मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। 26 जनवरी, हमारा ‘गणतंत्र दिवस’ देश के कोने-कोने में उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। भारत का संविधान, नागरिकों के कर्तव्य, नागरिकों के अधिकार, लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, एक प्रकार से ये संस्कार उत्सव भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र के प्रति, लोकतान्त्रिक जिम्मेवारियों के प्रति, जागरूक भी करता है, संस्कारित भी करता है। लेकिन अभी भी हमारे देश में, नागरिकों के कर्तव्य और नागरिकों के अधिकार – उस पर जितनी बहस होनी चाहिए, जितनी गहराई से बहस होनी चाहिए, जितनी व्यापक रूप में चर्चा होनी चाहिए, वो अभी नहीं हो रही है। मैं आशा करता हूँ कि हर स्तर पर, हर वक़्त, जितना बल अधिकारों पर दिया जाता है, उतना ही बल कर्तव्यों पर भी दिया जाए। अधिकार और कर्तव्य की दो पटरी पर ही, भारत के लोकतंत्र की गाड़ी तेज़ गति से आगे बढ़ सकती है। हमारे देश में सेना के प्रति, सुरक्षा बलों के प्रति, एक सहज आदर भाव प्रकट होता रहता है। इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, विभिन्न वीरता पुरस्कारों से, जो वीर-जवान सम्मानित हुए, उनको, उनके परिवारजनों को, मैं बधाई देता हूँ। इन पुरस्कारों में, ‘कीर्ति चक्र’, ‘शौर्य चक्र’, ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’, ‘विशिष्ट सेवा मेडल’ – अनेक श्रेणियाँ हैं। मैं ख़ास करके नौजवानों से आग्रह करना चाहता हूँ। आप social media में बहुत active हैं। आप एक काम कर सकते हैं? इस बार, जिन-जिन वीरों को ये सम्मान मिला है – आप Net पर खोजिए, उनके संबंध में दो अच्छे शब्द लिखिए और अपने साथियों में उसको पहुँचाइए। जब उनके साहस की, वीरता की, पराक्रम की बात को गहराई से जानते हैं, तो हमें आश्चर्य भी होता है, गर्व भी होता है, प्रेरणा भी मिलती है। खैर, सवाल तो सृष्टि ने पूछा है, लेकिन ये सवाल आप सबके मन में होगा। परीक्षा अपने-आप में एक ख़ुशी का अवसर होना चाहिये। साल भर मेहनत की है, अब बताने का अवसर आया है, ऐसा उमंग-उत्साह का ये पर्व होना चाहिए। बहुत कम लोग हैं, जिनके लिए exam में pleasure होती है, ज़्यादातर लोगों के लिए exam एक pressure होती है। निर्णय आपको करना है कि इसे आप pleasure मानेंगे कि pressure मानेंगे। जो pleasure मानेगा, वो पायेगा; जो pressure मानेगा, वो पछताएगा। और इसलिये मेरा मत है कि परीक्षा एक उत्सव है, परीक्षा को ऐसे लीजिए, जैसे मानो त्योहार है। और जब त्योहार होता है, जब उत्सव होता है, तो हमारे भीतर जो सबसे best होता है, वही बाहर निकल कर के आता है। समाज की भी ताक़त की अनुभूति उत्सव के समय होती है। जो उत्तम से उत्तम है, वो प्रकट होता है। सामान्य रूप से हमको लगता है कि हम लोग कितने Indisciplined हैं, लेकिन जब 40-45 दिन चलने वाले कुम्भ के मेलों की व्यवस्था देखें, तो पता चलता है कि ये make-shift arrangement और क्या discipline है लोगों में। ये उत्सव की ताक़त है। exam में भी पूरे परिवार में, मित्रों के बीच, आस-पड़ोस के बीच एक उत्सव का माहौल बनना चाहिये। आप देखिए, ये pressure, pleasure में convert हो जाएगा। उत्सवपूर्ण वातावरण बोझमुक्त बना देगा। और मैं इसमें माता-पिता को ज़्यादा आग्रह से कहता हूँ कि आप इन तीन-चार महीने एक उत्सव का वातावरण बनाइए। पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी-अपनी भूमिका उत्साह से निभाए। देखिए, देखते ही देखते बदलाव आ जाएगा। हक़ीक़त तो ये है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक और कच्छ से ले करके कामरूप तक, अमरेली से ले करके अरुणाचल प्रदेश तक, ये तीन-चार महीने परीक्षा ही परीक्षायें होती हैं। ये