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मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मैं सरदार पटेल के विचारों को पढ़ रहा था। तो कुछ बातों पर मेरा ध्यान गया और उनकी एक बात मुझे बहुत पसंद आई। खादी के संबंध में सरदार पटेल ने कहा है, हिन्दुस्तान की आज़ादी खादी में ही है, हिन्दुस्तान की सभ्यता भी खादी में ही है, हिन्दुस्तान में जिसे हम परम धर्म मानते हैं, वह अहिंसा खादी में ही है और हिन्दुस्तान के किसान, जिनके लिए आप इतनी भावना दिखाते हैं, उनका कल्याण भी खादी में ही है। सरदार साहब सरल भाषा में सीधी बात बताने के आदी थे और बहुत बढ़िया ढंग से उन्होंने खादी का माहात्म्य बताया है। मैंने कल 30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य तिथि पर देश में खादी एवं ग्रामोद्योग से जुड़े हुए जितने लोगों तक पहुँच सकता हूँ, मैंने पत्र लिख करके पहुँचने का प्रयास किया। वैसे पूज्य बापू विज्ञान के पक्षकार थे, तो मैंने भी टेक्नोलॉजी का ही उपयोग किया और टेक्नोलॉजी के माध्यम से लाखों ऐसे भाइयों–बहनों तक पहुँचने का प्रयास किया है। खादी अब एक symbol बना है, एक अलग पहचान बना है। अब खादी युवा पीढ़ी के भी आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है और खास करके जो-जो holistic health care और organic की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनके लिए तो एक उत्तम उपाय बन गया है। फ़ैशन के रूप में भी खादी ने अपनी जगह बनाई है और मैं खादी से जुड़े लोगों का अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने खादी में नयापन लाने के लिए भरपूर प्रयास किया है। अर्थव्यवस्था में बाज़ार का अपना महत्व है। खादी ने भी भावात्मक जगह के साथ-साथ बाज़ार में भी जगह बनाना अनिवार्य हो गया है। जब मैंने लोगों से कहा कि अनेक प्रकार के fabrics आपके पास हैं, तो एक खादी भी तो होना चाहिये। और ये बात लोगों के गले उतर रही है कि हाँ भई, खादीधारी तो नहीं बन सकते, लेकिन अगर दसों प्रकार के fabric हैं, तो एक और हो जाए। लेकिन साथ-साथ मेरी बात को सरकार में भी एक सकारात्मक माहौल पनप रहा है। बहुत सालों पहले सरकार में खादी का भरपूर उपयोग होता था। लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता के नाम पर ये सब ख़त्म होता गया और खादी से जुड़े हुए हमारे ग़रीब लोग बेरोज़गार होते गए। खादी में करोड़ों लोगों को रोज़गार देने की ताकत है। पिछले दिनों रेल मंत्रालय, पुलिस विभाग, भारतीय नौसेना, उत्तराखण्ड का डाक-विभाग – ऐसे कई सरकारी संस्थानों ने खादी के उपयोग में बढ़ावा देने के लिए कुछ अच्छे Initiative लिए हैं और मुझे बताया गया कि सरकारी विभागों के इस प्रयासों के परिणामस्वरूप खादी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए, इस requirement को पूरा करने के लिए, सरकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अतिरिक्त – extra – 18 लाख मानव दिन का रोज़गार generate होगा। 18 lakh man-days, ये अपने आप में एक बहुत बड़ा jump होगा। पूज्य बापू भी हमेशा Technology के up-gradation के प्रति बहुत ही सजग थे और आग्रही भी थे और तभी तो हमारा चरखा विकसित होते-होते यहाँ पहुँचा है। इन दिनों solar का उपयोग करते हुए चरखा चलाना, solar energy चरखे के साथ जोड़ना बहुत ही सफल प्रयोग रहा है। उसके कारण मेहनत कम हुई है, उत्पादन बढ़ा है और qualitative गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। ख़ास करके solar चरखे के लिए लोग मुझे बहुत सारी चिट्ठियाँ भेजते रहते हैं। राजस्थान के दौसा से गीता देवी, कोमल देवी और बिहार के नवादा ज़िले की साधना देवी ने मुझे पत्र लिखकर कहा है कि solar चरखे के कारण उनके जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। हमारी आय double हो गयी है और हमारा जो सूत है, उसके प्रति भी आकर्षण बढ़ा है। ये सारी बातें एक नया उत्साह बढ़ाती हैं। और 30 जनवरी, पूज्य बापू को जब स्मरण करते हैं, तो मैं फिर एक बार दोहराऊँगा – इतना तो अवश्य करें कि अपने ढेर सारे कपड़ों में एक खादी भी रहे, इसके आग्रही