MUTANT / mankibaat /25.txt
RajveeSheth's picture
Upload 58 files
78f51b8 verified
raw
history blame
25.8 kB
मेरे प्यारे देशवासियों, वैसे जब भी ‘मन की बात’ का समय आता है, तो MyGov पर या NarendraModiApp पर अनेकों-अनेक सुझाव आते हैं। विविधता से भरे हुए होते हैं, लेकिन मैंने देखा कि इस बार तो ज्यादातर, हर किसी ने मुझे आग्रह किया कि Rio Olympic के संबंध में आप ज़रूर कुछ बातें करें। सामान्य नागरिक का Rio Olympic के प्रति इतना लगाव, इतनी जागरूकता और देश के प्रधानमंत्री पर दबाव करना कि इस पर कुछ बोलो, मैं इसको एक बहुत सकारात्मक देख रहा हूँ। क्रिकेट के बाहर भी भारत के नागरिकों में और खेलों के प्रति भी इतना प्यार है, इतनी जागरूकता है और उतनी जानकारियाँ हैं। मेरे लिए तो यह संदेश पढ़ना, ये भी एक अपने आप में, बड़ा प्रेरणा का कारण बन गया। एक श्रीमान अजित सिंह ने NarendraModiApp पर लिखा है – “कृपया इस बार ‘मन की बात’ में बेटियों की शिक्षा और खेलों में उनकी भागीदारी पर ज़रूर बोलिए, क्योंकि Rio Olympic में medal जीतकर उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है।” कोई श्रीमान सचिन लिखते हैं कि आपसे अनुरोध है कि इस बार के ‘मन की बात’ में सिंधु, साक्षी और दीपा कर्माकर का ज़िक्र ज़रूर कीजिए। हमें जो पदक मिले, बेटियों ने दिलाए। हमारी बेटियों ने एक बार फिर साबित किया कि वे किसी भी तरह से, किसी से भी कम नहीं हैं। इन बेटियों में एक उत्तर भारत से है, तो एक दक्षिण भारत से है, तो कोई पूर्व भारत से है, तो कोई हिन्दुस्तान के किसी और कोने से है। ऐसा लगता है, जैसे पूरे भारत की बेटियों ने देश का नाम रोशन करने का बीड़ा उठा लिया है|
मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ, तो मुझे तो मेरे शिक्षकों की इतनी कथायें याद हैं, क्योंकि हमारे छोटे से गाँव में तो वो ही हमारे Hero हुआ करते थे। लेकिन मैं आज ख़ुशी से कह सकता हूँ कि मेरे एक शिक्षक – अब उनकी 90 साल की आयु हो गयी है – आज भी हर महीने उनकी मुझे चिट्ठी आती है। हाथ से लिखी हुई चिट्ठी आती है। महीने भर में उन्होंने जो किताबें पढ़ी हैं, उसका कहीं-न-कहीं ज़िक्र आता है, quotations आता है। महीने भर मैंने क्या किया, उनकी नज़र में वो ठीक था, नहीं था। जैसे आज भी मुझे class room में वो पढ़ाते हों। वे आज भी मुझे एक प्रकार से correspondence course करा रहे हैं। और 90 साल की आयु में भी उनकी जो handwriting है, मैं तो आज भी हैरान हूँ कि इस अवस्था में भी इतने सुन्दर अक्षरों से वो लिखते हैं और मेरे स्वयं के अक्षर बहुत ही खराब हैं, इसके कारण जब भी मैं किसी के अच्छे अक्षर देखता हूँ, तो मेरे मन में आदर बहुत ज़्यादा ही हो जाता है। जैसे मेरे अनुभव हैं, आपके भी अनुभव होंगे। आपके शिक्षकों से आपके जीवन में जो कुछ भी अच्छा हुआ है, अगर दुनिया को बताएँगे, तो शिक्षक के प्रति देखने के रवैये में बदलाव आएगा, एक गौरव होगा और समाज में हमारे शिक्षकों का गौरव बढ़ाना हम सबका दायित्व है। आप NarendraModiApp पर, अपने शिक्षक के साथ फ़ोटो हो, अपने शिक्षक के साथ की कोई घटना हो, अपने शिक्षक की कोई प्रेरक बात हो, आप ज़रूर share कीजिए। देखिए, देश में शिक्षक के योगदान को विद्यार्थियों की नज़र से देखना, यह भी अपने आप में बहुत मूल्यवान होता है।
ये बात सही है कि उत्सव समाज की शक्ति होता है। उत्सव व्यक्ति और समाज के जीवन में नये प्राण भरता है। उत्सव के बिना जीवन असंभव होता है। लेकिन समय की माँग के अनुसार उसको ढालना भी पड़ता है। इस बार मैंने देखा है कि मुझे कई लोगों ने ख़ास करके गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा – उन चीजों पर काफ़ी लिखा है। और उनको चिंता हो रही है पर्यावरण की। कोई श्रीमान शंकर नारायण प्रशांत करके हैं, उन्होंने बड़े आग्रह से कहा है कि मोदी जी, आप ‘मन की बात’ में लोगों को समझाइए कि Plaster of Paris से बनी हुई गणेश जी की मूर्तियों का उपयोग न करें। क्यों न गाँव के तालाब की मिट्टी से बने हुए गणेश जी का उपयोग करें! POP की बनी हुई प्रतिमायें पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं होती हैं। उन्होंने तो बहुत पीड़ा व्यक्त की है, औरों ने भी की है। मैं भी आप सब से प्रार्थना करता हूँ, क्यों न हम मिट्टी का उपयोग करके गणेश की मूर्तियाँ, दुर्गा की मूर्तियाँ – हमारी उस पुरानी परंपरा पर वापस क्यों न आएं। पर्यावरण की रक्षा, हमारे नदी-तालाबों की रक्षा, उसमें होने वाले प्रदूषण से इस पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा – ये भी ईश्वर की सेवा ही तो है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। तो हमें ऐसे गणेश जी नहीं बनाने चाहिए, जो विघ्न पैदा करें। