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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।‘मन की बात’ शुरू करते हुए आज मन भरा हुआ है। 10 दिन पूर्व, भारत-माता ने अपने वीर सपूतों को खो दिया। इन पराक्रमी वीरों ने, हम सवा-सौ करोड़ भारतीयों की रक्षा में ख़ुद को खपा दिया। देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसलिए, इन हमारे वीर सपूतों ने, रात-दिन एक करके रखा था। पुलवामा के आतंकी हमले में, वीर जवानों की शहादत के बाद देश-भर में लोगों को, और लोगों के मन में, आघात और आक्रोश है।शहीदों और उनके परिवारों के प्रति, चारों तरफ संवेदनाएँ उमड़ पड़ी हैं। इस आतंकी हिंसा के विरोध में, जो आवेग आपके और मेरे मन में है, वही भाव, हर देशवासी के अंतर्मन में है और मानवता में विश्वास करने वाले विश्व के भी मानवतावादी समुदायों में है। भारत-माता की रक्षा में,अपने प्राण न्योछावर करने वाले, देश के सभी वीर सपूतों को, मैं नमन करता हूँ।यह शहादत, आतंक को समूल नष्ट करने के लिए हमें निरन्तर प्रेरित करेगी,हमारे संकल्प को और मजबूत करेगी। देश के सामने आयी इस चुनौती का सामना,हम सबको जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद और बाकिसभी मतभेदों को भुलाकर करना है ताकि आतंक के खिलाफ़ हमारे कदम पहले से कहीं अधिक दृढ़ हों, सशक्त हों और निर्णायक हों। हमारे सशस्त्र बल हमेशा ही अद्वितीय साहस और पराक्रम का परिचय देते आये हैं। शांति की स्थापना के लिए जहाँ उन्होंने अद्भुत क्षमता दिखायी है वहीँ हमलावरों को भी उन्हीं की भाषा में जबाव देने का काम किया है। आपने देखा होगा कि हमले के 100 घन्टे के भीतर ही किस प्रकार से कदम उठाये गये हैं। सेना ने आतंकवादियों और उनके मददगारों के समूल नाश का संकल्प ले लिया है। वीर सैनिकों की शहादत के बाद, मीडिया के माध्यम से उनके परिजनों की जो प्रेरणादायी बातें सामने आयी हैं उसने पूरे देश के हौंसले को और बल दिया है।बिहार के भागलपुर के शहीद रतन ठाकुर के पिता रामनिरंजन जी ने,दुःख की इस घड़ी में भी जिस ज़ज्बे का परिचय दिया है, वह हम सबको प्रेरित करता है।उन्होंने कहा कि वे अपने दूसरे बेटे को भी दुश्मनों से लड़ने के लिए भेजेंगे और जरुरत पड़ी तो ख़ुद भी लड़ने जाएँगे। ओड़िशा के जगतसिंह पुर के शहीद प्रसन्ना साहू की पत्नी मीना जी के अदम्य साहस को पूरा देश सलाम कर रहा है। उन्होंने अपने इकलौते बेटे को भी CRPF join कराने का प्रण लिया है। जब तिरंगे में लिपटे शहीद विजय शोरेन का शव झारखण्ड के गुमला पहुँचा तो मासूम बेटे ने यही कहा कि मैं भी फौज़ में जाऊँगा।इस मासूम का जज़्बा आज भारतवर्ष के बच्चे-बच्चे की भावना को व्यक्त करता है। ऐसी ही भावनाएँ, हमारे वीर, पराक्रमी शहीदों के घर-घर में देखने को मिल रही हैं।हमारा एक भी वीर शहीद इसमें अपवाद नहीं है, उनका परिवार अपवाद नहीं है। चाहे वो देवरिया के शहीद विजय मौर्य का परिवार हो, कांगड़ा के शहीद तिलकराज के माता-पिता हों या फिर कोटा के शहीद हेमराज का छः साल का बेटा हो – शहीदों के हर परिवार की कहानी,प्रेरणा से भरी हुई हैं। मैं युवा-पीढ़ी से अनुरोध करूँगा कि वो, इन परिवारों ने जो जज़्बा दिखाया है, जो भावना दिखायी है उसको जानें, समझने का प्रयास करें। देशभक्ति क्या होती है, त्याग-तपस्या क्या होती है – उसके लिए हमें इतिहास की पुरानी घटनाओं की ओर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। हमारी आँखों के सामने, ये जीते-जागते उदहारण हैं और यही उज्ज्वल भारत के भविष्य के लिए प्रेरणा का कारण हैं।
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मेरे प्यारे देशवासियो, आजादी के इतने लम्बे समय तक, हम सबको, जिस war memorial का इन्तजार था, वह अब ख़त्म होने जा रहा है।इसके बारे में देशवासियों की जिज्ञासा, उत्सुकता बहुत स्वाभाविक है।NarendraModiApp पर उडुपी, कर्नाटक के श्री ओंकार शेट्टी जी ने National War Memorial तैयार होने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की है। मुझे आश्चर्य भी होता था और पीड़ा भी कि भारत में कोई National War Memorial नहीं था। एक ऐसा मेमोरियल, जहाँ राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर जवानों की शौर्य-गाथाओं को संजो कर रखा जा सके। मैंने निश्चय किया कि देश में, एक ऐसा स्मारक अवश्य होना चाहिये।