बनें। प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी का पर्व बहुत उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। चारों तरफ़, आतंकवादी क्या करेंगे, इसकी चिंता के बीच देशवासियों ने हिम्मत दिखाई, हौसला दिखाया और आन-बान-शान के साथ प्रजासत्ताक पर्व मनाया। लेकिन कुछ लोगों ने हट करके कुछ बातें कीं और मैं चाहूँगा कि ये बातें ध्यान देने जैसी हैं, ख़ास-करके हरियाणा और गुजरात, दो राज्यों ने एक बड़ा अनोखा प्रयोग किया। इस वर्ष उन्होंने हर गाँव में जो गवर्नमेंट स्कूल है, उसका ध्वजवंदन करने के लिए, उन्होंने उस गाँव की जो सबसे पढ़ी-लिखी बेटी है, उसको पसंद किया। हरियाणा और गुजरात ने बेटी को माहात्म्य दिया। पढ़ी-लिखी बेटी को विशेष माहात्म्य दिया। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ – इसका एक उत्तम सन्देश देने का उन्होंने प्रयास किया। मैं दोनों राज्यों की इस कल्पना शक्ति को बधाई देता हूँ और उन सभी बेटियों को बधाई देता हूँ, जिन्हें ध्वजवंदन, ध्वजारोहण का अवसर मिला। हरियाणा में तो और भी बात हुई कि गत एक वर्ष में जिस परिवार में बेटी का जन्म हुआ है, ऐसे परिवारजनों को 26 जनवरी के निमित्त विशेष निमंत्रित किया और वी.आई.पी. के रूप में प्रथम पंक्ति में उनको स्थान दिया। ये अपने आप में इतना बड़ा गौरव का पल था और मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का प्रारंभ हरियाणा से किया था, क्योंकि हरियाणा में sex-ratio में बहुत गड़बड़ हो चुकी थी। एक हज़ार बेटों के सामने जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या बहुत कम हो गयी थी। बड़ी चिंता थी, सामाजिक संतुलन खतरे में पड़ गया था। और जब मैंने हरियाणा पसंद किया, तो मुझे हमारे अधिकारियों ने कहा था कि नहीं-नहीं साहब, वहाँ मत कीजिए, वहाँ तो बड़ा ही negative माहौल है। लेकिन मैंने काम किया और मैं आज हरियाणा का ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इस बात को अपनी बात बना लिया और आज बेटियों के जन्म की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो रही है। मैं सचमुच में वहाँ के सामाजिक जीवन में जो बदलाव आया है, उसके लिए अभिनन्दन करता हूँ। मेरे प्यारे देशवासियो, एक काम के लिये मुझे आपकी मदद चाहिए और मुझे विश्वास है कि आप मेरी मदद करेंगे। हमारे देश में किसानों के नाम पर बहुत-कुछ बोला जाता है, बहुत-कुछ कहा जाता है। खैर, मैं उस विवाद में उलझना नहीं चाहता हूँ। लेकिन किसान का एक सबसे बड़ा संकट है, प्राकृतिक आपदा में उसकी पूरी मेहनत पानी में चली जाती है। उसका साल बर्बाद हो जाता है। उसको सुरक्षा देने का एक ही उपाय अभी तो ध्यान में आता है और वो है फ़सल बीमा योजना। 2016 में भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा तोहफ़ा किसानों को दिया है – ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’। लेकिन ये योजना की तारीफ़ हो, वाहवाही हो, प्रधानमंत्री को बधाइयाँ मिलें, इसके लिये नहीं है। इतने सालों से फ़सल बीमा की चर्चा हो रही है, लेकिन देश के 20-25 प्रतिशत से ज़्यादा किसान उसके लाभार्थी नहीं बन पाए हैं, उससे जुड़ नहीं पाए है। क्या हम संकल्प कर सकते हैं कि आने वाले एक-दो साल में हम कम से कम देश के 50 प्रतिशत किसानों को फ़सल बीमा से जोड़ सकें? बस, मुझे इसमें आपकी मदद चाहिये। क्योंकि अगर वो फ़सल बीमा के साथ जुड़ता है, तो संकट के समय एक बहुत बड़ी मदद मिल जाती है। और इस बार ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ की इतनी जनस्वीकृति मिली है, क्योंकि इतना व्यापक बना दिया गया है, इतना सरल बना दिया गया है, इतनी टेक्नोलॉजी का Input लाए हैं। और इतना ही नहीं, फ़सल कटने के बाद भी अगर 15 दिन में कुछ होता है, तो भी मदद का आश्वासन दिया है। टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, उसकी गति तेज़ कैसे हो, बीमा के पैसे पाने में विलम्ब न हो – इन सारी बातों पर ध्यान दिया गया है। सबसे बड़ी बात है कि फ़सल बीमा की प्रीमियम की दर, इतनी नीचे कर दी गयी, इतनी नीचे कर दी गयी हैं, जो शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। नयी