationery, self care items उसके अलावा और भी बहुत कुछ शामिल हैं।वेंकट जी ने कहा है, कि, हम जाने-अनजाने में, उन विदेशी products का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनके विकल्प भारत में आसानी से उपलब्ध हैं। अब उन्होंने कसम खाई है कि मैं उसी product का इस्तेमाल करूंगा, जिनमें हमारे देशवासियों की मेहनत और पसीना लगा हो।
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+ आइये अब बात करते हैं झारखण्ड की कोरवा जनजाति के हीरामन जी की। हीरामन जी, गढ़वा जिले के सिंजो गाँव में रहते हैं। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कोरवा जनजाति की आबादी महज़ 6,000 है, जो शहरों से दूर पहाड़ों और जंगलों में निवास करती है। अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए हीरामन जी ने एक बीड़ा उठाया है। उन्होंने 12 साल के अथक परिश्रम के बाद विलुप्त होती, कोरवा भाषा का शब्दकोष तैयार किया है। उन्होंने इस शब्दकोष में, घर-गृहस्थी में प्रयोग होने वाले शब्दों से लेकर दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले कोरवा भाषा के ढेर सारे शब्दों को अर्थ के साथ लिखा है। कोरवा समुदाय के लिए हीरामन जी ने जो कर दिखाया है, वह, देश के लिए एक मिसाल है।
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+ ऐसा कहते हैं कि अकबर के दरबार में एक प्रमुख सदस्य – अबुल फजल थे। उन्होंने एक बार कश्मीर की यात्रा के बाद कहा था कि कश्मीर में एक ऐसा नजारा है, जिसे देखकर चिड़चिड़े और गुस्सैल लोग भी खुशी से झूम उठेंगे। दरअसल, वे, कश्मीर में केसर के खेतों का उल्लेख कर थे। केसर, सदियों से कश्मीर से जुड़ा हुआ है। कश्मीरी केसर मुख्य रूप से पुलवामा, बडगाम और किश्तवाड़ जैसी जगहों पर उगाया जाता है। इसी साल मई में, कश्मीरी केसर को Geographical Indication Tag यानि GI Tag दिया गया। इसके जरिए, हम, कश्मीरी केसर को एक Globally Popular Brand बनाना चाहते हैं। कश्मीरी केसर वैश्विक स्तर पर एक ऐसे मसाले के रूप में प्रसिद्ध है, जिसके कई प्रकार के औषधीय गुण हैं। यह अत्यंत सुगन्धित होता है, इसका रंग गाढ़ा होता है और इसके धागे लंबे व मोटे होते हैं। जो इसकी Medicinal Value को बढ़ाते हैं। यह जम्मू और कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। Quality की बात करें, तो, कश्मीर का केसर बहुत unique है और दूसरे देशों के केसर से बिलकुल अलग है। कश्मीर के केसर को GI Tag Recognition से एक अलग पहचान मिली है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि कश्मीरी केसर को GI Tag का सर्टिफिकेट मिलने के बाद दुबई के एक सुपर मार्किट में इसे launch किया गया। अब इसका निर्यात बढ़ने लगेगा। यह आत्मनिर्भर भारत बनाने के हमारे प्रयासों को और मजबूती देगा। केसर के किसानों को इससे विशेष रूप से लाभ होगा। पुलवामा में त्राल के शार इलाके के रहने वाले अब्दुल मजीद वानी को ही देख लीजिए। वह अपने GI Tagged केसर को National Saffron Mission की मदद से पम्पोर के Trading Centre में E-Trading के जरिए बेच रहे हैं।इसके जैसे कई लोग कश्मीर में यह काम कर रहे है। अगली बार जब आप केसर को खरीदने का मन बनायें, तो कश्मीर का ही केसर खरीदने की सोचें। कश्मीरी लोगों की गर्मजोशी ऐसी है कि वहाँ के केसर का स्वाद ही अलग होता है|