हम सब का दायित्व है कि हम हर वर्ष इन तीन-चार महीनों को अपने-अपने तरीक़े से, अपनी-अपनी परंपरा को लेते हुए, अपने-अपने परिवार के वातावरण को लेते हुए, उत्सव में परिवर्तित करें। और इसलिए मैं तो आपसे कहूँगा ‘smile more score more’. जितनी ज़्यादा ख़ुशी से इस समय को बिताओगे, उतने ही ज़्यादा नंबर पाओगे, करके देखिए। और आपने देखा होगा कि जब आप खुश होते हैं, मुस्कुराते हैं, तो आप relax अपने-आप को पाते हैं। आप सहज रूप से relax हो जाते हैं और जब आप relax होते हैं, तो आपकी वर्षों पुरानी बातें भी सहज रूप से आपको याद आ जाती हैं। एक साल पहले classroom में teacher ने क्या कहा, पूरा दृश्य याद आ जाता है। और आपको ये पता होना चाहिए, memory को recall करने का जो power है, वो relaxation में सबसे ज़्यादा होता है। अगर आप तनाव में है, तो सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं, बाहर का अंदर नहीं जाता, अंदर का बाहर नहीं आता है। विचार प्रक्रिया में ठहराव आ जाता है, वो अपने-आप में एक बोझ बन जाता है। exam में भी आपने देखा होगा, आपको सब याद आता है। किताब याद आती है, chapter याद आता है, page number याद आता है, page में ऊपर की तरफ़ लिखा है कि नीचे की तरफ़, वो भी याद आता है, लेकिन वो particular शब्द याद नहीं आता है। लेकिन जैसे ही exam दे करके बाहर निकलते हो और थोड़ा सा कमरे के बाहर आए, अचानक आपको याद आ जाता है – हाँ यार, यही शब्द था। अंदर क्यों याद नहीं आया, pressure था। बाहर कैसे याद आया? आप ही तो थे, किसी ने बताया तो नहीं था। लेकिन जो अंदर था, तुरंत बाहर आ गया और बाहर इसलिये आया, क्योंकि आप relax हो गए। और इसलिये memory recall करने की सबसे बड़ी अगर कोई औषधि है, तो वो relaxation है। और ये मैं अपने स्वानुभव से कहता हूँ कि अगर pressure है, तो अपनी चीज़ें हम भूल जाते हैं और relax हैं, तो कभी हम कल्पना नहीं कर सकते, अचानक ऐसी-ऐसी चीज़ें याद आ जाती हैं, वो बहुत काम आ जाती हैं। और ऐसा नहीं है कि आप के पास knowledge नहीं है, ऐसा नहीं है कि आप के पास Information नहीं है, ऐसा नहीं है कि आपने मेहनत नहीं की है। लेकिन जब tension होता है, तब आपका knowledge, आपका ज्ञान, आपकी जानकारी नीचे दब जाती हैं और आपका tension उस पर सवार हो जाता है। और इसलिये आवश्यक है, ‘A happy mind is the secret for a good mark-sheet’. कभी-कभी ये भी लगता है कि हम proper perspective में परीक्षा को देख नहीं पाते हैं। ऐसा लगता है कि वो जीवन-मरण का जैसे सवाल है। आप जो exam देने जा रहे हैं, वो साल भर में आपने जो पढ़ाई की है, उसकी exam है। ये आपके जीवन की कसौटी नहीं है। आपने कैसा जीवन जिया, कैसा जीवन जी रहे हो, कैसा जीवन जीना चाहते हो, उसकी exam नहीं है। आपके जीवन में, classroom में, notebook ले करके दी गई परीक्षा के सिवाय भी कई कसौटियों से गुज़रने के अवसर आए होंगे। और इसलिये, परीक्षा को जीवन की सफलता-विफलता से कोई लेना-देना है, ऐसे बोझ से मुक्त हो जाइए। हमारे सबके सामने, हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी का बड़ा प्रेरक उदाहरण है। वे वायुसेना में भर्ती होने गए, fail हो गए। मान लीजिए, उस विफलता के कारण अगर वो मायूस हो जाते, ज़िंदगी से हार जाते, तो क्या भारत को इतना बड़ा वैज्ञानिक मिलता, इतने बड़े राष्ट्रपति मिलते! नहीं मिलते। कोई ऋचा आनंद जी ने मुझे एक सवाल भेजा है: – “आज के इस दौर में शिक्षा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती देख पाती हूँ, वो यह कि शिक्षा परीक्षा केन्द्रित हो कर रह गयी है। अंक सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसकी वजह से प्रतिस्पर्द्धा तो बहुत बढ़ी ही है, साथ में विद्यार्थियों में