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मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ के लिए आपके हजारों पत्र और comment, मुझे अलग-अलग माध्यमों से पढ़ने को मिलते रहते हैं। इस बार जब मैं आपके comment पढ़ रहा था तब मुझे ‘आतिश मुखोपाध्याय जी’ की एक बहुत ही रोचक टिप्पणी मेरे ध्यान में आई। उन्होंने लिखा है कि वर्ष 1900 में 3 मार्च को, अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया था तब उनकी उम्र सिर्फ 25 साल की थी ये संयोग ही है कि 3 मार्च को ही जमशेदजी टाटा की जयंती भी है। और वे आगे लिखते हैं ये दोनों व्यक्तित्व पूरी तरह से दो अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं जिन्होंने झारखण्ड की विरासत और इतिहास को समृद्ध किया। ‘मन की बात’ में ‘बिरसा मुंडा’ और ‘जमशेदजी टाटा’ को श्रद्दांजलि देने का एक प्रकार से झारखण्ड के गौरवशाली इतिहास और विरासत को नमन् करने जैसा है। आतिश जी मैं आपसे सहमत हूँ। इन दो महान विभूतियों ने झारखण्ड का नहीं पूरे देश का नाम बढ़ाया है। पूरा देश उनके योगदान के लिए कृतज्ञ है। आज, अगर हमारे नौजवानों को मार्गदर्शन के लिए किसी प्रेरणादायी व्यक्तित्व की जरुरत है तो वह है भगवान‘बिरसा मुंडा’। अंग्रेजों ने छिप कर, बड़ी ही चालाकी से उन्हें उस वक़्त पकड़ा था जब वे सो रहे थे। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ऐसी कायरतापूर्ण कार्यवाही का सहारा क्यों लिया ? क्योंकि इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले अंग्रेज भी उनसे भयभीत रहते थे। भगवान‘बिरसा मुंडा’ ने सिर्फ अपने पारंपरिक तीर-कमान से ही बंदूकों और तोपों से लैस अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया था। दरअसल, जब लोगों को एक प्रेरणादायी नेतृत्व मिलता है तो फिर हथियारों की शक्ति पर लोगों की सामूहिक इच्छाशक्ति भारी पड़ती है। भगवान ‘बिरसा मुंडा’ ने अंग्रेजों से ना केवल राजनीतिक आज़ादी के लिए संघर्ष किया बल्कि आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। अपने छोटे से जीवन में उन्होंने ये सब कर दिखाया। वंचितों और शोषितों के अंधेरे से भरे जीवन में सूरज की तरह चमक बिखेरी। भगवान बिरसा मुंडा ने 25 वर्ष की अल्प आयु में ही अपना बलिदान दे दिया। बिरसा मुंडा जैसे भारत माँ के सपूत, देश के हर भाग में हुए है। शायद हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा होगा कि सदियों तक चली हुई आज़ादी की इस जंग में, किसी ने योगदान ना दिया हो। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इनके त्याग, शौर्य और बलिदान की कहानियाँ नई पीढ़ी तक पहुँची ही नहीं। अगर, भगवान ‘बिरसा मुंडा’ जैसे व्यक्तित्व ने हमें अपने अस्तित्व का बोध कराया तो जमशेदजी टाटा जैसी शख्सियत ने देश को बड़े-बड़े संस्थान दिए। जमशेदजी टाटा सही मायने में एक दूरदृष्टा थे, जिन्होंने ना केवल भारत के भविष्य को देखा बल्कि उसकी मजबूत नींव भी रखी। वे भलीभांति जानते थे कि भारत को science, technology और industry का hub बनाना भविष्य के लिए आवश्यक है। ये उनका ही vision था जिसके परिणामस्वरूप Tata Institute of Science की स्थापना हुई जिसे अब Indian Institute of Science कहा जाता है। यही नहीं उन्होंने Tata Steel जैसे कई विश्वस्तरीय संस्थानों को और उद्योगों की भी स्थापना की।‘जमशेदजी टाटा’ और ‘स्वामी विवेकानंद जी’ की मुलाकात अमेरिकी यात्रा के दौरान ship में हुई थी, तब उन दोनों की चर्चा में एक महत्वपूर्ण topic भारत में science और technology के प्रचार-प्रसार से जुड़ा हुआ था। कहते हैं… इसी चर्चा से Indian Institute of Science की नींव पड़ी।