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+ अभी हम, जिज्ञासा से, कुछ नया सीखने और करने की बात कर रहे थे। नए साल पर नए संकल्पों की भी बात कर रहे थे। लेकिन, कुछ लोग ऐ��े भी होते हैं जो लगातार कुछ-न-कुछ नया करते रहते हैं, नए-नए संकल्पों को सिद्ध करते रहते हैं। आपने भी अपने जीवन में महसूस किया होगा, जब हम समाज के लिए कुछ करते हैं तो बहुत कुछ करने की उर्जा समाज हमें खुद ही देता है। सामान्य सी लगने वाली प्रेरणाओं से बहुत बड़े काम भी हो जाते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं श्रीमान प्रदीप सांगवान ! गुरुग्राम के प्रदीप सांगवान 2016 से Healing Himalayas नाम से अभियान चला रहे हैं। वो अपनी टीम और volunteers के साथ हिमालय के अलग-अलग इलाकों में जाते हैं, और जो प्लास्टिक कचरा टूरिस्ट वहाँ छोड़कर जाते हैं, वो साफ करते हैं। प्रदीप जी अब तक हिमालय की अलग-अलग टूरिस्ट locations से टनों प्लास्टिक साफ कर चुके हैं। इसी तरह, कर्नाटका के एक युवा दंपति हैं, अनुदीप और मिनूषा। अनुदीप और मिनूषा ने अभी पिछले महीने नवम्बर में ही शादी की है। शादी के बाद बहुत से युवा घूमने फिरने जाते हैं, लेकिन इन दोनों ने कुछ अलग किया। ये दोनों हमेशा देखते थे कि लोग अपने घर से बाहर घूमने तो जाते हैं, लेकिन, जहाँ जाते हैं वहीँ ढ़ेर सारा कूड़ा-कचरा छोड़ कर आ जाते हैं। कर्नाटका के सोमेश्वर beach पर भी यही स्थिति थी। अनुदीप और मिनूषा ने तय किया कि वो सोमेश्वर beach पर, लोग, जो कचरा छोड़कर गए हैं, उसे साफ करेंगे। दोनों पति पत्नी ने शादी के बाद अपना पहला संकल्प यही लिया। दोनों ने मिलकर समंदर तट का काफी कचरा साफ कर डाला। अनुदीप ने अपने इस संकल्प के बारे में सोशल मीडिया पर भी share किया। फिर क्या था, उनकी इतनी शानदार सोच से प्रभावित होकर ढ़ेर सारे युवा उनके साथ आकर जुड़ गए। आप जानकर हैरान रह जाएंगे। इन लोगों ने मिलकर सोमेश्वर beach से 800 किलो से ज्यादा कचरा साफ किया है।
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+ इस महीने, क्रिकेट पिच से भी बहुत अच्छी खबर मिली। हमारी क्रिकेट टीम ने शुरुआती दिक्कतों के बाद, शानदार वापसी करते हुए ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीती। हमारे खिलाड़ियों का hard work और teamwork प्रेरित करने वाला है। इन सबके बीच, दिल्ली में, 26 जनवरी को तिरंगे का अपमान देख, देश, बहुत दुखी भी हुआ। हमें आने वाले समय को नई आशा और नवीनता से भरना है। हमने पिछले साल असाधारण संयम और साहस का परिचय दिया। इस साल भी हमें कड़ी मेहनत करके अपने संकल्पों को सिद्ध करना है। अपने देश को, और तेज गति से, आगे ले जाना है।
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+ साथियो, हम आजादी के आंदोलन और बिहार की बात कर रहें हैं, तो, मैं, NaMo App पर ही की गई एक और टिपण्णी की भी चर्चा करना चाहूँगा। मुंगेर के रहने वाले जयराम विप्लव जी ने मुझे तारापुर शहीद दिवस के बारे में लिखा है। 15 फरवरी, Nineteen thirty two, 1932 को, देशभक्तों की एक टोली के कई वीर नौजवानों की अंग्रेजों ने बड़ी ही निर्ममता से हत्या कर दी थी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माँ की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूँ और उनके साहस का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता हूँ। मैं जयराम विप्लव जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। वे, एक ऐसी घटना को देश के सामने लेकर आए, जिस पर उतनी चर्चा नहीं हो पाई, जितनी होनी चाहिए थी।