MUTANT / mankibaat /54.txt
RajveeSheth's picture
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जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा था, राजनेताओं तक सीमित नहीं रहा था, जेल के सलाखों तक, आन्दोलन सिमट नहीं गया था। जन-जन के दिल में एक आक्रोश था। खोये हुए लोकतंत्र की एक तड़प थी। दिन-रात जब समय पर खाना खाते हैं तब भूख क्या होती है इसका पता नहीं होता है वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकारों की क्या मज़ा है वो तो तब पता चलता है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेता है।आपातकाल में, देश के हर नागरिक को लगने लगा था कि उसका कुछ छीन लिया गया है। जिसका उसने जीवन में कभी उपयोग नहीं किया था वो भी अगर छिन गया है तो उसका एक दर्द, उसके दिल में था और ये इसलिए नहीं था कि भारत के संविधान ने कुछ व्यवस्थायें की हैं जिसके कारण लोकतंत्र पनपा है।समाज व्यवस्था को चलाने के लिए, संविधान की भी जरुरत होती है, कायदे, कानून, नियमों की भी आवश्यकता होती है, अधिकार और कर्तव्य की भी बात होती है लेकिन, भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हमारे लिए, कानून नियमों से परे लोकतंत्र हमारे संस्कार हैं, लोकतंत्र हमारी संस्कृति है, लोकतंत्र हमारी विरासत है और उस विरासत को लेकरके हम पले-बड़े लोग हैं और इसलिए उसकी कमी देशवासी महसूस करते हैं और आपातकाल में हमने अनुभव किया था और इसीलिए देश, अपने लिए नहीं, एक पूरा चुनाव अपने हित के लिए नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए आहूत कर चुका था। शायद, दुनिया के किसी देश में वहाँ के जन-जन ने, लोकतंत्र के लिए, अपने बाकी हकों की, अधिकारों की,आवश्यकताओं की, परवाह ना करते हुए सिर्फ लोकतंत्र के लिए मतदान किया हो,तो ऐसा एक चुनाव, इस देश ने 77 (सतत्तर) में देखा था। हाल ही में लोकतंत्र का महापर्व, बहुत बड़ा चुनाव अभियान, हमारे देश में संपन्न हुआ। अमीर से लेकर ग़रीब, सभी लोग इस पर्व में खुशी से हमारे देश के भविष्य का फैसला करने के लिए तत्पर थे।
गुजरात में वांचे गुजरात अभियान एक सफल प्रयोग रहा। लाखों की संख्या में हर आयु वर्ग के व्यक्ति ने पुस्तकें पढ़ने के इस अभियान में हिस्सा लिया था।आज की digital दुनिया में, Google गुरु के समय में, मैं आपसे भी आग्रह करूँगा कि कुछ समय निकालकर अपने daily routine में किताब को भी जरुर स्थान दें। आप सचमुच में बहुत enjoy करेंगे और जो भी पुस्तक पढ़े उसके बारे में NarendraModi App पर जरुर लिखें ताकि ‘मन की बात’ के सारे श्रोता भी उसके बारे में जान पायेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे इस बात की ख़ुशी है कि हमारे देश के लोग उन मुद्दों के बारे में सोच रहे हैं, जो न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी बड़ी चुनौती है। मैं NarendraModi App और Mygov पर आपके Comments पढ़ रहा था और मैंने देखा कि पानी की समस्या को लेकर कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा है। बेलगावी (Belagavi)के पवन गौराई, भुवनेश्वर के सितांशू मोहन परीदा इसके अलावा यश शर्मा, शाहाब अल्ताफ और भी कई लोगों ने मुझे पानी से जुड़ी चुनौतियों के बारे में लिखा है। पानी का हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है। ऋग्वेद के आपः सुक्तम् में पानी के बारे में कहा गया है :