तनाव भी बहुत बढ़ गया है। तो शिक्षा की इस वर्तमान दिशा और इसके भविष्य को ले करके आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी।” ऋचा जी, ने एक बात ये भी कही है ‘प्रतिस्पर्द्धा’। ये एक बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक लड़ाई है। सचमुच में, जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा काम नहीं आती है। जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अनुस्पर्द्धा काम आती है और जब हम अनुस्पर्द्धा मैं कहता हूँ, तो उसका मतलब है, स्वयं से स्पर्द्धा करना। बीते हुए कल से आने वाला कल बेहतर कैसे हो? बीते हुए परिणाम से आने वाला अवसर अधिक बेहतर कैसे हो? अक्सर आपने खेल जगत में देखा होगा। क्योंकि उसमें तुरंत समझ आता है, इसलिए मैं खेल जगत का उदहारण देता हूँ। ज़्यादातर सफल खिलाड़ियों के जीवन की एक विशेषता है कि वो अनुस्पर्द्धा करते हैं। अगर हम श्रीमान सचिन तेंदुलकर जी का ही उदहारण ले लें। बीस साल लगातार अपने ही record तोड़ते जाना, खुद को ही हर बार पराजित करना और आगे बढ़ना। बड़ी अदभुत जीवन यात्रा है उनकी, क्योंकि उन्होंने प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा अनुस्पर्द्धा का रास्ता अपनाया। बहुत साल पहले की बात है। हमारे एक परिचित व्यक्ति heart attack के कारण अस्पताल में थे, तो हमारे भारत के लोक सभा के पहले Speaker गणेश दादा मावलंकर, उनके पुत्र पुरुषोत्तम मावलंकर, वो कभी M.P. भी रहे थे, वो उनकी तबीयत देखने आए। मैं उस समय मौजूद था और मैंने देखा कि उन्होंने आ करके उनकी तबीयत के संबंध में एक भी सवाल नहीं पूछा। बैठे और आते ही उन्होंने वहाँ क्या स्थिति है, बीमारी कैसी है, कोई बातें नहीं, चुटकुले सुनाना शुरू कर दिया और पहले दो-चार मिनट में ही ऐसा माहौल उन्होंने हल्का-फुल्का कर दिया। एक प्रकार से बीमार व्यक्ति को जाकर के जैसे हम बीमारी से डरा देते हैं। अभिभावकों से मैं कहना चाहूँगा, कभी-कभी हम भी बच्चों के साथ ऐसा ही करते हैं। क्या आपको कभी लगा कि exam के दिनों में बच्चों को हँसी-ख़ुशी का भी कोई माहौल दें। आप देखिए, वातावरण बदल जाएगा। “नमस्कार, प्रधानमंत्री जी, मैं अपना नाम तो नहीं बता सकता, क्योंकि मैंने काम ही कुछ ऐसा किया था अपने बचपन में। मैंने बचपन में एक बार नक़ल करने की कोशिश की थी, उसके लिये मैंने बहुत तैयारी करना शुरू किया कि मैं कैसे नक़ल कर सकता हूँ, उसके तरीक़ों को ढूँढ़ने की कोशिश की, जिसकी वजह से मेरा बहुत सारा time बर्बाद हो गया। उस time में मैं पढ़ करके भी उतने ही नंबर ला सकता था, जितना मैंने नक़ल करने के लिए दिमाग लगाने में ख़र्च किया। और जब मैंने नक़ल करके पास होने की कोशिश की, तो मैं उसमें पकड़ा भी गया और मेरी वजह से मेरे आस-पास के कई दोस्तों को काफ़ी परेशानी हुई।” मान लीजिए, आप भी अपने रास्तों को गड्ढे में परिवर्तित कर रहे हो और मैंने तो देखा है, कुछ लोग ऐसे होते हैं कि नक़ल के तौर-तरीक़े ढूँढ़ने में इतनी talent का उपयोग कर देते हैं, इतना Investment कर देते हैं; अपनी पूरी creativity जो है, वो नक़ल करने के तौर-तरीक़ों में खपा देते हैं। अगर वही creativity, यही time आप अपने exam के मुद्दों पर देते, तो शायद नक़ल की ही ज़रुरत नहीं पड़ती। अपनी ख़ुद की मेहनत से जो परिणाम प्राप्त होगा, उससे जो आत्मविश्वास बढ़ेगा, वो अद्भुत होगा। “नमस्कार, प्रधानमंत्री जी। My name is Monica and since I am a class 12th student, I wanted to ask you a couple of questions regarding the Board Exams. My first question is, what can we do to reduce the stress that builds up during our exams and my second question is, why exams all about work and no play are. Thank you.”