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, भारत के हर हिस्से में, हर शहर, कस्बे और गाँव में आजादी की लड़ाई पूरी ताकत के साथ लड़ी गई थी। भारत भूमि के हर कोने में ऐसे महान सपूतों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने, राष्ट्र के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया, ऐसे में, यह, बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे लिए किए गए उनके संघर्षों और उनसे जुड़ी यादों को हम संजोकर रखें और इसके लिए उनके बारे में लिख कर हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उनकी स्मृतियों को जीवित रख सकते हैं। मैं, सभी देशवासियों को और खासकर के अपने युवा साथियों को आह्वान करता हूं कि वे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में, आजादी से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखें। अपने इलाके में स्वतंत्रता संग्राम के दौर की वीरता की गाथाओं के बारे में किताबें लिखें। अब, जबकि, भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष मनायेगा, तो आपका लेखन आजादी के नायकों के प्रति उत्तम श्रद्दांजलि होगी। Young Writers के लिए India Seventy Five के निमित्त एक initiative शुरू किया जा रहा है। इससे सभी राज्यों और भाषाओं के युवा लेख��ों को प्रोत्साहन मिलेगा। देश में बड़ी संख्या में ऐसे विषयों पर लिखने वाले writers तैयार होंगे, जिनका भारतीय विरासत और संस्कृति पर गहन अध्ययन होगा। हमें ऐसी उभरती प्रतिभाओं की पूरी मदद करनी है। इससे भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाले thought leaders का एक वर्ग भी तैयार होगा। मैं, अपने युवा मित्रों को इस पहल का हिस्सा बनने और अपने साहित्यिक कौशल का अधिक-से-अधिक उपयोग करने के लिए आमंत्रित करता हूँ। इससे जुड़ी जानकारियाँ शिक्षा मंत्रालय की website से प्राप्त कर सकते हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में श्रोताओं को क्या पसंद आता है, ये आप ही बेहतर जानते हैं। लेकिन मुझे ‘मन की बात’ में सबसे अच्छा ये लगता है कि मुझे बहुत कुछ जानने-सीखने और पढ़ने को मिलता है। एक प्रकार से, परोक्ष रूप से, आप सबसे, जुड़ने का अवसर मिलता है। किसी का प्रयास, किसी का जज़्बा, किसी का देश के लिए कुछ कर गुजर जाने का जुनून – यह सब, मुझे, बहुत प्रेरित करते है, ऊर्जा से भर देते हैं।
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+ हैदराबाद के बोयिनपल्ली में, एक स्थानीय सब्जी मंडी, किस तरह, अपने दायित्व को निभा रही है, ये पढ़कर भी मुझे बहुत अच्छा लगा। हम सबने देखा है कि सब्जी मंडियों में अनेक वजहों से काफी सब्जी खराब हो जाती है। ये सब्जी इधर-उधर फैलती है, गंदगी भी फैलाती हैं लेकिन, बोयिनपल्ली की सब्जी मंडी ने तय किया कि, हर रोज बचने वाली इन सब्जियों को ऐसे ही फेंका नहीं जाएगा। सब्जी मंडी से जुड़े लोगों ने तय किया, इससे, बिजली बनाई जाएगी। बेकार हुई सब्जियों से बिजली बनाने के बारे में शायद ही आपने कभी सुना हो – यही तो innovation की ताकत है। आज बोयिनपल्ली की मंडी में पहले जो waste था, आज उसी से wealth create हो रही है – यही तो कचरे से कंचन बनाने की यात्रा है। वहाँ हर दिन करीब 10 टन waste निकलता है, इसे एक प्लांट में इकठ्ठा कर लिया जाता है। Plant के अंदर इस waste से हर दिन 500 यूनिट बिजली बनती है, और करीब 30 किलो bio fuel भी बनता है। इस बिजली से ही सब्जी मंडी में रोशनी होती है, और, जो, bio fuel बनता है, उससे, मंडी की कैंटीन में खाना बनाया जाता है – है न कमाल का प्रयास!