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मेरे प्यारे देशवासियो, हर साल की तरह इस बार भीपद्म अवार्ड को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता थी। आज हम एक न्यू इंडिया की ओर अग्रसर हैं। इसमें हम उन लोगों का सम्मान करना चाहते हैं जो grass-root level पर अपना कामनिष्काम भाव से कर रहे हैं। अपने परिश्रम के बल पर अलग-अलग तरीके से दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।दरअसल वे सच्चे कर्मयोगी हैं, जो जनसेवा, समाजसेवा और इन सबसे से बढ़कर राष्ट्रसेवा में निःस्वार्थ जुटे रहते हैं। आपने देखा होगा जब पद्म अवार्ड की घोषणा होती है तो लोग पूछते हैं कि ये कौन है ? एक तरह से इसे मैं बहुत बड़ी सफलता मानता हूँ क्योंकि ये वो लोग हैं जो T.V., Magazine या अख़बारों के front page पर नहीं हैं। ये चकाचौंध की दुनिया से दूर हैं, लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जो अपने नाम की परवाह नहीं करते बस जमीनी स्तर पर काम करने में विश्वास रखते हैं। ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ गीता के सन्देश को वो एक प्रकार से जीते हैं। मैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आपको बताना चाहता हूँ। ओडिशा के दैतारी नायक के बारे में आपने जरुर सुना होगा उन्हें ‘Canal Man of the Odisha’ यूँ ही नहीं कहा जाता, दैतारी नायक ने अपने गाँव में अपने हाथों से पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर तक नहर का रास्ता बना दिया। अपने परिश्रम से सिंचाई और पानी की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म कर दी। गुजरात के अब्दुल गफूर खत्री जी को ही लीजिए,उन्होंने कच्छ के पारंपरिक रोगन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का अद्भुत कार्य किया। वे इस दुर्लभ चित्रकारी को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का बड़ा कार्य कर रहे हैं। अब्दुल गफूर द्वारा बनाई गई ‘Tree of Life’ कलाकृति को ही मैंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उपहार में दिया था। पद्म पुरस्कार पाने वालों में मराठवाड़ा के शब्बीर सैय्यद गौ-माता के सेवक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने जिस प्रकार अपना पूरा जीवन गौमाता की सेवा में खपा दिया ये अपने आप में अनूठा है। मदुरै चिन्ना पिल्लई वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सबसे पहले तमिलनाडु में कलन्जियम आन्दोलन के जरिए पीड़ितों और शोषितों को सशक्त करने का प्रयास किया। साथ ही समुदाय आधारित लघु वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत की। अमेरिका की Tao Porchon-Lynch के बारे में सुनकर आप सुखद आश्चर्य से भर जाएंगे।Lynch आज योग की जीती-जागती संस्था बन गई है।सौ वर्ष की उम्र में भी वे दुनिया भर के लोगों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैंऔर अब तक डेढ़ हज़ार लोगों को योग शिक्षक बना चुकी हैं। झारखण्ड में ‘Lady Tarzan’ के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया उन्होंने न केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया। ये जमुना जी के परिश्रम का ही प्रताप है कि आज गाँववाले हर बच्चे के जन्म पर 18 पेड़ और लड़की की शादी पर 10 पेड़ लगाते हैं। गुजरात की मुक्ताबेन पंकजकुमार दगली की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी, खुद दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के उत्थान के लिए जो कार्य किए, ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है। चक्षु महिला सेवाकुन्ज नाम की संस्था की स्थापना कर वे नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के पुनीत कार्य में जुटी हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की किसान चाची, यानि राजकुमारी देवी की कहानी बहुत ही प्रेरक है। महिला सशक्तिकरण और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने एक मिसाल पेश की है। किसान चाची ने अपने इलाके की 300 महिलाओं को ‘Self Help Group’ से जोड़ा