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NamoApp पर मुम्बई के अभिषेक जी ने एक message पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि 2020 ने जो-जो दिखा दिया, जो-जो सिखा दिया, वो कभी सोचा ही नहीं था। कोरोना से जुड़ी तमाम बातें उन्होंने लिखी हैं। इन चिट्ठियों में, इन संदेशों में, मुझे, एक बात जो common नजर आ रही है, ख़ास नजर आ रही है, वो मैं आज आपसे share करना चाहूँगा। अधिकतर पत्रों में लोगों ने देश के सामर्थ्य, देशवासियों की सामूहिक शक्ति की भरपूर प्रशंसा की है। जब जनता कर्फ्यू जैसा अभिनव प्रयोग, पूरे विश्व के लिए प्रेरणा बना, जब, ताली-थाली बजाकर देश ने हमारे कोरोना वारियर्स का सम्मान किया था, एकजुटता दिखाई थी, उसे भी, कई लोगों ने याद किया है।
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देश के सामान्य से सामान्य मानवी ने इस बदलाव को महसूस किया है। मैंने, देश में आशा का एक अद्भुत प्रवाह भी देखा है। चुनौतियाँ खूब आईं। संकट भी अनेक आए। कोरोना के कारण दुनिया में supply chain को लेकर अनेक बाधाएं भी आईं, लेकिन, हमने हर संकट से नए सबक लिए। देश में नया सामर्थ्य भी पैदा हुआ। अगर शब्दों में कहना है, तो इस सामर्थ्य का नाम है ‘आत्मनिर्भरता’।
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मुझे विशाखापत्तनम से वेंकट मुरलीप्रसाद जी ने जो लिखा है, उसमें भी एक अलग ही तरह का idea है। वेंकट जी ने लिखा है, मैं, आपको, twenty, twenty one के लिए, दो हजार इक्कीस के लिए, अपना ABCattach कर रहा हूँ। मुझे कुछ समझ में नहीं आया, कि आखिर ABC से उनका क्या मतलब है। तब मैंने देखा कि वेंकट जी ने चिट्ठी के साथ एक चार्ट भी attach कर रखा है। मैंने वो चार्ट देखा, और फिर समझा कि ABCका उनका मतलब है – आत्मनिर्भरभारत चार्ट ABC। यह बहुत ही दिलचस्प है। वेंकट जी ने उन सभी चीजों की पूरी list बनायी है, जिन्हें वो प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं। इसमें electronics, stationery, self care items उसके अलावा और भी बहुत कुछ शामिल हैं।वेंकट जी ने कहा है, कि, हम जाने-अनजाने में, उन विदेशी products का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनके विकल्प भारत में आसानी से उपलब्ध हैं। अब उन्होंने कसम खाई है कि मैं उसी product का इस्तेमाल करूंगा, जिनमें हमारे देशवासियों की मेहनत और पसीना लगा हो।
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आइये अब बात करते हैं झारखण्ड की कोरवा जनजाति के हीरामन जी की। हीरामन जी, गढ़वा जिले के सिंजो गाँव में रहते हैं। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कोरवा जनजाति की आबादी महज़ 6,000 है, जो शहरों से दूर पहाड़ों और जंगलों में निवास करती है। अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए हीरामन जी ने एक बीड़ा उठाया है। उन्होंने 12 साल के अथक परिश्रम के बाद विलुप्त होती, कोरवा भाषा का शब्दकोष तैयार किया है। उन्होंने इस शब्दकोष में, घर-गृहस्थी में प्रयोग होने वाले शब्दों से लेकर दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले कोरवा भाषा के ढेर सारे शब्दों को अर्थ के साथ लिखा है। कोरवा समुदाय के लिए हीरामन जी ने जो कर दिखाया है, वह, देश के लिए एक मिसाल है।
