मेरे प्यारे देशवासियो, हम अलग-अलग colleges में, universities में, schools में पढ़ते तो हैं, लेकिन, पढाई पूरी होने के बाद alumni meet एक बहुत ही सुहाना अवसर होता है और alumni meet,ये सब नौजवान मिलकर के पुरानी यादों में खो जाते हैं,जिनकी, 10 साल, 20 साल, 25 साल पीछे चली जाती हैं।लेकिन, कभी-कभी ऐसी alumni meet, विशेष आकर्षण का कारण बन जाती है, उस पर ध्यान जाता है और देशवासियों का भी ध्यान उस तरफ जाना बहुत जरुरी होता है। Alumni meet, दरअसल, पुराने दोस्तों के साथ मिलना, यादों को ताज़ा करना, इसका अपना एक अलग ही आनंद है और जब इसके साथ shared purpose हो, कोई संकल्प हो, कोई भावात्मक लगाव जुड़ जाए, फिर तो, उसमें कई रंग भर जाते हैं।आपने देखा होगा कि alumni group कभी-कभी अपने स्कूलों के लिए कुछ-न-कुछ योगदान देते हैं।कोई computerized करने के लिए व्यवस्थायें खड़ी कर देते हैं,कोई अच्छी library बना देते हैं, कोई अच्छी पानी की सुविधायें खड़ी कर देते हैं,कुछ लोग नए कमरे बनाने के लिए करते हैं,कुछ लोग sports complex के लिए करते हैं।कुछ-न-कुछ कर लेते हैं।उनको आनंद आता है कि जिस जगह पर अपनी ज़िन्दगी बनी उसके लिए जीवन में कुछ करना, ये, हर किसी के मन में रहता है और रहना भी चाहिएऔर इसके लिए लोग आगे भी आते हैं।लेकिन, मैं आज किसी एक विशेष अवसर को आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ I अभी पिछले दिनों, मीडिया में, बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के भैरवगंज हेल्थ सेंटर की कहानी जब मैंने सुनी, मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं आप लोगों को बताये बिना रह नहीं सकता हूँ I इस भैरवगंज Healthcentre के, यानि, स्वास्थ्य केंद्र में, मुफ्त में, health check up करवाने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोगों की भीड़ जुट गई I अब, ये कोई बात सुन करके, आपको, आश्चर्य नहीं होगा। आपको लगता है, इसमें क्या नई बात है?आये होंगे लोग ! जी नहीं! बहुत कुछ नया है।ये कार्यक्रम सरकार का नहीं था, न ही सरकार का initiative था।ये वहां के K.R High School, उसके जो पूर्व-छात्र थे, उनकी जो Alumni Meet थी, उसके तहत उठाया गया कदम था, और, इसका नाम दिया था ‘संकल्प Ninety Five’। ‘संकल्प Ninety Five’ का अर्थ है- उस High School के 1995 (Nineteen Ninety Five) Batch के विद्यार्थियों का संकल्प I दरअसल, इस Batch के विद्यार्थियों ने एक Alumni Meet रखी और कुछ अलग करने के लिए सोचा Iइसमें पूर्व-छात्रों ने, समाज के लिए, कुछ करने की ठानी और उन्होंने जिम्मा उठाया Public Health Awareness का I‘संकल्प Ninety Five’ की इस मुहिम में बेतिया के सरकारी Medical College और कई अस्पताल भी जुड़ गये।उसके बाद तो, जैसे, जन-स्वास्थ्य को लेकर एक पूरा अभियान ही चल पड़ा।निशुल्क जाँच हो, मुफ्त में दवायें देना हो, या फिर, जागरूकता फ़ैलाने का, ‘संकल्प Ninety Five’ हर किसी के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है I हम अक्सर ये बात कहते हैं कि जब देश का हर नागरिक एक कदम आगे बढ़ता है, तो ये देश, 130 करोड़ कदम आगे बढ़ जाता है I ऐसी बातें जब समाज में प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलती हैं तो हर किसी को आनंद आता है, संतोष मिलता है और जीवन में कुछ करने की प्ररेणा भी मिलती है I एक तरफ, जहाँ बिहार के बेतिया में,पूर्व-छात्रों के समूह नेस्वास्थ्य-सेवा का बीड़ा उठाया, वहीं उत्तर प्रदेश के फूलपुर की कुछ महिलाओं ने अपनी जीवटता से, पूरे इलाके को प्रेरणा दी है। इन महिलाओं ने साबित किया है कि अगर एकजुटता के साथ कोई संकल्प ले तो फिर परिस्थितियों को बदलने से कोई रोक नहीं सकता। कुछ समय पहले तक, फूलपुर की ये महिलाएँ आर्थिक तंगी और गरीबी से परेशान थीं, लेकिन, इनमें अपने परिवार और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा था I इन महिलाओं ने, कादीपुर