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+ ऐसा ही एक कमाल, हरियाणा के पंचकुला की बड़ौत ग्राम पंचायत ने भी करके दिखाया है। इस पंचायत के क्षेत्र में पानी की निकासी की समस्या थी। इस वजह से गंदा पानी इधर-उधर फैल रहा था, बीमारी फैलाता था, लेकिन, बड़ौत के लोगों ने तय किया कि इस water waste से भी wealth create करेंगे। ग्रा�� पंचायत ने पूरे गाँव से आने वाले गंदे पानी को एक जगह इकठ्ठा करके filter करना शुरू किया, और filter किया हुआ ये पानी, अब गाँव के किसान, खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, यानी, प्रदूषण, गंदगी और बीमारियों से छुटकारा भी, और खेतों में सिंचाई भी।
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+ साथियो, पर्यावरण की रक्षा से कैसे आमदनी के रास्ते भी खुलते हैं, इसका एक उदाहरण अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भी देखने को मिला। अरुणाचल प्रदेश के इस पहाड़ी इलाके में सदियों से ‘मोन शुगु’ नाम का एक पेपर बनाया जाता है। ये कागज यहाँ के स्थानीय शुगु शेंग नाम के एक पौधे की छाल से बनाते हैं, इसलिए, इस कागज को बनाने के लिए पेड़ों को नहीं काटना पड़ता है। इसके अलावा, इसे बनाने में किसी chemical का इस्तेमाल भी नहीं होता है, यानी, ये कागज पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है, और स्वास्थ्य के लिए भी। एक वो भी समय था, जब, इस कागज का निर्यात होता था, लेकिन, जब आधुनिक तकनीक से बड़ी मात्रा में कागज बनने लगे, तो, ये स्थानीय कला, बंद होने की कगार पर पहुँच गई। अब एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कलिंग गोम्बू ने इस कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है, इससे, यहाँ के आदिवासी भाई-बहनों को रोजगार भी मिल रहा है।
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+ मैंने एक और खबर केरल की देखी है, जो, हम सभी को अपने दायित्वों का एहसास कराती है। केरल के कोट्टयम में एक दिव्यांग बुजुर्ग हैं – एन.एस. राजप्पन साहब। राजप्पन जी paralysis के कारण चलने में असमर्थ हैं, लेकिन इससे, स्वच्छता के प्रति उनके समर्पण में कोई कमी नहीं आई है। वो, पिछले कई सालों से नाव से वेम्बनाड झील में जाते हैं और झील में फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलें बाहर निकाल करके ले आते हैं। सोचिये, राजप्पन जी की सोच कितनी ऊँची है। हमें भी, राजप्पन जी से प्रेरणा लेकर, स्वच्छता के लिए, जहां संभव हो, अपना योगदान देना चाहिए।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले आपने देखा होगा, अमेरिका के San Francisco से बैंगलुरू के लिए एक non-stop flight की कमान भारत की चार women pilots ने संभाली। दस हजार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा सफ़र तय करके ये flight सवा दो-सौ से अधिक यात्रियों को भारत लेकर आई। आपने इस बार 26 जनवरी की परेड में भी गौर किया होगा, जहां, भारतीय वायुसेना की दो women officers ने नया इतिहास रच दिया है। क्षेत्र कोई भी हो, देश की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन, अक्सर हम देखते हैं, कि, देश के गाँवों में हो रहे इसी त��ह के बदलाव की उतनी चर्चा नहीं हो