बीमा योजना में किसानों के लिये प्रीमियम की अधिकतम सीमा खरीफ़ की फ़सल के लिये दो प्रतिशत और रबी की फ़सल के लिए डेढ़ प्रतिशत होगी। अब मुझे बताइए, मेरा कोई किसान भाई अगर इस बात से वंचित रहे, तो नुकसान होगा कि नहीं होगा? आप किसान नहीं होंगे, लेकिन मेरी मन की बात सुन रहे हैं। क्या आप किसानों को मेरी बात पहुँचायेंगे? और इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इसको अधिक प्रचारित करें। इसके लिए इस बार मैं एक आपके लिये नयी योजना भी लाया हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ ये बात लोगों तक पहुँचे। और ये बात सही है कि टी.वी. पर, रेडियो पर मेरी ‘मन की बात’ आप सुन लेते हैं। लेकिन बाद में सुनना हो तो क्या? अब मैं आपको एक नया तोहफ़ा देने जा रहा हूँ। क्या आप अपने मोबाइल फ़ोन पर भी मेरे ‘मन की बात’ सुन सकते हैं और कभी भी सुन सकते हैं। आपको सिर्फ़ इतना ही करना है – बस एक missed call कर दीजिए अपने मोबाइल फ़ोन से। ‘मन की बात’ के लिये मोबाइल फ़ोन का नंबर तय किया है – 8190881908. आठ एक नौ शून्य आठ, आठ एक नौ शून्य आठ। आप missed call करेंगे, तो उसके बाद कभी भी ‘मन की बात’ सुन पाएँगे। फ़िलहाल तो ये हिंदी में है, लेकिन बहुत ही जल्द आपको अपनी मातृभाषा में भी ‘मन की बात’ सुनने का अवसर मिलेगा। इसके लिए भी मेरा प्रबन्ध जारी है। मेरे प्यारे देशवासियो, स्वच्छता अब सौन्दर्य के साथ भी जुड़ रही है। बहुत सालों तक हम गंदगी के खिलाफ़ नाराज़गी व्यक्त करते रहे, लेकिन गंदगी नहीं हटी। अब देशवासियों ने गंदगी की चर्चा छोड़ स्वच्छता की चर्चा शुरू की है और स्वच्छता का काम कहीं-न-कहीं, कुछ-न-कुछ चल ही रहा है। लेकिन अब उसमें एक कदम नागरिक आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने स्वच्छता के साथ सौन्दर्य जोड़ा है। एक प्रकार से सोने पे सुहागा और ख़ास करके ये बात नज़र आ रही है रेलवे स्टेशनों पर। मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों देश के कई रेलवे स्टेशन पर वहाँ के स्थानीय नागरिक, स्थानीय कलाकार, students – ये अपने-अपने शहर का रेलवे स्टेशन सजाने में लगे हैं। स्थानीय कला को केंद्र में रखते हुए दीवारों का पेंटिंग रखना, साइन-बोर्ड अच्छे ढंग से बनाना, कलात्मक रूप से बनाना, लोगों को जागरूक करने वाली भी चीज़ें उसमें डालनी हैं, न जाने क्या-क्या कर रहे हैं! मुझे बताया किसी ने कि हज़ारीबाग़ के स्टेशन पर आदिवासी महिलाओं ने वहाँ की स्थानीय सोहराई और कोहबर आर्ट की डिज़ाइन से पूरे रेलवे स्टेशन को सज़ा दिया है। ठाणे ज़िले के 300 से ज़्यादा volunteers ने किंग सर्किल स्टेशन को सजाया, माटुंगा, बोरीवली, खार। इधर राजस्थान से भी बहुत ख़बरें आ रही हैं, सवाई माधोपुर, कोटा। ऐसा लग रहा है कि हमारे रेलवे स्टेशन अपने आप में हमारी परम्पराओं की पहचान बन जायेंगे। हर कोई अब खिड़की से चाय-पकौड़े की लॉरी वालों को नहीं ढूंढ़ेगा, ट्रेन में बैठे-बैठे दीवार पर देखेगा कि यहाँ की विशेषता क्या है। और ये न रेलवे का Initiative था, न नरेन्द्र मोदी का Initiative था। ये नागरिकों का था। देखिये नागरिक करते हैं, तो कैसा करते हैं जी। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि मुझे कुछ तो तस्वीरें मिली हैं, लेकिन मेरा मन करता है कि मैं और तस्वीरें देखूँ। क्या आप, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर या कहीं और स्वच्छता के साथ सौन्दर्य के लिए कुछ प्रयास किया है, क्या मुझे आप भेज सकते हैं? ज़रूर भेजिए। मैं तो देखूँगा, लोग भी देखेंगे और औरों को भी प्रेरणा मिलेगी। और रेलवे स्टेशन पर जो हो सकता है, वो बस स्टेशन पर हो सकता है, वो अस्पताल में हो सकता है, वो स्कूल में हो सकता है, मंदिरों के आस-पास हो सकता है, गिरजाघरों के आस-पास हो सकता है, मस्जिदों के आस-पास हो सकता है, बाग़-बगीचे में हो सकता है, कितना सारा हो सकता है! जिन्होंने ये विचार आया और जिन्होंने इसको शुरू किया और जिन्होंने आगे बढ़ाया, सब अभिनन्दन के अधिकारी हैं। लेकिन हाँ, आप मुझे फ़ोटो ज़रूर भेजिए, मैं भी देखना चाहता हूँ, आपने क्या किया है! |