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी इन बातों को आप किस रूप में लेंगे। लेकिन ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूँ, कई लोग हैं और मैंने कइयों के विषय में कई बार सुना है – पुणे के एक मूर्तिकार श्रीमान अभिजीत धोंड़फले, कोल्हापुर की संस्थायें निसर्ग-मित्र, विज्ञान प्रबोधिनी। विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग-कट्टा, पुणे की ज्ञान प्रबोधिनी, मुंबई के गिरगाँवचा राजा। ऐसी अनेक-विद संस्थायें, व्यक्ति मिट्टी के गणेश के लिए बहुत मेहनत करते हैं, प्रचार भी करते हैं। Eco-friendly गणेशोत्सव – ये भी एक समाज सेवा का काम है। दुर्गा पूजा के बीच अभी समय है। अभी हम तय करें कि हमारे उन पुराने परिवार जिस मूर्तियाँ बनाते थे, उनको भी रोजगार मिलेगा और तालाब या नदी की मिट्टी से बनेगा, तो फिर से उसमें जा कर के मिल जाएगा, तो पर्यावरण की भी रक्षा होगी। आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज़्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी। किसी ने अंग्रेज़ी में लिख दिया, किसी ने हिंदी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। Toilet बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे, तो चलेगा, लेकिन Toilet ज़रूर बनाओ। Iसात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया। और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना emotional impact हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन school आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी Teacher को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फ़लानी तारीख तक वह Toilet बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई, उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया, उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गंभीर ले करके Toilet बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।
कर्नाटक के कोप्पाल ज़िला, इस ज़िले में सोलह साल की उम्र की एक बेटी मल्लम्मा – इस बेटी ने अपने परिवार के ख़िलाफ़ ही सत्याग्रह कर दिया। वो सत्याग्रह पर बैठ गई। कहते हैं कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था और वो भी ख़ुद के लिए कुछ माँगने के लिये नहीं, कोई अच्छे कपड़े लाने के लिये नहीं, कोई मिठाई खाने के लिये नहीं, बेटी मल्लम्मा की ज़िद ये थी कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। अब परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी, बेटी ज़िद पर अड़ी हुई थी, वो अपना सत्याग्रह छोड़ने को तैयार नहीं थी। गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी, उनको पता चला कि मल्लम्मा ने Toilet के लिए सत्याग्रह किया है, तो गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी की भी विशेषता देखिए कि उन्होंने अठारह हज़ार रुपयों का इंतज़ाम किया और एक सप्ताह के भीतर-भीतर Toilet बनवा दिया। ये बेटी मल्लम्मा की ज़िद की ताक़त देखिए और मोहम्मद शफ़ी जैसे गाँव के प्रधान देखिए। समस्याओं के समाधान के लिए कैसे रास्ते खोले जाते हैं, यही तो जनशक्ति है I
मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की हमेशा-हमेशा ये कोशिश रही है कि हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध गहरे हों, हमारे संबंध सहज हों, हमारे संबंध जीवंत हों। एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण बात पिछले दिनों हुई, हमारे राष्ट्रपति आदरणीय “प्रणब मुखर्जी” ने कोलकाता में एक नये कार्यक्रम की शुरुआत की ‘“आकाशवाणी मैत्री चैनल’”। अब कई लोगों को लगेगा कि राष्ट्रपति को क्या एक Radio के Channel का भी उद्घाटन करना चाहिये क्या? लेकिन ये सामान्य Radio की Channel नहीं है, एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण क़दम है। हमारे पड़ोस में बांग्लादेश है। हम जानते हैं, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल एक ही सांस्कृतिक विरासत को ले करके आज भी जी रहे हैं। तो इधर “आकाशवाणी मैत्री” और उधर “बांग्लादेश बेतार। वे आपस में content share करेंगे और दोनों तरफ़ बांग्लाभाषी लोग “आकाशवाणी” का मज़ा लेंगे। People to People Contact का “आकाशवाणी” का एक बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रपति जी ने इसको launch किया। मैं बांग्लादेश का भी इसके लिये धन्यवाद करता हूँ कि इस काम के लिये हमारे साथ वे जुड़े। मैं आकाशवाणी के मित्रों को भी बधाई देता हूँ कि विदेश नीति में भी वे अपना contribution दे रहे हैं।