के स्वंय सहायता समूह,Women Self Help Group उसके साथ जुड़कर चप्पल बनाने का हुनर सीखा, इससे इन्होंने, न सिर्फ अपने पैरों में चुभे मजबूरी के कांटे को निकाल फेंका, बल्कि, आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का सम्बल भी बन गईं I ग्रामीण आजीविका मिशन की मदद से अब तो यहाँ चप्पल बनाने काplant भीस्थापित हो गया है, जहाँ, आधुनिक मशीनों से चप्पलें बनाई जा रही हैं। मैं विशेष रूप से स्थानीय पुलिस और उनके परिवारों को भी बधाई देता हूँ, उन्होंने, अपने लिए और अपने परिजनों के लिए, इन महिलाओं द्वारा बनाई गई चप्पलों को खरीदकर, इनको प्रोत्साहित किया है।आज, इन महिलाओं के संकल्प से न केवल उनके परिवार के आर्थिक हालत मजबूत हुए हैं, बल्कि, जीवन स्तर भी ऊँचा उठा है I जब फूलपुर के पुलिस के जवानों की या उनके परिवारजनों की बातें सुनता हूँ तो आपको याद होगा कि मैंने लाल किले से 15 अगस्त को देशवासियों को एक बात के लिए आग्रह किया था और मैंने कहा था कि हम देशवासी local खरीदने का आग्रह रखें।आज फिर से एक बार मेरा सुझाव है, क्या हम स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों को प्रोत्साहन दे सकते हैं? क्या अपनी खरीदारी में उन्हें प्राथमिकता दे सकतें हैं? क्या हम Local Products को अपनी प्रतिष्ठा और शान से जोड़ सकते हैं? क्या हम इस भावना के साथ अपने साथी देशवासियों के लिए समृद्धि लाने का माध्यम बन सकते हैं? साथियो, महात्मा गाँधी ने, स्वदेशी की इस भावना को, एक ऐसे दीपक के रूप में देखा, जो, लाखों लोगों के जीवन को रोशन करता हो। ग़रीब-से-ग़रीब के जीवन में समृद्धि लाता हो। सौ-साल पहले गाँधी जी ने एक बड़ा जन-आन्दोलन शुरू किया था। इसका एक लक्ष्य था, भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना। आत्मनिर्भर बनने का यही रास्ता गाँधी जी ने दिखाया था। दो हज़ार बाईस (2022) में, हम हमारी आज़ादी के 75 साल पूरे करेंगे।जिस आज़ाद भारत में हम सांस ले रहे हैं, उस भारत को आज़ाद कराने के लिए लक्ष्यावधि सपूतोंने, बेटे-बेटियों ने, अनेक यातनाएं सही हैं, अनेकों ने प्राण की आहुति दी है।लक्ष्यावधि लोगों के त्याग, तपस्या, बलिदान के कारण, जहाँ आज़ादी मिली, जिस आज़ादी का हम भरपूर लाभ उठा रहे हैं, आज़ाद ज़िन्दगी हम जी रहे हैं और देश के लिए मर-मिटने वाले, देश के लिए जीवन खपाने वाले, नामी-अनामी, अनगिनत लोग, शायद, मुश्किल से हम, बहुत कम ही लोगों के नाम जानते होंगे, लेकिन, उन्होंने बलिदान दिया – उस सपनों को ले करके, आज़ाद भारत के सपनों को ले करके – समृद्ध, सुखी, सम्पन्न, आज़ाद भारत के लिए ! मेरे प्यारे देशवासियो, क्या हम संकल्प कर सकते हैं, कि 2022, आज़ादी के 75 वर्ष हो रहे हैं, कम-से-कम, ये दो-तीन साल, हम स्थानीय उत्पाद खरीदने के आग्रही बनें? भारत में बना, हमारे देशवासियों के हाथों से बना, हमारे देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो, ऐसी चीजों को, हम, खरीद करने का आग्रह कर सकते हैं क्या ? मैं लम्बे समय के लिए नहीं कहता हूँ, सिर्फ 2022 तक, आज़ादी के 75 साल हो तब तक। और ये काम, सरकारी नहीं होना चाहिए, स्थान-स्थान पर नौजवान आगे आएं, छोटे-छोटे संगठन बनायें, लोगों को प्रेरित करें, समझाएं और तय करें – आओ, हम लोकल खरीदेंगे, स्थानीय उत्पादों पर बल देंगे, देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो – वही, मेरे आज़ाद भारत का सुहाना पल हो, इन सपनों को लेकर के हम चलें। मेरे प्यारे देशवासियों , मुझे सुझाव बहुत आते हैं लेकिन मैं कह सकता हूँ कि इस प्रकार का सुझाव शायद पहली बार मेरे पास आया है।वैसे विज्ञान पर, कई पहलुओं पर बातचीत करने का मौका मिला है।खासकर के युवा पीढ़ी के आग्रह पर मुझे बातचीत करने का अवसर मिला है। लेकिन ये विषय तो अछूता ही रहा था और अभी 26 तारीख को ही सूर्य-ग्रहण हुआ है तो लगता है कि शायद इस विषय में आपको भी कुछ न कुछ रूचि रहेगी।