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ऐसा कहते हैं कि अकबर के दरबार में एक प्रमुख सदस्य – अबुल फजल थे। उन्होंने एक बार कश्मीर की यात्रा के बाद कहा था कि कश्मीर में एक ऐसा नजारा है, जिसे देखकर चिड़चिड़े और गुस्सैल लोग भी खुशी से झूम उठेंगे। दरअसल, वे, कश्मीर में केसर के खेतों का उल्लेख कर थे। केसर, सदियों से कश्मीर से जुड़ा हुआ है। कश्मीरी केसर मुख्य रूप से पुलवामा, बडगाम और किश्तवाड़ जैसी जगहों पर उगाया जाता है। इसी साल मई में, कश्मीरी केसर को Geographical Indication Tag यानि GI Tag दिया गया। इसके जरिए, हम, कश्मीरी केसर को एक Globally Popular Brand बनाना चाहते हैं। कश्मीरी केसर वैश्विक स्तर पर एक ऐसे मसाले के रूप में प्रसिद्ध है, जिसके कई प्रकार के औषधीय गुण हैं। यह अत्यंत सुगन्धित होता है, इसका रंग गाढ़ा होता है और इसके धागे लंबे व मोटे होते हैं। जो इसकी Medicinal Value को बढ़ाते हैं। यह जम्मू और कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। Quality की बात करें, तो, कश्मीर का केसर बहुत unique है और दूसरे देशों के केसर से बिलकुल अलग है। कश्मीर के केसर को GI Tag Recognition से एक अलग पहचान मिली है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि कश्मीरी केसर को GI Tag का सर्टिफिकेट मिलने के बाद दुबई के एक सुपर मार्किट में इसे launch किया गया। अब इसका निर्यात बढ़ने लगेगा। यह आत्मनिर्भर भारत बनाने के हमारे प्रयासों को और मजबूती देगा। केसर के किसानों को इससे विशेष रूप से लाभ होगा। पुलवामा में त्राल के शार इलाके के रहने वाले अब्दुल मजीद वानी को ही देख लीजिए। वह अपने GI Tagged केसर को National Saffron Mission की मदद से पम्पोर के Trading Centre में E-Trading के जरिए बेच रहे हैं।इसके जैसे कई लोग कश्मीर में यह काम कर रहे है। अगली बार जब आप केसर को खरीदने का मन बनायें, तो कश्मीर का ही केसर खरीदने की सोचें। कश्मीरी लोगों की गर्मजोशी ऐसी है कि वहाँ के केसर का स्वाद ही अलग होता है|
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अभी हम, जिज्ञासा से, कुछ नया सीखने और करने की बात कर रहे थे। नए साल पर नए संकल्पों की भी बात कर रहे थे। लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो लगातार कुछ-न-कुछ नया करते रहते हैं, नए-नए संकल्पों को सिद्ध करते रहते हैं। आपने भी अपने जीवन में महसूस किया होगा, जब हम समाज के लिए कुछ करते हैं तो बहुत कुछ करने की उर्जा समाज हमें खुद ही देता है। सामान्य सी लगने वाली प्रेरणाओं से बहुत बड़े काम भी हो जाते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं श्रीमान प्रदीप सांगवान ! गुरुग्राम के प्रदीप सांगवान 2016 से Healing Himalayas नाम से अभियान चला रहे हैं। वो अपनी टीम और volunteers के साथ हिमालय के अलग-अलग इलाकों में जाते हैं, और जो प्लास्टिक कचरा टूरिस्ट वहाँ छोड़कर जाते हैं, वो साफ करते हैं। प्रदीप जी अब तक हिमालय की अलग-अलग टूरिस्ट locations से टनों प्लास्टिक साफ कर चुके हैं। इसी तरह, कर्नाटका के एक युवा दंपति हैं, अनुदीप और मिनूषा। अनुदीप और मिनूषा ने अभी पिछले महीने नवम्बर में ही शादी की है। शादी के बाद बहुत से युवा घूमने फिरने जाते हैं, लेकिन इन दोनों ने कुछ अलग किया। ये दोनों हमेशा देखते थे कि लोग अपने घर से बाहर घूमने तो जाते हैं, लेकिन, जहाँ जाते हैं वहीँ ढ़ेर सारा कूड़ा-कचरा छोड़ कर आ जाते हैं। कर्नाटका के सोमेश्वर beach पर भी यही स्थिति थी। अनुदीप और मिनूषा ने तय किया कि वो सोमेश्वर beach पर, लोग, जो कचरा छोड़कर गए हैं, उसे साफ करेंगे। दोनों पति पत्नी ने शादी के बाद अपना पहला संकल्प यही लिया। दोनों ने मिलकर समंदर तट का काफी कचरा साफ कर डाला। अनुदीप ने अपने इस संकल्प के बारे में सोशल मीडिया पर भी share किया। फिर क्या था, उनकी इतनी शानदार सोच से प्रभावित होकर ढ़ेर सारे युवा उनके साथ आकर जुड़ गए। आप जानकर हैरान रह जाएंगे। इन लोगों ने मिलकर सोमेश्वर beach से 800 किलो से ज्यादा कचरा साफ किया है।
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