और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गाँव की महिलाओं को खेती के साथ ही रोज़गार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण दिया। खास बात यह है कि उन्होंने खेती के साथ technology को जोड़ने का काम किया और मेरे देशवासियों, शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि इस वर्ष जो पद्म पुरस्कार दिए गए उसमें 12 किसानों को पद्म पुरस्कार मिले हैं। आमतौर पर कृषि जगत से जुड़े हुए बहुत ही कम लोग और प्रत्यक्ष किसानी करने वाले बहुत ही कम लोग पद्मश्री की सूची में आये हैं। ये अपने आप में, ये बदलते हुए हिन्दुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है।
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मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आज आप सब के साथ एक ऐसे दिल को छूने वाले अनुभव के बारे में बात करना चाहता हूँ जो पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ। आजकल देश में जहाँ भी जा रहा हूँ, मेरा प्रयास रहता है कि ‘आयुष्मान भारत’ की योजना PM-JAY यानि PM जन आरोग्य योजना के कुछ लाभार्थियों से मिलूं। कुछ लोगों से बातचीत करने का अवसर मिला है। अकेली माँ उसके छोटे बच्चे पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पा रही थी। इस योजना से उसका इलाज हुआ और वो स्वस्थ हो गई। घर का मुखिया, मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार की देखभाल करने वाला accident का शिकार हो गया, काम नहीं कर पा रहा था – इस योजना से उसको लाभ मिला और वो पुनः स्वस्थ हुआ, नई ज़िन्दगी जीने लगा।
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कुछ दिन पहले दिल्ली में ‘परीक्षा पे चर्चा’ का एक बहुत बड़ा आयोजन Town Hall के format में हुआ। इस Town Hall कार्यक्रम में मुझे technology के माध्यम से, देश-विदेश के करोड़ों students के साथ, उनके अभिभावकों के साथ, teachers के साथ, बात करने का अवसर मिला। ‘परीक्षा पे चर्चा’ इसकी एक विशेषता यह रही कि परीक्षा से जुड़ें विभिन्न विषयों पर खुल कर बातचीत हुई। कई ऐसे पहलू सामने आए जो निश्चित रूप से विद्यार्थियों के लिए लाभदायक हो सकते हैं। सभी विद्यार्थी, उनके शिक्षक, माता-पिता YouTube पर इस पूरे कार्यक्रम की recording देख सकते हैं,तो आने वाली परीक्षा के लिए मेरे सभी exam warriors को ढ़ेरो शुभकामनाएँ।
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मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की बात हो और त्यौहार की बात न हो। ऐसा हो ही नहीं सकता। शायद ही हमारे देश में कोई दिन ऐसा नहीं होता है, जिसका महत्व ही न हो, जिसका कोई त्यौहार न हो। क्योंकि हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति की ये विरासत हमारे पास है। कुछ दिन बाद महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है और इस बार तो शिवरात्रि सोमवार को है और जब शिवरात्रि सोमवार को हो तो उसका एक विशेष महत्व हमारे मन-मंदिर में छा जाता है। इस शिवरात्रि के पावन पर्व पर मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं।
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दोस्तों, चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है। अगले दो महीने, हम सभी चुनाव की गहमा-गहमी में व्यस्त होगें। मैं स्वयं भी इस चुनाव में एक प्रत्याशी रहूँगा। स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुएअगली ‘मन की बात’ मई महीने के आखरी रविवार को होगी। यानि कि मार्च महीना, अप्रैल महीना और पूरा मई महीना ये तीन महीने की सारी हमारी जो भावनाएँ हैं उन सबको मैं चुनाव के बाद एक नए विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की ताकत के साथ फिर एक बार ‘मन की बात’ के माध्यम से हमारी बातचीत के सिलसिले का आरम्भ करूँगा और सालों तक आपसे ‘मन की बात’ करता रहूँगा। फिर एक बार आप सबका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ।
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