तमाम देशवासियों , विशेष तौर पर मेरे युवा-साथियों की तरह मैं भी,जिस दिन, 26 तारीख को, सूर्य-ग्रहण था, तो देशवासियों की तरह मुझे भी और जैसे मेरी युवा-पीढ़ी के मन में जो उत्साह था वैसे मेरे मन में भी था, और मैं भी, सूर्य-ग्रहण देखना चाहता था, लेकिन, अफसोस की बात ये रही कि उस दिन, दिल्ली में आसमान में बादल छाए हुए थे और मैं वो आनन्द तो नहीं ले पाया, हालाँकि, टी.वी पर कोझीकोड और भारत के दूसरे हिस्सों में दिख रहे सूर्य-ग्रहण की सुन्दर तस्वीरें देखने को मिली। सूर्य चमकती हुई ring के आकार का नज़र आ रहा था।और उस दिन मुझे कुछ इस विषय के जो experts हैं उनसे संवाद करने का अवसर भी मिला और वो बता रहे थे कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि चंद्रमा, पृथ्वी से काफी दूर होता है और इसलिए, इसका आकार, पूरी तरह से सूर्य को ढक नहीं पाता है।इस तरह से, एक ring का आकार बन जाता है।यह सूर्य ग्रहण, एक annular solar eclipse जिसे वलय-ग्रहण या कुंडल-ग्रहण भी कहते हैं।ग्रहण हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हम पृथ्वी पर रहकर अंतरिक्ष में घूम रहे हैं । अंतरिक्ष में सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों जैसे और खगोलीय पिंड घूमते रहते हैं । चंद्रमा की छाया से ही हमें, ग्रहण के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं । साथियो, भारत में Astronomy यानि खगोल-विज्ञान का बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है । आकाश में टिमटिमाते तारों के साथ हमारा संबंध, उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी सभ्यता है । आप में से बहुत लोगों को पता होगा कि भारत के अलग-अलग स्थानों में बहुत ही भव्य जंतर-मंतर हैं , देखने योग्य हैं । और, इस जंतर-मंतर का Astronomy से गहरा संबंध है । महान आर्यभट की विलक्षण प्रतिभा के बारे में कौननहीं जानता ! अपनी काल -क्रिया में उन्होंने सूर्य-ग्रहण के साथ-साथ, चन्द्र-ग्रहण की भी विस्तार से व्याख्या की है । वो भी philosophical और mathematical, दोनों ही angle से की है । उन्होंने mathematically बताया कि पृथ्वी की छाया या shadow की size का calculation कैसे कर सकते हैं।उन्होंने ग्रहण के duration और extent को calculate करने की भी सटीक जानकारियाँ दी। भास्कर जैसे उनके शिष्यों ने इस spirit को और इस knowledge को आगे बढ़ाने के लिएभरसक प्रयास किये।बाद में, चौदहवीं–पंद्रहवीं सदी में, केरल में, संगम ग्राम के माधव, इन्होंने ब्रहमाण्ड में मौजूद ग्रहों की स्थिति की गणना करने के लिए calculus का उपयोग किया।रात में दिखने वाला आसमान, सिर्फ, जिज्ञासा का ही विषय नहीं था बल्कि गणित की दृष्टि से सोचने वालों और वैज्ञानिकों के लिए एक महवपूर्ण sourceथा।कुछ वर्ष पहले मैंने ‘Pre-Modern Kutchi (कच्छी) Navigation Techniques and Voyages’, इस पुस्तक का अनावरण किया था । ये पुस्तक एक प्रकार से तो ‘मालम (maalam) की डायरी’ है । मालम, एक नाविक के रूप में जो अनुभव करते थे, उन्होंने, अपने तरीक़े से उसको डायरी में लिखा था । आधुनिक युग में उसी मालम की पोथी को और वो भी गुजराती पांडुलिपियों का संग्रह, जिसमें, प्राचीन navigation technology का वर्णन करती है और उसमें बार-बार ‘मालम नी पोथी’ में आसमान का, तारों का, तारों की गति का, वर्णन किया है, और ये, साफ बताया है कि समन्दर में यात्रा करते समय, तारों के सहारे, दिशा तय की जाती है। Destination पर पहुँचने का रास्ता, तारे दिखाते हैं । हमारे देश के Planetarium, Night Sky को समझने के साथ Star Gazing को शौक के रूप में विकसित करने के लिए भी motivate करते हैं।कई लोग Amateur telescopes को छतों या Balconies में लगाते हैं। Star Gazing से Rural Camps और Rural Picnic को भी बढ़ावा मिल सकता है। और कई ऐसे school-colleges हैंजो Astronomy के club भी गठन करते हैं और इस प्रयोग को आगे भी बढ़ाना चाहिए।