देशवासियो, आपको पता होगा कि मैंने कोशिश की है कि जिन-जिन लोगों ने Gas Subsidy छोड़ दी, उनको एक पत्र भेजूँ और कोई-न-कोई मेरा प्रतिनिधि उनको रूबरू जा कर के पत्र दे। एक करोड़ से ज़्यादा लोगों को पत्र लिखने का मेरा प्रयास है। उसी योजना के तहत मेरा ये पत्र इस माँ के पास पहुँचा। उन्होंने मुझे पत्र लिखा कि आप अच्छा काम कर रहे हैं। गरीब माताओं को चूल्हे के धुएं से मुक्ति का आपका अभियान और इसलिए मैं एक retired teacher हूँ, कुछ ही वर्षों में मेरी उम्र 90 साल हो जायेगी, मैं एक 50 हज़ार रूपये का donation आपको भेज रही हूँ, जिससे आप ऐसी ग़रीब माताओं को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए काम में लगाना। आप कल्पना कर सकते हैं, एक सामान्य शिक्षक के नाते retired pension पर गुज़ारा करने वाली माँ, जब 50 हज़ार रूपए और गरीब माताओं-बहनों को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए और gas connection देने के लिए देती हो। सवाल 50 हज़ार रूपये का नहीं है, सवाल उस माँ की भावना का है और ऐसी कोटि-कोटि माँ-बहनें उनके आशीर्वाद ही हैं, जिससे मेरा देश के भविष्य के लिए भरोसा और ताक़तवर बन जाता है। और मुझे चिट्ठी भी उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नहीं लिखी। सीधा-साधा पत्र लिखा – “मोदी भैया। उस माँ को मैं प्रणाम करता हूँ और भारत की इन कोटि-कोटि माताओं को भी प्रणाम करता हूँ कि जो ख़ुद कष्ट झेल करके हमेशा कुछ-न-कुछ किसी का भला करने के लिए करती रहती हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले वर्ष अकाल के कारण हम परेशान थे, लेकिन ये अगस्त महीना लगातार बाढ़ की कठिनाइयों से भरा रहा। देश के कुछ हिस्सों में बार-बार बाढ़ आई। राज्य सरकारों ने, केंद्र सरकार ने, स्थानीय स्वराज संस्था की इकाइयों ने, सामाजिक संस्थाओं ने, नागरिकों ने, जितना भी कर सकते हैं, करने का पूरा प्रयास किया। लेकिन इन बाढ़ की ख़बरों के बीच भी, कुछ ऐसी ख़बरें भी रही, जिसका ज़्यादा स्मरण होना ज़रूरी था। एकता की ताकत क्या होती है, साथ मिल कर के चलें, तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है ? ये इस वर्ष का अगस्त महीना याद रहेगा। अगस्त, 2016 में घोर राजनैतिक विरोध रखने वाले दल, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ एक भी मौका न छोड़ने वाले दल, और पूरे देश में क़रीब-क़रीब 90 दल, संसद में भी ढेर सारे दल, सभी दलों ने मिल कर के GST का क़ानून पारित किया। इसका credit सभी दलों को जाता है। और सब दल मिल करके एक दिशा में चलें, तो कितना बड़ा काम होता है, उसका ये उदाहरण है। उसी प्रकार से कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, उस कश्मीर की स्थिति के संबंध में, देश के सभी राजनैतिक दलों ने मिल करके एक स्वर से कश्मीर की बात रखी। दुनिया को भी संदेश दिया, अलगाववादी तत्वों को भी संदेश दिया और कश्मीर के नागरिकों के प्रति हमारी संवेदनाओं को भी व्यक्त किया। और कश्मीर के संबंध में मेरा सभी दलों से जितना interaction हुआ, हर किसी की बात में से एक बात ज़रूर जागृत होती थी। अगर उसको मैंने कम शब्दों में समेटना हो, तो मैं कहूँगा कि एकता और ममता, ये दो बातें मूल मंत्र में रहीं। और हम सभी का मत है, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का मत है, गाँव के प्रधान से ले करके प्रधानमंत्री तक का मत है कि कश्मीर में अगर कोई भी जान जाती है, चाहे वह किसी नौजवान की हो या किसी सुरक्षाकर्मी की हो, ये नुकसान हमारा ही है, अपनों का ही है, अपने देश का ही है। जो लोग इन छोटे-छोटे बालकों को आगे करके कश्मीर में अशांति पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं, कभी-न-कभी उनको इन निर्दोष बालकों को भी जवाब देना पड़ेगा।