पाती, इसलिए, जब मैंने एक खबर मध्य प्रदेश के जबलपुर की देखी, तो मुझे लगा कि इसका जिक्र तो मुझे ‘मन की बात’ में जरुर करना चाहिए। ये खबर बहुत प्रेरणा देने वाली है। जबलपुर के चिचगांव में कुछ आदिवासी महिलाएं एक rice mill में दिहाड़ी पर काम करती थीं। कोरोना वैश्विक महामारी ने जिस तरह दुनिया के हर व्यक्ति को प्रभावित किया, उसी तरह, ये महिलाएं भी प्रभावित हुईं। उनकी rice mill में काम रुक गया। स्वाभाविक है कि इससे आमदनी की भी दिक्कत आने लगी, लेकिन ये निराश नहीं हुईं, इन्होंने, हार नहीं मानी। इन्होंने तय किया, कि, ये साथ मिलकर अपनी खुद की rice mill शुरू करेंगी। जिस मिल में ये काम करती थीं, वो अपनी मशीन भी बेचना चाहती थी। इनमें से मीना राहंगडाले जी ने सब महिलाओं को जोड़कर ‘स्वयं सहायता समूह’ बनाया, और सबने अपनी बचाई हुई पूंजी से पैसा जुटाया,। जो पैसा कम पड़ा, उसके लिए ‘आजीविका मिशन’ के तहत बैंक से कर्ज ले लिया, और अब देखिये, इन आदिवासी बहनों ने वही rice mill खरीद ली, जिसमें वो कभी काम किया करती थीं। आज वो अपनी खुद की rice mill चला रही हैं। इतने ही दिनों में इस mill ने करीब तीन लाख रूपये का मुनाफ़ा भी कमा लिया है। इस मुनाफे से मीना जी और उनकी साथी, सबसे पहले, बैंक का लोन चुकाने और फिर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए तैयारी कर रही हैं। कोरोना ने जो परिस्थितियां बनाईं, उससे मुकाबले के लिए देश के कोने-कोने में ऐसे अद्भुत काम हुए हैं।
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+ मेरे प्यारे देशवासियो, भारत से हजारों किलोमीटर दूर, कई महासागरों, महाद्वीपों के पार एक देश है, जिसका नाम है Chile। भारत से Chile पहुँचने में बहुत अधिक समय लगता है, लेकिन, भारतीय संस्कृति की खुशबू, वहाँ बहुत समय पहले से ही फैली हुई है। एक और खास बात ये है, कि, वहाँ पर योग बहुत अधिक लोकप्रिय है। आपको यह जानकार अच्छा लगेगा कि Chile की राजधानी Santiago में 30 से ज्यादा योग विद्यालय हैं। Chile में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस भी बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। मुझे बताया गया है कि House of Deputies में योग दिवस को लेकर बहुत ही गर्मजोशी भरा माहौल होता है। कोरोना के इस समय में immunity पर ज़ोर, और immunity बढ़ाने में, योग की ताकत को देखते हुए, अब वे लोग योग को पहले से कहीं ज्यादा महत्व दे रहे हैं। Chile की कांग्रेस, यानी वहाँ की Parliament ने एक प्रस्ताव पारित किया है। वहाँ, 4 नवम्बर को National Yoga Day घोषित किया गया है। अब आप ये सोच सक���े हैं कि आखिर 4 नवम्बर में ऐसा क्या है ? 4 नवम्बर 1962 को ही Chile का पहला योग संस्थान होज़े राफ़ाल एस्ट्राडा द्वारा स्थापित किया था। इस दिन को National Yoga Day घोषित करके Estrada जी को भी श्रद्धांजलि दी गई है। Chile की Parliament द्वारा यह एक विशेष सम्मान है, जिस पर हर भारतीय को गर्व है। वैसे, Chile की संसद से जुड़ी एक और बात आपको दिलचस्प लगेगी। Chile Senate के Vice President का नाम रबिंद्रनाथ क्विन्टेरॉस है। उनका यह नाम विश्व कवि गुरुदेव टैगोर से प्रेरित होकर रखा गया है।
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