बिरसा मुंडा की धरती, जहाँ प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना संस्कृति का हिस्सा है। वहाँ के लोग, एक बार फिर जल संरक्षण के लिए अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। मेरी तरफ से, सभी ग्राम प्रधानों को, सभी सरपंचों को, उनकी इस सक्रियता के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें। देशभर में ऐसे कई सरपंच हैं, जिन्होंने जल संरक्षण का बीड़ा उठा लिया है। एक प्रकार से पूरे गाँव का ही वो अवसर बन गया है। ऐसा लग रहा है कि गाँव के लोग, अब अपने गाँव में, जैसे जल मंदिर बनाने के स्पर्धा में जुट गए हैं। जैसा कि मैंने कहा, सामूहिक प्रयास से बड़े सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। पूरे देश में जल संकट से निपटने का कोई एक फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता है। इसके लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग तरीके से, प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन सबका लक्ष्य एक ही है, और वह है पानी बचाना, जल संरक्षण।
पंजाब में drainage lines को ठीक किया जा रहा है। इस प्रयास से water logging की समस्या से छुटकारा मिल रहा है। तेलंगाना के Thimmaipalli (थिमाईपल्ली) में टैंक के निर्माण से गाँवों के लोगों की जिंदगी बदल रही है। राजस्थान के कबीरधाम में, खेतों में बनाए गए छोटे तालाबों से एक बड़ा बदलाव आया है। मैं तमिलनाडु के वेल्लोर (Vellore)में एक सामूहिक प्रयास के बारे में पढ़ रहा था जहाँ नागनदी (Naagnadhi)को पुनर्जीवित करने के लिए 20 हजार महिलाएँ एक साथ आई। मैंने गढ़वाल की उन महिलाओं के बारे में भी पढ़ा है, जो आपस में मिलकर rainwater harvesting पर बहुत अच्छा काम कर रही हैं। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार के कई प्रयास किये जा रहे हैं और जब हम एकजुट होकर, मजबूती से प्रयास करते हैं तो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं। जब जन-जन जुड़ेगा, जल बचेगा। आज ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं देशवासियों से 3 अनुरोध कर रहा हूँ।
मेरा पहला अनुरोध है – जैसे देशवासियों ने स्वच्छता को एक जन आंदोलन का रूप दे दिया। आइए, वैसे ही जल संरक्षण के लिए एक जन आंदोलन की शुरुआत करें। हम सब साथ मिलकर पानी की हर बूंद को बचाने का संकल्प करें और मेरा तो विश्वास है कि पानी परमेश्वर का दिया हुआ प्रसाद है, पानी पारस का रूप है। पहले कहते थे कि पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। मैं कहता हूँ, पानी पारस है और पारस से, पानी के स्पर्श से, नवजीवन निर्मित हो जाता है। पानी की एक-एक बूंद को बचाने के लिए एक जागरूकता अभियान की शुरुआत करें। इसमें पानी से जुड़ी समस्याओं के बारे में बतायें, साथ ही, पानी बचाने के तरीकों का प्रचार-प्रसार करें। मैं विशेष रूप से अलग-अलग क्षेत्र की हस्तियों से, जल संरक्षण के लिए,innovative campaigns का नेतृत्व करने का आग्रह करता हूँ। फिल्म जगत हो, खेल जगत हो, मीडिया के हमारे साथी हों, सामाजिक संगठनों से जुड़ें हुए लोग हों, सांस्कृतिक संगठनों से जुड़ें हुए लोग हों, कथा-कीर्तन करने वाले लोग हों, हर कोई अपने-अपने तरीके से इस आंदोलन का नेतृत्व करें। समाज को जगायें, समाज को जोड़ें, समाज के साथ जुटें। आप देखिये, अपनी आंखों के सामने हम परिवर्तन देख पायेंगें।
देशवासियों से मेरा दूसरा अनुरोध है। हमारे देश में पानी के संरक्षण के लिए कईपारंपरिकतौर-तरीके सदियों से उपयोग में लाए जा रहे हैं। मैं आप सभी से, जल संरक्षण के उन पारंपरिक तरीकों को share करने का आग्रह करता हूँ। आपमें से किसी को अगर पोरबंदर,पूज्य बापू के जन्म स्थान पर जाने का मौका मिला होगा तो पूज्य बापू के घर के पीछे ही एक दूसरा घर है, वहाँ पर, 200 साल पुराना पानी काटांका(Water Storage Tank) है और आज भी उसमें पानी है और बरसात के पानी को रोकने की व्यवस्था है, तो मैं, हमेशा कहता था कि जो भी कीर्ति मंदिर जायें वो उस पानी के टांके को जरुर देखें। ऐसे कई प्रकार के प्रयोग हर जगह पर होंगे।